मीता एक लड़की के संघर्ष की कहानी - अध्याय - 11 Bhupendra Kuldeep द्वारा प्रेम कथाएँ में हिंदी पीडीएफ

Featured Books
श्रेणी
शेयर करे

मीता एक लड़की के संघर्ष की कहानी - अध्याय - 11

अध्याय-11


इधर थोड़ी देर बाद सुबोध ने मीता को फोन किया तो उसका फोन स्वीच ऑफ बताया। उसने सोचा कि हो सकता है चार्जिंग खत्म हो गया हो इसलिए उसने आधे घंटे के बाद फिर फोन लगाया। फिर से फोन स्वीच ऑफ बता रह था। वो 2 घंटे तक बीसों बार फोन लगाने की कोशिश करता रहा पर सब बेकार अब भी फोन स्वीच ऑफ ही बता रहा था। चूंकि रात ज्यादा हो गई थी इसलिए वो परेशान मन से ही शांत हो गया। उसने फिर फोन नहीं लगाया। सोचा हो सकता है फोन खराब हो गया हो। सुबह प्रशासन अकादमी ही जाकर देखूँगा। यह सोचकर वो सोने की कोशिश करने लगा। परंतु रात भर उसे नींद नहीं आई।
दूसरे दिन सुबह मि. शर्मा प्रशासन अकादमी पहले पहुँच गए। उन्होंने डायरेक्टर साहब से परमिशन लिया और मीता का समान सहित आने की प्रतीक्षा करते रहे। डायरेक्टर साहब तो लगभग सारी घटनाओं को जानते थे इसलिए उन्होंने उसे विशेष परमिशन दे दिया। थोड़ी देर में मीता आती दिखाई दी। वो आकर अपने पापा से लिपट गई और रोने लगी।
मैं क्या करूँ बेटा मुझे समझ में ही नहीं आ रहा हे। पापा बोले।
मुझे घर ले चलिए पापा नहीं तो सुबोध भी आ ही जाएगा। कल रात को उसने मुझे फोन करने का प्रयास किया होगा और बात नहीं होने पर पक्का अभी आता होगा। यहाँ से जल्दी चलिए।
मि. शर्मा ने उसका सामान उठाया गाड़ी में डाली और घर की ओर निकल गए। मीता का शक एकदम सही था। थोड़ी देर बाद सुबोध वहाँ आ गया। पता चला कि थोड़ी देर पहले ही उसके पापा उसे आकर ले गए। उसे सुख मिश्रित थोड़ आश्चर्य हुआ। वो सोचने लगा।
ये तो अच्छी बात है कि उसके पापा उसे ले गए। मतलब उनकी शायद नाराजगी दूर हो गई हो। पर मीता ने मुझे बताया क्यों नहीं। क्या ऐसी बात हो गई कि उसने मुझे फोन भी नहीं किया। उसने खड़े होकर फिर से फोन ट्राई किया। मीता का फोन अब भी स्वीच ऑफ आ रहा था। उसने सोचा शायद कोई घरेलू मैटर हो और मुझे शाम तक प्रतीक्षा कर लेनी चाहिए। आखिर वो अपने घर ही गई है सोचकर वहाँ से लौट गया।
शाम तक ना तो मीता का फोन आया ना ही उसके घर से किसी का फोन आया। अब वो थोड़ा परेशान होने लगा।
उसे लगा कि एक बार उसे मीता के घर जाकर देख लेना चाहिए कि मीता सुरक्षित है या नहीं। वो थोड़ी ही देर में मीता के घर पहुँच गया। मीता का घर आफिसर्स कॉलोनी में था इसलिए उसके घर से लगे हुए और भी कई अधिकारियों के घर थे। वो चुपचाप जाकर घर के बाहर खड़ा हो गया और कालबेल बजाया। थोड़ी देर में श्यामा देवी ने दरवाजा खोला।
जी मेरा नाम सुबोध है। क्या मीता है घर पर ?
श्यामा देवी चुप थी।
क्या मीता मेरी पत्नि यहाँ आई है ? मुझे प्रशासन अकादमी से पता चला है कि उसके पापा सुबह उसे लेने गए थे और वो उनके साथ वो वहाँ से अपने घर के लिए निकली है। बताईये ना माँ जी क्या वो घर आई है ?
श्यामा देवी कुछ नहीं बोली और दरवाजा बंद करके अंदर चली गई। सुबोध वहीं खड़ा रहा।
बाहर सुबोध आया है। मीता की माँ ने उसे बताया।
क्या वो बाहर खड़ा है ? मीता बोली।
हाँ, और तुम्हारे बारे में पूछ रहा है।
मैं क्या करूँ पापा। आप बताईये। ये तो होना ही था वो मेरे बगैर नहीं रह सकता। मेरे गुनाहों की सजा उसे मिल रही है और आप दोनो को भी। वो सुबकने लगी। अब आप ही जाईये और उसे बताईये कि मैंने उसे छोड़ दिया है। मेरी तो हिम्मत नहीं है उसके सामने जाने की। प्लीज आप ही जाईये और उसे बताईये।
उसके पापा चुप बैठे थे। तभी फिर से घंटी बजी।
मैं अब नहीं जाऊँगी बाहर। वो मुझसे सवाल जवाब करेगा। जिसके उत्तर मेरे पास नहीं हैं। श्यामा देवी बोली।
जाओ ना माँ। उसको बोलो कि पापा आ रहे हैं। मीता रोते हुए बोली।
मेरी तो हिम्मत ही नहीं हो रही है जी। श्यामा देवी बोली।
जाओ बोल दो कि मैं आ रहा हूँ। श्यामा देवी डरते घबराते हुए दरवाजा खोली।
आप बताती क्यों नहीं ? मेरी मीता है क्या यहाँ ?
आधे घंटे से खड़ा हूँ आप लोग कोई जवाब क्यों नहीं दे रहे हो। आप मुझे बस ये बता दीजिए कि वो यहाँ है कि नहीं। मैं चुपचाप चला जाऊँगा। बाद में उसे ले जाऊँगा।
चिंता मत करिए आप लोगों के फैमिली मैटर में कोई दखल नहीं दूँगा। सुबोध बोला।
मीता के पापा तुमसे कुछ बात करना चाहते हैं, यहीं रूको।
सुबोध को थोड़ा अजीब सा लगा। आखिर वो मुझसे क्या बात करना चाहते हैं ? जो भी बात थी वो मीता तो मुझे बता सकती थी। वो एकदम संशय की स्थिति में था।
तभी उसके पापा बाहर आते दिखाई दिए। वो बाहर आकर खड़े हुए तो सुबोध ने पूछा।
सर आप लोग बताते क्यों नहीं है मेरी मीता कहाँ है। वो घर पर है कि नहीं?
अगर कोई प्राबलम है तो इतना बता दीजिए कि वो ठीक है कि नहीं और घर में है?
देखो सुबोध मेरी बात ध्यान से सुनो आज से तीन साल पहले जब तुमने मीता से शादी की थी तो उसे अपने अच्छे बुरे की कोई समझ नहीं थी। वो तुम्हारे प्यार मे अंधी हो गई थी। ये जानते हुए कि तुम्हारे पास रहने खाने के लिए भी ठीक ढंग से नहीं है। वो अपने परिवार माता-पिता को छोड़कर तुम्हारे पीछे चली गई।
तो ? सुबोध थोड़ा आशंकित हो गया।
तो आज जब वो अपने पिता के समकक्ष अधिकारी बन गई है तो उसे आसमान में उड़ने दो। तुम क्यों उसके पीछे पड़े हुए हो ?
मतलब मैं नहीं समझा सर आपका। आप क्या कहना चाहते हैं कि मैं उसको उड़ने नहीं दे रहा हूँ बल्कि मैं तो मरकर भी उसके सपनों को पूरा करना चाहता हूँ।
तुम समझ नहीं रहे हो सुबोध। मि. शर्मा सीधे सीधे बोलने की हिम्मत नहीं कर पा रहे थे।
मैं क्या नहीं समझ पा रहा हूँ सर प्लीज बताईये। सुबोध बोला।
सुबोध तुम ये नहीं समझ पा रहे हो कि उसकी दुनियां बदल गई है उसका स्टेटस बदल गया है। तुम उसको अपने स्टेटस के हिसाब से जीने दो।
आप मुझे घुमाकर क्यों बोल रहें हैं सर। साफ-साफ बताईये क्या बात है।
साफ-साफ बात ये है कि वो अब तुम्हारे साथ नहीं रहना चाहती। शर्मा जी का दिल भी जोर-जोर से धड़क रहा था।
सुबोध एकदम से शॉक्ड हो गया।
क्या! क्या बोले आप ? फिर से बोलिए।
मैंने बोला ना सुबोध मीता तुमसे अलग होना चाहती है।
मजाक कर रहे हैं आप ?
नहीं मैं मजाक नहीं कर रहा हूँ सुबोध। वो सचमुच तुमसे अलग होना चाहती है।
झूठ बोल रहे हैं आप। सुबोध चिल्लाते हुए बोला।
ये सच नहीं हो सकता। कल तक तो सब ठीक था। आज अचानक क्या हो गया।
आपने भड़काया उसको। मेरी मीता ऐसा नहीं कर सकती।
उधर मीता ऊपर के कमरे में परदे के पीछे से सब देख रही थी। वो अचानक जोर-जोर से रोने लगी।
मैं सच कह रहा हूँ सुबोध देखो इस बात को तुम अच्छी तरह समझ जाओ तो अच्छा है। वो अब तुमसे निभा नहीं सकती।
ऐसा उसने कहा ? सुबोध ने पूछा।
ऐसी ही उसकी मंशा है।
नहीं मैं नहीं मानता। आप झूठ बोल रहे हैं। मीता ऐसा कर ही नहीं सकती। मुझे उसके ऊपर अपनी जान से भी ज्यादा भरोसा है। आप मीता को बुलाईये, मीता। मीता। मीता। बाहर आओ मीता। वो जोर-जोर से चिल्लाने लगा। तभी जोरों की बारिश शुरू हो गई।
देखो चिल्लाने से कोई फायदा नहीं होगा। मैं सच बोल रहा हूँ।
आप उसे अभी बुलाईये। मैं नहीं मानूँगा आपकी बात। वो अभी भी रो रहा था। आप उसे बाहर बुलाईये। मीता। मीता। तुम बाहर क्यों नहीं आ रही हो। देखो तुम्हारे पापा क्या बोल रहे हैं। बाहर आओ और बताओ कि ये सब झूठ है। ये सब झूठ है। कहकर वो झुककर रोने लगा।
ये सब सच है सुबोध। तुम्हारे लिए यही अच्छा है कि तुम उसे भूल जाओ।
आप समझते क्यों नहीं सर। मैं उसके बगैर नहीं जी सकता। बस एक बार आप उसको बुला दीजिए। मीता। मीता। बाहर आओ मीता। वो जोर जोर से दीवार पीट कर रोने लगा। वो बारिश में भीगता गया। आप जब तक नहीं बुलाते मैं यहीं बैठूँगा।
वो रोड के बीच में उसके घर के सामने बैठ गया। जोरों से बारिश हो रही थी। वो ठंड के मारे एकदम काँप रहा था और जोर जोर से रो रहा था। मीता भी ऊपर कमरे की खिड़की से छिपकर परदे में मुँह दबाकर रो रही थी। वो देख रही थी कि सुबोध ठंड के मारे काँप रहा है फिर भी इतनी बारिश में सिर्फ उसके लिए रोड पर बैठकर रो रहा है।
सुबोध तुम्हारे लिए यहाँ से चले जाना ही उचित है। क्यों उसका इंतजार कर रहे हो। उसने फैसला ले लिया है। मि. शर्मा बोलो।
तो बाहर आकर कहती क्यो नहीं मुझसे। अगर ये सच होता तो वो खुद बाहर आकर कहती। मीता। बाहर आओ मीता। बाहर आओ। वो चिल्लाता रहा।
ये नाम मीता के कान में जोर जोर से पड़ रहे थे। इस आवाज की चोट उसके दिल तक जा रही थी। पर क्या करती उसकी हिम्मत ही नहीं हो रही थी कि सुबोध के सामने जा सके। लेकिन वो देख पा रही थी कि भारी बारिश में सुबोध बाहर बैठा हुआ है, भीग रहा है, रो रहा है और इससे उसकी तबियत भी खराब हो सकती है।
अचानक वो उठी, आँसू पोछी और तेजी से बाहर निकलकर आई।
तुम्हें समझ में नहीं आता। जब पापा ने बोल दिया मैं अलग होना चाहती हूँ तो वो सच ही बोलेंगे ना ? चलो जाओ यहाँ से। घर जाओ।
सुबोध एकदम शॉक्ड था।
कौन सा घर मीता। तुम्हारे बगैर वो घर है क्या, और ये तुम बोल रही हो। तुम मुझसे अलग होना चाहती हो। क्यूँ मीता क्यूँ ? मुझसे क्या गलती हो गई मीता, और अगर मुझसे गलती हो भी गई है तो मुझे मारो, मुझे पीटो पर भगवान के लिए मुझे अपने से अलग मत करो।
मीता अपने आँसूओं पर कंट्रोल नही कर पा रही थी। वो लाख कोशिश कर रही थी पर उसकी आँखे भर आती थी। वो चेहरा पीछे करके अपने आँसू पोछी।
मैंने कहा ना अब मैं तुम्हारे साथ नहीं रहना चाहती।
क्यूँ मीता क्यूँ ?
बस नहीं रहना चाहती, तुम्हें कारण बताना जरूरी नहीं समझती।
नहीं तुम्हें कारण बताना पड़ेगा। यह कहकर उसने मीता का हाथ पकड़ लिया। वो अब भी रो रहा था। मीता ने जैसे ही उसका हाथ पकड़ा उसे लगा कि सुबोध को तेज बुखार है उसका हाथ एकदम गरम था और वो एकदम काँप रहा था।
कारण ये है सुबोध के मैंने किसी और के साथ शादी करने का फैसला कर लिया है। अब तुम मुझे छोड़ो और घर चले जाओ।
क्या ? तुम ये क्या बोल रही हो मीता ? उसने हाथ की पकड़ ढीली कर दी। मीता ने अपना हाथ छुड़ा लिया। सुबोध दोनो हाथों से मुँह दबाकर रोने लगा।
मीता देख रह थी कि सुबोध जोर जोर से रो रहा है और काँप रहा है।
देखो सुबोध तुम्हारे लिए यही अच्छा है कि तुम मुझे भूलकर अपनी जिंदगी जिओ। मीता बोली।
मुझे अब भी यकीन नहीं हो रहा है मीता कि तुम ऐसा कर सकती हो। क्या तुम किसी दबाव में हो तो बताओ मैं सब ठीक कर दूंगा। पर मुझे मत छोड़ो मीता। भगवान के लिए मुझ मत छोड़ो। तुम धोखेबाज नहीं हो सकती मीता, भगवान के लिए बोल दो। उसकी आँखों में आँसू भरे थे।
मैं धोखेबाज हूँ सुबोध। यही समझ के यहाँ से चले जाओ। मैं अब वापस नहीं आने वाली।
मीता।
सुबोध। सुबोध।
मीता ने देखा कि सुबोध बेहोश हो गया है।
पापा तुरंत एंबुलेंस बुलाईये। इसे जल्दी हॉस्पिटल पहुँचाना पड़ेगा।
मि. शर्मा ने 108 को फोन किया और दस मिनट के अंदर गाड़ी आ गई। उन्होंने सुबोध को उठाया और गाड़ी में डाल दिये।
भैया। ये उनके बड़े भाई का फोन नम्बर है। अस्पताल पहुँचकर तुरंत इलाज करिए।
और उन्हें फोन करके बता दीजिए।
इनकी स्थिति ठीक हो जाए तो मुझे भी फोन करके बता दीजिए प्लीज। ये मेरा नम्बर है। पापा आप डॉक्टर साहब को फोन कर दीजिए। उन्हें कुछ नहीं होना चाहिए। मेरी आत्मा है वो, कुछ भी करें लेकिन उन्हें तत्काल ठीक करें।
ठीक है बेटा मैं फोन कर देता हूँ।

क्रमशः

मेरी अन्य दो कहानिया उड़ान और नमकीन चाय भी matrubharti पर उपलब्ध है कृपया पढ़कर समीक्षा अवश्य दे- भूपेंद्र कुलदीप।