गूंगा गाँव - 13 रामगोपाल तिवारी (भावुक) द्वारा सामाजिक कहानियां में हिंदी पीडीएफ

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गूंगा गाँव - 13

तेरह

गूंगा गाँव 13

गाँव में चार लोग इकटठे हुये कि पहले वे अपने-अपने दुखना रोयंगे।उसके बाद गाँव की समस्याओं पर बात करने लगेंगे। उस दिन भी दिन अस्त होने को था, गाँव के लोग हनुमान जी के मन्दिर पर हर रोज की तरह अपने पशुओं को लेने इकटठे होने लगे। लोगों में पशुओं के चारे की समस्या को लेकर बात चल पड़ी। मौजी भी वहाँ आ गया। उसने लोगों में चल रही चर्चा सुन ली थी। वह सोचते हुये बोला-‘भज्जा,मैं कुछ कहूँ तो लगेगा, मौजी अपनी होशियारी बताने लगा है। इसीलिये चुप रह जाता हूँ।’

रामदास ने बात उकसाना चाही, बोला-‘मौजी, होशियारी की बात कहे ते कहत रहे लेकिन बात कहने में चूकनों नहीं चहिये।’

मौजी बोला-‘अरे! भज्जा समय खराब है। व बेचारो कुन्दन मास्टर ,हम सब के भले की बात कह देतो सो सब बाके पीछें पड़ गये। बाकी बदली कराके माने हैं।’

रमेश तिवारी बात का आनन्द लेना चाहता था, इसलिये बोला-‘जे बातें छोड़, मौजी कक्का तें तो अपने मन की बात कह दे।’

यह सुनकर बात गुनते हुये मौजी बोला-‘मन की का है, व आदमी ही कछू और है। अब अपने ही स्कूल के हाल-चाल देख लियो। बाके झें से जातई सब मौज करन लगे। अरे! हमाओ संग देवे में वाय का फायदा भओ?’

रमेश तिवारी ने जवाब दिया-‘ अरे! वाय साहूकारन से दुश्मनी भजानों हती, काये कै बिन्ने बाकी बहिन के ब्याह कों पइसा देवे की मना कर दई, तई जे बातें हैं।’

मौजी के हृदय में बवन्डर सा उठा-‘ तुम बातिन के चाहे जो अर्थ लगा लेऊ। व गरीब आदमिन की जितैक सोचतो इतैक कोऊ नहीं सोचत। जे दिना राहत के काम न चलतये तो सवै दाल-आटे को भाव पतो चल जातो। अरे! चौपिन के काजे चारे की समस्या सब जने चाहें तो एक दिना में हल हो सकते।’

सभी के मुँह से एक साथ निकला-‘ कैसे?’

मौजी ने सोचते हुये उत्तर दिया-‘अरे! गाँव को भुस शहर जाके बिकन लगो। जाय रोको। आदमी नाज तो कैसेंउँ ले आयगो, भुस कौ कहाँ से आयगो?’

खुदाबक्स ने आते हुये बात सुन ली थी, बोला-‘ पहलें साहूकारों के सामने बात रखी जाये। पीछें और बातें सोचीं जायें।’

बातें चल रही थीं कि उसी समय पशु पास आ गये। सभी बात को वहीं कै वहीं छोड़कर अपने-अपने पशुओं के पीछे हो लिये।

इसी रोने-धोने में दीपावली निकल गई। सर्दी का मौसम भी आ गया। रात ठण्ड़ बहुत थी। शीत लहर चल पड़ी है। इस वर्ष पानी न वर्षा था तो ठन्ड़ भी अन्य साल की अपेक्षा अधिक ही पड़ रही है। सूर्य देवता भी इस मौसम में कितनी देर से निकलते हैं?

मौजी के परिवार की हालत बहुत खराब थी। गाँव के आसपास कोसों दूर तक जंगल कट चुके थे। रोटी बनाने के लिये ईंधन की जुगड़ मुश्किल से हो पाती थी। सर्दी के मौसम में तापने के लिये ईंधन के दर्शन ही नहीं हो रहे थे। मौजी के परिवार का दिन तो निकल जाता था, किन्तु रात के सोच में दिन में भी कपकपी लगती रहती थी।एक एक कथरी में भूखे पेट रात काटना कठिन होजाता था। शुरू की रात तो सब पास-पास सोकर एक दूसरे की गरमाहट से काट लेते थे किन्तु सबेरे की रात तो राम-राम कह कर निकलती थी। घर के सभी सदस्यों की बत्तीसी बजने लगती थी। उस समय मौजी उठता और दिन भर में ढूढ़े गये कचरे एवं कन्डियों से आग सुलगाता। घर के सभी लोग इसी प्रतीक्षा में रहते, वे जलती आग देखकर उसके पास झिमिट आते।

अगिहाने की आग ने साथ छोड़ दिया। पौ फटने को होगई। घर के सभी लोग सूरज निकलने की प्रतीक्षा में दरवाजे पर बने चबूतरे पर निकल आये , जैसे नवागत मेहमान के स्वागत में निकलते हैं। सूरज की एकाध किरण दिखी कि उनके हृदय की कली सी खिल गई। उससे गर्मी लेने सूरज की आँख में आँख डालकर उसकी तरफ एकटक देखने लगे। सूरज की गर्मी आँखों के तन्तुओं से अन्दर तक पहुचने लगी। इस आलिंगन से रात की बेचैनी धीरे-धीरे तिरोहित होने लगी। घर के लोग ठन्ड को कोसने लगे। सम्पतिया कह रही थी-‘ठण्ड में तो गरीब आदमी को मरिवो है। जासे गरमी के दिन अच्छे, कथई- गूदरी की जरूरत तो नहीें पत्त। मै कल्ल ठाकुर साब के झा गई हती, सो बिन्ने सफाँ फटी-फटाई कथरी पकरा दई। बामें मेरी नेकऊ ठण्ड नहीं बची। सब रात कपिवे करी।’ घर के अन्य लोग इस समय भी अपने-अपने फटे-फटाये पंचों को इस तरह छाती से चिपकाये हुये थे जैसे माँ अपने शिशुओं को बदन से चिपकाये रखती है।

ठण्ड छूटते ही काम का वक्त होगया। फिर भी वे अपने को और अधिक गरमाने के चक्कर में अपनी जगह से नहीं हट रहे थे। मौजी उन्हें काम पर जाने के लिये रोज की तरह जोर-जोर से गलियाँ देते हुये डाँटने लगा। वे उसकी बात की आनाकानी करने लगे तो वह और तेज आवाज में कहने लगा।

हनुमानजी के मन्दिर पर धूप का आनन्द लेने खड़े लोगों को मौजी के यहाँ लड़ने की आवाजें सुन पड़ी। एक बोला-‘मौजी के झाँ तो लड़ाई चरचरा रही है।’

दूसरा मजाक उडाते हुये बोला-‘वे सब रात की ठन्ड भगा रहे हैं।’

पहले ने उसे समझाया-‘यह तो उनकी आदत में सुमार हो गया है। रोज ऐसें हीं लड़िवे कत्तयें।’

दूसरा भी उसे उल्टे ही समझाने लगा-‘ लड़ते कहाँ हैं, वे बातें ही इसी तरह करते है। उन्हें धीरे-धीरे बातें करने की आदत ही नहीं है।’

पहले ने उसकी बात की पुष्टि की-‘उनके अन्दर छिपाने को कुछ है ही नहीं। जो है सब कुछ खुले में है।’

दूसरे ने और स्पष्ट किया-‘हमने उसके पास कुछ बचने ही नहीं दिया। उसके पास जो था उसे आज भी छीन रहे हैं।’

ऐसी बातें करते हुये दोनों मौजी के दरवाजे पर आ गये। मौजी अपने घर के सभी लोगों को कोस रहा था-‘बैठे काये हो? काम पै जाओ। सुनतयें ताल पै पार डारिवे को काम चार-छह दिना को ही रह गओ है। सरकार हू पंच-सरपंच पै विश्वास कत्ते। न होय तो मैं आज ही बी0डि0ओ0 के पास जातों, तासे काम चलिवै करैगो। नहीं मोड़ी-मोडा भूखिन मर जाँगे।’

मुल्ला झट से बोला-‘काम बन्द करवावे में सरपंच को हाथ लग रहो है।’

मौजी ने उसकी बात का समर्थन किया-‘ लग ही रओ है। सब गाँवन के सरपंच एकसे ही होतयें। नेकाद लांच बिन्हें सोऊ मिले। नहीं वे भाग-दौड़ काये कों कर रहे हैं।’

मुल्ला ने अपनी राय दी-‘दादा, ऐसे गाँव में रहवे से का फायदा?चल कहूँ अन्त मजदूरी करंगे।’

मौजी ने लड़के को समझाया-‘रे! चील्लन के मारें, कथूला नहीं छोड़ो जात। अरे! न होयगी तो दुबारा भूख हड़ताल कर दंगों।’

दोनों राहगीर उनकी बातें सुनते हुये, मौजी के आत्मविश्वास को परखते हुये नहर की तरफ निकल गये।

दूसरे दिन ही मौजी परसराम जाटव एवं रामहंसा काछी को लेकर बी0डि0ओ0 से मिलने सुबह ही रवाना होगया। दफ्तर में उनसे मिला और अपनी समस्या उन्हें सुनाईं। वे बोले -‘आपकी पंचायत के पंच और सरपंच कह रहे हैं कि अब काम की जरूरत ही नहीं है। लोग काम पर आने की मना कर रहे हैं।’

रामहंसा क्रोध उड़ेलते हुये बोला-‘ वे तो जों चाहतये कै हम भूखिन मर जायें। ज बात न होती तो हम तुम्हाये पास झेंनों काये कों भजत चले आये।’

बी0डि0ओ0 आमरण अनशन के समय से ही मौजी को अच्छी तरह जान गया था। यही सोचकर बोला-‘भई मौजी, तुम चिन्ता मत करो। जब तक तुम नहीं कहोगे, काम बन्द नहीं होगा।’

मौजी बोला-‘मैंने तो अपने साथिन से कह दई हती कै अपने बी0डि0ओ0 साब बड़े भले आदमी हैं। जब नो काम पै भाँ एकऊ आदमी आत रहो तोनों काम बन्द नहीं होनों चहिये। महाराज, मैंने तो जिन्से कह दई है कै काम बन्द भओ कै मैंने अनशन करी। मोय का है मन्नो ही है।’

इसी समय सरपंच भी वहाँ आ पहुँचा। उन्हें देखकर बी0डि0ओ0 बोला-‘सरपंच जी आपके पंच ये क्या कह कर गये थे ?....और मैं यह क्या सुन रहा हूँ? मैं तो आपकी ये सारी बातें कलेक्टर साहब को लिखें देता हूँ।’

सरपंच. झट से बोला-‘ सर मैं यही तो कहने के लिये आपके पास आया हूँ कि काम तब तक बन्द नहीं करें, जब तक एकऊ आदमी काम पै आत रहे। अरे! मौजी तें ज बात मोसे भेंईं कह देतो, मैं का तेरी बात नहीं मान्तो।’अब मौजी को कोई उत्तर देने की जरूरत नहीं थी। मौजी बी0डि0ओ0 साहब से सरपंच की गपसप होते देखकर घर चला आया था।

गाँव भर में यह खबर तेजी से फैल गई कि मौजी जान की बाजी लगाकर नेतागिरी कर रहा है। मौजी सोच रहा था-जीवन की रक्षा के लिये की जाने वाली नेतागिरी लोगों की सच्ची सेवा है।

गाँव में राहत कार्य तेजी से चलने लगा। दोनों तालाबों की मरम्मत का काम चल रहा था। मजदूर अपने-अपने घेरे बनाकर काम कर रहे थे। कुछ मिट्टी खोद रहे थे, कुछ लोग उस मिटटी को पिरियों एवं तस्सलों में भर रहे थे। कुछ पिरियों एवं तस्सलों की मिटटी को तालाब की पार पर ले जाकर डाल रहे थे। यों घर के बूढ़े- बड़े भी अपनी सामर्थ के अनुसार काम कर रहे थे।

मौजी ने सबसे अलग अपने परिवार को लगा रक्खा था। मौजी,रन्धीरा एवं पचरायवारी एक ही जगह पर काम कर रहे थे। रन्धीरा जरा टनका था तो मिटटी खोद रहा था एवं पिरियों में भरता भी जा रहा था। मौजी एवं पचरायवारी उसे सिर पर रखकर तालाब की पार पर लेजाकर डाल रहे थे। रास्ते में दानों में बाते होतीं चलतीं। मौजी पत्नी से कह रहा था-‘ री! त्ूां अभी भी टनकी है।’

वह बोली-‘ तुम्हें कौने चौख लये?’

उसने उत्तर दिया-‘अरे! अब मोय को चौखतो। बस चिन्ता मारैं डार रही है। जौं कहतयें-जनी को खसम जैसें आदमी होतो, बैसें ही आदमी को खसम ज कज्जा होतो। जन्म से मूड़ पै धरो ज कज्जा मेरे प्राण खायें लेतो।’

सम्पतिया ने उसे समझाया-‘ ससुरो सब जिन्दगी पटाओ तोऊ बितकई धरो है। सरकार ने मँाफ कर दओ तोऊ साहूकार माँगिवे में चूक नहीं रहे।’

मौजी बोला-‘ अब जे हमेंशा की तरह मार-कूट कै बसूल करलें, सो कर नहीं सकत। अब तो जिनकी मथाई सी मर गई है। अरे! अब तो जे पइसा बारिन को दुश्मन है तो मौजी। जे समझत का हैं, अब तो मोसे अच्छे-अच्छे कपतयें।’

सम्पतिया को मौजी की शक्ति पर अपार विश्वास होगया था। वह कुछ गुनते हुये बोली-‘मे मन में तो जो आते कै....।’

उसने रिरियाते हुये नम्र बन कर पूछा-‘ कह-कह का आते मन में।’

सम्पतिया ने अपने मन की बात कही-‘जई ,कै अब की बेर तुम चुनाव में मेम्मरी के काजें खड़े हो जइयो। हर बेर अपुन बिन्हें बोट देत आये हैं, एक बेर वे अपुन्ने बोट नहीं दंगे।’

मौजी पूरे उत्साह के साथ बोला-‘चुनाब में होनों ही है खड़े, अरे घर के ही इतैक बोट हैं कै कोऊ हरावे बारो नाने। पर चुप रह, बिन्हें ज बात पतो न चले, नहीं वे अपने सबरे बोट कटवा दंगे। वे बोट लेवो-लेवो जानतयें, एक बेर जीत गओ तो अपने ज गाँव की उन्नति में जी-जान लगा दंगो। फिर नेकाद ऊपर हू सुनी जायगी।अभै तो मोय सब जोईं जानतयें।’

सम्पतिया ने पुनः पति का साहस बढ़ाया-‘अपओ सरपंच अब तुमसे चुपरी-चुपरी बातें कत्तो।’यह सुनकर मौजी शान में तनते हुये बोला-‘ व सब जान गओ है, कल में वी0डि0यो0 से न मिलतो तो ज काम चलिवे बारो न हतो।’यह सुनकर सम्पतिया को लगा-जे अच्छे बने रहें फिर तो सब काम चल्त रहेगो।

दोपहर का समय होगया। काम में ढ़ीलापन आ गया। भूख भी लगने लगी है। सभी अपने-अपने काम का मूल्यांकन करने लगे। कितना काम हुआ है ,हिसाब लगाया जाने लगा। मौजी का काम किसी से कम न बैठ रहा था। रामहंसा हिसाब लगाते हुये बोला-‘मौजी कक्का तेंने तो मोसे हू ज्यादा काम करो है।’

मौजी ने उत्तर दिया-‘मोय का अभै जोंईं जानतओ, अरे! बूढ़ो एन हो गओ तोउ का है, जे हाड़ लोहे के बने हैं। खोड़ के राजा जिन्हें नवा नहीं पाये।’

सम्पतिया ने मौजी की वीरता का वर्णन बड़े उत्साह से किया-‘काम में तो जे ऐसे हतये कै अच्छे-अच्छे पट्ठा जिनके संग नहीं लग पातये। काम में जिन्हें कोऊ नवा नहीं पाओ।’

मौजी के घर के लोग खाना खाने के लिये उसके ही पास आ गये। मौजी ने मुल्ला से काम का हिसाब जानना चाहा, मुल्ला उतना काम न कर पाया था। मौजी उससे बिगड़ते हुये बोला-‘सुसर को बहुरिया से बातें कत्त रहो होयगो। अरे! काम कत्त में बातें तो करो पर हाथ सोऊ चलाऊ।’

सम्पतिया ने लड़के का पक्ष लेते हुये कहा-‘दोऊ बातें कर रहे होंगे तो तुम्हें का जलन होते।’

मौजी बोला-‘ अरे! काम के टेम पै काम सोऊ करो, तबहीं बातें अच्छीं लगतें। जब सरपंच गड्डा नापवे आयगो तब का नपाओगे?’

इनकी बातों का आनन्द लेने आसपास के लोग वहाँ आ गये। यह देखकर मौजी उन से बोला-‘ सब झेंकाये आ गये, तुम अपनो-अपनो काम देखो। नहीं भूखिन मरोगे। जे काल के दिना हैं, ज काल कटि गओ सोई सब जी गये।’

यह सुन कर सभी अपने-अपने काम पर चले गये। मौजी बड़बड़ाता रहा-

‘मुजिया सच्ची कह देतो सो सबै बुरी लगते।’

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