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दह--शत - 19

दह--शत

[ नीलम कुलश्रेष्ठ ]

एपीसोड ---19

फ़िज़ियोथैरेपी रूम में समिधा केस पेपर उसके सहायक को दे देती है। वह रजिस्टर में उसका केस नम्बर लिखने लगता है। समिधा मोहसिना को उत्तर देती है, “अब तो बहुत अच्छी हूँ।”

मोहसिना खुश होकर कहती है, “अब आपको एक डेढ़ महीने तक मेरे पास आना होगा। आप मुझे बहुत अच्छी लगती है, आप की बातें भी। पहले कभी आपसे बात करने का भी अधिक मौका नहीं मिला।”

समिधा की आँखें भर आई। मोहसिना अपनी रौ में कहे जा रही है, “हमारे पड़ौसी बच्चे आपसे पढ़ने आते हैं। सभी आपके बहुत बड़े फ़ैन हैं।”

“मोहसिना ! तुम्हारी बातों से ही मेरी तबियत अच्छी हो रही है।”

“वाऊ!” वह उसे एक स्टूल पर बिठाकर ट्रेक्शन का पट्टा उसकी थोड़ी के नीचे लगाकार मशीन ऑन कर देती है। उसे ऐसा लगता है गर्दन में ये खिंचाव उसे राहत पहुँचा रहा है।

“आपको इस तरह रोज़ दस मिनट ट्रेक्शन लेना होगा।”

“ओ.के. आपका ब्यूटीपार्लर कैसा चल रहा है?”

“वन्डरफ़ुल । ”

मोहसिना का अपना दर्शन है। उसके पास दर्द से कराहते मरीज़ आते हैं। वे भी अधिक अधेड़ या वृद्ध। उन परेशान चेहरों की परेशानियां से निज़ात पाने वह एक डेढ़ घंटे ब्यूटीशियन का काम करती है। इस बहाने जीवन में सौन्दर्यबोध व कलात्मकता बनी रहे। ऐसे ही नीता नौकरी के साथ कविता को गले लगाये रखती हैं। वह कविता में धड़क कर अपनी साँस लेना महसूस करती है।

ट्रेक्शन के बाद वह चलने को तैयार है। उससे गप्पें मारती मोहसिना उसके कंधे पर हाथ रखकर कहती है, “ऐसा लग रहा है आपको जाने न दूँ।”

“अब तो रोज़ आना ही है।” ऐसे निश्छल स्नेह से उसका मन हल्का हो गया।

उसने हल्के मन से गुनगुनाते हुए जैसे ही घर का ताला खोला वैसे ही फ़ोन की घंटी बज उठी। वह अपना पर्स मेज पर रखकर फ़ोन की तरफ दौडी। फ़ोन पर काँपती हुई कमज़ोर आवाज आई, “हल्लो ! क्या समिधा जी बोल रही हैं?”

“जी।”

“मैं अमृता बेन बोल रही हूँ।”

उसके दिल में एक ख़ुशी की लहर उठी, “नमस्ते । अमृताबेन केम छो?”

“कुछ ठीक नहीं है इसलिए आपको फ़ोन किया।” उनकी आवाज़ और काँपने लगती है।

“अरे ! बताइए । क्या बात है?”

वो डूबी हुई चारों तरफ से जकड़ी सी आवाज में बताने लगीं, “एक गुंडे ने मेरे मकान के झूठे दस्तावेज बनाकर उसे किसी को बेच दिया है।”

“क्या?” फ़ोन पकड़े हुए उसका हाथ काँप गया, “आप जैसी बीमार अकेली महिला के साथ ऐसी नीच हरकत किसने की है?”

“है कोई गुंडा। भई ! ये तो दुनिया है।”

“वह आपके बारे में जानता है।”

“हाँ, उसने अख़बार में मेरा इंटरव्यू पढ़ा था। सोचा होगा अकेली बीमार औरत है, क्या कर सकेगी?”

“बताइए मैं आपके लिए क्या कर सकती हूँ?”

“नीता ने कहा था मैं आपको फ़ोन करुँ क्योंकि पुलिस कमिशनर आपकी जाति के हैं शायद आपकी जान पहचान हो ।”

“नहीं, अमृताबेन मेरा उनसे कभी परिचय नहीं हुआ । अब आप क्या करेंगी ?”

“मेरा चचेरा भाई डॉक्टर है । उसका बेटा वकील है । उसे अपना केस दूँगी.यहीं मेरे पास बैठा है । उसी के मोबाइल से आपसे बात कर रही हूँ ।”

“कुछ और काम हो तो बताइये ।”

“ज़रूर, अच्छा नमस्ते ।” अमृताबेन की आवाज़ निराश है, कमज़ोर है लेकिन हारी हुई नहीं ।

अमृताबेन की बीमार कमज़ोर काया उसकी आँखों के सामने तैरने लगी । उनकी आवाज़ का दर्द उसके सीने में फैलने लगा । उसके कान के नीचे झनझनाहट शुरु होकर गर्दन की तरफ बढ़ने लगती है ।

xxxx

अक्टूबर महीने की हल्की नमी का आरम्भ है । साँझ जल्दी घिरने लगी है । अभय रोज़ की तरह टैरेस पर घूमने चले गये हैं । थोड़ी देर बाद उसे लेकर घूमने निकलेंगे ।

वह कपड़े बदलकर तैयार है । उसने एक थाली में प्याज, आलू, लहसुन, हरी मिर्च रखकर उसे मेज पर रखा ही था कि कॉलबेल बज उठी ।

उसने दरवाजा खोलकर देखा, दरवाज़े पर खडे हैं कुर्ते व जीन्स में बबलू जी व उसे सीधी व हिंस्त्र आँखों से घूरती कविता ।

समिधा इस क्षण के लिए तैयार है, संयत भी। कविता की आँखों में आँखें डालकर कहती है, “आइये ।”

बबलू जी ने सोफ़े पर बैठते हुई घुर्राई हुई आवाज़ में पूछा, “भाईसाहब है क्या ?”

“छत पर घूम रहे हैं अभी बुलवाती हूँ ।” वह अंदर जाकर बाई के बेटे से अभय को छत पर से बुलाने के लिए कह आई । उसने पूछा, “पानी लाऊँ ।”

“नहीं ।” उन दोनों ने एक साथ मना किया । वैसे भी वह अपने घर का पानी उन्हें कौन सा पिलाना चाह रही है ।

अभय ऊपर से नीचे उतर आये । उन दोनों ने नमस्ते की । समिधा को कुछ आश्चर्य हुआ । क्योंकि अभय उन्हें देखकर चौंकते नहीं है । वह सोफ़े पर बबलूजी के पास बैठ गये । उनके पास दीवान पर बैठी है कविता । गलीचे के दूसरी तरफ उन तीनों से विपरीत कुर्सी पर बैठी है समिधा । बबलू जी ही बात का आरम्भ करते हैं, “भाई साहब ! आपको पता है मेरे पिताजी ‘डेथ बेड’ पर हैं ।”

“जी, हाँ ।”

“हमारा सारा घर परेशान है, कविता दुखी है और आपकी मेमसाहब उसको फ़ोन पर धमकाती हैं ।”

समिधा ने अकड़ कर जवाब दिया, “बिल्कुल इसे धमकाती हूँ आप अलग अलग शिफ़्ट में ड्यूटी करते हैं । घर पर होते हैं तो सोते रहते हैं । आपको पता है ये एक वर्ष से क्या हरकतें कर रही हैं?”

“मैं पुलिस में रिपोर्ट कर दूँगा । धमकी देने के आरोप में आप जेल भी जा सकती हैं ।”

“मुझे नियम मत सिखाइये लेकिन ग़लती न होने पर धमकी देना अपराध है ।”

बबलू जी ने एक क्षण चश्में से समिधा को घूरा व भरी आवाज़ में बोले, “मैं अपने पिताजी की बीमारी की भागदौड़ में लगा हूँ । यहाँ से कविता रोज़ से रोकर मुझे फ़ोन कर रही थी कि ये आप पर व उस पर इल्ज़ाम लगा रही हैं ।”

वह तुर्शी से बोली, “इल्ज़ाम नहीं लगा रही ‘कन्फ़र्म’ बता रही हूँ । ये हर वर्ष छत पर घूमने जाते हैं । ये खेल कविता ने आरंभ किया है ।”

“आपको ये कहते शर्म नहीं आ रही ?”

“मुझे क्यों शर्म आयेगी? जो अपराधी है, वो शर्माये । ये औरत है या क्या है ? एक वर्ष से ये खेल चल रहा है । जून में आपके घर जाकर इसे इशारे से समझा आई थी फिर भी ये रुक नहीं रही है।”

“देखिए ! त्यौहारों का प्रसाद व रुपये भगवान के सामने रखकर उन्हें हम आपने बुज़ुर्गों को देते हैं। वही सब कविता आपको बड़ा मानकर, आपके पैर छूकर देती है और आप शक कर रही हैं ?”

“ मेरा कोई शक नहीं है । ये तो आप इससे पूछिए हमारी दो पीढ़ियों से जान पहचान है तो कविता को ये रिश्ता बनाने की हिम्मत कैसे हुई?”

कविता चीख पड़ी, “अब बस भी करिए । हम लोगों की उम्र कोई रिश्ता बनाने की है ? हमारे बच्चे ‘यंग’ हैं यदि आप उनकी इशारेबाजी की बात करती तो भी बात गले उतरती ।”

“शट अप कविता !” फिर वह बबलू जी से बोली, “ये रिश्ता साधारण दोस्ती का नहीं है या किसी प्रेम का । मोबाइल पर इनसे वल्गर टॉक्स करके इनकी दिमाग़ी हालत ख़राब की जा रही है । ये गंदी भाषा बोलने लगे हैं ।”

कविता कसमसाती सी बोली, “भाईसाहब! क्या मैं कभी आपसे बात करती हूँ बोलिए । किसने देखा है ? क्या मेरे हसबैंड में कुछ कमी है जो ऐसा करूँगी ?”

अभय भोला सा मुँह बनाकर बोले, “मैं तो आपका मोबाइल नम्बर भी नहीं जानता ।”

समिधा बोली, “आप लोग अपना मोबाइल नंबर की ‘कॉल्स’ की लिस्ट निकलवाइए, सब साबित हो जायेगा ।”

कविता ने अपनी गर्दन उचकाई व शरीर लहराकर बोली, “हम क्यूं करवायें ऐसा ? हम चारों तो एक हैं । आपके घर में आप तीनों एक हो, भाईसाहब बिचारे को अलग कर इनका बायकाट कर रखा है । एकदम अलग ।”

“कविता ! मेरे घर में बैठकर ये क्या कह रही है ?”

अभय का चेहरा और उतर गया जैसे उन्हें विश्वास हो गया हो उनका घरवालों ने बायकाट कर रखा है । उन्होंने अपना एक हाथ ठोड़ी पर टिका लिया जिससे उनके चेहरे से बेचारगी और झलकने लगी ।

बबलूजी बोले, “आप इतनी पढ़ी लिखी होकर इतनी गिरी बात कर रही हैं । मैं पुलिस में रिपोर्ट कर दूँगा ।”

“धमकी क्या दे रहे हो ? जाकर कर दो।” समिधा अंदर के कमरे से पिछले महीने का फ़ोन बिल ले आई, “इसमें आपके मोबाइल का नम्बर है । इसे साथ ले जाइए ।” उसे बबलू जी पर तरस भी आ रहा था । पिताजी की देखभाल के कारण उनकी हालत स्वयं ही अच्छी नहीं थी । उपर से ये समस्या झेलनी पड़ रही है । उसने दोबारा ज़ोर दिया, “अपने मोबाइल की कॉल्स की लिस्ट निकलवाइए ।”

अभय की आवाज़ धीमे से निकली, “कॉल्स ट्रेस करवाने की क्या ज़रुरत है?”

कविता ने पूछा, “क्या हमें किसी ने इशारेबाजी करते देखा है?”

“कौन देखेगा ? रात को छत पर होता ही कौन ? इस कॉलोनी में कितने ही परिचित परिवारों के साथ रात के ग्यारह बजे बारह बजे तक गप्पे मारते रहे हैं । कभी ऐसा नहीं हुआ । कॉलोनी के कितने ही लोगों की भी शिफ़्ट ड्यूटी है । उनकी पत्नियाँ भी तो ठीक से रहती हैं ।”

“हम भी तो सोसायटी में रह रहे हैं । आज तक कविता पर किसी ने कोई इल्ज़ाम नहीं लगाया ।”

समिधा अपनी आँखों से कविता को भेदते हुए बोली, “इसे कोई पहचान नहीं पाया होगा । ये घरेलू औरत हो ही नहीं सकती । इसकी इतनी हिम्मत? मुझे पता लग गया है फिर भी नहीं रुक रही । ये घरेलू औरत हो ही नहीं सकती ।”

“ये आप क्या कह रही हैं ? मैं इसके साथ बीस वर्षों से रह रहा हूँ । मैं इसे नहीं पहचानूँगा ? ये तो कह रही थी कि मैं आत्महत्या कर लूँगी । मेरे घर कुछ हो गया तो मैं आपको छोडूँगा नहीं ।”

समिधा पर तो जैसे ज़ुनून सवार था वह पता नहीं कैसे कहे जा रही थी, “ये घरेलू औरत है ही नहीं । इसने जाने कितनी औरतों को अपने गंदे खेल से पिटवाया होगा ।”

कविता की साँसें तेज़ चलने लगीं, “ भाईसाहब ! ये साइकिक हो रही हैं । इन्हें किसी न्यूरोलॉजिस्ट को दिखावाइए ।”

अभय हाथ मलते हुए बोले, “मुझे भी ऐसा लग रहा है । समिधा ! तुम क्या बोले जा रही हो?”

समिधा ने कविता को घूरा, “मैं साइकिक हो रही हूँ, तुम तो गज़ब की बोल्ड औरत हो । बहुत बोल्ड !”

“हाँ, मैं बोल्ड हूँ....हाँ मैं बहुत बोल्ड औरत हूँ....” कहते हुए उसकी साँस धौंकनी सी चल उठी । लग रहा था कोई काली नागिन फ़न फैलाये उसके घर के दीवान पर बैठी लहरा रही है ।

बबलू जी ने अपनी आवाज़ धीमी की, “आप शक करना बंद करिए । कल को आपकी बहु आयेगी, आप उस पर भी शक करेंगी ?”

अभय तपाक से बोले, “और क्या?”

“क्या पागल हूँ ? बिना बात शक करुँगी ?”

कविता तीखी आवाज़ में बोली, “सच ही ये साइकिक हो रही है । इन्हें साइकेट्रिस्ट को दिखवाइए ।”

“मोबाइल ट्रेस करवाओ सब असलियत सामने आ जायेगी ।”

कविता फुफ़कारी, “हमें क्या ज़रुरत है ? मेरे बच्चों को भी आपकी हरकतें पता है । वे भी हमारे साथ आ रहे थे ।”

“साथ में लाना था । क्या डर पड़ा है ।”

बबलूजी ने दबाव डाला, “आप अपना शक दूर कीजिये ।”

“भाईसाहब ! ये साइकिक हो रही है ।” कविता बोली ।

समिधा फट पड़ी, “मेरे ही घर में क्या शोर मचा रखा है ? आधे घंटे से एक ही बहस हो रही है । बबलू जी ! मैं आपको ये बात बताने की हिम्मत नहीं कर पा रही थी कि आपकी बीबी आठ दस वर्ष बड़े आदमी से इशारेबाजी कर रही है । अब आप इसे सम्भालिए ।”

“अपने शब्द वापिस लीजिये ।”

“आप लोग यहाँ से जाइए ।”

बबलू जी ने आवाज़ धीमी की, “ये बताइए आपको शक कैसे हुआ?”

“जिस दिन आपकी शाम को ड्यूटी नहीं होती ये जल्दी छत से उतर आते हैं । सोनल ने जब से नौकरी बदली है वह शाम को सात बज़े घर आ जाती है । ये दस पंद्रह मिनट घूमकर नीचे आ जाते हैं ।”

“साल भर से मैं इनकी इशारेबाज़ी नोट कर रही हूँ ।”

“उस दिन आप अजमेर जा रहे थे तो इसने नृत्यनाटिका के गीत “प्रेम है पिया मन की मधुर इक भावना” का बहाना नहीं लिया होता तो मैं सपने में भी नहीं सोच सकती थी कि ये मेरे जून महीने में ‘वॉर्न’ करने के बावजूद मानेगी नहीं ।”

“हाँ, हाँ, मैं तो आपसे दुष्यंत शकुंतला की नृत्यनाटिका की बात नहीं कर रही थी ?” कविता हाँफ रही थी, चीख रही थी ।

“वह फ़िल्म मैंने देखी थी इसीलिए सच्चाई खुल गई । बबलू जी ! इन्होंने स्वयं कहा है ये कविता के साथ दो महीने से घूम फिर रहे हैं । इसकी हिम्मत देने पर छुट्टी लेकर भागे जा रहे थे ।”

“भाई साहब! ये साइकिक......।”

“मेरे ही घर में बैठकर मुझे साइकिक कह रही हैं ? अब आप लोग जाइये ।”

बबलू जी व कविता खड़े हो गये । बबलू जी ने फिर कहा, “आप अपनी ग़लतफ़हमी दूर करिये ।”

वह कविता से कहने लगी, “तूने मेरे जीवन पर जो ज़हर डाला है वही तेरी ज़िन्दगी खराब करेगा।”

“आपके पास भी कोचिंग में पढ़ने वाले बच्चों के पिता आते हैं, आपसे फ़ोन पर बातें करते हैं । भाईसाहब ! इनके फ़ोन पर नज़र रखा करिये ।”

“यू शट अप । खिड़की पर सारे दिन खड़ी रहने वाली औरत । तू क्या जाने किताबों को पूजने वाले लोग कैसे होते हैं ? तेरी जैसी दो चार लेडीज़ कॉलोनी आ जायें तो लोगों का यहाँ रहना कठिन हो जाये ।”

“इतना ही डर है तो भाई साहब को ऑफ़िस छोड़ने व लेने जाया करिए ।”

अभय उन्हें घर से बाहर छोड़ने चल दिये, “आप चिन्ता मत करिए । इन्हें तो शक करने की आदत है ।”

समिधा पीछे से चिल्लाई, “इतने वर्षों से तुम्हारे साथ हूँ । यंग एज में शक नहीं किया तो अब करुँगी ?”

समिधा का सिर चकरा रहा था । अभय ऐसे व्यवहार करते रहे थे जैसे समिधा से इनका कोई रिश्ता नहीं है । हमेशा पढ़े लिखे सम्भ्रांत लोगों से सम्पर्क रखने वाली उस जैसी की किस्मत में ये घटिया औरत कहाँ से दाखिल हो गई ? !

डबल बेड पर उन दोनों के बीच नींद तो कहाँ आनी थी । अचानक अभय बिस्तर पर उठ बैठे, “वो तुम्हें पुलिस की धमकी दे गया है ।”

“कम से कम उसे अपनी बीबी की हरकतें तो पता लगीं ।”

नींद तो पलकों के रेशे में गुँथती लेकिन दिमाग में नहीं समा पा रही थी । वो दो कौड़ी का बबलू घर आकर पुलिस की धमकी दे गया है । अब उसे उनके मोबाइल की कॉल लिस्ट निकलवानी होगी लेकिन कैसे ?

नीलम कुलश्रेष्ठ

ई –मेल---kneeli@rediffmail.com

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