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दह--शत - 2

दह--शत

[ नीलम कुलश्रेष्ठ ]

एपीसोड - २

समिधा ने इतवार को दरवाज़ा खोला ,देखा कविता हाथ में रुमाल से ढकी प्लेट लिए खड़ी है ,सुन्दर साड़ी में ऊपर से नीचे तक सजी धजी। वह सकुचा जाती है। आज इतवार है सारा घर और वह सुबह ग्यारह बजे तक अलसाये हुए से हैं। ये बनी संवरी तारो ताज़ा आई है। वह कहती है ,"आओ --आओ। "

"नमश्का---र जी. "कहते हुए कविता अंदर आ गई। वह उसे ड्राइंग रूम में से होते हुए अंदर बरामदे में ले आई। कविता डाइनिंग टेबल के सामने की कुर्सी खींचकर बैठ गई,"आप तो हरियाली तीज मनातीं हैं .हमारे राजस्थान में तीज तो पहले ही मना ली जाती है इस शहर में आप ही हमारी बड़ीं हैं। आपके लिए तीज का प्रसाद लेकर आईं हूँ। इस प्रसाद के साथ बड़ों को मान के रूपये भी दिए जातें हैं। क्या आप ले लेंगी। "

"हाँ,क्यों नहीं। "बहुत नज़दीक के परिवारों के इस शहर से जाने के कारण समिधा उदास रहती थी इसलिए बहुत खुश होकर बोली .

कविता ने प्लेट उसके हाथ में थमाई व उसके पैर छूने झुकी। वह अचकचा गई ,"अरे --अरे ये फ़ॉरर्मेलिटी रहने दो। "

"कैसे रहने दूँ ?जब आपको बड़ा माना है तो पैर छूने दीजिये। "उसने आँचल सर पर रखकर बहुत कायदे से पैर छुए। "

उसके हाथों ने जैसे ही पैरों को स्पर्श किया समिधा और उसका मन पत्थर हो गए। वह अचरज में पड़ गई गदगद हो आशीष देने के लिए क्यों उसका मन नहीं उमगा ?जब छोटा व्यक्ति पैरों पर झुकता है तो मन स्वत ;ही मन उस पर आशीषों बौछार करने लगता है। वह पत्थर हो गई है या वहम है ?अंदर से पूरी ताकत लगाकर कह पाती है ,"खुश रहो। "

अभय कविता की आवाज़ सुनकर बैडरूम से अखबार लिए हुए निकल आये।

"भाई साहब !नमश्का---र। "कहते हुए कविता खड़ी हो गई। "

"नमस्ते-- नमस्ते ,बैठिये। "वे भी अखबार मेज़ पर रखकर कुर्सी लेकर बैठ गए। "कहिये आप व वर्मा जी कैसे हैं ?"

"एकदम फ़ाइन। "

समिधा ने उससे पूछा ,"कविता क्या पीयेंगी चाय या कॉफ़ी ?"

"जी ?अभी अभी तो मैं आईं हूँ ,अभी से ?"

समिधा गुस्से से मन ही मन भर उठी। इन घरेलु औरतों को कब समझ में आएगा की कामकाजी औरतों के लिए छुट्टी के दिन की भी एक एक मिनट की कीमत होती है। वह भी दोपहर में बौखलाई सी ढेरों कामों के अम्बार को ख़त्म करतीं चलतीं हैं। वह अपनी चिढ़ छिपाती है ," मेरा मन अभी कुछ हॉट लेने को कर रहा है। "

"ओ ---तो भाईसाहब से पूछ लीजिये जो ये लेंगे मैं भी वही ले लूंगी। "

"कॉफ़ी बना लो। "अभय बोले। उसने गैस पर पानी चढ़ा दिया और वेजिटेबल बोर्ड पर गाजर काटने लगी। वह निश्चित थी कि अभय कविता से बात करते रहेंगे ,नहीं तो उसे ही रसोई में काम करते हुए इधर उधर के प्रश्न पूछ पूछ कर मेहमान का मन लगाए रखना पड़ता। अभय व कविता की बातचीत के बीच कविता की चूड़ियों की खनकने की आवाज़ आती रही। समिधा ने ट्रे में से उसे कॉफ़ी प्याला देते हुए देखा कविता ने ढेरों चूड़ियाँ पहन रक्खी हैं। वह बहुत कलात्मक अंदाज़ में हाथ हिला हिलाकर बात कर रही है। अभय की दृष्टि इस रंगीन रुन झुन में उलझी जा रही है। इंसान चाहे जीवनकी व्यस्तताओं में कितना भी मशीन बन गया हो लेकिन ये पारिवारिक अपनत्व के फाये उसे चाहिए ही।

कविता कहती है ,"हम लोग अभी नए आये हैं। सोच रहे हैं सोनल की बर्थडे सेलेब्रेट कर लें जिससे कुछ लोगों से जान पहचान हो जाए। "

"गुड आइडिया। कविता !तुम्हें पता है तीज के फंक्शन की डेट फ़िक्स हो गई है। "

"कब का है ?"

"बस दस दिन बाद ही। तुम्हें डांस आता है ?

"हाँ ,थोड़ा बहुत। अभी तो आदत भी नहीं रही। "

"दस दिन का समय है प्रेक्टिस कर लेंगे। "

" इतने कम समय में प्रेक्टिस कैसे होगी ,फिर कहाँ करेंगे ?"

"प्रेक्टिस तो हो जाएगी। हम चारों किसी न किसी के घर प्रेक्टिस कर लेंगे। हम तीनों प्रोफ़ेशनल हैं ,क्लब में प्रेक्टिस करने में समय बहुत नष्ट होता है। "

"ऐसा ?"उसने बड़ी अदा से काजल लगी आँखें फैलाईं। "गाना कौन सा है ?"

"नीता ने सिलेक्ट किया है सावन में मैं मोरनी बनकर नाचूँ। "

"वाह बहुत प्यारा गाना है। मैं ज़रूर आप लोगों के साथ डांस करूंगी। अब मैं चलतीं हूँ। आप लोग हमारे घर आइये। "

"श्योर। "

"नमस्ते भाई साहब !"

"नमस्ते। "अभय की दृष्टि फिर उसकी बजती चूड़ियों फिर में उलझ गई।

उसके जाते उसने नीता को फ़ोन किया ,"कॉंग्रेट्स। " "किस बात की ?"

"तुम कहतीं थीं हम तीन डांस पार्टनर अच्छी नहीं लगतीं। "

"हाँ ,तो ?"

"`मैंने चौथी ढूंढ़ ली है। "

"कौन है ?"

" कविता वर्मा। "

"ओ ---नो ,वह नॉन ग्रेसफ़ुल लेडी। वह अक्सर रास्ते में ,हॉस्पिटल में मुझे मिलती रहती है।वह ऐसे बात करती है जैसे दुनियाँ की सबसे अक्लमंद लेडी है। "

" अपने परिवार में वह बी ए पास सबसे पहली बहू है। थर्ड क्लास डिग्री मिली है तो क्या ?अपने साथ रहेगी तो सुधर जाएगी। "

"अनुभा से पूछ लेना। "अनुभा को फ़ोन किया तो उसने नाक भौं चढ़ाई ,"यार !उसकी कल्चर अपने से नहीं मिलती अपन तीनों का अच्छा` कोऑर्डीनेशन `है. वैसे भी वह कुछ अजीब सी लगती है। "

"तुझे तो लेडी अजीब सी लगती है। अभय केपुराने दोस्त के भतीजे की पत्नी है .मुझसे शिकायत करती रहती है कि मैं बोर हो रहीं हूँ ..उसके साथ प्रेक्टिस करके देख लेंगे अपने साथ सेट हो गई तो ठीक है। "

"ओ .के.। "

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डांस की पहली प्रेक्टिस समिधा के घर शाम को चार बजे रक्खी जाती है। डाइनिंग टेबल व कुर्सियां एक तरफ़ कोने मे कर दीं गईं हैं। समिधा एक कैसेट म्युज़िक सिस्टम में लगाकर कविता से कहती है ,"तुम बुरा मत मानना। पहले इस गाने की दो लाइंस पर डांस करके दिखाओ। "

"ओ --श्योर। "कविता हाथों को घुमाकर, मोरनी की तरह आगे गर्दन मटका कर डांस करने लगती है।

"वाह !"समिधा उसका उत्साहवर्द्धन करती है. अनुभा व नीता बुरा मुंह बनाते हुए कहतीं हैं ,"ठीक है। "

प्रेक्टिस के बाद नीता घुँघरू उतारते हुए कहती है ,"समिधा आज क्या खिला रही है ?"

"सिंवई रोल्स। "

"वो कैसे बनाते हैं ?"

"पहले खाकर तो देखो फिर रेसेपी पूछना। "सॉस के साथ रोल्स कहते हुए अनुभा कहती है ,"वाह !मज़ा आ गया। "

नीता शाही टोस्ट का टुकड़ा उठाती है,"वाह !मेरा बस चले तो रोज़ यहॉँ प्रेक्टिस करें। समिधा कुछ न कुछ नई चीज़ खिलाती रहती है। " चलते समय कविता प्यार से समिधा से कहती है ,"आज भाईसाहब के साथ हमारे घर आइये . आज इनकी मॉर्निंग ड्यूटी थी। शाम को घर पर हीं हैं। "

"अच्छा किया बता दिया .अभय भी कुछ दिनों से तुम्हारे यहाँ आना चाह रहे हैं। "

"तो आज शाम हम आप लोगों का वेट करेंगे। "

"ओ --श्योर। "

समय का चक्र कितना अजीब होता है .जब वह शादी के बाद इस शहर में आई थी तो वह अभय के एक डॉक्टर मित्र व उनकी पत्नी से मिली थी। जब भी फ़ुर्सत होती वे लोग मिलते रहते थे। एक दो और परिवारों के साथ कभी डिनर ,कभी ताश की बाज़ी या पिकनिक का प्रोग्राम बनता रहता था। वो कम उम्र पारिवारिक दोस्तियाँ कितनी प्यारी होतीं हैं जो कभी नया घर ख़रीद लेने के कारण या ट्रांसफ़र के नाम बिखरने के लिए ही बनी होतीं हैं। बाद में आदमी ऐसी दोस्तियों को ढूँढ़ता ही रह जाता है। दुनियांदारी निबाहते निबाहते दिल भी पहले जैसे कहाँ रह पाते हैं। डॉक्टर के भतीजे को उसने उनके भाई के यहाँ देखा था। लंबा, पतला, गोरा भला सा युवक नौकरी तलाशने इस शहर में आया था। एक प्राइवेट कंपनी की नौकरी करने के बाद उसे इसी विभाग में नौकरी लग गई थी। बबलू जी बाद कविता को लेकर एक बार उसके घर भी आये थे। समिधा को सांवली कविता की दिलकश मुस्कान याद रह गई थी।

समिधा अक्षत के बाद आने वाले मेहमान की तैयारी में व्यस्त होती चली गई थी . डॉक्टर वर्मा को उनके पिता ने वापिस अपने शहर बुला लिया था। उन्होंने भी सोचा था कि अपने पैतृक मकान में रहकर प्राइवेट प्रेक्टिस ही करें। बबलू जी का ट्रांस्फ़र मुम्बई हो गया था। कविता शहर के दूसरे छोर पर अपने बच्चों के साथ अपने घर के मकान में रहने लग गई थी। ये सम्पर्क छूटते चले गये थे।

अब यही बबलू जी वापिस इसी शहर में उसके घर के पीछे आ बसें हैं। वह अक्सर कहतें हैं ,"जब मैं ताऊ जी व चाचा जी के घर इस कॉलोनी में आता था तो मेरी इच्छा होती थी कि मैं भी कभी इस कॉलोनी में ज़रूर रहूंगा। "

कविता ये ज़रूर जोड़ती ,"आप लोगों के पास में रहने से मुझे बहुत सीक्योरिटी लगती है। "

आज उसे बबलू जी के घर जाना बहुत अच्छा लग रहा है। दूसरी मंज़िल के फ़्लैट की उसने डोरबैल बजाई। दरवाज़ा कविता ने ही खोला ," आइये-- आइये। "

समिधा को उसकी चुनौती सी देती आँखों का भाव देखकर अजीब लगा। वह इस विचार को झटकती अंदर चलकर सोफ़े पर बैठ गई। वह चारों और दृष्टि डालकर हतप्रभ रह गई, कहीं अपने ही ड्राइंग रूम में तो नहीं बैठी है ?दरवाज़ों व खिड़कियों पर उसके घर के पर्दों के प्रिंट जैसे पर्दे लगे थे।फ़र्श पर ग्रे व क्रीम कलर का मुज़फ़्फ़रनगर का कालीन बिछा था,हूबहू समिधा के घर जैसा. यहाँ तक रेशमी कुशन कवर्स के चारों तरफ़ उसके कुशन्स जैसी लेस लगी थी। सोनल का लाया हुआ पानी उसके गले में चुभ रहा था। उसका मन हुआ उठाकर चल दे लेकिन अभय निर्विकार बैठे थे।

कविता जब इधर उधर की बात करके चाय बनाने अंदर गई तो उससे रहा नहीं गया.उसने सोनल से पूछ लिया ,"ये पर्दे कहाँ से खरीदें हैं ?""मम्मी ही बाज़ार में चार घंटे भटक कर लाईं थीं। उन्हें ज़िद चढ़ गई थी कि आपके घर जैसे प्रिंट के पर्दे वो खरींदेंगीं। "

"ये कुशन कवर्स ?"

"उन्हें आप जैसे ही चाइये थे। "

"सोनल-----."कविता की रसोई से आती आवाज़ आई। वह उठकर चली गई।

थोड़ी देर बाद कविता ट्रे लेकर आ गई। सबके हाथ में प्लेट देकर डोंगे से उसमें नूडल्स डालने लगी,"सोनल ने बनाये हैं। "

अभय ने चम्मच से वे चखे व आदतन बोले ,"वाह ! "

कविता ने गर्दन झटक कर कहा ,"हमारी सोनल कुकिंग में बहुत होशियार है। "

"नूडल्स बनने में क्या होशियारी है ?ये तो बच्चे भी बना लेते हैं। "समिधा चिढ़ गई।

"नहीं जी ,हर चीज़ की क़्वान्टिटी का ध्यान रखना पड़ता है। `

"`तुम्हारी कज़िन कैसी है ?"उसने बात बदल दी।

"अच्छी है ,जीजाजी इंटरनेशनल कंपनी में हैं। अक्सर टूर पर रहते हैं "

"ओ --तो वो बोर होतीं होंगी। "

"हाँ ,वह जीजा जी के टूर के कारण बोर होतीं हैं ,मैं इनकी शिफ़्ट ड्यूटी के कारण। "

घर आकर समिधा का क्रोध फट पड़ा ,"ये औरत है कि क्या है ?"

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नीलम कुलश्रेष्ठ

e-mail ---kneeli@rediffamail.com

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