दह--शत - 3 Neelam Kulshreshtha द्वारा थ्रिलर में हिंदी पीडीएफ

Featured Books
  • सनातन - 3

    ...मैं दिखने में प्रौढ़ और वेशभूषा से पंडित किस्म का आदमी हूँ...

  • My Passionate Hubby - 5

    ॐ गं गणपतये सर्व कार्य सिद्धि कुरु कुरु स्वाहा॥अब आगे –लेकिन...

  • इंटरनेट वाला लव - 91

    हा हा अब जाओ और थोड़ा अच्छे से वक्त बिता लो क्यू की फिर तो त...

  • अपराध ही अपराध - भाग 6

    अध्याय 6   “ ब्रदर फिर भी 3 लाख रुपए ‘टू मच...

  • आखेट महल - 7

    छ:शंभूसिंह के साथ गौरांबर उस दिन उसके गाँव में क्या आया, उसक...

श्रेणी
शेयर करे

दह--शत - 3

दह--शत

[ नीलम कुलश्रेष्ठ ]

एपीसोड – 3

घर पहुंचकर अभय के समझ में नहीं आया कि समिधा कविता पर क्यों गुस्सा हो रही है ? उसने कमीज़ के बटन खोलते हुये पूछा "क्यों क्या हुआ ?"

"अपने ड्राइंग रूम में मेरे घर की की नक़ल कर वैसी ही चीज़ें लगाकर बैठ गईं।"

अभय ने हैंगर पर अपनी कमीज़ लगाते हुये कहा ,"तुम्हें तो खुश होना चाहिये, तुम्हें अपनी च्वॉइस पर नाज़ है। वह तुम्हारी नक़ल कर रही है। "

"लेडीज़ ऐसी चीज़ों से घर सजातीं हैं जो किसी के पास नहीं हों और ये कुशन्स पर लेस तक मेरे घर जैसी लगाकर बैठी है। "

"जब तुम नौकरी करतीं थीं तो वहाँ तुम्हारी सहेली संजना भी तो तुम्हारी नकल करती थी। "

"उस शैतान को तुम मेरी सहेली बता रहे हो ?"

"और क्या, तुम इनके लिये रोल मॉडल हो इसलिये तुम्हारी नक़ल करतीं हैं। "

"बाद में जब हूबहू समिधा नहीं बन पातीं तो जलकर गुल खिलातीं हैं। "

"कविता तो सीधी सादी है। पूजा पाठ वाली औरत है। अपने यहाँ प्रसाद भेजती रहती है। "

"हाँ ,ये तो है लेकिन -----."

संजना भी अपनी तरह की औरत थी। अक्सर बीमार रहती थी उसे नौकरी नहीं मिल पा रही थी। उसने ही संजना को बी डी इंटर कॉलेज के प्रिंसीपल कोचर से मिलवाया था। संजना ने भरे गले से कहा था ,"समिधा जी! आप महान हैं। आप नहीं होतीं तो मैं घुट घुट कर मर जाती ."

"`इसमें मेरी महानता क्या है ?तुम्हारी किस्मत अच्छी है जो तुम्हें नौकरी मिल गई। "संजना को वह धीरे धीरे पहचान रही थी। घर सम्भालने में फूहड़। बच्चों को ठीक से खाना भी नहीं दे पाती थी। अक्सर कोई न कोई बच्चा या पति बीमार रहते थे। कभी कोई बच्चा उसके यहां खाना खाने आ जाता ,कहता हुआ "मम्मी तो अस्पताल गईं हैं। "`

उसकी साड़ी अकसर ऊंची होती ,आँचल बेतरतीब होता। लिपस्टिक होठों के बाहर भी फ़ैली होती। वह उसकी साड़ी ठीक करती ,मेक अप ठीक करती।

***

" बोलो ----दशा माँ नी जय ----`अनुभा के आऊट हाऊस में रहने वाली सेविका कोकिला बेन जयघोष करती है।

"जय ------."उसके कमरे में बैठे बच्चे व औरतें समवेत स्वर में जयघोष करते हैं।

"बोलो अम्बे माँ नी जय ---."

"जय -----."

अनुभा के एक कमरे की खिड़की से पूरा दृश्य दिखाई देता है। कोकिला के पति ने अपने कमरे की खिड़की बंद कर उसे लाल कपड़ों में सजाकर मंदिर बनाया हुआ है। जिसे रंग बिरंगे बल्बों से सजाकर उसमें ऊँट पर सवार दशा माँ देवी की मूर्ति को स्थापित किया हुआ है। अनुभा अपने प्रदेश में संतोषी माँ को जन्म लेते ,उनके नाम के व्रत आरम्भ होते देख चुकी है। बाद में वे स्थाई देवी मान लीं गईं। गुजरात में भी उसके सामने ही बीस वर्ष पहले दशा माँ का नाम अवतरित हुआ था। इनकी आषाढ़ की अमावस्या से दस दिन तक घर में स्थापना की जाती है। इन वर्षों में देवी की कथा की पुस्तक प्रकाशित हो चुकी है,इनके भजनों के कैसेट बन चुके हैं। दसवें दिन उन्हें पानी में विसर्जित कर है। कोकिला बेन सिर्फ़ हस्ताक्षर करना जानती है इसलिये पड़ोस की लड़की देश माँ की कथा पढ़ने आती है।

कथा के बीच कोकिला बेन का शरीर हिलने लगता है। आँखें ऊपर चढ़ जातीं हैं ,वह चीखती है ,"बोलो दशा माँ की जय -------."

कुछ बच्चे डरकर माँ के पास सरक जाते हैं। कथा समाप्त होते ही ताली बजाकर आरती शुरू होजाती है ,

"आरती उतारो माँ नी आरती उतारो ,

दशा माँ नी आरती उतारो। "

कोकिला बेन का शरीर ऐंठने लगता है। बाल खुलकर हवा में तैरने लगते हैं,आँखें ऊपर चढ़ जातीं हैं। वह चीखती है। कभी ज़मीन पर लेटकर छटपटाने लगती है। आरती के बाद कोकिला का बेटा थाली लेकर सबके सामने घुमाता रहता है। सब श्रद्धा से तेल से जलते दिये की आरती लेकर थाली में रूपये ,पैसे डालने लगते हैं। आस पास की आउट हाऊस वाली ,दो तीन बंगले की मालकिन भी पहले ही दूध ,मिठाई ,फल देवी माँ के चरणों में चढ़ा ही चुकी होतीं हैं। जब तक रामदाने व नारियल का प्रसाद बंटता है तब तक कोकिला बेन ऐसे ही ज़मीन पर छटपटाती रहती है ,"बोलो दशा माँ की जय -----आज किसने माँस मच्छी खाई है ?बोलो------."

सब सहम कर चुप हो जाते हैं। एक छोटा बच्चा अपनी माँ की गोदी में चढ़ जाता है।

"बोलो ----बोलो ---किसी ने तो माँस खाया है। "

"हूँ ----हूँ ---मुझे बदबू आ रही है हूँ ---हूँ ."ऐसा कहते हुये उसकी आँखें भी क्रोधित , उबली सी बाहर आती लगतीं हैं।

-------------------------

"अगर नहीं बोलोगे तो मैं तुम सबको सराप [श्राप ]दे दूंगी। "

कुछ देर बाद चुप्पी के बाद भीड़ में से रोमिला का पति खड़ा हो जाता है। घबराया सा कहता है ,"कल दोस्त ने होटल में मुझे मटन खिला दिया था। "

"जा –बाहर जा ---तुझे हिम्मत कैसे हुई माँ के दरबार में आने की ?"

कोकिला फिर चीखती है, “दशा माँ के दिनों में माँस खाया है तो अपनी औरत और बच्चे को भी बाहर ले जा।”

उसकी पत्नी व बच्चा भी सहम कर तुरन्त उठकर कमरे के बाहर चले जाते हैं।

अगरबत्ती व धूपबत्ती के धुँए के झूमती कोकिला के बाल लहरा रहे हैं। वह प्रसन्न हो बीभत्स हँसी हँसती है, “अब बोलो क्या पूछना है?”....

एक औरत हाथ जोड़कर कहती है, “मेरा बेटा पाँच दिन से बुखार से तप रहा है।”

कोकिला लड़खड़ाती खिड़की पर स्थापित देवी की चरणों से एक गेंदे का फूल उठाकर उस औरत को देती है, “जा! इसे उसके सिर पर रख देना।”

“देवी माँ ! तुमने दर साल (पिछले वर्ष) कहा था कि मेरा बेटा दसवीं पास हो जाएगा। वह तो नापास हो गया है।”

“माँ का कहा झूठ नहीं होता। माँ को तू झूठ कहती है?”

“नहीं माँ..... मैंने ऐसा कब कहा?”

कोकिला उसके पास आकर उसकी चोटी खींचती है, “तेरा मतलब तो यही था। ज़रूर तेरे घर किसी ने माँस मछली या इन्डा (अंडा) खाया होगा।”

“हमने तो नहीं खाया था। बच्चों ने छिपकर खाया होगा शायद ।”

“तो कैसे तेरा बच्चा पास हो सकता है?”

“मेरा ! बेटा भी तो नापास हो गया है।” धीरु धीमे से कहता है ।

“चो ऽ ऽ प । माँ को ग़लत कहा? किसी दारु के अड्डे पर पोटली चढ़ा आता होगा।”

वह चुपचाप सिर झुकाये वहाँ से निकल जाता है।

“देवी माँ ! मेरा बच्चा तो पास हो गया है।”

कोकिला हाथ व आँखें नचाकर कहती है, “तू प्रसन्न तो देवी को प्रसन्न कर।”

सोना देवी के मंदिर में रुपये रख देती है।

अनुभा ये नाटक दो तीन वर्ष से देखती आ रही है। पहले वर्ष तो कोकिला के बच्चे उसके पास आकर ज़िद करते थे, “ आँटी ! आप पूजा में आया करो ना। आपकी जैसी आँटी शाम को आती हैं।”

“ मेरे काम ही ख़त्म नहीं होते।” वह टाल जाती है। पूजा तो वह भी करती है लेकिन दशा माँ के नाम का ये मजमा कोकिला पर देवी आना, ये सब उसके गले नहीं उतरता।

सुबह की पूजा समाप्त होते ही कोकिला सिंदूर भरे माथे से उसे घर का काम करने देर से आती है उसके चेहरे का दर्प अनुभा की नज़रअंदाजी से आहत होता रहता है। अनुभा को समझ नहीं आता कि वह कैसे दूसरों की तरह कोकिला को श्रद्धा के आसन पर बिठा दे। हर दूसरे-तीसरे दिन वह अंदर आते ही याद दिलाती है,

“ आँटी ! मोटे चादर मत भिगाना। मेरा दस दिन उप्पास (उपवास) चलता है।”

कभी-कभी अनुभा खीज जाती है, “मुझे याद है ना।”

बर्तन धोने, झाड़ू पोता करने व कपड़े धोने में कोकिला का ये देवत्व काफ़ी कुछ उतर जाता है। शाम को वह फिर सजी, सँवरी देवी बन जाती है। वही औरतों, पुरुषों व बच्चों के बीच झूमती हुई देवी।

शाम को कुशल ऑफ़िस से लौटते हैं जूते के फ़ीते खोलते हुए कहते हैं, “ तुम्हें क्या बिजलानी की पिटाई की बात पता थी? ”

“ हाँ। ”

“ तो तुमने ये बात मुझे बताई क्यों नहीं ?”

“ बताना चाहती थी लेकिन तुम ऑफ़िस से लेट आये थे। शायद वहाँ किसी से झगड़ा हो गया होगा इसलिए बात कम कर रहे थे कटखने अधिक हो रहे थे। ”

कुशल की उसके कहने के अंदाज़ पर हँसी निकल जाती है, “ तब भी तो बताना तो चाहिए था। हमारे पड़ौसी की कोई पिटाई कर दे और हम लोग मिलने भी नहीं जायें। बात क्या हो गयी थी? ”

“ पीछे की बस्ती वाले माइक लगाकर ज़ोर-ज़ोर से कीर्तन कर रहे थे। उनकी बेटी की परीक्षा थी इसलि इसलिए बात कम कर रहे थे कटखने अधिक हो रहे थे। ”

कुशल की उसके कहने के अंदाज़ पर हँसी निकल जाती है, “ तब भी तो बताना तो चाहिए था। हमारे पड़ौसी की कोई पिटाई कर दे और हम लोग मिलने भी नहीं जायें। बात क्या हो गयी थी? ”

“ पीछे की बस्ती वाले माइक लगाकर ज़ोर-ज़ोर से कीर्तन कर रहे थे। उनकी बेटी की परीक्षा थी

इसलिए उन्होंने अपने नौकर को माइक बंद करवाने के लिए भेजा। बस इसी बात पर वहाँ से कुछ लोग आकर उनके घर में घुसकर उन्हें पीट गये। ”

“ ओ ! यही मैंने सुना है। उन्हें पुलिस में रिपोर्ट कर देनी चाहिए। ”

“ धर्म की बात पर क्या पुलिस कार्यवाही करेगी ?”

*****

एक दिन अनुभा नहाकर अपने गीले बालोँ को तौलिया से पोंछते हुए पीछे कम्पाउन्ड से निकल आई। कोकिला बाहर के चबूतरे पर एक तरफ़ बैठी कपड़े धो रही है। वह पतली बनियानों को इकट्ठी करके ज़ोर-ज़ोर से पीटने लगती है। अनुभा गीली तौलिया चेहरे के एक तरफ करके चिल्ला पड़ती है, “ इतने ज़ोर से इन्हें पीटेगी तो फट जायेगी। ”

“ आज कपिला की बेटी की शादी में जाने की उतावल (जल्दी) है इसलिए ‘फास्ट’ काम कर रही हूँ।”

“ कौन कपिला? ”

“ वही जो सात नंबर बंगले में रहती है उसके बंगले वाली मैम साब तो शुरू से उसके काम से खुश थीं तभी से उन्होंने कह दिया था कि वो उसकी बेटी की शादी का सारा ख़र्च देंगी। ”

“ अच्छा? ”

“ उनके यहाँ तो नम्बर दो की कमाई है तो पुण्य कमा रही हैं। कोकिला ! तू बार-बार मुझे सुनाती रहती है कि इस बंगले वाले ने या उसने अपनी काम वाली की बेटी की शादी का ख़र्च दिया। तू मुझसे एसी आस मत रखना। हमारे यहाँ फ़ालतू पैसा नहीं है। ”

“ ना रे ! आँटी ! आपसे मैंने ऐसा कब कहा? मैं तो वैसे ही बता रही थी। ” कोकिला उतरे हुए चेहरे से कमीज़ पर जल्दी-जल्दी साबुन घिसने लगी।

अनुभा कुछ सूख गये बालों को कंघी से काढ़ती अंदर आ गई। कोकिला उससे मन ही मन उसके दशा माँ की पूजा में शामिल न होने के कारण वैसे ही चिढ़ी रहती है। कोकिला कभी उसे नई साड़ी, नई स्टील की टंकी या कोई बड़ा उपहार दिखाती है, “ देखिए ! मैम साब ने दशा माँ से अपनी मन्नत पूरी होने पर दी है। ”

अनुभा उड़ती नज़रों से ये उपहार देखती है। ये सब उसे क्यों दिखाया जाता है या बताया जाता है वह समझती है। वह व उसका पति काँतिभाई गाँव में खेती बाड़ी छोड़कर घर का मकान छोड़कर एक कमरे के आऊट हाऊस में रहकर मेहनत कर बच्चों को पढ़ा रहे हैं। वह एक फ़ैक्टरी में काम करता है। बचे समय में अनुभा के लिए बाजार जाता है। कोकिला बेन पाँच-छः घरों में काम करती है। उसका छोटा बेटा केवल अभी से सपने देखता है, “मम्मी ! मैं अंकल जैसे मकान में तुझको रखूँगा। ”

उसकी सुंदर लड़की सोना के नखरे भी कम नहीं है, “ मैं तो बड़े घराने में शादी करूँगी। ”

छोटी बेटी ढिंगली अपनी माँ से अक्सर कहती है, “ अनुभा आँटी की सास जोर-ज़ोर से पूजा करती है इसलिए भगवान इनकी अधिक सुनता है। तू भी ज़ोर से पूजा कर तो हमें भगवान ढेर सा रुपया देगा। ”

दोनों लड़कियाँ माँ के साथ काम करने जाती हैं, स्कूल पढ़ने जाती हैं सारा परिवार आस लगाये बैठा है कि सबकी पढ़ाई पूरी होते ही कोई जादू की छड़ी घूमेगी और घर का माहौल खुल जा सिम सिम की तरह बदल जायेगा।

अनुभा सोचती है सबको सपने देखने चाहिये लेकिन कोकिला के परिवार के ऐसे ऊँचे सपने पूरे होंगे ?

-----------------------------------

नीलम कुलश्रेष्ठ

ई -मेल ---kneeli@rediffmail.com