रात के ग्यारह बज चुके थे, मंजेश जाकर एक कुर्सी पर बैठ गया तभी नर्स आकर बोली, “अरे सर क्या बात है, आप बहुत चुपचाप बैठे हैं.. अरे हां थक गए होंगे वैसे भी आपने सबसे ज्यादा मरीजों का ट्रीटमेंट किया है” |
मंजेश - “हां बस आज मरीज कम थे तो सोचा आराम कर लूं, बहुत थकान सी लग रही थी, आज मैं खुश बहुत हूं कि इस बीमारी की दवाई बन गई” |
नर्स - “हाँ सर ये तो है, अब हम लोग भी अपने घर जा पाएंगे और वो भी बिना डर के, बस कुछ दिन और… आप आराम कीजिए कुछ काम होगा तो मैं डॉक्टर महेश से बोल दूंगी” |
मंजेश - “हां यह सही रहेगा और हां सिस्टर मै जरा छत पर जा रहा हूं, खुली हवा में सांस लेने, बहुत दिनों से खुला आसमान नहीं देखा” |
ये कहकर मंजेश ऊपर पचीसवीं मंजिल पर आ गया, उसने अपना मास्क खोलकर एक सुकून की सांस ली और चारों तरफ देखा, पूरा शहर रोशनी से जगमगा रहा था, देश में लोग दिवाली की तरह खुशी से दीए जला रहे थे | हवा इतनी शीतल और स्वच्छ थी की हर एक सांस में ताजगी महसूस हो रही थी, मंजेश ने वही एक चादर बिछाई और लेट कर मंजू को फोन किया |
मंजू - “अरे मैं तुम्हें फोन करने ही वाली थी, कल तुम आ रहे हो ना अब तो लॉक डाउन भी खत्म हो गया और यह दुष्ट कोरोना भी, दवा जो इसकी बन गई” |
मंजेश - “हां सही कह रही हो, अपना सामान पैक कर लेना और मैं सुबह-सुबह तुम्हें लेने आ जाऊंगा और तुरंत वापस चला आऊंगा क्योंकि अभी भी कई पेशेंट हैं” |
मंजू - “ओह हो.. तुम भी ना, चलो ठीक है” |
मंजेश - “ ध्रुव क्या कर रहा है” ?
मंजू - “आज जल्दी सो गया, सुबह से कह रहा था कि कल पापा आएंगे मैं अपने घर जाऊंगा, मैं अपने घर जाऊंगा.. अच्छा तुम आराम करो सुबह जल्दी निकलोगे” |
मंजेश - “लव यू मंजू” |
मंजू - “लव यू टू” |
मंजेश ने फोन रख दिया और आसमान देखने लगा उजला साफ आसमान, खिला खिला चांद और धुले धुले सितारे, वह अपने आप में ही बोलने लगा “मुझे पता था एक दिन हम जरूर यह जंग जीतेंगे” |
लॉक डाउन खत्म होने के बाद पहली सुबह....
एक गाड़ी आकर घर के बाहर रुक गई |
ध्रुव चिल्लाया - “मम्मी... पापा आ गए, पापा आ गए” |
घर के सारे लोग बाहर दौड़कर आ गये | मंजू बिल्कुल तैयार थी अपने घर जाने के लिए पर सामने देखकर सबके चेहरों से रंग उड़ गया | सामने चार आदमी गाड़ी से उतरे और एक डेड बॉडी जो पूरी तरह से सील थी उसे उतारने लगे | डेड बॉडी रखते ही दो आदमियों ने अपना मास्क उतार दिया और सर पटक पटक के रोने लगे |
मंजू उन्हे देख कर बोली, “मोहित और अर्पित भैया, क्या हुआ?? यह कौन है” ??
उन दोनों ने कुछ नहीं कहा और रोते बिलखते रहे पर मंजू ने वह सब शब्द सुन लिए थे जो उन दोनों ने नहीं कहे थे | वह डेड बॉडी की तरफ दौड़ी तो बाकी के दो आदमियों ने उसे मना कर दिया और बोला, “मैम बहुत दुख के साथ कहना पड़ रहा है कि डॉ मंजेश ने हमारा साथ छोड़ दिया, इनकी डेड बॉडी को यहां लाना गैरकानूनी था पर सर के यह दोनों दोस्तों ने बहुत जिद करी और हॉस्पिटल की अथॉरिटी ने भी परमिशन दे दी, आप इन्हे बस दूर से देख सकती हैं, छू नहीं सकती हैं” |
मंजू वहीं पर गिर पड़ी और ध्रुव से लिपट लिपट कर रोने लगी, ध्रुव भी फूट-फूटकर रोने लगा, “पापा आप तो सुपरमैन हो.. उठो पापा उठो..” लेकिन मंजेश अब कहां उठने वाला था, कोरोना के मरीजों की देखभाल करते करते वह कब बीमार हो गया उसने ध्यान ही नहीं दिया बस सब की सेवा करता रहा | सब कुछ ठीक होने के बाद भी सब कुछ बिखर चुका था |
सुबह से दोपहर हो चुकी थी,
मंजू बेसुध सी ध्रुव को गोद मे लिए वहीँ बैठी थी, गाड़ी भी कब की जा चुकी थी, अर्पित और मोहित गेट के पास खड़े अभी भी रो रहे थे, आज उनका वो दोस्त हमेशा के लिए जा चुका था जिसने उनकी जान बचाई |
शाम तक टीवी मे खबर आई कि कोरोना की जो दवा बनाई गई उसका परीक्षण सफल नहीं हुआ, ये खबर आग की तरह पूरे देश मे फैल गई और फिर से लोग मातम मे डूब गए |
मंजेश के बलिदान के लिए उसे मरने के बाद भी सम्मानित किया गया |
अर्पित और मोहित फिर से अपनी नौकरी करने लगे और सब ने उन्हें प्रोत्साहित किया |
लॉक डाउन तो खुल गया लेकिन सभी ने कोरोना के साथ जीना सीख लिया |
सरकार ने कानून बना दिया कि हर दो महीने के बाद एक दिन का लॉक डाउन किया जाएगा, जो इस पृथ्वी को बचाने के लिए बहुत जरूरी है, सरकार के इस फैसले पर कई राजनीतिक पार्टियों ने विरोध किया पर जनता का पूर्ण सहयोग मिलने पर इसे लागू कर दिया गया, इसी के साथ एक कानून और बनाया गया कि कोई भी ऐसी बीमारी अगर फैलाता हुया पकडा गया तो उस पर दस लाख का जुर्माना लगाया जायेगा |
कुछ दिनों बाद ....
“मंजू बेटी कितने दिन हो गये तुम्हें रोते-रोते, अब जो हुआ सो हुआ तुम ऐसे टूट जाओगी तो ध्रुव का ध्यान कौन रखेगा? अब देखना तो तुम्हें सब कुछ है, मैं भी यहां कब तक रहूंगी ” यह कहते हुए मंजू की मां ने मंजू को सांत्वना दी |
मंजू ने कुछ नहीं कहा और जाकर शीशे के आगे खुद को देखने लगी, मंजेश अक्सर उस पर गुस्सा करता था कि कब से शीशे के आगे बैठी हो कितनी देर लगाओगी तैयार होने में, लेकिन आज वह इतनी देर से शीशे के आगे बैठी है किसी ने कुछ नहीं कहा, उसने उदास होकर सिंगारदान की दराज खोली तो देखकर हैरान रह गई... उसमें कांच के चार गिलास रखे थे जो बीती यादों की कहानियां सुना रहे थे, और कह रहे थे कि कभी किसी जगह किसी मोड़ पर हम फिर मिलेंगे….. |
दोस्तों यह कहानी थी उन चार दोस्तों की जो विश्व में फैली करोना जैसी खतरनाक बीमारी से लड़े और उसके बाद उनकी जिंदगी बदल गई, ऐसे ही न जाने कितने लोग होंगे जिनकी जिंदगी इस कोरोना ने छीन ली या फिर बिल्कुल ही बदल के रख दी | मेरी ईश्वर से यही प्रार्थना है कि जल्दी से इस बीमारी से निपटने के लिए दवा बने और हम सब पहले की तरह फिर से अपना जीवन खुशी खुशी जिएं |
कोरोना से लड़ने के लिए दिन-रात मेहनत करने वालों को मेरा सादर प्रणाम |
धन्यवाद |
लेखक
सर्वेश सक्सेना |