रिसते घाव (भाग १८) Ashish Dalal द्वारा फिक्शन कहानी में हिंदी पीडीएफ

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रिसते घाव (भाग १८)

बिस्तर पर लेटते ही अमन नींद के आगोश में समा गया । श्वेता उसकी बगल में लेटे हुए करवटे बदलती रही । अपनी और अमन की भावी जिन्दगी के बारें में तरह तरह के सपनें देखते हुए वह कल्पना के रथ पर सवार होकर मन के खुले आकाश में उड़ने लगी । खुली आँखों से सपने देखते हुए थोड़ी देर में वह भी नींद के आगोश में समा गई ।

सुबह पाँच बजे के लगभग उसकी नींद अचानक से खुली तो अमन को अपनी बगल में न पाकर वह उठकर बैठ गई । कमरे में इधर उधर नजर दौड़ाई तो बाल्कनी का दरवाजा थोड़ा सा खुला हुआ नजर आया उसे । वह उठी और बाहर बाल्कनी में आ गई । अमन कुछ सोचता हुआ हवा में छाई हुई ठण्डक को महसूस करता हुआ बाल्कनी की रेलिंग का सहारा लेकर आराम से खड़ा हुआ था ।

‘क्या सोच रहे हो ? बहुत जल्दी उठ गए ?’ श्वेता ने अमन की पीठ पर हाथ रखा ।

‘नींद खुल गई तो सोचा बाहर का नजारा ही देख लूँ । सुबह का यह नजारा बेहद हसीन होता है । ऐसा लगता है मानों कोई प्रेमी एक लम्बें इन्तजार के बाद अपनी प्रेमिका से मिलने के लिए जा रहा हो और संपूर्ण प्रकृति मिलन की बेला में खुशी के गीत गा रही हो ।’

‘क्या बात है ! बड़े रोमांटिक हुए जा रहे हो ?’ श्वेता अमन के बेहद नजदीक आकर खड़ी हो गई ।

‘ईश्वर ने संसार के हर प्राणी में प्यार का यही एक तत्व रख छोड़ा है जिसके आकर्षण के तले हर कोई एक दूसरे की तरफ खींचा चला जाता है । इसके पीछे ईश्वर का क्या प्रयोजन रहा होगा पता नहीं लेकिन जब इस अहसास को हर शरीर मे रख छोड़ा है तो कुछ गलत नहीं है क्योंकि कुछ गलत होता तो यह आकर्षण ईश्वर खुद ही सौगात के तौर पर न देता ।’ अमन के चेहरे पर अब पहले वाली ताजगी श्वेता को हल्के से अँधेरे में भी नजर आ रही थी ।

‘तुम सही कह रहे हो अमन ।’ कहते हुए श्वेता ने अमन के कंधे पर अपना सिर टिका लिया । उसकी खुली हुई जुल्फें चल रही हल्की सी हवाओं का अहसास पाकर अमन के चेहरे से खेलने लगी । सहसा श्वेता ने अमन का हाथ अपने हाथ में ले लिया । अमन ने श्वेता की आँखों में झाँका । श्वेता की नजरें इस वक्त एक तरह का आमन्त्रण समाया हुआ था जिसे अमन अच्छी तरह से महसूस कर पा रहा था । श्वेता अमन के और करीब आ गई ।

‘ईश्वर की बनायी हुई प्रकृति में केवल इन्सान ही विचारशील है और उसकी इस विचारशीलता की वजह से ही उसने अपने आसपास इतने सारे दायरे बना डाले है कि कालान्तर में उन्हीं दायरों के शिकंजों में फँसकर उलझकर रह जाता है ।’ अमन अनवरत बोले जा रहा था ।

‘आज कुछ अजीब ही अलग से मूड में हो अमन । बहुत गहराई से सोच रहे हो जिन्दगी के बारें में ?’ श्वेता ने अमन की हथेली सहलाते हुए पूछा ।

‘पक्षियों को देखों, पशुओं से लेकर किसी भी प्राणी को देखों । सभी अपना नैसर्गिक जीवन जीते है कहीं भी बनावट नहीं, कोई छल नहीं । इन्सानों की तरह उन्हें भी ईश्वर ने नर और मादा इन दो श्रेणियों में बाँधा है लेकिन उनका जीवन इन्सानों की तरह जटिल नहीं है । जोड़े उनके भी होते है और पूरी शिद्दत से अपने उस सम्बन्ध को वे निभाते है । नर और मादा के सम्बन्ध में सलामती का आधार केवल इन्सानों को ही चाहिए होता है । तुम्हें नहीं लगता अपनी जिन्दगी हमने खुद ही जटिल बना रखी है ?’ कहते हुए अमन ने श्वेता की तरफ देखा ।

‘कैसी बात कर रहे हो अमन तुम आज ? इन्सानों और अन्य प्राणियों में यही एक तो फर्क है । इन्सान सोच सकता है तो सोचे बिना थोड़े ही रह पाएगा और वह जितना सोचेगा उतना ही उलझेगा भी ।’ श्वेता ने अमन को जवाब देते कहा और उसके और करीब आ गई ।

‘नहीं श्वेता । यह ठीक नहीं है अभी ।’ जैसे ही श्वेता ने अमन के चेहरे को छुआ अमन पीछे हट गया ।

‘कुछ नहीं होगा । चलों अन्दर । बस थोड़ी देर ।’ श्वेता ने अमन को लगभग खींचते हुए कहा । उसके अन्दर आते ही बाल्कनी का दरवाजा बंद कर दिया और उससे लिपट गई ।

अमन दो घड़ी श्वेता से लिपटा रहा । श्वेता उसके चेहरे के संग खेलने लगी । अमन इस वक्त अपने आपको असहज सा महसूस कर रहा था । तभी अमन को एक जोरदार खाँसी उठी । श्वेता उससे दूर हटी लेकिन उसे सम्हालकर बैड पर बिठा दिया और कमर की लाईट चालू कर दी । अमन लगातार खाँसे जा रहा था । श्वेता दौड़कर किचन में गई और पानी का गिलास भर लाई । अमन ने मुश्किल से गिलास हाथ में थामा और एक घूंट पानी गले से नीचे उतारा । तभी अचानक उसे उल्टी होनी शुरू हो गई । श्वेता घबराहट के मारे कुछ समझ नहीं पा रही थी । उसने गौर किया फर्श पर बहुत सारा कफ पड़ा हुआ था । अमन की खाँसी अब रूक चुकी थी पर वह बुरी तरह से हाँफ रहा था ।

‘आर यू ओके अमन ?’ श्वेता ने अमन की पीठ पर हाथ फेरा ।

‘हं ... ठीक है अब ।’ अमन ने काँपते हुए स्वर में जवाब दिया ।

‘अमन, डॉक्टर को अब तो बताना होगा । तुम्हें सर्दी जुकाम न होने के बावजूद खाँसी भी हो रही है और कफ भी निकल रहा है । मुझे तुम्हारी बहुत चिन्ता हो रही है ।’ श्वेता बोली ।

अमन अब अपने को पहले से बेहतर महसूस कर रहा था । उसने बैड पर लेटते हुए अपने पैर लम्बे किए और बोला, ‘चिन्ता की कोई बात नहीं है । दो महीने पहले भी ऐसा ही कुछ हुआ था लेकिन उस वक्त अपने आप ठीक हो गया था । इस बार भी हो जाएगा ।’

‘नहीं, फिर भी डॉक्टर को बता देने में कोई हर्ज तो नहीं है न ?’ श्वेता ने जिद की ।

‘देखा, इसलिए मैं शादी करने के पक्ष में नहीं हूँ । अभी तो एक ही रात ही साथ रही और मेरी आजादी छीनने लगी । अब मुझे डॉक्टर के पास नहीं जाना तो नहीं जाना ।’ कहते हुए अमन मुस्कुरा दिया ।

‘सवाल तुम्हारी आजादी का नहीं तबियत का है ।’ श्वेता अपनी बात पर अड़ी रही ।

‘तुम यार ! बड़ी बड़ी टेबलेट्स खिलवाकर ही मानोगी । कुछ न होने पर भी कोई भी डॉक्टर बिना टेबलेट्स दिए अपने क्लिनिक से बाहर निकलने नहीं देता । साला टेबलेट्स खाकर ही पेट भर जाता है ।’

‘तो अभी कौन सा पेटभर खाना खा रहे हो । कल भी तो खाना अधूरा छोड़ सो गए थे ।’ श्वेता ने अमन की बात सुनकर जवाब दिया ।

‘ठीक है बाबा ! चलेंगे कल डॉक्टर के पास बस ? ये वीकेंड तुम डॉक्टर को दान करवा कर मेरी जेब खाली करवाकर ही मानोगी ।’ अमन हँस दिया ।

‘डोंट वरी डॉक्टर का बिल मैं चुका दूँगी ।’ श्वेता ने मुस्कुराकर कहा और गिलास लेकर वहाँ से उठ गई ।