रिसते घाव (भाग- १७) Ashish Dalal द्वारा फिक्शन कहानी में हिंदी पीडीएफ

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रिसते घाव (भाग- १७)


‘कैसी बात कर रही हो श्वेता । सबकुछ तुम्हारा ही तो है ।’ कहते हुए अमन ने दो बार खांसी खायी ।
‘अमन, तुम जरुर कुछ छिपा रहे हो ? सच सच कहो क्या बात है ?’ श्वेता के चेहरे पर घबराहट छा गई । अपने आने के बाद से ही वह अमन के व्यवहार में रोज की तरह की गर्मजोशी की कमी महसूस कर रही थी ।
‘कुछ खास नहीं । आज सुबह से थोड़ी तबियत ठीक नहीं लग रही है ।’ अमन जवाब देते हुए फिर से खांसी खायी । श्वेता उठकर कीचन में जाकर पानी का गिलास लेकर आ गई और उसे अमन के हाथ में थमा दिया ।
अमन ने जैसे ही दो घूंट पानी गले के नीचे उतारा उसे लगातार खांसी आने लगी । श्वेता ने आगे बढ़कर अमन के हाथ से गिलास ले लिया और उसके पास बैठकर उसकी पीठ थपथपाने लगी । कुछ देर के बाद अमन की खांसी थमी तो वह आँखें बंदकर बैठ गया ।
श्वेता ने अमन के माथे पर हाथ रखकर उसके शरीर का तापमान चैक किया । उसके माथे पर से पसीने की बूंदें छलक रही थी ।
‘बुखार तो नहीं है ।’ वह बुदबुदायी ।
‘कुछ नहीं हुआ । अभी अभी नाईट शिफ्ट शुरू की तो शायद एडजस्ट नहीं हो पा रहा हूँ ।’ अमन ने आँखें खोलकर श्वेता को दिलासा देते हुए कहा ।
‘हो सकता है । बायोलाजिकल क्लाक सेट होने में शायद थोड़ा समय लगे । अच्छा, खाना खा लिया तुमने ?’ श्वेता ने अमन को स्वस्थ पाकर राहत की सांस ली ।
‘नहीं । कुछ खाने का मन नहीं है ।’ अमन ने ना में सिर हिलाते हुए जवाब दिया ।
‘ऐसे कैसे मन नहीं है । मैं तुम्हारें पसंद के पुलाव बना लाती हूँ, लौंग के जायके वाले ।’ श्वेता कहते हुए उठकर कीचन में चली गई।
अमन वहीं आँखें मूंदकर सोफे पर लेट गया ।
श्वेता थोड़ी ही देर में दो प्लेट में पुलाव लेकर बाहर आ गई । अमन को शायद झपकी लग गई थी । उसने थपथपाकर उसे उठाया तो वह चौंककर उठकर बैठ गया ।
‘लगता है सो गए थे । जाओ जाकर मुँह धो आओ, तब तक मैं गिलास में पानी भरकर ले आती हूँ ।’ श्वेता ने कहा और उठकर कीचन में गिलास में पानी भरने लगी । अमन उठकर बैडरूम से अटैच्ड बाथरूम में चला गया ।
अमन अब थोड़ा फ्रेश नजर आ रहा था ।
‘यकीनन अमन , तुम्हारी नींद पूरी नहीं होती । एक थोड़ी सी देर की झपकी लेकर तुम कितने फ्रेश लग रहे हो ।’ श्वेता ने टेबल पर रखी प्लेट उठाकर अमन की तरफ बढ़ाई ।
‘शायद ।’ अमन ने जवाब दिया और चम्मच में पुलाव लेकर अपने मुँह में डाला ।
‘अरे वाह ! बड़े दिनों के बाद इतना जायकेदार पुलाव खाने को मिल रहा है ।’ अमन श्वेता की तरफ देखकर मुस्कुराया ।
‘इच्छा तो है कि तुम्हें रोज इसी तरह सामने बैठकर खिलाऊं पर किस्मत में पता नहीं क्या लिखा है ।’ कहते हुए श्वेता के चेहरे पर उदासी छा गई ।
‘उदास क्यों होती हो ? तुम बेवजह अपनी खुशियों पर किसी और की इच्छा की मोहर लगवा रही हो । मामा मामी नहीं मानते तो साफ बात कर अपना रास्ता चुन लेने में कोई बुराई नहीं है ।’ अमन ने कहा और तभी उसे एक जोरदार खांसी उठी । खाने की प्लेट उसके हाथों से छूटकर नीचे जा गिरी ।
‘अमन !’ श्वेता चीख उठी ।
‘सम्हालों अपने आपको । ये क्या हो रहा है तुम्हें ? तुम्हें बार बार खांसी क्यों आ रही है ?’ श्वेता ने उठकर अमन को सम्हाला ।
अमन लगातार खांसी खाये जा रहा था । तभी खांसी के साथ उसके मुँह से ढेर सारा कफ बाहर आ गया । अमन की हालत देखकर श्वेता पूरी तरह से घबरा गई ।
‘ये क्या हो गया है अमन तुम्हें ? सर्दी जुकाम कुछ भी तो नहीं है तुम्हें । फिर यह कफ ?’
‘पानी । पानी ।’ अमन काँपती आवाज में बुदबुदाया ।
श्वेता ने तुरन्त ही पानी का गिलास हाथ में लेकर उसके मुँह से लगाया । अमन ने धीमे से दो – तीन घूंट अपने गले से नीचे उतारे और फिर सोफे के तकिये का सहारा लेकर आँखें बंदकर बैठ गया ।
श्वेता समझ नहीं पा रही थी कि आखिर अमन को हो क्या रहा है । अभी उसे शान्ति से बैठा पाकर वह उठी और खाने की प्लेट्स लेकर कीचन में चली गई । फिर पोंछा लेकर पूरा फर्श साफ कर लिया ।
कुछ देर आराम कर लेने के बाद अमन ने फिर से आँखें खोली और श्वेता की तरफ देखकर उसके चेहरे पर हल्की सी मुस्कान फैल गई । तभी उसकी नजर सामने दीवार पर टंगी घड़ी की तरफ गई ।
‘श्वेता, ग्यारह बजने को है । चलो मैं तुम्हें तुम्हारें घर छोड़ आता हूँ ।’ अमन ने कहा और अपनी जगह से खड़ा होने लगा ।
‘नहीं अमन । तुम्हारी तबियत ठीक नहीं है । इस हालत में मैं तुम्हें इस वक्त छोड़कर नहीं जा सकती । मैं घर पर फोन कर देती हूँ।’ श्वेता ने अमन का हाथ पकड़ लिया ।
‘मुझे कुछ नहीं हुआ पगली । रात को नींद पूरी हो जाएगी तो सारी तकलीफ छू मंतर हो जाएगी ।’ अमन ने हँसते हुए जवाब दिया और फिर से श्वेता के समीप बैठ गया ।
‘नहीं फिर । मेरा मन नहीं मानता ।’ कहते हुए अमन के जवाब की परवाह किए बिना श्वेता ने रागिनी का नम्बर डॉयल कर दिया ।
‘हैल्लो मामी, मैं ऑफिस से अमन के यहाँ आई हूँ । उसकी तबियत ठीक नहीं है ।’ फोन कनेक्ट होने ही श्वेता ने बिना कोई भूमिका बाँधे बेझिझक अपनी बात रख दी ।
‘तो कहना क्या चाहती है ?’ श्वेता के अमन के यहाँ इस वक्त होने की खबर पाकर रागिनी का मूड खराब हो गया ।
‘अभी इस वक्त मैं नहीं घर नहीं आ पाऊँगी ।’
‘इत्तला कर रही है या फैसला सुना रही है ?’ रागिनी ने ताना मारते हुए श्वेता को पूछा ।
‘आप जो चाहे समझे ।’ श्वेता ने कहा और फोन उचाट मन से फोन डिसकनेक्ट कर दिया ।
‘बड़ी बेरूखी से जवाब दिया तुमने और शायद फोन तुमने आधी बात किए ही बंद कर दिया ।’ श्वेता के चेहरे के बदले हुए हावभाव देखकर अमन श्वेता के और नजदीक आ गया ।
‘कुछ नहीं अमन । जब से तुम्हारें बारें में घर पर पता चला है तब से मेरे और मामी के रिश्ते में एक कड़वाहट सी आ गई है ।’ श्वेता ने भारी मन से जवाब दिया ।
श्वेता की बात सुनकर अमन ने कोई जवाब नहीं दिया ।
‘अमन, तुम्हें अभी भी लगता है अगर हमनें शादी की तो सफल नहीं होगी ?’ सहसा श्वेता ने बात का रूख बदलते हुए अमन की ओर देखा ।
‘ऐसा तो मैंने पहले भी नहीं कहा था । मेरी नजरों में शादी किसी भी लड़की की स्वतन्त्रता को खत्म कर देती है और लड़की खुशी खुशी इस बन्धन को स्वीकार कर एडजस्ट भी हो जाती है । मैं नहीं चाहता तुम मुझसे पूरी जिन्दगी किसी ऐसे कमिटमेन्ट के साथ जुड़ो जिससे तुम्हें कभी अपनी आजादी छीन जाने का अहसास होने लगे ।’
‘ऐसा नहीं है अमन । यह तुम्हारी अपनी सोच है जो तुमने केवल अपने पेरेन्ट्स की शादी की असफलता के आधार पर बना रखी है । किसी भी लड़की के लिए परिवार और पति का प्यार महत्वपूर्ण होता है और यह सब पाने के लिए उसे अपने अस्तित्व को मिटा लेने में भी खुशी ही होती है ।’ अमन की बात सुनकर श्वेता ने अपना तर्क रखा ।
‘तो तुम चाहती हो कि मैं तुमसे शादी कर लूँ तभी तुम इस घर में रहने आओगी ?’ अमन ने श्वेता को घूरा ।
‘ऐसा तो मैं भी नहीं कह रही हूँ पर यही दुनिया की रीत है । शादी किए बिना किसी लड़के के साथ रहना लड़की के चरित्र को लेकर हजारों प्रश्न खड़े कर देता है ।’ श्वेता ने अमन की बात का जवाब दिया ।
‘किसी भी व्यक्ति का चरित्र लोगों की बातों से बनता और बिगड़ता नहीं है । यह तो हर किसी का देखने का नजरिया है । तुम्हें अगर लगता है कि तुम जो कर रही हो वह सही है तो वह सही ही है । फिर उस बात को साबित करने के लिए लोगों के तर्क वितर्क की जरूरत नहीं महसूस होनी चाहिए । मैं तुम्हें बेहद प्यार करता हूँ और आजीवन करता रहूँगा लेकिन शादी जैसे बंधन में तभी हम बंधेगे जब एक दूसरे को अच्छी तरीके से समझ लेंगे और एक दूसरे से एडजस्ट होना सीख लेंगे ।’
‘तुम्हारी कई बातें मेरी समझ से बाहर होती है लेकिन तुम पर विश्वास ही मुझे हर हाल में तुम्हारें संग चलने को उकसा रहता है । आय लव यू अमन ।’ श्वेता ने कहते हुए अमन की हथेली चूम ली ।
‘बातों में ही रात नहीं गुजारनी है । तुम एक काम करो, अन्दर बैडरूम में जाकर सो जाओ । मैं इधर सोफे पर ही सो जाता हूँ ।’ अमन ने अचानक से ही अपना हाथ खींचते हुए कहा ।
‘क्यों ? खुद पर भरोसा नहीं या मुझ पर भरोसा नहीं ?’ श्वेता अमन की बात सुनकर मुस्कुरा दी ।
‘नहीं ऐसी बात नहीं है और अभी मैं उस तरह के मूड में भी नहीं हूँ । तुमने अभी अपना फैसला अपने मामा मामी पर छोड़ रखा है तो तब तक एक दूरी तो बनाकर रखनी ही होगी ।’
‘शरीफ बनने की कोई जरूरत नहीं है । चलों अन्दर बैडरूम में । कुछ नहीं होगा ।’ श्वेता ने पूरे हक से कहा और अपनी जगह से खड़ी होकर अन्दर चली गई ।