रिसते घाव - भाग १६ Ashish Dalal द्वारा फिक्शन कहानी में हिंदी पीडीएफ

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रिसते घाव - भाग १६


श्वेता ने आश्वस्त होकर अपनी जिन्दगी का फैसला राजीव के हाथों में सौंप तो दिया लेकिन फिर उस बात को लेकर घर में चर्चा होना बंद हो गई । श्वेता को महसूस होने लगा कि उसकी जिन्दगी के एक अहम पहलू को जानबूझकर भुला दिया जा रहा है । राजीव एक ही घर में रहते हुए भी अपना समय इस तरह से एडजस्ट करने लगा कि अधिक से अधिक वक्त वह श्वेता से दूर रह सके । वैसे भी श्वेता की नौकरी का समय सेकेण्ड शिफ्ट का था तो राजीव से उसकी मुलाकात रविवार को ही हो पाती थी । बाकि दिन जब तक वह सोकर उठती राजीव नौकरी के लिए जा चुका होता और जब वह नौकरी से लौटती राजीव अपने कमरे में सो चुका होता ।
वैसे तो अमन से उसकी मुलाकात रोज ही ऑफिस में होती रहती थी लेकिन पिछले दो दिनों से वह बेहद उखड़ी उखड़ी सी रहने लगी थी । अमन प्रमोशन पाकर किसी और डिपार्टमेंट में चला गया था और अब पूरी तरह से नाइट शिफ्ट कर रहा था । अमन का शिफ्ट टाइम बदल जाने से और नौकरी में नई जिम्मेदारी आ जाने अमन श्वेता को पहले जितना समय नहीं दे पा रहा था । यही वजह श्वेता को परेशान कर रही थी । घर में उसके और अमन के सम्बन्धों को लेकर छाई चुप्पी और इधर ऑफिस में अमन का पूरी तरह से निश्चिन्त होकर नौकरी में खो जाना श्वेता के मन में एक उलझन पैदा कर रहा था । प्यार में किसी एक सम्बन्ध को लेकर अचानक से दूरी बढ़ जाना किसी भी पात्र के लिए त्रासदीपूर्ण होता है और जब यह भावना घर करने लगती है तो साथ ही अनिश्चितताओं का दौर भी शुरू होने लगता है । कुछ इसी तरह की अनिश्चितताओं की विचारधारा में श्वेता इन दिनों बह रही थी ।
आज ऑफिस में आकर उसने अमन से अपने भविष्य को लेकर कोई एक फैसला लेने का कर लिया था । वह बड़ी ही बेसब्री से शाम के सात बजने पर अमन के ऑफिस आने का इंतजार करने लगी । अमन के शिफ्ट का समय वैसे तो साढ़े सात बजे का था लेकिन वह अक्सर सात बजे ही ऑफिस में पहुँच जाया करता । श्वेता बार बार अपने मोबाइल पर समय देख रही थी । साढ़े सात बजने पर भी अमन का पूरे ऑफिस में कहीं पता नहीं था । उसने पहले तो सारे ऑफिस में उसे ढूंढ़ा लेकिन फिर जब उसे पता चला कि वह आज ऑफिस आया ही नहीं है तो उसे बेहद अचरज हुआ । आज तक अमन ने जब जब छुट्टी ली तब तब वह श्वेता को पहले से बता दिया करता था । झुंझलाहट में उसने अमन का नम्बर जोड़ा । रिंगटोन पूरी होकर बंद हो गई तो उसने फिर से अमन का नम्बर डॉयल किया लेकिन इस बार भी अमन ने उसका कॉल रिसीव नहीं किया । श्वेता तुरंत अपने सुपरवाइजर के पास गई और अपनी तबियत ठीक न होने का बहाना कर आधे दिन की सीक लीव लेकर वह ऑफिस से बाहर आ गई ।
ऑफिस से निकलकर मेन रोड़ पर आकर उसने रिक्शा ली और अमन के घर की राह पकड़ ली । रिक्शा में बैठे बैठे उसने दो तीन बार अमन का नम्बर डॉयल किया लेकिन उसकी तरफ से कोई जवाब न मिलने पर कुछ अनहोनी की आशंका के साथ उसकी चिन्ता बढ़ती चली जा रही थी ।
कुछ ही देर में रिक्शा अमन की रेसीडेंसी के बाहर खड़ी थी । श्वेता ने रिक्शा का किराया चुकता किया और गेट के पास खड़े वॉचमेन से विजिटर्स रजिस्टर लेकर उसमें अपनी जानकारी भरकर वह सीधे सी टॉवर की लिफ्ट की ओर चल दी । चौथी मंजिल पर पहुँचकर उसने अमन के फ्लैट की बेल बजाई । थोड़ी देर बाहर खड़े रहने पर अन्दर से कोई जवाब न पाकर उसने फिर दुगने वेग से बेल का बटन दबाया । अबकी बार कुछ देर में फ्लैट का दरवाजा खुला । श्वेता को इस वक्त अपने फ्लैट के बाहर खड़ा पाकर अमन को आश्चर्य हुआ । ब्लैक बरमुडा और उस पर पतली सी सफेद टी शर्ट पहने अमन को अपने सामने सकुशल खड़ा देख श्वेता की आँखें गीली हो गई । वह फुर्ती से अन्दर की ओर बढ़ी और अमन से लिपट गई । अमन श्वेता के अचानक से इस तरह की प्रतिक्रिया के लिए तैयार न था । उसने श्वेता की पीठ को सहलाया और फिर उसे अपने से अलग कर दरवाजा अन्दर से बंद कर लिया ।
‘किस बात की छुट्टी ले रखी है ऑफिस से आज अचानक और मुझे बताया क्यों नहीं ?’ श्वेता ने सोफे पर बैठते हुए अमन से शिकायती स्वर में पूछा ।
‘बस ऐसे ही । मन नहीं कर रहा था आज ऑफिस जाने का । सीक लीव वैसे भी उपयोग किये बिना पूरी हो जाती है तो सोचा ले लूँ ।’ अमन ने श्वेता के करीब बैठते हुए जवाब दिया ।
‘सच कह रहे हो या कोई और बात है ? तुम्हारी आँखें तुम्हारें कहे शब्दों का साथ नहीं दे रही है । थोड़े उदास लग रहे हो । क्या बात है अमन ?’ श्वेता अमन को पूरी तरह से पढ़ रही थी ।
‘तुमसे झूठ क्यों बोलूँगा ?’
‘ऑफिस न आने की बात न बताकर बात छुपाने की शुरुआत तो कर ही दी है तो क्या भरोसा झूठ भी बोल दो ।’ श्वेता ने रहस्यमयी हँसी चेहरे पर लाते हुए अमन को देखा ।
‘ऐसी कोई बात नहीं है श्वेता । वैसे तुम अचानक इस वक्त यहाँ कैसे ? तुम्हें तो ऑफिस में होना चाहिए था ।’ अमन ने बात का रूख बदलते हुए श्वेता की बात का जवाब दिया ।
‘मेरी भी सीक लीव उपयोग हुए बिना पूरी हो जाती है तो सोचा बीमार पड़कर देख लूँ ।’ कुछ देर पहले अमन के कहे शब्दों को दोहराते हुए श्वेता ने जवाब दिया ।
‘तुमसे जीत पाना मुश्किल है । इस वक्त रात को तुम्हें यहाँ नहीं आना चाहिए था । यहाँ से वापस जाने के लिए रात को कुछ भी नहीं मिलता ।’
‘तो क्या हुआ । यहीं रह लूंगी तुम्हारें साथ । रखोगे न अपने घर में ?’ श्वेता को लगा अमन जैसे उसे टालने की कोशिश कर रहा है ।
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