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बहनें ( तुम देना साथ मेरा )

आज आशा का जन्म हुआ है। कोई और घर होता तो लक्ष्मी आने की खुशी में जश्न मनाया जाता किंतु आशा के घर में आज मातम पसरा हुआ है ‌। सुबह से घर में चूल्हा नहीं जला और आशा की दादी आशा की मां को व आशा को लगातार गालियां देती जा रही है कि इस करमजली को भी यहीं आकर मरना था। पहले ही दो-दो छोरियों का बोझा कम था क्या जो तुने इस तीसरी को भी जन दिया। मेरे कुल का नाम कौन आगे बढ़ायेगा। एक छोरे ही जन देती तीन-तीन छोरियों से तो।आशा की मां विमला ने तो आशा का चेहरा भी नहीं देखा उसे उठाकर दूध पिलाना तो बहुत दूर। उसे भी लगता है कि भगवान ने उसके साथ अच्छा नहीं किया तीसरी बार भी बेटी देके।आशा का बापू उसे तो बेटा हो या बेटी कोई फर्क ही नहीं पड़ता इसलिए नहीं कि उसे बेटा और बेटी दोनों एक समान लगते हैं बल्कि इसलिए कि वह रात-दिन दारू के नशे में चूर रहता है ‌‌।

इन सबके बीच आशा के आने से कोई खुश है तो वह है उसकी दोनों बड़ी बहनें राधा और कृष्णा। सुबह से भुखी होने के कारण आशा जोर-जोर से रोने लगती है, राधा विमला से उसे दूध पिलाने को कहती हैं पर विमला गुस्से में मना कर देती है कि उसे कोई दूध-वूध नहीं आ रहा‌ ।भूख से कल मरती है आज मर जाए मेरी बला से ‌। मां के ऐसे शब्द सुन राधा और कृष्णा को बहुत तकलीफ़ होती है वो विमला से कहती हैं मां देखना यह कितनी सुंदर गोरी-गोरी छोटी सी है। और देखना भूख के कारण रो-रोकर इसकी यह बड़ी सी आंखें कैसे लाल हो गई है ‌। मां इसे दूध पिला दे ना, पर विमला उन दोनों को वहां से डांटकर भगा देती है।राधा और कृष्णा समझ जाती है कि मां आशा को दूध नहीं पिलाने वाली तो वह दोनों चूल्हा जला कर दूध गर्म करती है और कटोरी में लाकर चम्मच से उसे ठंडा करके थोड़ा-थोड़ा दूध पिलाने लगती है।थोड़ा सा दूध पीकर आशा चुप हो जाती है और सो जाती है। अब तो राधा और कृष्णा ही है जो रोज उसे दूध पिलाती, नहलाती, उसकी मालिश करती, उसे तैयार करती। एक तरह से विमला तो केवल आशा की नाम की मां थी, उसको पालने वाली असली मां तो राधा और कृष्णा ही थी।

अप्रैल का महीना है स्कूलों का नया सत्र शुरू हो गया है। आज गुरुजी ने स्कूल में सभी बच्चों को कहा कि जिसके भी छोटे भाई-बहन पांच साल तक के हो वो अपने मां-बापू से कहना कि आकर स्कूल में उनका नाम लिखा दें। कृष्णा जो स्कूल में चौथी कक्षा में पढ़ती है वह भी गुरूजी की बात सुनती है और हिसाब लगाती है कि उनकी आशा भी तो इस साल पांच साल की हो गई। उसका नाम भी तो लिखाना है, वह घर आकर राधा को कहती है राधा जीजी हमारी आशा का नाम स्कूल में लिखवाना है, आज गुरुजी बोले कि जिनके भी भाई-बहन पांच साल के हो गए वो अपने मां-बापू से कहना कि स्कूल में आकर उनका नाम लिखा दें। राधा कहती है यह तो मुझे याद ही नहीं रहा।‌ चल मां से बात करते हैं। वो दोनों विमला के पास जाती है और उससे स्कूल जाकर आशा का नाम लिखवाने को कहती है ‌। पहले तो विमला ना-नुकुर करती है पर जब राधा और कृष्णा जिद करती है तो उनके साथ जाकर वह आशा को स्कूल में भर्ती करवा देती है। अगले दिन से आशा कृष्णा के साथ रोज़ स्कूल जाने लगती है। वह पढ़ाई में बहुत होशियार होती है।

राधा जो कि घर की जिम्मेदारियों के चलते पांचवीं कक्षा से आगे नहीं पढ़ पाईं वह चाहती है कि उसकी दोनों बहनें खुब पढ़ें। बापू तो दिनभर शराब के नशे में चूर रहता है तो घर खर्च चलाने के लिए उसको और विमला को ही दूसरे के घरों में झाड़ू-पोंछा, बर्तन-कटका करना पड़ता है। आशा का पेन खत्म हो गया वह विमला से नया पेन दिलाने को कहती है तो विमला उसे डांटकर भगा देती है कि उसके पास इन सब फालतू कामों के लिए पैसे नहीं हैं। आशा रोने लगती है जब राधा काम पर से लौटती है और आशा को रोता देखती है तो वह उससे उसका कारण पूछती है। आशा तो कुछ नहीं बताती किंतु कृष्णा सब बात बता देती है। राधा, आशा से कहती है कि अब किसी भी चीज की जरूरत हो तो मुझसे मांगना, मां को कहने की कोई जरूरत नहीं है।

अगले दिन राधा काम से देर से लौटती है तो विमला उससे देर से आने का कारण पूछती है तो राधा कहती है कि मेमसाब के घर मेहमान आए हुए हैं और काम ज्यादा निकलता है इसलिए देर हो जाती है। जबकि सच्चाई यह थी कि राधा ने दो घरों का काम और पकड़ लिया था ताकि वह आशा की पढ़ाई से संबंधित जरूरत पूरी कर पाएं। वह अपनी तनख्वाह के थोड़े बहुत पैसे ले आती जिससे आशा के काॅपी-किताब का खर्चा निकल जाएं और बाकी की तनख्वाह वहीं अपनी मेमसाब के पास छोड़ देती ताकि वह बाद में आशा कि आगे की पढ़ाई के काम आ सकें।राधा की मेमसाब उन पैसों को बैंक में जमा करवा देती। ऐसा वह सात-आठ साल तक करवाती रही। राधा के पास अच्छी खासी रकम जमा हो गई।

आज राधा की शादी है।सब लोग बहुत खुश हैं सिवाय आशा के।
राधा की बिदाई के वक्त वह उसके गले लगकर बहुत रोती है और कहती है कि लोग शादी करके अपनी बेटियों को बिदा करते हैं पर आज मेरी मां की बिदाई है। कृष्णा और राधा भी बहुत रोती है।कृष्णा आशा से कहती है क्या हुआ जो राधा जीजी जा रही है मैं हूं ना तुम्हें कुछ भी चाहिए हो तो तुम मुझे बताना मैं पूरी कोशिश करूंगी तुम्हारी उस जरूरत को पूरा करने की।

आशा काॅलेज में एडमिशन ले लेती है। राधा के जाने के बाद उसे अब यह चिंता सताती है कि वह आगे अपनी पढ़ाई कैसे पूरी कर पाएंगी। कृष्णा उसे कहती है तू बस अपनी पढ़ाई पर ध्यान दें बाकि फीस वगैरह की चिंता मुझ पर छोड़ दें। कृष्णा जो कि खुद एम.ए. की स्ट्यूडेंट है बच्चों को कोचिंग पढ़ाना शुरू कर देती है और खुद की व आशा की पढ़ाई का खर्च निकालने लगती है। इधर रूस में एक मेडिकल इंट्रेस एक्जाम निकलती है, जिसे किसी भी देश का साइंस का स्ट्यूडेंट आनलाईन दे सकता है जिसमें सिलेक्शन होने पर आगे की एम.बी.बी.एस.की पढ़ाई का पूरा खर्च रुस की सरकार उठाएगी पर उनकी यह शर्त है कि एम.बी.बी.एस. करने के बाद शुरू के पांच साल उस डॉक्टर को रूस में ही सर्विस करनी पड़ेगी। आशा भी उस एग्जाम का फार्म भर देती है।

कृष्णा की भी शादी तय हो जाती है और उसका काॅलेज जाना बंद करवा दिया जाता है। उसकी शादी के समय वह कुछ रूपए निकाल कर आशा के हाथ में देती है और उससे कहती है कि यह उसने अपने शिक्षक प्रशिक्षण कोर्स करने के लिए बचा के रखें थे लेकिन अब शादी के बाद यह उसके किसी काम के नहीं है।यह रूपये अब तुम रख लो तुम्हारी आगे की पढ़ाई के काम आएंगे। आशा उसको मना करती है और कहती है कि उसे इसकी कोई जरूरत नहीं है। वह पैसे कृष्णा खुद अपने पास रखें बाद में उसे जरूरत होगी तो वह उससे मांग लेगी।

राधा और कृष्णा के जाने के बाद आशा बिल्कुल अकेली रह जाती है वह किसी से भी बात नहीं करती और अब वह अपना पूरा ध्यान एंट्रेंस एग्जाम पर लगा देती है। उसकी एंट्रेंस एग्जाम का रिजल्ट आता है और वह उस में सिलेक्ट हो जाती है पर अब उसके सामने यह समस्या खड़ी होती है कि रूस उसकी एमबीबीएस का खर्चा तो उठा लेगा किंतु वहां रहने और जाने का जो खर्चा है उसकी व्यवस्था कैसे की जाए। आशा बहुत परेशान होती है तभी राधा और कृष्णा का घर पर आना होता है। वह दोनों उसे परेशान देखती है तो उससे उसकी परेशानी का कारण पूछते हैं। वह उन दोनों को अपनी परेशानी बता देती है। वह दोनों बहुत खुश होती हैं और उससे कहती हैं कि वह बस जाने की तैयारी करें और पैसों की चिंता बिल्कुल ना करें। राधा ने काम करके जो पैसा बचाया था वह निकाल कर ला कर आशा के हाथ में दे देती है जो तकरीबन 3,00,000 होते हैं और कृष्णा भी उसे अपने बचाएं हुए पैसे दे देती है। आशा उन दोनों से कहती है कि वाकई में तुम दोनों मेरी दो मां हो जो मेरी हर परेशानी का हल कर देती हो। पर जब विमला को यह सब बताया जाता है तो वह खुश होने की बजाय उसका विरोध करती है कि यह दूसरे देश जाएंगी तो इससे शादी कौन करेगा और पहले ही कृष्णा की पढ़ाई के कारण उसके लिए लड़का ढूंढने में इतनी परेशानी आई थी और फिर यह तो डाक्टरी की पढ़ाई करने जा रही है वह भी विदेश। इसके लिए लड़का कहां से मिलेगा।वह अब उसकी पढ़ाई छुड़ाकर बस उसके लिए लड़का ढूंढकर उसके हाथ पीले कर गंगा नहाएगी बहुत हो गई यह पढ़ाई-लिखाई।कृष्णा उसकी बात सुनकर गुस्से से कहती है किस हक से तुम उसकी जिंदगी के फैसले करोगी।जब आज तक तुमने उससे सीधे मुंह बात नहीं करी तो अब भी उसके बारे में सोचने की कोई जरूरत नहीं है।वह मेरी और राधा जीजी की बेटी है और उसकी जिंदगी के फैसले लेने का हक भी हम दोनों को ही है। हम यह फैसला कर चुके कि आशा रुस जाएंगी तो जाएंगी।और वैसे भी राधा जीजी और हम तुम्हारी बेटियां थीं तुमने हमारी जिंदगी में जो फैसले लिए हमने मंजूर कर लिए चाहे तुम्हारे फैसले से हमारी जिंदगी ही क्यों न बर्बाद हो गई।क्या राधा जीजी ने तुम्हें बताया कि जीजाजी रोज शराब पीकर उनके साथ मारपीट करते हैं।और मेरे घरवाले का भी बाहर किसी औरत के साथ नाजायज रिश्ता हैऔर मैं केवल मजबुरी में उसके साथ रह रही हूं कि यदि मैं उसको छोड़ दूं तो कहां रहूंगी यहां तो तुम मुझे रहने नहीं दोगी और यहां गांव में मुझे कोई ऐसी नौकरी भी नहीं मिलेगी जिसमें में अपने रहने खाने एवं आगे की पढ़ाई का खर्चा उठा सकूं इसलिए मैं मजबूरी में उस घर में रह रही हूं ताकि मैं आसपास के बच्चों को पढ़ाकर थोड़ा बहुत पैसा इकट्ठा कर लूं और अपनी पढ़ाई पूरी कर लूं। आशा उससे कहती है कि वह अपने बचाएं हुए रूपए से अपनी पढ़ाई पूरी करे और उस घर को छोड़ दें, वह यहीं भारत में रहकर कोई और कोर्स कर लेगी, जिसमें ज्यादा पैसों की जरूरत नहीं होगी।पर कृष्णा उससे कहती है कि उसके सपने तो शादी के कारण टूट गये पर वो उसके सपने नहीं टूटने देगी।वह बच्चों को पढ़ाकर फिर पैसा इकट्ठा कर खुद की पढ़ाई कर लेगी पर यदि तुम्हारे हाथ से यह मौका निकल गया तो शायद तुम्हें फिर दोबारा मौका न मिले इसलिए तुम जाने की तैयारी करों और यहां की चिंता मत करना।

आशा रूस चली जाती है और अपनी पढ़ाई के साथ-साथ पार्ट टाइम जाब भी करती है ताकि वहां के रहने के खर्च को वहन कर पाएं । शुरू के कुछ साल तो वह अपनी तनख्वाह और राधा के दिए पैसे से जैसे तैसे मैनेज करती है पर जब राधा के दिए पैसे खत्म हो जाते है तो उसके लिए वहां एडजस्ट करना मुश्किल हो जाता है। उसके कोर्स को छः महीने बाकी होते हैं वह खाना भी बहुत कम खाती है आधे टाइम भुखी ही रह जाती है पर फिर भी वह खर्चा पूरा नहीं कर पाती, थक-हारकर वह कृष्णा को फोन करती है कि वह इण्डिया वापस आ रही है उसके लिए अब यहां सरवाइव करना बहुत मुश्किल हो रहा है। कृष्णा उसको डांटती है कि मंजिल के इतने करीब पहुंच कर ऐसे कैसे वापस लौट आएगी। कृष्णा ने क्
अपनी पढ़ाई के लिए जितना भी पैसा बचाया था वह सब आशा के खाते में जमा करवा देती है। आशा उसका विरोध करती है तो वह कहती हैं कि जब वह डाक्टर बन जाएंगी तब उसकी जो सैलरी मिलेगी उससे वह अपनी पढ़ाई पूरी कर लेगी। आशा का कोर्स पूरा हो जाता है और उसे अब पांच साल रुस में ही रहकर वहां की सरकार के लिए काम करना है।और इसके बदले उसे अपने रहने खाने के अलावा थोड़ी बहुत तनख्वाह भी दी जाएगी। आशा अपनी तनख्वाह को बहुत आवश्यक होने पर ही खर्च करती और बाकी की तनख्वाह कृष्णा के पास भेज देती। कृष्णा अब अपने पति के घर को छोड़ देती है और शिक्षक प्रशिक्षण कोर्स में प्रवेश ले लेती है।उसका कोर्स पूरा हो जाता है और शिक्षक भर्ती परीक्षा निकलती है जिसमें पास होने पर उसकी एक शिक्षक के रूप में सरकारी नौकरी लग जाती है।उधर आशा के भी रूस में पांच साल पूरे हो जाते हैं।वह भी भारत लौट आती है और एक प्रायवेट हास्पिटल में नौकरी करने लगती है। साथ ही सुबह शाम अपने घर पर भी मरीज़ देखती है। कृष्णा और आशा दोनों की अच्छी कमाई हो जाती है पर अभी भी वह राधा के लिए परेशान रहती है। तभी उनके मन में विचार आता है कि यदि जीजाजी को खुद की दुकान खोलकर देदी जाएं तो उनके पास समय ही नहीं बचेगा इधर-उधर आवारा दोस्तों के बीच उठने बैठने का। अभी तो वह दूसरे की दुकान पर काम करते हैं तो आठ घंटे की नौकरी के बाद फुर्सत में रहते हैं। फिर शायद इनके पास समय ही न हो। यही सोचकर वह राधा के पति को कपड़े की दुकान खुलवा देती है क्योंकि बचपन से वह कपड़े की दुकान पर नौकरी कर रहा है तो उसको कपड़े की अच्छी खासी जानकारी है।वह अपने सेठ के साथ अनेक बार माल खरीदने भी जा चुका है तो उसे माल कहां से खरीदना है और किस कीमत पर खरीदना है सब पता है।मोहन के कपड़े की दुकान अच्छी-खासी चल जाती है।उसको अब थोड़ी बहुत भी फुर्सत नहीं मिलती। दिनभर दुकान पर रात माल को चेक करने और नया माल आर्डर करने में बिजी हो जाता है।उसका शराब पीना छूट जाता है। शराब नहीं पीता तो अब राधा पर हाथ भी नहीं उठाता। राधा की जिंदगी हंसी-खुशी बितने लगती है। कृष्णा और आशा तो अपनी लाइफ में पहले ही बीजी थी अब राधा भी दुकान पर बैठने लगी है तो वह भी बिज़ी हो जाती है।पर उन‌ तीनों ने एक नियम बनाया है कि वह कितनी भी बिज़ी क्यों न हो रात में वह एक-दूसरे को फोन करेगी और अपनी पूरी दिनचर्या साझा करेगी और यदि कोई परेशानी हो तो वह भी बताएंगी।

इस तरह तीनों बहनों ने एक-दूसरे का साथ देकर अपने जीवन को खुशहाल बना लिया है।


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