कुल्हड़ वाली चाय Pragya Chandna द्वारा प्रेम कथाएँ में हिंदी पीडीएफ

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कुल्हड़ वाली चाय

निशा चाय का कप लेकर बालकनी में कुर्सी पर बैठी है और अखबार पढ़ रही है, यही उसका रोज़ का रूटीन है। सुबह जल्दी उठकर पति और बच्चों के लिए नाश्ता तैयार करके उन्हें उठाना और उनके तैयार होने तक गैस पर एक तरफ बच्चों के लिए दूध और दूसरी तरफ पति और खुद के लिए चाय चढ़ाना। पति को आफिस और बच्चों को स्कूल भेजकर खुद का चाय का कप लेकर बालकनी में आकर अखबार पढ़ते हुए चाय की चुस्कियों का आनंद लेना।

अखबार पढ़ते हुए उसकी नजर एक समाचार पर टिक जाती है, जो उसे उसके अतीत में ले जाती है।

बीस-बाईस साल पहले निशा अपने घर से स्कूल के लिए निकल रही थी तभी रास्ते में एक बाईक वाले से टकरा गई। बाईक एक 16-17 साल का लड़का चला रहा था वह निशा के टकराने के कारण बहुत ज्यादा घबरा गया और बाईक को एक साइड में लगाकर निशा के पास आया और कहने लगा मुझे माफ़ कर दीजिए मेरी गलती की वजह से आप टकरा गई आपको कहीं चोट तो नहीं आई। निशा के कुछ भी कहने से पहले वह लड़का लगातार बोलता जा रहा था। देखिए यदि आपको कहीं चोट लगी हो तो बता दीजिए मैं आपका इलाज करवा दूंगा, पर आप मेरी शिकायत मत कीजिएगा, नहीं तो मेरे भैय्या मुझे बहुत डांटेंगे और फिर कभी बाईक को हाथ भी नहीं लगाने देंगे, दरअसल भैय्या कहते है कि जब तक मैं अट्ठारह साल का नहीं हो जाता मुझे बाईक नहीं चलाना चाहिए क्योंकि यह कानूनन जुर्म की श्रेणी में आता है, किन्तु मुझे बाईक चलाना बहुत अच्छा लगता है इसलिए मैं भैय्या से चोरी-छूपे बाईक ले आता हूं और आज भी मैं ऐसे ही निकला था कि पिछली गली में मुझे भैय्या दिखाई दिए, उनसे बचने के लिए मैंने बिना हार्न बजाए गाड़ी इधर मोड़ दी और आपसे टकरा गया।आपको कहीं लगी तो नहीं। क्या हुआ आप कुछ बोलती क्यूं नहीं।

निशा उससे कहती हैं आप चुप करें तभी तो मैं कुछ कहूं।वह लड़का निशा की तरफ देखकर मुस्कुराता है और कहता है मैं अब चुप हूं आप बोलिए। निशा उससे कहती हैं उसे कहीं चोट नहीं लगी है वह बिल्कुल ठीक है।और उसे यह भी कहती है कि उसे उसके भैय्या की बात माननी चाहिए, आज तो उन दोनों की किस्मत अच्छी थी कि उन्हें कुछ नहीं हुआ किन्तु यदि दोबारा ऐसी घबराहट में आप गाड़ी चलाते हुए किसी और से टकरा जाते हैं या स्वयं ही कहीं गिर जाते है तो हर बार आपकी किस्मत आपका साथ दे यह जरूरी तो नहीं।और फिर यदि कुछ कानून बनाए गए हैं तो हमारी और हमारे आसपास के लोगों की सुरक्षा को ध्यान में रखकर ही बनाए गए होंगे इसलिए हमें उनका पालन करना चाहिए, कहते हुए निशा अपने स्कूल की ओर मुड़ जाती है।वह लड़का भी अपनी बाईक पर सवार हो जाता है।

कुछ दिनों बाद निशा को स्कूल जाते समय ऐसा लगता है कि कोई साईकिल से उसका पीछा कर रहा है। वह थोड़ी आगे चलकर रूक जाती है, वह साईकिल भी रूक जाती है।वह फिर आगे बढ़ती है तो वह साईकिल भी चलने लगती है, जब ऐसा रोज-रोज होने लगता है तो निशा सोचती है कि अब तो उसे उस साईकिल वाले को सबक सिखाना ही पड़ेगा। अगले दिन निशा स्कूल के लिए निकलती है तो देखती है कि साईकिल भी पीछे-पीछे चल रही है।वह तेजी से चलकर एक गली में मुड़ जाती है जो घुमकर वापस उसी गली में निकलती है जहां निशा पहले आगे और साईकिल वाला उसके पीछे था।अब साईकिल आगे और निशा पीछे थी। निशा के हाथ में एक बड़ा सा पत्थर था वह उस साईकिल वाले की ओर उछाल देती है। साईकिल वाले को पलटने के कारण जब निशा दिखाई नहीं देती तो वह भी एकदम अचानक से पीछे पलटता है, जिससे वह पत्थर उसके सिर पर जोर से लग जाता है और उस लड़के के सिर से खून का फव्वारा छूट पड़ता है।‌ यह देखकर निशा घबरा जाती है और उसे तुरंत लेकर डाॅक्टर के पास भागती है। निशा देखती है कि यह तो वही लड़का है जो उस दिन बाईक पर उससे टकराया था।

लड़के के सिर पर बहुत गहरी चोट लगी थी। जिस पर पांच टांके लगते हैं । निशा उस लड़के से माफी मांगती है कि वह इतनी जोर से नहीं मारना चाहती थी पर तुम्हारे पलटने के कारण तुम्हें जोर से लग गई, पर तुम मेरा पीछा क्यों कर रहे थे। लड़का बहाना बना देता है कि वह उसका पीछा नहीं करता बल्कि इस समय वह रोज़ अपनी ट्यूशन से वापस लौटता है। निशा उससे एक बार फिर अपनी गलतफहमी के लिए माफी मांगती है। वह लड़का कहता है कोई बात नहीं।

अब रोज़ स्कूल जाते समय वह लड़का निशा को मिल जाता। उसने निशा को बताया अब वह बाईक नहीं चलाता है, उसने उस दिन निशा के बाईक से टक्कर मारने की बात भी अपने भैय्या को बता दी है, पहले तो भैय्या थोड़ा गुस्सा हुए पर फिर उन्होंने खुद ही कहा कि मेरे अट्ठारह साल के हो जाने पर भैय्या मुझे बाईक दिलवाएंगे और मेरे साथ ड्राईविंग लाइसेंस बनवाने भी जाएंगे।

निशा और वह रोज़ मिलते उसने बताया कि उसका नाम आदित्य प्रताप सिंह है, वह कलेक्टर बनना चाहता है। एक दिन वह निशा से चाय के लिए पूछता है। निशा उसे मना कर देती है कि वह चाय नहीं पीतीं। आदित्य निशा को आश्चर्य से देखता है और पूछता है कि चाय कैसे किसी को अच्छी नहीं लग सकती। चाय तो कलयुग में अमृत समान है।और उस पर अदरक और इलायची की चाय के तो कहने ही क्या। वह निशा से फिर पूछता है कि उसे चाय का स्वाद कैसे पसंद नहीं है।

निशा उससे कहती हैं कि किसी भी चीज का स्वाद तो तब पता चलता है जब आपने उस चीज को चखा हो, मैंने तो कभी चाय पी ही नहीं तो उसका स्वाद क्या खाक पता होगा मेरे यहां कोई भी चाय नहीं पीता। आदित्य उसे एकबार फिर आश्चर्य से देखता है और कहता है क्या तुम्हारे यहां कोईभी चाय नहीं पीता। निशा कहती है नहीं।

आदित्य उसे पास की एक चाय की टपरी में ले जाता है और टपरी वाले से दो स्पेशल मसाला चाय बनाने को बोलता है।टपरी वाला दो चाय कुल्हड़ में लेकर आ जाता है। आदित्य एक चाय निशा की और बढ़ा देता है और दूसरी खुद पीने लगता है।वो कुल्हड़ में मिट्टी की सौंधी-सौंधी महक और अदरक और इलायची का स्वाद निशा को बहुत अच्छा लगता है। आदित्य उससे पूछता है कैसी लगी।वह कहती हैं एक चाय और प्लीज़।

अब तो निशा और आदित्य का रोज़ का रूटीन बन गया था उस टपरी पर आकर वो कुल्हड़ वाली चाय पीना। निशा ने उसके बाद कितनी बार चाय पी पर किसी भी चाय में वह स्वाद नहीं था जो उस टपरी में आदित्य के साथ उस कुल्हड़ वाली चाय को पीने में आता था।

निशा को आदित्य अच्छा लगने लगा था, उसे ऐसा भी लगता था कि आदित्य को भी वह पसंद है, पर उस समय समाज इतना खुले विचारों का नहीं था। अपने दिल की बात न तो कभी निशा ने बताई ना ही कभी आदित्य इतनी हिम्मत कर पाया।

आदित्य अपने सपनों को पूरा करने के लिए कोचिंग के लिए शहर से बाहर चला गया और निशा के माता-पिता ने भी एक अच्छा घर और वर तलाश कर निशा के भी हाथ पीले कर दिए।

निशा भी इस घर में आकर रच-बस गई और आदित्य को धीरे धीरे भूलने लगीं।

पर आज जब उसने अखबार में पढ़ा कि आदित्य प्रताप सिंह ने जिले के नए कलेक्टर के रूप में कार्य भार संभाला तो वह अतीत के पन्नों को पलटती चली गई। तभी उसकी पड़ोसन ने आवाज लगाई क्या निशा आज खाना नहीं बनाना पिछले तीन-चार घंटों से यहीं बालकनी में बैठी हुई हो, उसकी आवाज से निशा अपने अतीत से वर्तमान में लौटी और कहा हां बनाना है पर ज्यादा नहीं, क्योंकि इनके आॅफिस में नए कलेक्टर के आने पर पार्टी है। निशा अखबार में छपी आदित्य की तस्वीर पर स्नेहपूर्वक हाथ फेरती है और फिर से एक कप चाय बनाने चली जाती है।आज उसे चाय में वही सौंधी-सौंधी महक और स्वाद अनुभव होता है।