ग़लतफ़हमी S Sinha द्वारा लघुकथा में हिंदी पीडीएफ

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ग़लतफ़हमी

कहानी --ग़लतफ़हमी

लगभग पाँच साल बाद मुझे सुधा का पत्र मिला था . सुधा मेरी बचपन की सहेली है . पर पाँच साल पहले मेरे साथ जो कुछ हुआ था उसके लिए मैं सुधा को कसूरवार मानती थी . मेरा मन तो अंदर से टूट गया था .मैंने तो दिखाने के लिए उसे माफ कर दिया था पर उस से दोस्ती बस दिखावे भर की रह गयी थी . न जाने क्यों उसका पत्र पढ़ कर लगा कि मुझे पुरानी बातें भूल जानी चाहिए .सुधा गर्भवती थी और उसने अपनी गोद भराई के रस्म पर आने की कसम दी थी .

सुधा का पत्र पढ़ कर कुछ देर के लिए मैं अपने अतीत में खो गयी . उस समय हम दोनों उत्तरी बिहार के बेतिया शहर में रहते थे .कहने को तो यह पिछड़ा इलाका है , पर 1883 में ही यह रेलवे मानचित्र पर आ गया था . 1917 में चम्पारण से ही गांधीजी ने अपना सत्याग्रह आंदोलन शुरू किया था .बेतिया में मशहूर शिव मंदिर है जो सूरज पोखरा के किनारे स्थित है . बचपन में तो मैं सुधा के साथ अक्सर पोखरे में नहाने जाया करती थी . वहीँ हम दोनों ने तैरना भी सीखा था .बेतिया नेपाल की सीमा से नजदीक ही है . अक्सर हम लोग पापा के साथ नेपाल के वीरगंज शहर जाते . उस समय वहां से जापानी , कोरीयन और अन्य विदेशी कपड़े , खिलौने , घड़ियाँ आदि हम खरीद लाते .

यहाँ रोमन कैथोलिक मिशन ने तो 1740 में ही अपना पैर जमाना शुरू किया था .बाद में एक मिशनरी सकूल भी खोला था - असेम्ब्ली ऑफ़ गॉड चर्च स्कूल .बेतिया में हम इसी स्कूल में पढ़ते थे . सुधा और मैं बचपन से ही एक ही क्लास में रहे थे .इसी क्लास में एक लड़का नितिन भी पढ़ता था .हम तीनों में अच्छी दोस्ती थी.सुधा देखने में मुझसे ज्यादा अच्छी और आकर्षक थी .वह नितिन से ज्यादा ही फ्रैंक थी . दसवीं कक्षा में जाते जाते वह नितिन से अपनी नजदीकी जताने का कोई अवसर हाथ से नहीं जाने देना चाहती थी . पर नितिन सुधा के बजाये मुझमें अधिक रुचि लेता था . मुझे भी वह बहुत अच्छा लगता था पर कुछ तो संकोचवश और कुछ कम उम्र के चलते किसी ने भी खुल कर इजहार नहीं किया .

स्कूल की पढ़ाई पूरी कर मैं दिल्ली के कालेज में पढ़ने आयी .सुधा और नितिन भी इसी कोलेज में थे .मैं और नितिन दोनों बी. कॉम . में थे जबकि सुधा आर्ट्स सेक्शन में थी. नितिन और मै अब ज्यादा करीब थे . बल्कि उसने तो बी. ए . में जाते जाते मुझे प्रोपोज़ भी कर दिया था . पर सुधा न जाने क्यों अभी भी नितिन को अपने जाल में फंसाना चाहती थी जबकि नितिन उस से दूरी बनाये रखने की कोशिश करता. मुझे लगा कि सुधा इस बात से मुझसे न सिर्फ चिढ़ी रहती बल्कि ईर्ष्या भी करती थी .

मैंने बी . कॉम . पूरा कर लिया था . नितिन ने बी .कॉम . कर बैंक में पी .ओ . के लिए कम्पीट किया था .उसकी पोस्टिंग भी दिल्ली में ही थी . वैसे प्रयास तो मैंने भी किया था पर मैं सफल नहीं हुई थी . फिर माता पिता की अनुमति से हम दोनों की शादी भी हुई . उधर सुधा हमारी शादी से खुश नहीं थी , अंदर ही अंदर उसे जलन हो रही थी कि तमाम कोशिशों के बावजूद वह नितिन को नहीं पा सकी . सुधा अपने माता पिता के पास बेतिया चली गयी . मै नितिन के साथ दिल्ली में सैटल हो गयी .मै दिल्ली में अपने घर के निकट ही एक प्राइवेट सकूल में बच्चों को पढ़ाने लगी .

कुछ महीनों के बाद मैं गर्भवती हुई . अभी तीसरा महीना ही चल रहा था .इसी बीच सुधा कुछ दिनों के लिए दिल्ली आयी और हमारे यहाँ ही ठहरी थी. हमने उसका पूरा ख्याल रखा पर उसके चेहरे पर उदासीनता झलक रही थी .इधर नितिन को ट्रेनिंग के लिए दो हफ्ते के लिए हैदराबाद बाद जाना पड़ा था . जाते समय नितिन ने मुझसे कहा " घबराने की कोई बात नहीं है,दो हफ्ते की ही बात है . और तुम्हारी बचपन की सहेली तुम्हारा पूरा खयाल रखेगी ही."

फिर सुधा की ओर देख कर कहा " क्यों सुधा , ठीक कहा न ?"

सुधा का ध्यान कहीं और था , थोड़ा चौंक कर बेमन से ही बोली " हाँ , हाँ क्यों नहीं . "

नितिन हैदराबाद चला गया था . दो तीन दिन तक तो सुधा ने नार्मल दिखाने की कोशिश की थी . पर कभी कभी मैं उसके चेहरे और आँखों के रंग ढंग देख कर सहम जाती और मन में एक डर था कि सुधा मुझसे कुछ ज्यादा ही ईर्ष्या तो नहीं कर रही थी . फिर कभी मन में खयाल आता कि यह मात्र वहम है या नारी स्वाभाव हो . एक दिन मुझे अचानक तेज बुखार हुआ और मै ठण्ड से काँप रही थी . सुधा ने मुझे कम्बल और मेरी दवा वाली बॉक्स ला कर दिया . फिर मैंने जो दवा कही निकाल कर मुझे खिलाया .कुछ देर बाद मुझे आराम मिला . पर रात में फिर तेज बुखार आया , सारा बदन दर्द से टूट रहा था . दो दिन तक घर पर ही अपनी बुखार और दर्द निवारक दवा खाती रही .तीसरे दिन मैं सुधा के साथ डॉक्टर के पास गयी थी .

डॉक्टर ने मलेरिया की सम्भावना बताई और कुछ दवाईयां दी . अभी नितिन को तीन दिन बाद आना था .मैं डॉक्टर की दी दवा खा रही थी. जब दर्द ज्यादा होता , सुधा दर्द वाली गोली भी खिला देती . सुधा मुझे खाना खिलाती और रात में सोने से पहले दूध पिलाती थी .एक रात सुधा बुखार देखने लगी तो थर्मामीटर उस से टूट गया . उसने मुझसे पूछा कि कोई दूसरा थर्मामीटर है क्या ? मैंने उसे वार्डरोब से दूसरा थर्मामीटर लेने को कहा .फिर वह मेरा बुखार देख कर और दूध पिला कर सोने चली गयी . बुखार पहले की अपेक्षा काफी कम था .पर मेरे पेट में रह रह कर दर्द हो रहा था . अगले दिन नितिन को आना था . इसलिए मैंने भी सोचा कि नितिन के साथ हो लेडी डॉक्टर के यहाँ जाउंगी .

अगले दिन सुबह की फ्लाइट से नितिन आ गया . उसी शाम सुधा को लौटना भी था .मेरे पेट में रह रह कर दर्द और ऐंठन हो रहा था . नितिन मुझे लेकर लेडी डॉक्टर के पास गया . उसने कुछ दवा देकर कहा " इस से आराम मिलेगा पर सावधानी बरतने की जरुरत है . अगर ब्लीडिंग हो तो फ़ौरन क्लिनिक लाना होगा ."

सुधा जा चुकी थी . रात में फिर मेरे पेट में दर्द हुआ और कुछ ब्लीडिंग भी .नितिन के साथ मैं नर्सिंग होम गयी .डॉक्टर ने मुझे एडमिट कर लिया . डॉक्टर के काफी कोशिश के बावजूद भी ब्लीडिंग नहीं रुक रहा था . कम्प्लिकशन्स बढ़ रहे थे. मेरा मिसकैरेज हो चुका था . इतना ही नहीं डॉक्टर ने बताया कि गर्भाशय में इन्फेक्शन है उसे निकालना जरूरी है . आखिर उसे निकालना ही पड़ा .

डॉक्टर ने अकेले में नितिन से पूछा कि क्या हमने जानबूझ कर एबॉर्शन किया था . नितिन ने मुझसे भी यही बात पूछी . पर हम दोनों में से कोई भी एबॉर्शन नहीं चाहता था , उल्टे हमलोग काफी खुश थे और नए मेहमान के आने का सपना देख रहे थे . डॉक्टर से जब हमने यह बात कही तो उसने कहा " एबॉर्शन के कई कारण हो सकते हैं . सुधा के खून में मर्क्युरी पॉइज़न की भी थी .इसके अतिरिक्त गर्भाशय में इन्फेक्शन होना , मलेरिया और दर्द निवारक दवाईओं का ओवरडोज भी हो सकता है . "

नितिन ने डॉक्टर से पूछा “ मर्क्युरी ब्लड में कैसे आ सकता है , आजतक अनजाने में भी मर्क्युरी खाने की नौबत नहीं आयी है ? “

“ सिर्फ मर्क्युरी डायरेक्ट खाने से ही नहीं ब्लड में होता , इसके अनेक कारण हो सकते हैं . बहुत ज्यादा फिश खास कर सी फिश , किसी ख़ास समुद्री एरिया में हवा में भी रह सकता है , किसी फैक्ट्री के केमिकल से यहाँ तक कि आपके घर के CFL बल्ब के टूटने से . मैंने ये नहीं कहा है कि मिसकैरेज की वजह यही है . “

डॉक्टर की बात सुनने के बाद मुझे याद आया कि सुधा से थर्मामीटर टूट गया था , कहीं जानबूझ कर उसने मर्क्युरी मेरे खाने या दूध में तो नहीं मिला दिया हो .

अगले दिन मैंने सुधा से फोन पर पूछा " तुम से जो थर्मामीटर टूटा था उसका मर्क्युरी का क्या हुआ था ? "

सुधा " अरे नीलू , तू कैसी है अब ?"

मैं बोली " मेरी छोड़ , पहले तू बता तुझसे जो थर्मामीटर टूटा था उसका मर्क्युरी का तूने क्या किया था ? "

" थर्मामीटर गिलास से टकरा कर टूट गया था . मैंने मर्क्युरी के सभी टुकड़ों को पेपर पर उठा उसे ट्रैश कर दिया था , तुम क्यों पूछ रही हो . "

" फेक दिया या जानबूझ कर गिलास के दूध में डाल दिया था ?"

सुधा " मैं भला ऐसा क्यों करुँगी ? और तुम ऐसा क्यों पूछ रही हो ? "

मैं फिर बोली " तूने जानबूझ कर मुझे मर्क्युरी दिया था . तू तो शुरू से ही नहीं चाहती थी कि नितिन और मेरी शादी हो ."

" मुझे नितिन पसंद था पर मैं जानती थी कि वह मुझे नहीं चाहता था .तेरे पेट को देख कर एक मिनट के लिए मन में यह ख्याल आया जरूर था कि अगर नितिन मेरा होता तो यह बच्चा मेरी कोख में होता . मेरे मन में जो भी था तुझे साफ साफ बता दिया ."

" मैं नहीं मानती .तूने जानबूझ कर मुझे मर्क्युरी दिया था . और दर्द के लिए बार बार ऐसपिरिन देती थी .तेरी वजह से न सिर्फ मेरा गर्भपात ही हुआ ,बल्कि मैं अब कभी भी माँ बनने लायक नहीं रही . "

" क्या बोले जा रही है तू ? मेरी समझ में नहीं आ रहा है . मैने वही दवा दी जो तुमने या डॉक्टर ने कहा था " सुधा बोली.

" अब जानबूझ कर अंजान बनने की कोशिश न कर. तूने मुझसे दुश्मन से भी बदतर व्यवहार किया है. मैंने यह बात नितिन को भी नहीं बताई है .पर आज से तुमसे कोई नाता नहीं रहा और न ही मैं तुम्हें ताउम्र माफ कर सकती हूँ . “ इतना कह कर मैंने फोन काट दिया था .

सुधा मुझे बार बार फोन कर रही थी पर मैं उसका फोन काट देती .अब इस बात को पाँच साल हो चुके थे . मेरा मन यह मानने को तैयार नहीं था कि सुधा का कोई कसूर नहीं है .

सुधा की शादी वहीँ बेतिया में ही कार्यरत एक सरकारी अफसर से हुई थी .उसने शादी में आने के लिए बार बार कहा भी था .पर मैंने अपनी तबियत का हवाला देकर मना कर दिया .

शाम को जब नितिन ऑफिस से लौटा तो मैंने सुधा के खत की चर्चा की .नितिन ने कहा " तुम्हारी बचपन की सहेली है .तुम्हें बुलाया है और कसम भी दी है तो जाना चाहिए . "

" ठीक है , जब तुम भी यही चाहते हो तो मैं बेतिया जाऊंगी पर तुम्हें भी साथ चलना होगा . वैसे भी बेतिया गए बहुत दिन हो गए हैं और माँ की तबीयत भी खराब रहती है . उनके साथ कुछ दिन रह लूंगी . "

नितिन " ठीक है , मैं चलूँगा पर दो दिन से ज्यादा नहीं रुक सकता हूँ . तुम रुक जाना और कुछ दिन बाद चली आना ."

उसी वीकेंड में हमलोग बेतिया गए . पिताजी के गुजर जाने के बाद पहली बार बेतिया आई थी , वैसे माँ बीच में कुछ दिनों के लिए दिल्ली आई थी . मैं नितिन के साथ सुधा से मिलने गयी . सुधा के पति रमेश भी घर पर ही थे . दोनों ने गर्मजोशी से हमारा स्वागत भी किया ,सुधा तो गले मिल कर फूट फूट कर रो पड़ी थी . थोड़ी देर बाद चाय नाश्ता हुआ .रमेश को किसी जरुरी मीटिंग में जाना था सो वह चला गया . नितिन कुछ देर बाद चलने को उठा और कहा " ठीक है , अब मैं भी चलता हूँ तुम बाद में आ जाना ."

नितिन और रमेश दोनों के चले जाने के बाद सुधा बोली " तेरे साथ जो भी हुआ बस एक हादसा था .जो भी हुआ बहुत बुरा हुआ . एक औरत के लिए इससे बुरा और क्या हो सकता है ? पर तू क्या सचमुच अभी तक मुझे ही कसूरवार मानती है . "

मैं बोली " अब ये सब बातें छोड़ .मैंने भी अब इसे अपना नसीब मान कर समझौता कर लिया है . पर तेरा और तेरे नए मेहमान का क्या हाल है ?"

" बिल्कुल ठीक है , बल्कि एक राज की बात तुझे बतानी है जिसे मेरे , रमेश और डॉक्टर के सिवा कोई नहीं जानता है ."

" ऐसी क्या बात है जो तुम सिर्फ मुझे बताने जा रही हो ? "

सुधा ने कहा " ऐसा ही समझो . और जो बात बताने जा रही हूँ उस पर सीरियसली सोचना और जल्द फैसला लेना .तुम्हें यहाँ बुलाने के पीछे भी यही राज है . "

मैंने कहा " बता तो सही . "

सुधा " मेरा छठा महीना चल रहा है .मेरे गर्भ में एक नहीं दो दो मेहमान हैं , जुड़वां है .रमेश ने कहा है कि डिलीवरी दिल्ली में होगी . वहां अच्छे अस्प्ताल हैं और ट्विन्स में कोई रिस्क नहीं लेना है . अब ध्यान से सुन , अगर तुम्हें मंजूर हो तो हमलोग एक बच्चा तुम्हें देने को तैयार हैं . मैंने तेरी माँ से सुना है कि तू कोई बच्चा गोद लेना चाहती है .रमेश से भी बात हो चुकी है . तुम और नितिन दोनों ठीक से सोच कर एक दो दिन में बता देना .अभी और किसी को यह बात नहीं बतानी है , समझ गयी न ?"

" तू कैसी माँ है ? अपना बच्चा दूसरे को दे रही है ."

" दूसरे को कहाँ ?अपनी प्यारी नीलू को , तुझे .अगर तेरे किसी काम आ सकी तो अपना जीवन सार्थक हो जायेगा . शायद मेरे बारे में तुम्हारी ग़लतफ़हमी भी दूर हो जाये . "

मैं कुछ देर खामोश रही थी , कशमकश में थी कि क्याबोलूं ? मैं सुधा के बारे में क्या सोच रही थी और यह तो कुछ और ही निकली . तभी सुधा ने कहा " कहाँ खो गयी हो ? जैसा भी हो जल्दी बताना .आने वाले बच्चों का लिंग मुझे नहीं पता है .तुम्हें जो भी पसंद हो , ले सकती हो ."

मैंने कहा " ठीक है , नितिन से बात कर बताऊंगी .अभी चलती हूँ . "

मैंने घर जा कर नितिन को सारी बात बताई . नितिन ने कहा कि हमें एक बच्चा तो गोद लेना ही है .अगर जाना पहचाना बच्चा मिलता है तो अच्छा ही है .उस दिन देर रात तक हम दोनों ने गंभीरता से सोच कर फैसला लिया कि सुधा के बच्चे को हम गोद लेंगे . नितिन दिल्ली लौट गया .मैंने सुधा को अपना फैसला बता दिया . वह सुन कर खुश हुई थी .

लगभग दस दिनों के बाद मैं दिल्ली लौट आयी .चलते समय मैंने सुधा को कहा “ तुम जल्द से जल्द दिल्ली आ जाओ , ज्यादा देर करोगी तब ट्रेवल करना ठीक नहीं होगा . दिल्ली आने पर मेरे घर पर ही रुकना होगा . “

उसने भी मेरी बात मान ली . एक महीना के बाद सुधा और रमेश दिल्ली आये और मेरे ही घर पर ठहरे . रमेश की दिल्ली में दो महीने की ट्रेनिंग थी डिलीवरी का समय भी आया , सुधा को डिलीवरी के लिए अस्प्ताल में एडमिट किया गया .

सुधा को जुड़वें बच्चे हुए , दोनों बिल्कुल स्वस्थ थे .मैं नितिन के साथ उस से मिलने अस्पताल गयी .उसके बेड के पास ही दोनों बच्चे पालने में सो रहे थे .

सुधा बोली " दोनों लड़कियां ही हैं .अब कोई चॉइस का सवाल ही नहीं है . दोनों की शक्लें बिल्कुल मिलती हैं . पर एक की नाक थोड़ी चपटी है , सो पहचानने में कोई दिक्कत नहीं होगी . अब तुम जिसे चाहो चुन सकती हो . "

मैंने पहले दोनों बच्चियों को गोद में एक एक कर ले कर प्यार किया फिर बोली " पहले तू डिस्चार्ज हो कर घर आ जा .मैंने तो पहले ही सोच रखा था कि अगर चॉइस की गुंजाइश होती तो मैं लड़की ही लेती .मुझे यही चपटी नाक वाली दे दो अगर तुम्हें ऐतराज नहीं हो तो ."

सुधा " मुझे कोई ऐतराज नहीं है . "

सुधा की नार्मल डिलीवरी थी . दो दिन बाद घर लौट आयी . सुधा , रमेश और दोनों बच्चियां दो हफ्ते तक हमारे साथ रहीं थी . एक को सुधा ने शुरू से ही मेरे पास दे दिया था . वह चौबीस घंटे मेरे साथ ही रहती थी .यहाँ तक कि उसे बोतल से दूध भी मैं ही पिलाया करती . दो हफ्ते बाद सुधा को बेतिया लौटना था .बीच बीच में सुधा आ कर मेरी बच्ची को प्यार करती थी . इस बीच गोद लेने की कानूनी प्रक्रिया भी हमने पूरी कर ली .

उस दिन सुधा को लौटना था . सुधा ने मेरी बच्ची को गोद में ले कर बहुत देर तक प्यार किया फिर बोली " ले , अपनी बेटी सँभाल ."

उसकी आँखों में आँसू छलक उठे थे .अपनी एक बेटी मुझे सौंप कर सुधा लौट गयी . पर मुझे अब सुधा के प्रति किये गए व्यवहार पर ग्लानि हो रही थी .एक ओर मेरी ग़लतफहमी और दूसरी ओर सुधा का त्याग ,सही माने में वही महान थी .

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यह रचना पूर्णतः काल्पनिक है और किसी पात्र का भूत या वर्तमान से कोई सम्बन्ध नहीं है

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