काला साया (15) 673 3.8k काला_सायाSοиυ_ѕαмα∂нιγα_яαѕικशिवम और उसके पैरेंट्स अपनी पुरानी यादों को भुलाने के लिए अपने फ़ॉर्महाउस पर कुछ समय बिताने के लिए आये थे।शिवम आज ही हॉस्पिटल से डिस्चार्ज हो कर आया था। शिवम के साथ हुए हादसे में उसके सिर में गंभीर चोट आई थी। जिससे उसके साथ हादसे की यादें लगभग धुंधली पड़ चुकी थी। फ़ॉर्महाउस शहर से बाहर एक एकांत और चारों तरफ़ से प्राकृतिक सौंदर्य से भरा हुआ था।दोपहर के लगभग २ बजे एक कार फ़ॉर्महाउस के गेट पर आकर रुकी। उसमें से शिवम और उसके पैरेंट्स निकले। शिवम ने कार से निकल कर फ़ॉर्महाउस और आसपास की हरियाली युक्त वातावरण को एक नजर देखा। ठंडी और सुगंध से परिपूर्ण हवा के झोंके ने शिवम को मंत्रमुग्ध कर दिया।"शिवम! आओ तुम्हें, तुम्हारा रूम दिखा देती हूँ।" - शिवम की माँ ममता ने घर का गेट खोलते हुए कहा।शिवम के पिता देवेंद्र ने कार से सामान उठाकर घर में ले गए।शिवम कमरे में खिड़की से बाहर दूर दूर तक फैले जंगल को देख रहा था। उसे लगा कि जैसे वो पहले यहां आ चुका हो। तभी शिवम के दिमाग में कुछ धुंधली सी तस्वीरें घूमने लगी उसे अचानक एक काली परछाई दिखने लगी। उसे पायल की आवाजों के साथ किसी लड़की के खिलखिलाकर हँसने की आवाजें सुनाई देने लगी। तभी शिवम चीख़ कर अपना सर पकड़ लिया और आंखे बंद करके बैठ गया। उसकी चीख सुनकर उसकी माँ और पिता दौड़कर शिवम के पास आई। "क्या हुआ? बेटा।तुम ठीक तो हो न।" "माँ मुझे कुछ आवाजें सुनाई दी और फिर बहुत तेज़ सर दर्द हुआ।" "कोई नहीं बेटा। तुम्हारी तबीयत ठीक नहीं है। चलो खाना खा लो और आराम करो।" शिवम वहां से चला गया। उसके पैरेंट्स के चेहरे पर गंभीर लकीरें उभर आये जो एक अनहोनी का संकेत दे रही थी। रात के तकरीबन २ : ४७ am बजे शिवम को अपने कमरे में किसी के होने का एहसास हुआ। उसकी नींद टूट चुकी थी वह अपने बेड पर बैठ गया। उसकी नजर खिड़की से बाहर मौन मुद्रा में खड़े जंगल के पेड़ों पर पड़ी। खिड़की से आती हल्की हवा से उसके कमरे की चीज़ें और पर्दे के हिलने की आवाजें आ रही थी। कमरे के एक कोने से आ रही पायल की आवाज ने शिवम का ध्यान अपनी ओर खींचा। शिवम ने देखा कि कमरे की दीवार पर एक इंसानी काली परछाई उभरी। जिसे देख शिवम का डर से बुरा हाल हो गया। तभी वह काली परछाई शिवम की ओर बढ़ी। "छन्न्.... छन्न्.... छन्न्नन........ ।" इस आवाज से शिवम के सर में दर्द हुआ। उसने परेशान होकर अपने हाथों से कान बंद कर लिए। डर और दर्द से शिवम की आंखे भी बंद हो गई थी। ये सिलसिला कुछ सेकंड के बाद थम सा गया। इन डरावनी आवाजों की जगह खिड़की से बाहर से आ रही बाईलिन की मधुर संगीत ने ले ली थी। शिवम ने धीरे से अपने कानों से अपने हाथ हटा लिए। शिवम ने अपनी आंखों की पुतलियों को घुमा कर डरते हुए कमरे के हिस्से को देखा। जहां से कुछ देर पहले आवाजें आ रही थीं। लेकिन वहां सब सामान्य था। शिवम ने खिड़की से झांककर बाहर देखा। उसने देखा तो वह भौंचक्का रह गया। उसने देखा सामने कुछ दूर एक पेड़ एक लड़की बाईलिन बजाती हुई दिखी। वो लड़की दूसरी ओर मुड़कर बाईलिन बजाने में मगन थी। एक लड़की इतनी रात को वो भी जंगल में क्या कर रही है। ये बात शिवम को परेशान कर रही थी।एक सुगंध हवा के साथ शिवम के कमरे में बिखर गई। जिससे शिवम सम्मोहित होकर खिड़की से बाहर उस लड़की की ओर खिंचा चला गया। "शिवम! कहां जा रहे हो?" शिवम के चेहरे पर टार्च की लाइट पड़ी तो उसे होश आया कि वो बाहर है। "मैं कहाँ हूँ डेड।" - शिवम ने हैरान होते हुए कहा। "आप जंगल में हो? क्या कर रहे थे इतनी रात को यहां।" "मुझे वहां पर एक लड़की दिखी बाईलिन बजाते हुए।" शिवम ने देवेन्द्र, शिवम को उसके रूम तक ले गये। "क्या हुआ शिवम को?" - शिवम की माँ ममता ने पूछा। "उसे वही काली परछाई दिखी जो कल हम दोनों को यहां आते हुए दिखी। शायद वो बापस आ गई है।"-देवेंद्र ने रूम की लाइट को ऑफ करते हुए कहा। " हे! अब क्या होगा मेरे शिवम का। दूसरी जगह चलते हैं, आप इंतजाम कर लीजिए।" " नहीं, जा सकते। वो हर जगह है हमारे पास यही घर बचा है। हमने शिवम के इलाज के लिए सब बेच दिया। पुराना वाला घर भी। हे! ईश्वर हम सबकी रक्षा करना।" - देवेंद्र ने एक लंबी साँस लेते हुए कहा। देवेंद्र और उसकी पत्नी ममता की आंखों से नींद कोसो दूर थी। उनकी नजरें अंधेरे में शून्य की ओर देख रही थी और फिर अंधेरे में उनकी आंखों में नींद का अंधेरा घुल गया। सुबह... सब डायनिंग टेबल पर ब्रेकफास्ट कर रहे थे। "शिवम, तुम अब ठीक हो?" "हां, डेड। बस थोड़ा सा सर दर्द है।" "आज आपके लिए खुशखबरी है!" "क्या?" - शिवम ने उत्साहित होते हुए कहा। "आज शाम को तुम्हारे दोस्त तुमसे मिलने आ रहे हैं, शायद वो तुमको अपने साथ ले जाएंगे।" देवेन्द्र ने ममता की ओर देखा जिसके चेहरे पर अब राहत की लकीरें उभर आईं। तभी शिवम के रूम से किसी चीज के टूटने की आवाज आई। सब दौड़कर कमरे में गए तो उन्होने देखा कि कमरे में एक तस्वीर टूट गई थी और वह तस्वीर शिवम के दोस्तो की थी जो शाम को आने वाले थे। ये उनहोनी का संकेत था जैसे किसी को शिवम के दोस्तो का आना पसंद नहीं था। देवेन्द्र और ममता के चेहरे पर विषाद की रेखाएं उभरने लगी थी। शाम के ४ बजे.... "हैलो! सुयश कहां है तू कब तक आ जाएगा?" "यार! सॉरी आईम लेट । रात तक आ जाऊंगा मैं सोहेल और किर्ति के साथ। ओके।" "ओके बाय जल्दी करना। टेक केयर।" देवेंद्र और ममता शिवम और उसके दोस्तो को लेकर चिंतित थे। रात के १० बजे तक इंतजार करने के बाद शिवम और उसके पैरेंट्स डिनर करने के बाद सो ने चले गए। " यार। अपुन लेट हो गए हैं।"" हां यार। शिवम के साथ बहुत गलत हुआ यार" 1किर्ति ने कहा। " हां यार उसने उस हादसे में अपनी gf पलक को भी खो दिया। कितने बढ़िया कपल थे दोनों और हमारे दोस्त भी।" - सुयस ने दुखी होते हुए कहा। "सोहेल था न उस टाइम उनके साथ।क्यूँ सोहेल?"सोहेल बिना कुछ बोले कार ड्राइव कर रहा था। " क्या हुआ था? सोहेल बोल।" - सुयश ने सोहेल से पूछा। लेकिन वो अभी शांत था। तभी सोहेल को सामने एक काली परछाई दिखी। " ओह! सिट।"सोहेल ने कार की ब्रेक लगा दी। सबने कार की लाईट में देखा कि एक इंसानी काली परछाई दिखी जिससे सबका डर से पसीना आने लगा। सबका शरीर काँप रहा था। तभी वह काली परछाई धीरे धीरे रेंगते हुए उन सबकी ओर बढ़ी। सोहेल ने भागने के लिए कार को दौड़ना चाहा तो कार झटके के साथ बंद हो गई। किर्ति और सुयस कार से निकल कर जंगल में भाग गए। सोहेल भी भागने के लिए जैसे ही कार का डोर खोलने वाला ही था कि तभी उसके बगल से आवाज आई। "कहाँ जा रहे हो। सोहेल। आज फिर से मुझे अकेला छोड़ कर चले जाओगे। मरने के लिए। हिसाब नहीं करवाना है क्या?" "पलक???" सोहेल जब तक पीछे मुड़कर देखता तब तक वह काली परछाई उसका सर धड़ से उखाड़ चुकी थी। सोहेल का धड़ से खून का फब्बारा फूट पड़ा और कुछ देर तक छटपटाने के बाद निर्जीव हो गया। रात के १ बज चुका था। आज शिवम को नींद नहीं आ रही थी। न जाने क्यूँ वो आज किसी का इंतजार था। कुछ समय बाद एक हवा के झोंके से कमरे की खिड़की खुल गई और एक महक के साथ पूरा कमरा बाईलिन की मधुर धुन से भर गया। शिवम ने खड़े होकर देखा तो हैरान रह गया। आज वह लड़की उसके घर के पास के पेड़ के नीचे बाईलिन बजाने में मगन थी। शिवम खिड़की से बाहर कूद कर उस लड़की ओर बढ़ा। खिड़की की आवाज सुनकर देवेंद्र, शिवम के कमरे आया तो देखा कि शिवम वहां नहीं है वह अपनी टार्च लेकर बाहर शिवम को ढूंढने निकले। ममता भी देवेन्द्र के पीछे चली गई। शिवम उस लड़की के पास पहुंचा तो उसके सामने एक धुंधली काली परछाई दिखाई और पायलों की आवाज से शिवम को दिक्कत होने लगी और वह बेहोश हो कर गिरने वाला ही था कि उसने खुद को उसी लड़की की बाहों में पाया। उस लड़की के चेहरे को देखकर उसे सब याद आ गया। "पलक.....!" "हां शिवम मैं पलक कहाँ थे। कहाँ चले गए थे तुम मुझे छोड़कर।" "पलक मुझे कुछ याद नहीं है। मुझे क्या हुआ है पलक।" "मैं बताती हूँ। १३ दिन पहले हम दोनों पर कुछ लोगों ने हमला किया। उसमें तुम्हारे सर में चोट लगी जिससे तुम बेहोश हो गए थे।" "और तुम?"" वो हमला शिवम हम दोनों को साजिस के अनुसार हुआ था वो भी मुझे जान से मारने के लिए। तुम्हारे बेहोश होने के बाद मुझे जिंदा जला कर मार डाला गया था। मेरी गलती सिर्फ यही थी मैंने तुम्हें चाहा था।"" क्या?? मैंने चाहा था तुम्हें। किसने मारा तुमको?" " सोहेल और तुम्हारे पापा ने? खैर छोडो। एक बात बताओ क्या तुम अभी भी मुझसे प्यार करते हो?"" हां!"" चलो आज हम एक ही जाते हैं तुम मेरे साथ चलो।"शिवम को कुछ होश न रहा वह पलक की बातों में खो सा गया। पलक बाईलिन बजाने में एक्सपर्ट थी। इसलिए उसे बहुत लगाव था। बाईलिन से।वह शिवम को मारकर अपने जेसा बनाना चाहती थी। वह उसे एक ऊंचे पहाड़ की चोटी पर ले गई। "आओ शिवम मेरे साथ।"इतना कहकर पलक चोटी से कूद गई। शिवम जैसे ही कूदने वाला था कि पीछे से देवेन्द्र की आवाज सुनाई दी। किर्ति और सुयस, शिवम के घर पहुंचे तो देखा कि घर में कोई नहीं था। वो दोनों भी उस पहाड़ की चोटी पर पहुच गए क्यूँ की उन्हे टार्च की रोशनी दिख रही थी। किर्ति और सुयस ने देखा कि शिवम पहाड़ की चोटी पर खड़ा था वो सम्मोहन में था। शिवम की माँ रॉय जा रही थी। देवेन्द्र लगातार शिवम को कूदने से रोकने के लिए चिल्लाय जा रहे थे। पलक अपने प्लान में रुकावट को देखकर वह देवेंद्र के पास पहुंच गई। उसने देवेन्द्र का गला पकड़ कर हवा में उठा लिया। "पलक रुक जाओ।" - शिवम, किर्ति और सुयस तीनों एक साथ चिल्लाए। "मेरे पापा को छोड़ दो। तुम्हें अपना प्यार मैं चाहिए न। चलो में तुम्हारे साथ चलने के लिए तैयार हूं।" "नहीं शिवम। ऎसा मत कहो।" - देवेंद्र ने कहा। सब लोग हैरान और परेशान थे। लेकिन पलक बहुत खुश थी। " क्या कहा पापा आपने तो मेरे प्यार को ही मार डाला। ऎसा क्यू किया आपने। आपने तो अपने बेटे को भी नहीं छोड़ा।आपको मेरी खुशी बर्दास्त नहीं हुई न कोई बात नहीं है आप खुश रहो मुझे अपने प्यार के पास जाने दो क्यु की उसके बिना में बेसे भी मरा हुआ हूँ। उसने मेरे लिए अपनी जान दे दी। "" रुक जाओ यार। पलक छोड़ दो यार शिवम को।"" यार पलक ने कुछ नहीं किया मुझे ये सब मेरा डिसीजन है। सोहेल कितना फ़्रॉड दोस्त निकला। उसने मेरे प्यार को अपने लिए मरवा दिया।मुझे पलक के पास जाना है। आप सब खुश रहो।"शिवम की आँखो में आंसू छलक आए उसने चोटी से नीचे देखा तो सामने पलक अपनी बाहें फैला कर शिवम को बुला रही थी। शिवम ने चोटी से छलांग लगा दी और एक जोरदार आवाज के साथ शिवम की जान निकल गई। सभी लोग चीख पड़े और सब फफक फफक कर रो पड़े। कुछ क्षण बाद आसमान में एक युगल छवि दिखाई दी जो एक काली परछाई न हो कर एक स्वेत पारियों जेसी परछाई दिखी और एक प्रेमी जोड़ा हमेशा के लिए एक हो चुके थे। ✝️ समाप्त ✝️ Download Our App रेट व् टिपण्णी करें टिपण्णी भेजें Rupa Soni 2 महीना पहले Sharad Jain 6 महीना पहले sandeep nigam 7 महीना पहले Ashi Bhattacharya 6 महीना पहले Dimple 7 महीना पहले अन्य रसप्रद विकल्प लघुकथा आध्यात्मिक कथा उपन्यास प्रकरण प्रेरक कथा क्लासिक कहानियां बाल कथाएँ हास्य कथाएं पत्रिका कविता यात्रा विशेष महिला विशेष नाटक प्रेम कथाएँ जासूसी कहानी सामाजिक कहानियां रोमांचक कहानियाँ मानवीय विज्ञान मनोविज्ञान स्वास्थ्य जीवनी पकाने की विधि पत्र डरावनी कहानी फिल्म समीक्षा पौराणिक कथा पुस्तक समीक्षाएं थ्रिलर कल्पित-विज्ञान व्यापार खेल जानवरों ज्योतिष शास्त्र विज्ञान કંઈપણ सोनू समाधिया रसिक फॉलो शेयर करे आपको पसंद आएंगी आखिरी ख्वाहिश द्वारा सोनू समाधिया रसिक भूतहा पुल द्वारा सोनू समाधिया रसिक रक्षक.... एक जंग प्यार और नफरत की द्वारा सोनू समाधिया रसिक ड्रीडफुल पनिसमेन्ट... एक खौफनाक सच द्वारा सोनू समाधिया रसिक वो कौन था ? द्वारा सोनू समाधिया रसिक प्रेत आत्माओं का साया द्वारा सोनू समाधिया रसिक प्रेत संतति द्वारा सोनू समाधिया रसिक अल्फाज़ अनकहे से... द्वारा सोनू समाधिया रसिक मेरी प्यारी बिटिया... सूर्याशीं द्वारा सोनू समाधिया रसिक वो आख़िरी रात... द्वारा सोनू समाधिया रसिक