साझा उपन्यास
देह की दहलीज पर
संपादक कविता वर्मा
लेखिकाएँ
कविता वर्मा
वंदना वाजपेयी
रीता गुप्ता
वंदना गुप्ता
मानसी वर्मा
कथाकड़ी 18
कथाकड़ी 18 अब तक आपने पढ़ा :- मुकुल की उपेक्षा से कामिनी समझ नहीं पा रही थी कि वह ऐसा व्यवहार क्यों कर रहा है ? वह फैंटसी में किसी के साथ अपने मन की बैचेनी दूर करने की कोशिश करती है। उस फैंटसी में वह सुयोग को पाती है। मुकुल अपनी अक्षमता पर खुद चिंतित है। एक अरोरा अंकल आंटी हैं जो इस उम्र में भी एक दूसरे के पूरक बने हुए हैं। सुयोग अपनी पत्नी प्रिया से दूर रहता है एक शाम उसकी मुलाकात शालिनी से होती है जो सामने वाले फ्लैट में रहती है। उनकी मुलाकातें बढ़ती जाती हैं और उन्हें एक दूसरे का साथ अच्छा लगता है। वरुण भी शालिनी के साथ बातचीत करता है। वहीं नीलम मीनोपॉज के लक्षणों से परेशान है। नीलम के ऑपरेशन की खबर से राकेश चिंता में आ जाता है वह अपने जीवन में नीलम की उपस्थिति शिद्दत से महसूस करता है जिसे हॉस्पिटल में कामिनी भी महसूस करती है और मुकुल के साथ खुद के संबंधों पर विचार करती है।
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कड़ी 18
पिछले कुछ दिन बड़ी व्यस्तता में बीते। बच्चों के एग्जाम थे बेटी की इंटर्नशिप में जाने की तैयारी, वहाँ उसके रहने खाने की व्यवस्था, नीलम का ऑपरेशन और खुद के मन की उलझन है। कामिनी चाह कर भी अपनी फेंटेसी से बाहर नहीं आ पा रही थी। मुकुल से उसकी दूरियाँ बढ़ती ही जा रही थीं। इसका एक कारण मुकुल की चुप्पी भी था। आज कल मुकुल शाम ढलते ही घर आने लगे थे और घर से ही फोन और मेल के जरिए अपना काम करते थे। उन्होंने डिनर लगने तक डाइनिंग टेबल को ही अपना ऑफिस बना रखा था। कामिनी को महसूस होता था यह सब शायद उसके मन के शक को दूर करने के लिए किया जा रहा है। हालाँकि मुकुल ने उस दिन के बाद कोई सफाई नहीं दी थी। माँ जी से बात होने से भी शायद मुकुल बहुत आहत हैं। कभी-कभी कामिनी को खुद पर गुस्सा आता कैसे वह मुकुल के प्रति इतने निष्ठुर हो सकती है? क्यों उन दोनों के बीच बातचीत के सारे सेतु गुम हो गए हैं? वे दोनों तो एक दूसरे से हर छोटी छोटी बात शेयर करते थे हर बात में एक दूसरे की सलाह लेते थे। कामिनी समझ नहीं पाती कि उनका दिल का रिश्ता इस तरह देह की दहलीज पर आकर क्यों ठिठक गया? यह तो तय है कि मुकुल का कहीं कोई और अफेयर नहीं है, वह आज भी घर बच्चों की अपनी जिम्मेदारी के लिए समर्पित हैं। कुछ दिनों में बेटी चली जायेगी बेटे को भी जॉब ज्वाइन करना है उसके बाद तो लगता है दोनों नदी के दो तट बन जाएंगे। कामिनी समझ नहीं पाती सोच सोच कर उसका सिर फटने लगता है। उस से मुक्ति पाने के लिए वह शाम को ही कमरे में आ कर लेट जाती और उसकी फैंटेसी उस पर हावी होने लगती। उसकी बाँहों में कसमसाते सीने पर सिर टिकाते वह सभी दर्द भूल जाती। कभी-कभी वह आश्चर्य करती कि उसे क्या होते जा रहा है, कहाँ तो महिलाएँ इस उम्र तक लस्त पस्त निढाल हो जाती हैं और वह उम्र की पायदान उतरते नवयौवना हुई जा रही है। उसके पास इस बात का कोई जवाब नहीं होता और समाज के टैबू इस विषय पर वह किसी से बात कर भी नहीं पाती।
उस दिन रविवार तो न था लेकिन छुट्टी थी तभी एंबुलेंस की आवाज ने सभी को चौंका दिया। कामिनी नहा कर निकली ही थी कि दौड़कर बालकनी में आई। एंबुलेंस अरोरा आंटी की बिल्डिंग के नीचे खड़ी थी धक से रह गई कामिनी। बालकनी से ही आवाज लगाई मुकुल देखिए न एंबुलेंस आई है अरोरा आंटी की बिल्डिंग में जल्दी चलिए कहते हुए दरवाजा खोलकर फ्लैट से बाहर निकल गई। हर बालकनी से चेहरे झाँक रहे थे नीचे भीड़ जमा थी। उसने वहाँ खड़े लोगों से पूछा क्या हुआ, किसी के पास कोई जवाब नहीं था, सभी एंबुलेंस का सायरन सुनकर वहाँ आए थे। तभी लिफ्ट का दरवाजा खुला और दो लोग अरोड़ा अंकल को स्ट्रेचर पर लेकर बाहर आए। बगल की लिफ्ट से सुयोग आँटी को व्हीलचेयर पर लेकर आया। कामिनी तेजी से उनकी तरफ बड़ी, तभी एंबुलेंस के ड्राइवर ने पूछा इनके साथ कौन जाएगा? सुयोग ने कामिनी की तरफ देखा भीड़ में एक वही पहचाना चेहरा था जिसे उसने कई बार आँटी के साथ देखा था। कामिनी ने तुरंत व्हीलचेयर थाम ली। उसकी नजर मुकुल को ढूंढने पीछे मुड़ी, उसने देखा मुकुल गाड़ी निकाल कर आ गए हैं। उसका मोबाइल पकड़ाते हुए बोले "आँटी के पास रहो मैं हॉस्पिटल जाता हूँ।"
सुयोग ने कहा "मैं एंबुलेंस में चलता हूँ"। सायरन बजाती एंबुलेंस के पीछे मुकुल की कार में दो तीन और लोग सवार हो चल दिए। लोगों ने आँटी को घेर लिया प्रश्नों की झड़ी लग गई। आँटी बदहवास थीं कुछ बोल नहीं पा रही थीं। कामिनी प्लीज प्लीज कहते व्हील चेयर को लिफ्ट में ले कर चल दी। फ्लैट में आकर कामिनी ने आँटी को पानी पिलाया और ढाँढस बंधाया। उन्होंने बताया अंकल का पिछले कई दिनों से बीपी बढ़ा हुआ था, दवाइयाँ चल रही थीं लेकिन आराम न था। इसलिए घूमना टहलना सब बंद था। सामान सभी ऑनलाइन आ ही जाता है इसलिए किसी को पता भी नहीं चला। आज सुबह अंकल उठे तो बहुत बेचैनी महसूस कर रहे थे अचानक ही गिर पड़े। किसे फोन लगाऊँ की उधेड़बुन में आँटी ने जो नंबर लगाया वह सुयोग का था। उसी ने आकर अंकल को उठाया और एंबुलेंस बुलाई।
आँटी अब थोड़ा व्यवस्थित हो गई थीं वह बार-बार हॉस्पिटल जाने की जिद कर रही थीं। घर में घूम-घूम कर अंकल की जरूरी चीजें एक बैग में रख रही थीं। कामिनी स्पष्ट देख रही थी आँटी की हालत पर कटे पंछी जैसी थी। वह सोच रही थी कि अगर अंकल को कुछ हो गया तो आँटी का क्या होगा? अचानक उसे ख्याल आया अगर मुकुल और उसके बीच अलगाव हो गया तो? इस विचार से कामिनी अंदर तक कांप गई। नहीं नहीं यह मैं क्या कर रही हूँ, देह के कारण दिल के इस रिश्ते को क्यों बिखरने दे रही हूँ। माना कि देह जरूरी है लेकिन मुकुल का होना ही मुझे वह कामिनी बनाए रखता है जो मैं हूँ।
फोन की घंटी से बुरी तरह चौंकी थी कामिनी, मुकुल का फोन था। "अंकल को एडमिट कर लिया है उनकी लेटेस्ट मेडिकल रिपोर्ट व्हाट्सएप करो।"
"हाँ हाँ करती हूँ" कामिनी कुछ और पूछती इसके पहले ही फोन कट गया। कामिनी को रोना आ गया बड़ी मुश्किल से खुद को संयत कर पाई थी वह। इस बीच उसने आंटी की बेटी और दूर के एक दो रिश्तेदारों को भी फोन किया। करीब एक घंटे बाद मुकुल का फिर फोन आया "हो सके तो आँटी को लेकर आ जाओ।"
दो दिन मुकुल कामिनी और आसपास के चार पाँच लोग अंकल आंटी की देखभाल में लगे रहे। कामिनी मुकुल को सभी काम जिम्मेदारी से करते देखती रही सोचती रही कि मुकुल तो शायद एक दो बार ही उन लोगों से मिले होंगे, फिर भी वह सभी काम जिम्मेदारी से कर रहे हैं, शायद इसलिए क्योंकि वह सह्दय हैं और जानते हैं कि कामिनी उन लोगों से जुड़ी हुई है।
अंकल घर आ गए थे टाउनशिप के अध्यक्ष ने उनकी सुविधा की सभी व्यवस्थाएं कर दी थीं। सुयोग ऑफिस से लौटकर उनके घर का एक चक्कर लगाता था। उस दिन वह पहुँचा तो अंकल आँटी खाना खा रहे थे। उसने बहुत मना किया लेकिन आँटी नहीं मानीं बोली फुल्के तो मैं बना रही हूँ, सब्जी थोड़ी-थोड़ी शेयर कर लेंगे, लेकिन खाना तो खाना ही पड़ेगा। खाना खाते-खाते सुयोग भावुक हो गया माँ की याद आ गई। पहले दो-तीन महीने में छुट्टी इकठ्ठी करके घर चला जाता था। मम्मी ऐसे ही गरमा गरम फुलके बनाती थीं, फिर वह मम्मी की प्लेट लगाता था। शादी के बाद से घर जाना कम हो गया, दो-तीन महीनों में जब प्रिया आती है तब वह भी छुट्टी ले लेता है या वह प्रिया के पास चला जाता है। मम्मी से जब भी फोन पर बात होती है ऐसा लगता है वह कुछ कहते कहते रुक जाती हैं।
अंकल ने सुयोग के कंधे पर हाथ रखा "कहाँ खो गए बरखुरदार?"
उसने चौंक कर पलकें झपकीं "कुछ नहीं अंकल मम्मी की याद आ गई" कहते-कहते सुयोग का गला रूंध सा गया। अंकल उससे देर तक उसके परिवार के बारे में बातें करते रहे। जब उन्हें पता चला कि वह शादीशुदा है तो चौंके "अरे हम तो तुम्हें बैचलर ही समझते थे। भाई वाह तुम आजकल की जनरेशन का अच्छा है शादी करके भी अकेले रह लेते हो, और वह क्या कहते हैं लाॅग डिस्टेंस रिलेशनशिप चलती रहती है।"
"वह तो है अंकल आजकल कैरियर बहुत इंपॉर्टेंट हो गया है, लेकिन अब अकेले रहते ऊब होने लगी है। छुट्टियाँ प्रिया के लिए बचाता हूँ तो घर पर मम्मी पापा के पास नहीं जा पाता। लगता है बँट सी गई है जिंदगी। " सुयोग ने अपना दिल खोला। अंकल के सामने वह अपनी सच्ची भावना का इजहार कर पा रहा था जो शालिनी के सामने नहीं कर पाता और प्रिया के सामने तो बिल्कुल ही नहीं।
अंकल कुछ देर ध्यान से उसके चेहरे को देखते रहे मानो इन शब्दों के बाद भी अनकहे दर्द को पढ़ रहे हों। "तुम दोनों एक ही शहर में नौकरी के लिए कोशिश क्यों नहीं करते?"
"प्रिया ने एक दो जगह इंटरव्यू दिए हैं लेकिन कहीं सैलरी ठीक नहीं है कहीं जॉब प्रोफाइल"
"तो तुम प्रिया के शहर में नौकरी ढूंढ लो।"
चौंका था सुयोग यह सुनकर। वह इस कंपनी में ढाई साल से था उसकी पोजीशन भी बहुत अच्छी थी इसे छोड़ने का ख्याल भी कभी उसके मन में नहीं आया था।
अंकल मानों बिना कहे सब समझ रहे थे बोले "माफ करना बेटा तुम्हारे व्यक्तिगत मसले पर बोल रहा हूँ लेकिन मेरी बात अच्छी न लगे तो इग्नोर करना। हमारे भारतीय समाज में लड़कियों को बहुत कम अवसर मिलते हैं। जिन्हें अवसर मिल गए या जिन्होंने लड़कर हासिल कर लिए वे सारी जिंदगी इसे बचाने की कोशिश में लगी रहती हैं। विडंबना है बेटा लेकिन सच है कि शादी के बाद 70% लड़कियों को यह अवसर गंवाना पड़ता है। साथ रहने के लिए, माँ बनने के लिए, सास-ससुर की सेवा के लिए और एक उम्र के बाद जब जिम्मेदारी खत्म हो जाती है तब उनमें गहरी निराशा छा जाती है। न वे अफसोस कर पाती हैं न वक्त का पहिया पीछे मोड़ पाती हैं। बहुत सारी लड़कियों के रास्ते तो इन 70% का हश्र देखकर उनके माता-पिता ही बंद कर देते हैं कि क्या फायदा? इसका परिणाम यह होता है कि अपना कैरियर बचाने के लिए लड़कियां विद्रोही हो जाती हैं। वे परिवार के आगे कैरियर चुन लेती हैं और तब भी हम उन्हें ही दोष देते हैं।
सुयोग अवाक अंकल का मुँह देख रहा था। प्रिया का चिड़चिड़ाना आज वह बेहतर तरीके से समझ रहा था। इस बात के कारण वह खुद शायद कभी समझ नहीं पाता यह जीवन के अनुभव ही समझ पाते हैं। उसको हक्का-बक्का देख आंटी ने प्यार से अंकल को घुड़का "आप भी डरा रहे हो बच्चे को"। आँटी ने सुयोग के आगे रसगुल्ले की प्लेट रखी और कहा "बेटा अभी जीवन में तुम्हें और प्रिया को बहुत सारे समझौते करने होंगे, लेकिन अगर समझौते का पहला कदम तुम बढ़ाओगे तो तुम पर उसका विश्वास पुख्ता होगा और भविष्य में वह ज्यादा प्रैक्टिकल होकर निर्णय ले सकेगी। आगे निर्णय तुम्हें ही लेना है अपने जॉब रिश्ते और परिवार का सही कैलकुलेशन तुम ही कर सकते हो। "
सुयोग जब अंकल के घर से निकला तो उसके दिमाग में भारी उथल-पुथल मची थी। देर रात तक रिश्ते की भाभी चाची बहन पड़ोस की आँटी जैसे कई चेहरे उसके दिमाग में गड़मग होते रहे। क्या वह दूसरी जॉब ढूँढ ले? क्या उसे सेम प्रोफाइल की जॉब मिलेगी? क्या नई जॉब में नए सिरे से एडजस्ट करना आसान होगा? यहाँ वह हर तरह से कंफर्टेबल है, ऑफिस की कार्यशैली, बॉस का मिजाज, बॉस से उसके संबंध, कंपनी के कांटेक्ट, कलीग्स के साथ उसकी ट्यूनिंग सभी कुछ। अगर प्रिया जॉब चेंज करेगी तो उसे भी तो नए सिरे से सब शुरू करना होगा, जॉब घर सभी कुछ।
सुयोग सुबह उठा तो उसका सिर भारी था। उसने प्रिया को फोन लगाया "यार तुम लड़कियाँ कैसे एक घर को छोड़कर दूसरे घर में नए लोगों के परिवार नए सिस्टम के साथ एडजस्ट कर लेती हो?"
"क्या बात है जनाब आज सुबह-सुबह पड़े इमोशनल हो रहे हैं" प्रिया ने छेड़ा "सब ठीक तो है ?"
"हाँ हाँ सब ठीक है, बस ऐसे ही कल रात कुछ प्रोग्राम देखते सो गया था तो सुबह सुबह.... ।खैर छोड़ो तुम बताओ चाय पी ली? " सुयोग ने झेंपकर बात बदली। कुछ देर इधर-उधर की बातें करके उसने फोन रख दिया।
शालिनी ने कई बार सुयोग को फ़ोन किया बमुश्किल दो पाँच मिनिट बात होती उसने नोटिस किया कि सुयोग आजकल कुछ ज्यादा ही व्यस्त हो गया है। फोन पर भी संक्षिप्त बात होती है। देर रात उसके ड्राइंग रूम की लाइट जलती रहती है। सुयोग ने बताया कि ऑफिस में काम काफी बढ़ गया है सीनियर होने के नाते उसे ज्यादा समय देना पड़ता है। ऑफिस टाइम के बाद घर पर भी काम में लगे रहता हूँ।
सुयोग से बातें होने से शालिनी के जीवन में जो उत्फुलता आई थी वह अब गायब होने लगी। अलबत्ता तरुण का फोन कभी कभी आ जाता शालिनी उससे बातें करती बातें करने के बाद अच्छा सा भी महसूस करती। खुद के प्रति तरुण का लगाव महसूस करती लेकिन अभी तक उसने उसके लिए कोई उत्सुकता नहीं दिखाई थी। वह खुद भी नहीं जानती थी कि वह चाहती क्या है ? तरुण बुरा नहीं था देखने में अच्छा ही था बातचीत व्यवहार में भी अच्छा ही था लेकिन शायद सुयोग के लिए एक आकर्षण था। यह उसके लम्बे कद स्टाइल और बातों का था या खुद उसके प्रति पहले आकर्षण का वह नहीं जानती। तरुण की तरफ वह पहले आकर्षित नहीं हुई थी तरुण उसकी तरफ आकर्षित हुआ था क्या इससे भी कोई फर्क पड़ता है ? वह नहीं जानती लेकिन रात के अंधेरे में बिस्तर पर करवटें बदलती शालिनी कभी-कभी आँखें फाड़ कर अपना भविष्य देखती है तो वहाँ घुप्प अंधेरे के सिवा कुछ नजर नहीं आता। न उसके हाथों में कोई हाथ होता है न दिमाग में कोई चेहरा। अभय सुयोग तरुण कभी-कभी एक झलक दिखाते और फिर अंधेरे में खो जाते हैं रह जाती वह अकेली निपट अकेली।
मानसी वर्मा
क्रमशः
मानसी वर्मा
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मानसी वर्मा
बीई, एमबीए
डायरी लेखन, रिपोर्ट बुक रिव्यू, संस्मरण छोटी कहानियाँ