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बाली का बेटा (14)

14

बाली का बेटा

बाल उपन्यास

राजनारायण बोहरे

हनुमानजी की वापसी

सुबह सूरज के गोले के आसमान में चढ़ते-चढ़ते सब लोगों ने घाटी के पेड़ों से पेट भर के फल खाये और कुछ देर बाद उसी गुफा के रास्ते वे समुद्र के किनारे जा पहुंचे। अब उन सबको हनुमानजी के लौटने की प्रतीक्षा थी।

बानर लोग खेलते-कूदते रहे तो दूसरे लोग आपस में कुश्ती करके एक दूसरे की ताकत को परखते रहे। फिर भी समय काटे नहीं कट रहा था। सब बार-बार समुद्र की ओर देखने लगते थे। एकाएक अंगद को लगा कि समुद्र में कोई बड़ी सी चीज लहरों के भरोसे डगमगाती हुई किनारे की ओर आ रही है। उन्होने जामवंत से कहा तो उन्हें भी लगा कि सचमुच लाल से रंग में डूबी कोई काली सी चीज वहां तैर रही है।

वे लोग सतर्क होकर उधर ही ताकने लगेै

कुछ ही देर में समुद्र की बहुत बड़ी लहर के साथ एक बड़ी सी चट्टान के आकार की पिलपिली सी चीज किनारे पर आकर गिरी। वे सब दूर-दूर जाकर बैठ गये और उसचीज को देखने लगे।

बहुत देर तक उस काली सी चीज में कोई हलचल नहीं दिखी तो जामवंत ने इशारा किया। बानर योद्धा मयंद ने अपनी भारी भरकम गदा संभाली और वे उस चीज की ओर सावधानी पूर्वक बढ़ने लगे। अब सबको साफ दिख रहा था कि वह एक काले रंग की मछली या ऐसी ही कोई अन्य जलचर प्रजाति का जीव है, जिसके चट्टान जैसे शरीर में से नुकीले कांटो से भरी कई लम्बी-लम्बी पूंछें सी दिख रही थीं। जलचर की देह एकदम काले रंग की थी जो इस वक्त लाल रंग की हो गई है।

मयंद ने एक पत्थर उठाया और उसकी ओर दूर से ही फेंका। परन्तु उसमें कोई हलचल न थी। हिम्मत बढ़ी तो वे और पास जा पहुंचे। लेकिन वह जीव तो एकदम शांत था। मयंद ने एक उछाल भरी और उसके ऊपर जा चढ़े । अब भी वह जीव ज्यों का त्यों पड़ा हुआ था।

मयंद ने संकेत किया तो बाकी लोग भी उधर बढ़े।

बहुत पास जाने पर सबने देखा कि ये तो सचमुच एक बड़े विशाल प्राणी की लाश है जो अब मर चुका है। द्विविद को शंका हुई कि कहीं हनुमानजी से इसकी भिढ़न्त तो नहीं हो गई, और असके चारों ओर जो खून लगा है, वह हनुमान का तो नहीं है। उन्होने अपनी शंका जामवंत को बताई तो चिन्तित हो कर जामवंत ने उस जन्तु की लाश का बारीकी सी परीक्षण शुरू कर दिया। वे बहुत देर तक इधर-उधर ढड़काते हुए उस लाश को देखते रहे फिर अन्ततः अपना निश्कर्श बताते लगे तो सब ध्यान से सुनने लगा।

‘‘ सब लोग सुनो, ये जीव जल में रहने वाला एक विशाल जलचर जन्तु सिंघिका है, जिसकी कई आँखे होती हैं ये देखो। ’’ लोगों ने देखा सचमुच कई बड़ी-बड़ी आँखें थी उस जन्तु की लाश में।

‘‘ इसकी ये कांटेदार आठ भुजायें होती हैं, इन भुजाओं को चारों ओर फेंक सकता है, ऊपर की ओर उछाल सकता है। इनकी मदद से अपने चारेां ओर की किसी भी चीज को यह जन्तु खींच कर खा डालता है।’’ जामवंत बारीकी से समझा रहे थे और सब लोग बड़े ध्यान से देख रहे थे।

द्विविद ने फिर कहा ‘‘ इस जन्तु ने कहीं हमारे हनुमानजी का तो कोई अनिष्ट नहीं कर डाला?’’

‘‘ नहीं, ये जो खून है, इसी का है। देखो इसका पेट खाली है और इसके सिर पर कोई भारी चीज गिरने के निशान है जिसमें से अभी भी लगातार खून बह रहा है। इसकी भिढ़न्त तो हमारे हनुमान जी से जरूर हुई होगी। ऐसा लगता है कि केशरीनंदन ने अपनी भारी-भरकम गदा से इसका काम-तमाम कर डाला है।’’

जामवंत की बात से सब निश्चिंत हुए।

छोटे लोग दुबारा खेल-कूद में लग गये तो बड़े लोग दोपहर के भोजन के लिए फल लाने संपाती की घाटी में चले गये।

उनके लौटने पर सबने डट कर भोजन किया और आलस से भरे हुए खुली रेत पर यहां-वहां पसरने लगे। जामवंत ने विकटास को समुद्र की ओर लगातार निगाह रखने का जिम्मा सोंपा और खुद भी लेट गये।

लगभग सूरज अस्त ही हो रहा था कि विकटास ने देखा, कि दूर समुद्र में कोई व्यक्ति तैरता हुआ दिख रहा है।

जामवंत को जगा कर उन्होने यह नयी बात बताई तो जामवंत भी बड़े ध्यान से देखने लगे। उस तैरते हुए व्यक्ति के हाथ में चमचमाती गदा दिखी तो जामवंत खुशी से उछल पड़े और बोले ‘‘ जय श्रीराम ! ...आप लोग डरो मत। हमारे हनुमान जी लंका से लौट आये हैं।’’

जिसने भी सुना वह उठ कर खड़ा हो गया। सबकी निगाहें समुद्र की ओर लगी थी। मयंद और द्विविद से रहा नहीं गया तो वे समुद्र में कूद गये और तैर कर हनुमान की ओर जाने लगे

यहां समुद्र किनारे खड़े लोग तालियां बजाते हुए हनुमान का स्वागत कर रहे थे।

पानी में ही द्विविद और मयंद हनुमान से गले लगकर मिले और वे तीनों वापस किनारे की ओर तैरने लगे।

तट पर आने पर हनुमान उछल कर जामवंत के पास आ पहुंचे और उनके पैरों में झुकने लगे तो उन्होने झट से पकड़ कर उन्हे गले लगा लिया।

अंगद ने दोपहर के भोजन से बचे कुछ फल सामने पेश कर हनुमान का सत्कार किया तो हनुमान ने एक फल ले लिया और मुस्करा के अंगद का गाल थपथपा दिया।

नल बहुत उत्सुक थे कि लंका में क्या हुआ? सो उन्होंने पूछा ‘‘ हनुमानजी, जल्दी से बताइये कि आपने यहां से जाने से लेकर लौटने तक क्या-क्या किया?’’

सच्ची बात तो यह थी कि सबको उत्सुकता थी, सो हनुमान ने बाकी लोगों की आँखों में भी वैसे ही भाव देखे तो तुरंत बोले ‘‘ मैं सब सुना दूंगा, जरा धीरज धरो।’’

जामवंत बोले ‘‘ दिन डूबने वाला है, और कथा लम्बी होगी। ऐसा करते हैं कि चल कर संपाती की गुफा में आराम करते हैं, वहीं हनुमानजी हमको सारा वृतान्त सुनायेंगे ।’’

सबको यह बात बहुत अच्छी लगी सो सारा दल उठ कर गुफा के लिए चल पड़ा।

गुफा में अंधेरा था सो जामवंत ने नील से कहा ‘‘ अपनी कारीगरी से ऐसा कुछ बंदोबस्त करो कि उजाला हो जाये । क्योंकि कथा सुनाते हनुमान जी के हाव-भाव और मुखमुद्रा देखने योग्य होगी।’’

उजाले का इंतजाम होने के बाद सब लोग एक दूसरे से सटकर नीचे जमीन पर आराम से बैठ गये और हनुमानजी एक ऊंची जगह पर जा बैठे, जहां से सब लोग उन्हें भली प्रकार देख सकते थे।

उन्होने बहुत गंभीर आवाज में अपना किस्सा सुनाना आरंभ किया।

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