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बाली का बेटा (4)

4 बाली का बेटा

बाल उपन्यास

राजनारायण बोहरे

बाली

अंगद के पिता !

यानी वनवासियों के राज्य किष्किन्धा के राजा- बाली।

बाली का राज्य था किष्किन्धा !

जामवंत जी इन दिनों अंगद के गुरू हैं, वे बताते हैं कि यह राज्य किष्किन्धा सैकड़ों साल पुराना है । वनवासियों के इस छोटे से राज्य की बहुत सुन्दर सी राजधानी पम्पापुर है । लोग बताते हैं कि दुनिया के सबसे सुदर मकान बनाने वाले होशियार कारीगर मय ने इस नगर की रचना की थी।

पम्पापुर ऊँचे पहाड़ों के बीच बसा एक खूबसूरत नगर था, जहां अधिकांश मकान लकड़ी के बने थे या फिर जिन पत्थरों से बनाये गये थे उनमें बहुत कलाकारी की गई थी, हर पत्थर पर कोई न कोई मूर्ति, हर पत्थर पर ऐसी आकृति कि उसे घण्टों निहारते रहो । पत्थर भी किसम-किसम और देश-देश के। हरेक का रंग अलग, आकार अलग और चमक अलग। इन सबसे मिल कर बने थे यहां के मकान, बागीचे और रास्ते। जो भी एक बार इस जगह आता, उसका मन प्रसन्न हो जाता। बल्कि यूं कहें कि उसका मन यही रम जाता। मन ही मन यही चाहता कि हमेशा यहाँ रहे। जो राजा इसे देख लेता, उसकी नियत खराब हो जाती। इच्छा होती कि इस पर किसी तरह कब्जा मिल जाये, जिससे वह जब चाहे छुट्टियाँ मनाने इस खुबसूरत नगर में आता रहे।

जैसा नगर था वैसे ही यहां के नागरिक। बिलकुल भोले और सीधे। न ऊधो का लेना न माधो का देना। अपने काम से काम रखते सब लोग । यहां के लोग अत्यंत गरीब थे और प्राकृतिक वातावरण में रहने की उन्हें आदत थी । ग्रीश्म ऋतु में यहां गर्मी ज्यादा पड़ती, सो लोग बदन पर बहुत कम कपडे पहनते। ज्यादा अन्न नहीं मिल पाता था, सो केवल फल-फूल और मूल खाते। पहाड़ों और पेड़ों पर ऐसे खेलते थे कि लोग मजाक में उन्हें बंदर कहते थे। धीरे-धीरे यहां के निवासियों की बिरादरी वानर कहलाने लगी। यहीं के राजा थे महाराज बाली। कोई उन्हें वनवासियों के इस कबीले का सरदार और बानर योद्धा भी कहते थे।

अपने बेटे और पत्नी को खूब प्यार करने वाले एक अच्छे व्यक्ति थे अंगद के पिता बाली।

अंगद की जब सात साल की उम्र थी, तबसे पिता की कई बातें अच्छी तरह से याद हैं। जैसे उनका अपनी राजधानी से बेहद प्यार करना। जैसे उनका एक निश्चिंत आदमी होना। जैसे कि उनका दिन से खानाबदोशों की तरह से सैलानी होना। हर बरस ही साल में दो बार यानी कि एक बार तब जब गरमी का मौसम आता, और दूसरी बार तब जब बरसात का मौसम जाता, वे अपने परिवार के साथ अपनी राजधानी पम्पापुर छोड़कर दूर के हरे-भरे पहाड़ों, नदियों-तालाबों की तरफ घूमने चले जाते। कुछ दिन वहीं रहते। अपने पीछे सुरक्षा के लिए पम्पापुर राजधानी में अपने भाई सुग्रीव के साथ उनका परिवार और राजदरबार के कुछ खास-खास आदमी छोड़ जाते। साल भर तक रोज-रोज महल में घिरी रहने वाली महारानी तारा ऐसे सैर करने में बहुत खुश होती। बच्चे भी खुशी से फूले न समाते। खास तौर पर अंगद की खुशी का पारावार न रहता। ऐसी बाहरी यात्राओं में बाली से जुड़े दूसरे कुछ खास लोग भी उनके साथ निकलते। बाहर पहुंच कर वे भी बहुत खुश होते।

इस तरह पखवारे भर वे लोग नई जगहों पर टहलते। वहां रूकते। नयी तरह का भोजन चखते। नये तरह के कपड़े देखते। अच्छे लगते तो देश-विदेश में पहने जाने वाले कपड़े पहनते। ज्यादा अच्छे लगते तो घर आते वक्त ऐसे कपड़े खरीद कर ले आते। इस तरह अंगद ने बचपन में कई नई जगह घूम ली थीं और उनकी माँ ने जाने क्या-क्या बोलना, पहनना, पकाना, खाना और खिलाना सीख भी लिया था। अपने आस-पास की महिलाओं में वे बहुत जानकार महिला की तरह मानी जाती थीं। बाली अपने परिवार का खास ध्यान रखते थे।

जामवंत कहते हैं कि बाहर घूमने का शौक बाली को तबसे था जब उनका विवाह नहीं हुआ था। बाद में विवाह हुआ तो वे महारानी तारा के साथ घूमने जाने लगे। लम्बा समय बीता और तारा ने किसी बच्चे को जन्म नहीं दिया तो महाराज बाली को कोई चिन्ता नहीं हुई। ऐसी ही एक यात्रा से वे लौटे तो पम्पापुर के लोगों ने देखा कि महारानी तारा की गोदी में एक नन्हा सा शिशु है जिसे वे लोग अंगद कह रहे हैं। जामवंत जी बताते हैं कि हू ब हू बाली तरह गोरा, स्वस्थ्य और सुंदर बालक को देख कर ाम्पापुर का कोई नागरिक कहता कि देवताओं के वरदान से तारा को यह बेटा प्राप्त हुआ है, तो कोई कहता कि अंगद धरती का बेटा है, कोई कहता कि अंगद दुनिया के सबसे बड़े कारीगर मय दानव की दूसरी बेटी मंदोदरी का बेटा है।

बचपन से तारा अंगद को बताया करती हैं कि महारानी मंदोदरी जो लंका के राजा रावण की पत्नी है, वह अंगद की मौसी है। मौसी यानी मां की बहन। मंदोदरी रिश्तें में हैं मां की बहन, लेकिन वे अंगद से इतना प्रेम करती हैं कि खुद तारा भी नहीं करतीं। इसलिए अंगद को मां हमेशा हिदायत देतीं कि अंगद अकेले कभी भी लंका न जायें, अगर जायें तो मंदोदरी के सामने न जायें, अन्यथा उनका अपनी मां के पास लौटना मुश्किल होगा। वैसे भी पम्पापुर के लोग मौसी को मासी भी कहते- यानी माँ सी, माँ जैसी। अंगद थोड़ा बड़े हुए तो बाली ने उन्हे एक ऐसी अनूठी कला सिखाई जो दुनिया में किसी के पास न थी। कला यह थी कि अंगद एक बार जिस चीज पर अपना पाँंव जमा देते वह चीज उनके पाँंव से चिपक कर रह जाती, कोई्र कितनी भी बड़ी ताकत लगा लेता अंगद के पाँंव से वह चीज न छूट पाती । छूटती तब जब अंगद चाहते। अंगद जानते थे कि उनके पाँंव के तलवे में नन्ही सी कटोरियों की तरह छोटे-छोटे कई छेद थे, जिनको वे जमीन पर पाँंव रखते वक्त हवा से खाली कर लेते, फिर उनका पाँंव का छुड़ाना किसी भी ताकतवर के लिए संभव न था। बाद में जब पाँंव छुड़ाना होता, अंगद खुद धीमे-धीमे एक-एक छेद को खास तरकीब से छुटाते।

पिता के साथ अंगद ने पम्पापुर से लंका के पास तक का समुद्र घूम डाला था। हिमालय के पर्वत देख डाले थे। खांडव वन यानी घने जंगल का वह हिस्सा घूम लिया था जहां खर,दूशन और त्रिसिरा नाम के तीन भार्इ्र खुदको रावण के राज्य का प्रतिनिधि मान कर आसपास के इलाके में आतंक फैलाया करते थे।

बाली पक्के घुमक्कड़ थे। एक घुमक्कड़ और सैलानी राजा। जिन्हे हर वक्त बिना सेना के अकेले या गिनेचुने लोगों के साथ दुनिया की सैर करना अच्छा लगता।

आज जब अंगद बड़े हो गये हैं, तब उन्होने बुजुर्ग मंत्री जामवंत की बातों से जाना कि बाली की कई आदतें राजा की नजर से ठीक न थीं।

एक गृहस्थ आदमी के लिए महीना-पन्द्रह दिन के लिए राज्य से बाहर चले जाना अलग था, लेकिन राजा के लिहाज से अलग।

किसी राजा का इस तरह पन्द्रह दिन और महीने भर के लिए राजधानी छोड़ जाना राजनीति की नजर से गलत था। असुरक्षित राज्य पर सबकी नजर रहती हैं। सचमुच इस तरह की यात्राओं से लौटने पर हर साल कोई न कोई संकट झेलना पड़ता उन्हें ।

जामवंत जी के अनुसार बाली केवल पिता न थे। सिर्फ पति न थे। एक राजा भी थे। वे राजा बाली थे।

राजा बाली । पम्पापुर के राजा बाली । पम्पापुर के नागरिकों यानी वनवासियों की बिरादरी के सबसे बहादुर आदमी । सबसे बलबान योद्धा । ऐसे बलबान योद्धा जो मनुश्य तो मनुश्य, अपनी ताकत के जोश में जानवरों तक से भिड़ने को तैयार घूमते रहते।

जामवंत जी बेहिचक कहते हैं कि बाली ऐसे राजा थे जो जनता की परवाह कम करते थे, अपनी ताकत का दिखावा ज्यादा करते । जबकि राजा का फर्ज होता है कि वह जनता की सुख-दुख की परवाह करे। अपनी सेना को ऐसी ताकतवर बनाये कि आसपास के राजा डरते रहें।

जामवंत जी एक निडर और हुनरमंद आदमी थे। राजा बाली को वे कैसी भी सलाह निर्भय हो कर सुना देते, लेकिन दूसरों की तरह उनकी बातें भी बाली एक कान से सुनते दूसरे से उड़ा देते।

...क्रमशः जारी -------

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