बाली का बेटा (8) राज बोहरे द्वारा क्लासिक कहानियां में हिंदी पीडीएफ

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बाली का बेटा (8)

8 बाल उपन्यास

बाली का बेटा

राजनारायण बोहरे

ऋष्यमूक

जामवंत जब कोई किस्सा सुनाते हैं तो ऐसा रोचक होता है कि सुनने वाले बंध कर रह जाते हैं। लोग खाना-पीना भूल कर उनकी बातों में डूब जाते हैं। उन्होंने एक लम्बी सांस लेकर उस आगे का किस्सा आरंभ किया।

सुग्रीव का नया ठिकाना ऋष्यमूक पर्वत बना। वही ऋष्यमूक पर्वत जहाँ के बारे में कई किंवदन्ती प्रचलित हैं। कोई कहता है कि बाली को वहां के सात ताड़ वृक्षों के नीचे तपस्या करते मुनि ने गुस्सा होकर शाप दिया है कि जिस दिन ऋष्यमूक पर्वत पर बाली आ गये उनके सिर के सौ टुकड़े हो जायेंगे । तो कोई कहता है कि वहां बने सूर्य मंदिर पर गलती से खून का अभिषेक कर देने की आत्मग्लानि से बाली वहां खुद ही नहीं जाते। कोई-कोई यह भी कहता है वहां के वनवासियों ने तय कर रखा है बाली जिस दिन ऋष्यमूक पर्वत पर चढ़ कर ऊपर आ गए, उसी दिन उनका काम तमाम कर दिया जायगा। कोई यह भी कहता कि अपने छोटे भाई के बचपने और डरपोक स्वभाव से परिचित बाली बहुत निश्चिंत थे। वे पम्पापुर के इतने पास रह रहे सुग्रीव की कुशलता के समाचार लेते रहते हैं और यहाँ जानबूझ कर नहीं आते कि कहीं सुग्रीव यहाँ से भाग कर किसी दूर के पर्वत पर किसी असुरक्षित जगह न चला जाये। उधर कुल मिला कर यह जगह सुग्रीव को सुरक्षित जान पड़ी, सो उन्होंने अपने दोनों सचिवों के साथ वहां रहना शुरू कर दिया।

बाली के मन में सुग्रीव और उसके राज्यकाल के मंत्रियों के प्रति बहुत नफरत बढ़ गई थी । वह कोई न कोई बहाने खोज कर हर उस आदमी को भरे दरबार में अपमानित कर देते, जो सुग्रीव की तारीफ कर देता या जिसके बारे में यह पता लगता था कि वह सुग्रीव के प्रति वफादार है। वे उसे किसी न किसी तरह अपने दरबार से निकाल देते थे, और वह आदमी सीधा सुग्रीव के पास आ पहुंचता था। इस तरह तीन लोगों की संख्या से आरंभ हुआ यह काफिला लगातार बढ़ने लगा । जिस दिन अयोध्या के निर्वासित राजकुमार राम और लक्ष्मण यहाँ आये, तब तक यहाँ बानर योद्धाओं की अच्छी-खासी छावनी बन चुकी थी।

पम्पापुर में पहले जामवंत की देख रेख में चलने वाला जासूसी यानी गुप्तचर विभाग अब महारानी तारा की देखरेख में चल रहा था, ठीक उसी तरह जैसे लंका का गुप्तचर विभाग लंका की महारानी मंदोदरी संभालती थीं। अंगद को भली प्रकार से याद है कि महारानी तारा के जासूसों ने ही खबर दी थी कि लंका इतना सुरक्षित किला है कि वहाँ यदि मच्छर भी भीतर घुसता है, तो लंका के जासूसों को तत्काल खबर हो जाती है।

जामबंत ने ऋष्यमूक पर्वत के वनवासियों की मदद से दूर-दूर तक के पहाड़ों पर रहने वाले दूसरे ऐसे आदिवासियों को अपना दोस्त बनाना शुरू कर दिया था,जो सुग्रीव के प्रति हमदर्दी रखते थे। । इन्ही दोस्तों में से ज्यादातर लोगों की बस्ती में जाकर वे उन्हें इस तरह लड़ना सिखाने लगे कि बिना किसी हथियार के वे लोग पत्थर के टुकड़े या वृक्ष हाथ में रखकर किसी हथियारबंद आदमी से लड़ कर आसानी से उससे जीत सकें। कुछ जवान लड़के छांट कर जामवंत उन्हें रूप बदलना, आवाज बदलना वग़ैरह बताते हुए जासूसी करना सिखा रहे थे। जिनमें से कुछ तो आजकल पर्वत के चारों ओर इस तरह मौजूद रहते थे कि जब भी कोई अंजान आदमी ऋष्यमूक पर्वत के आसपास दिखे, इशारों ही इशारों तुरंत ही जामवंत तक इसकी खबर आ जाये।

यह व्यवस्था काम में आई । राम और लक्ष्मण पर्वत की चोटी की की तरफ जाने वाले मुख्य रास्ते से ओर बढ़े, तो सबसे नीचे एक पेड़ पर बैठे आदिवासी युवक ने कोयल की तरह कूकने की आवाज उत्पन्न की। यह आवाज सुन कुछ दूरी पर ऊपर की ओर बैठे दूसरे युवक ने वही आवाज की और इस तरह एक-एक कर जामवंत के इन जासूसों के इशारों से पर्वत के ऊपर बैठे जामवंत को पता लग गया कि कोई दो हृष्ट पृष्ट जवान लोग हाथों में धनुष बाण लेकर तेजी से ऊपर चले आ रहे हैं। सुग्रीव को पता लगा तो वे घबरा गये। मन ही मन जाने क्यों सोचते हुए डरे हुए अंदाज में उन्होंने उ एक-एक कर अपने आसपास बैठे सारे योद्धाओं पर नजरें डाली, फिर आखिरी में हनुमान से बोले, ‘‘ हनुमान, इस काम में केवल तुम समर्थ हो, इसलिए तुम्हीं जाकर पता लगाओ कि इस तरह निडर हो कर पहाड़ पर चढ़ने वाले वे दोनों अन्जान वीर कौन हैं? ’’

हनुमान क्षण भर में तैयार थे। सुग्रीव दुबारा बोले ‘‘हो सकता है ये अन्जान लोग मेरी तलाश में आये हों। बाली ने शायद इन लोगों को मुझे मारने के लिए कोई उपहार देकर भेजा होे। अगर तुम्हें ऐसा लगे तो वहीं से इशारा कर देना, मैं इस पर्वत को छोड़ कर किसी सुरक्षित जगह भाग जांऊंगा।’’

जामवंत सुग्रीव को धीरज बंधाते हुए बोले, ‘‘ सुग्रीव जी, आप बिना बात डरो मत। हम लोग पूरी तरह से किसी का भी मुकाबिला करने के लिए तैयार है। फिर भी मुझे इन दोनों वीर लोगों से कोई भय नहीं लग रहा है। मैंने सुना है कि इन दिनों गंगा पार के एक बहुत बड़े साम्राज्य के बहादुर और दयावान दो राजकुमार राम और लक्ष्मण हमारे आसपास के जगल में भटकते फिर रहे हैं। अगर हमारे पर्वत पर आने वाले वे ही दोनों जन हैं तो वे हमारे लिये कोई खतरा पैदा नहीं करेगे बल्कि हो सकता है कि ऐसा कोई रास्ता निकल सकेगा कि हम लोग पम्पापुर वापस पहुंच सकेंगे।’’

जामवंत की बात पर ध्यान न देते हुए सुग्रीव ने इस ढंग से अपनी तैयारी शुरू कर दी कि अचानक ही जरूरत होने पर वे आसानी से चल सकें। तब तक हनुमान ने अपने बदन पर एक पीला चादर लपेट लिया था और अपना अस्त्र यानी गदा एक तरफ रख कर वे भी नीचे की ओर चलने को तैयार थे। उन्होंने जामवंत की ओर उचित सलाह के लिए नजरें फेंकीं तो जामवंत ने बिना कुछ कहें उन्हे जल्दी से चल पड़नेे का संकेत किया।

एक पेड़ से दूसरे पर छलांग लगाते हनुमान बड़ी तेजी से पहाड़ के निचले हिस्से की ओर बढ़ चले और वे घड़ी भर में ही राम-लक्ष्मण के सामने थे। लक्ष्मण ने पहलवान जैसे एक बहुत ही तगड़े और लंबे आदमी को बदन पर पीली चादर लपेटे अपने सामने खड़ा पाया तो आदत के मुताबिक उनके हाथ अपने आप धनुष बाण पर चले गये । वे धनुष पर बाण चड़ाने लगे कि राम ने उन्हे रूकने का इशारा किया ।

हजारों लोगों से मिल चुके अनुभवी हनुमान क्षण भर में ही देख चुके थे कि अपनी रक्षा के लिए हमेशा फुर्ती से तैयार होने में समर्थ इन युवकों की वेशभूषा से इनके बारे में काफी पता लग जाता है। माथे पर बालों का खुबसूरत सा जूड़ा बांधे दोनों युवकों ने बदन पर एक-एक पीला सा दुपट्टा लटका रखा है और बहुत साधारण से पीले कपड़े की धोती को अपने पैरों में इस खुबसूरत ढंग से बांध रखा है कि जरूरत पड़ने पर वे लोग बिना किसी बाधा के तेज गति से किसी का पीछा कर सकें और बिना किन्ही हथियारों केे किसी का भी मुकाबिला कर सकें। बड़ी बारीकी से राम और लक्ष्मण का निरीक्षण करते हनुमान ने देखा कि उनके पांवों में बांधी हुई धोती इस ढंग की थी जो गंगा के उस पार के बड़े मैदानों में बसे हुये लोगों के राजा-महाराजा बांधा करते थे। उन दोनों के चेहरे पर छाई उदासी और अपनी तेज नजरों से आसपास के इलाके को घूरते रहने के उनके अंदाज को देख हनुमान ने महसूस कर लिया कि वे किसी की तलाश में ही ऋष्यमूक पर्वत पर जा रहे हैं। हनुमान को उन दोनों के चेहरे के भाव देख कर लग रहा था कि किसी की हत्या करने वाले भाड़े के हत्यारे नहीं है, बल्कि दोनों के मुख पर किसी दयावान व्यक्ति की तरह हरेक को सम्मान से देखने के भाव थे।

हनुमान ने विनम्र होकर उन दोनों को नमस्कार किया तो देखा कि बदले में वे दोनों भी मुस्करा कर उन्हे नमस्कार कर रहे हैं।

हनुमान बोले, ‘‘ हे बहादुर युवको, मैं एक साधारण सा ब्राह्मण तपस्वी हूं और इसी पहाड़ी इलाके में रहता हूं। मैं जानना चाहता हूं कि दिखने में मैदानों के किसी बड़े राजा के बेटे जैसे लगते आप लोग कौन हैं, और इधर सूने पहाड़ों पर कैसे घूमते फिर रहे है? हो सकता है कि मैं आपकी कोई मदद कर सकूं।’’

‘‘ आप खुद को तपस्वी ब्राह्मण कहते हैं जबकि आपके हट्टे-कट्टे कसरती बदन से आप एक योद्धा जैसे दिख रहे हैं इसलिए हमको अपनी सचाई बताना नहीं चाहिए, फिर भी छिपाने से क्या फायदा। हम लोग गंगा के उस पार के एक बहुत बड़े राज्य अवध के महाराज दसरथ के बेटे राम और लक्ष्मण हैं। अपने पिता के आदेश से हम लोग उधर पंचवटी के जंगलों में वास कर रहे थे कि किसी ने मेरी पत्नी का अपहरण कर लिया है । सुना है कि इन पहाड़ों के बीच बसे नगर पम्पापुर में एक अभिमानी और दुष्ट बानर राजा बाली रहता है जिसकी दोस्ती इसी तरह के एक दूसरे दुष्ट राजा लंकाधिपति रावण से है। हम दोनों उन्ही को खोजते इन पहाड़ों और जंगलों में भटक रहे हैं। अगर आप इस मामले में हमारी मदद कर सकते हैं तेा भैया हमारी मदद कीजिये।’’ बहुत लम्बे हनुमान के चेहरे की ओर ताकते राम ने विनम्र आवाज में जवाब दिया ।

हनुमान को जामवंत की बात याद आ गई कि अबध कर राजकुमार इधर भटक रहे हैं। हनुमानजी ने अपना पीला चादर समेट कर उसे दुपट्टे की तरह अपने बदन पर लपेटा और बोले, ‘‘ मेरे कपट को क्षमा करें प्रभू! सच्ची बात यह है कि हम लोग बानर जनजाति के लोग हैं और इस पर्वत पर अपने नेता सुग्रीव के साथ बहुत सतर्क रहकर निवास करते हैं क्योंकि हमको चारों ओर से खतरा नजर आता है। इसलिए मैंने अपना झूठा परिचय दिया था। आपको पूरी कहानी मेरे नेता सुग्रीव सुनायेंगे। चलिए हम उन्हीं के पास चलते हैं।’’

हनुमान ने दुबारा प्रणाम कर अपने झूठ के लिए क्षमा मांगी और राम की सहमति जानकर उन्हें रास्ता दिखाते हुए पर्वत की चोटी की तरफ चल पड़े।

कुछ ही पल में वे लोग पहाड़ की चोटी पर थे। हनुमान ने एक बहुत छोटी और सरल पगडण्डी पकड़ कर उन्हें यहाँ तक पहुंचा दिया था।

राम ने देखा कि पहाड़ की चोटी पर पत्थर की बहुत बड़ी खुली गुफा में एक ऊंची से चट्टान पर डरा हुआ सा एक बानर योद्धा हाथ में गदा लिये खड़ा है, जिसके पास उसी जैसे कई दूसरे लोग खड़े हुए उनकी ओर बड़ी सतर्क सी निगाहों से ताक रहे हैं।

लक्ष्मण तो चौंक ही गये जब उन्होने देखा कि बहुत ही बूढ़े सज्जन ठीक उनके पीछे की झाड़ी के पीछे से छलांग लगा कर सामने आ खड़े हुये थे और हाथ जोड़कर अपना परिचय दे रहे थे, ‘‘ मैं हनुमान जी के पीछे पीछे नीचे तक पहुंच गया था और आप लोगों की बातें सुन चुका हूं। मेरा परिचय यह है कि मैं इन महाराज सुग्रीव का मंत्री जामवंत हूं। मैंने इस पूरे आर्यावर्त देश को घूम रखा है। मैंने आपकी राजधानी अयोध्या भी देखी है और आपकी पत्नी जानकी का मायका जनकपुर भी मैं देख चुका हूं। आप हम सबको अपना दोस्त समझिये। ये हमारे नेता सुग्रीव जी हैं और हनुमान से आप मिल ही चुके हैं, बाकी लोगों से आपका परिचय अभी कराते हैं। ’’

क्रमशः जारी