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बाली का बेटा
बाल उपन्यास
राजनारायण बोहरे
बाली से लड़ाई
राम ने बानर वीरों की तरफ देखा। वे सब उदास से खड़े थे, जैसे उन्हे कोई मतलब न था। यह बात सुगीव के पक्ष में थी। यदि वे लोग बाली की हां में हां मिलाते तो इससे साबित हो जाता कि वे सब बाली को नुकसान पहुंचने पर भढ़क उठेंगे।
बाली अब भी चिल्ला रहे थे, ‘‘ अरे ओ राम, मैं तुम्हारे पूरे परिवार को जानता हूं। तुम्हारी माँ कैकेयी जितनी सुन्दर हैं उतनी ही दुश्ट भी हैं। तुम्हारे पिता तो उनके गुलाम की तरह हैं। तुम भी......’’
बाली की बात को राम ने काट दिया, ‘‘ बस्स , चुप रहो मूर्ख बाली। बहुत हो चुका। तुम मुझे कुछ भी कहते रहो, लेकिन तुम्हारी इतनी हिम्मत कि मेरे माँ-बाप के बारे में कुछ बोलो।’’
उधर जामवंत भी चिल्ला उठे थे, ‘‘ महाराज बाली, इस लड़ाई में आप राम को क्यों समेट रहे हो? फिर राम को बुरा-भला कहने के बजाय उनके पिता और माँ के बारे में क्यों अपशब्द कहते हो?’’ बानर वीरों की ओर मुड़कर जामवंत आगे बोले, ‘‘ आप सब सुनरहे हो न बानर वीरो, हमारे बाली महाराज ने राम के माता-पिता को अपमान करके पूरी बानर बिरादरी का अयोद्धा जैसे बलशाली राज्य का दुश्मन बना लिया है। वहां की सेना हमारे किष्किन्धा को क्षण भर में तहस-नहस कर डालेगी।’’
बानर योद्धा विकटास बाली का सेनापति था, वह जामवंत से बोला ‘‘ जामवंत जी, बाली महाराज की हर गलती के लिए हम लोग जिम्मेदार नही है। यह उनका निजी मामला है, आप श्रीराम से कहिये कि वे हमे अपना दुश्मन न समझें।’’
राम ने बाली से कहा, ‘‘ ये तुम्हारा निजी मामला था, मैं बोलना नहीं चाहता था, लेकिन तुम चाहते हो तो आओ हम दोनों युद्ध करते हैं।’’
बाली को मजा आ गया। राम भढ़क उठे थे।
बाली ने बगीचे का एक पतला सा पेड़ उखाड़ा और उसे लाठी की तरह घुमाते हुए राम की तरफ निशाना बांध कर फेंक दिया। राम फुर्ती से एक तरफ हट गये और उसके वार को बचा गयेै। लेकिन बाली रूके नहीं। उन्होने पास में बड़ा एक बड़ा सा पत्थर उठा लिया था और उसे राम की ओर फेंकने ही जा रहे थे कि सब चौंक उठे। इस बीच राम ने गजब की फुर्ती दिखाते हुए अपने धनुश पर एक तीर चढ़ाया था और बाली की तरफ छोड़ दिया था। राम का तीर इतनी तेजी से सनसनाते हुए बाली की ओर लपका कि देखने वाले सन्न रह गये।
तीर सीधा बाली की बांयी पसली में जाकर धंसा और वहां से खून का फोैबारा निकल पड़ा। बाली के हाथ की चट्टान नीचे गिर गयी। वे अपने दांये हाथ से तीर निकालने का प्रयास करते हुए जमीन पर बैठते चले गयेउधर सुग्रीव इतने में ही डर गये थे उन्होने कंपते हुये हाथ से राम को दूसरा कोई बाण छोड़ने से मना कर दिया।
बाली जितना गरजते थे उतने दमदार नहीं निकले। राम के एक ही बाण ने उनका काम-तमाम कर दिया था। उनमें अब इतना साहस नहीं बचा था कि उठ पाते। वे राम से बोले ‘‘ हे रघुवंशी, आप बहुत बलशाली हैैं। आप पहले आदमी हैं जिन्होने मुझे युद्ध में हरा दिया। मैं बहुत खुश हूं। बोलो क्या वरदान मांगते हो?’’
लक्ष्मण को हंसी सूझी कि जो आदमी खुद मौत के मुंह में फंसा हुआ हो वह दानी और महाराज बन कर वरदान की बात करता है। लेकिन राम बहुत मीठी आवाज में बोले, ‘‘ महाराज बाली, आप भी बहुत बलबान हैं। आप धीरज रखिये पंपापुर के राजवैद्य को बुूलवा कर हम आपका उचित इलाज कराते है।’’
बाली को यही सुनने के पहले ही मूर्छा आ गई थी।
किसी ने राजवैद्य को सूचना कर दी थी इस कारण कुछ ही देर में पंपापुर के एक रथ में आकर राजवैद्य अपनी दवाओं के पिटारे के साथ उतरते दिखे। वे जल्दी से बाली के इलाज में जुट गये। राम के इशारे पर सुग्रीव ने बाली का सिर अपनी गोदी में रख लिया था जबकि पंपापुर के वे बानर योद्धा जो बाली के स्वामीभक्त थे, डर गये थे और एक-एक कर के वहां से खिसकने लगे थे।
कुछ ही देर में एक रथ और आया जिसमें से बाली की पत्नी महारानी तारा अपने बारह-तेरह साल के पुत्र अंगद के साथ हड़बड़ी में उतरीं। तारा के बाल बिखरे हुए थे और वे रह-रह कर रो उठती थीं।
तारा ने अपनी गोद में बाली का सिर लिया और वैद्य की सहायता करने लगी।
वैद्य की दवा का चमत्कार था कि क्षण भर बाद बाली की मूर्छा जागी, ‘उन्होने तारा को देखा तो मुस्करा उठे। तारा से बोले ‘‘ तुम रो क्यों रही हो। तुम्हारा पति एक बलबान और बहादुर आदमी के हाथेां हारा है। यदि मैं मर भी गया तो अब चिन्ता नही है। ये सामने राम खड़े हैं न ये मेरे बेटे अंगद को बाप की तरह लाड़ करेंगे। तुम चिन्ता मत करो।’’
ये आखिरी शब्द थे बाली के। बस इतना ही बोलना लिखा था बाली के भाग्य में। इसके बाद वे एक शब्द भी नहीं बोल पाये और तुरंत मूर्छित हो गये फिर उसी मूर्छा में कुछ देर बाद उन्होने देह छोड़ दी।
राम ने तारा को समझाया कि बाली एक महान योद्धा थे, उन्हे लड़ाई का बहुत शौक था। उन्हें तो किसी युद्ध में ही वीर गति पाना थी। इसलिए जो हुआ उसका उन्हे खेद है। अब वे पूरे निडर होकर रहें। अंगद आज से उनका बेटा है, उसकी चिन्ता न करें।
फिर राम ने सुग्रीव को पूरे राजकीय सम्मान के साथ बाली का अंतिम संस्कार करने का आदेश दिया और वापस ऋष्यमूक पर्वत चले आये।
लक्ष्मण ने स्वयं जाकर सुग्रीव को किष्किन्धा राज्य का राजा बना कर राजतिलक किया और अंगद को युवराज बनाया। लोग श्रीराम की बुद्धिमानी पर बहुत खुश थे कि कहीं ऐसा न हो कि बाली के बेटे और पत्नी को दुश्मन मान कर सुग्रीव उनके साथ गलत बर्ताव करे सो उन्होंने अंगद को राजा के बराबर का सम्मान और हक दे दिया।
राजा बनने के बाद सुग्रीव ने श्रीराम को पंपापुर के पास के सुन्दर और सुविधायुक्त पर्वत प्रवर्शन पर ठहराया और उनसे निवेदन किया कि अब वे जल्दी ही अपनी सारी सेना जनक सुता सीता को खोजने के लिए भेज देंगे।
लेकिन पूरी बरसात बीत गयी न तो सुग्रीव ने सीता को खोजने का कोई बंदोवस्त किया था न ही स्वयं आकर इस बारे में कुछ कहा तो राम को लगा कि सुग्रीव राजा बनते ही सुख और सुविधाओं में ऐसा रम गये कि उन्हें मेरा काम याद नहीं रहा सो उन्होने लक्ष्मण को पंपापुर जाकर सुग्रीव को सबक सिखाने का निर्देश दिया था।
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