बाली का बेटा (10) राज बोहरे द्वारा क्लासिक कहानियां में हिंदी पीडीएफ

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बाली का बेटा (10)

10

बाली का बेटा

बाल उपन्यास

राजनारायण बोहरे

कुश्ती

पांच दिन बाद!

सब लोग चलने को तैयार थे बस राम के हुकुम का इंतजार था।

दो दिन में राम और जामवंत को बहुत कुछ करना पड़ा।

राम ने सुग्रीव को समझाया कि बाली से इतना डरो मत! वह कोई पत्थर की मूर्ति नहीं है, एक साधारण सा आदमी है, यदि पूरी हिम्मत के साथ उससे कुश्ती की जावे तो उसे हराना कोई कठिन काम नही है, और राम का खुद जाकर बिना बात उससे लड़ बैठना ठीक नही है। क्योंकि बाहर का आदमी लड़ाई करेगा तो तुम्हारे समाज के लोग भी गुस्सा हो जायेंगे। उनका गुस्सा होना ठीक नहीं, क्योंकि कल को तुम राजा बनोंगे तो उन्ही से तो काम लेना है तुम्हे।

उधर जामवंत ने अपने जासूसों से पम्पापुर में यह अफवाह फैला दी कि ऋष्यमूक पर्वत के मुनियों ने ताकतवर असर वाली जड़ी-बूटीयों को खिलाने के साथ मल्लयुद्ध के दांवपेंच सिखा कर सुग्रीव की देह वज्र सी कठोर बना दी है, यानीकि आजकल सुग्रीव बहुत बलशाली हो गये हैं। वे किसी भी दिन पम्पापुर आकर बाली को कुश्ती के लिए ललकारने वालेे हैं। बाली के राजदरबार के अनेक बानर वीरों को भी यह समझाया गया कि मनमाने तरीके से राज काज चलाने के बाली के दिन खत्म होने वाले हैं, अब भलाई इसी में है कि बाली-सुग्रीव की लड़ाई में सुग्रीव का साथ दिया जाय।

कुल मिला कर पम्पापुर का माहौल ऐसा हो गया था कि बाली सुग्रीव की लड़ाई को लोग इस तरह देखने लगे थे , यह दो भाइयों की आपसी लड़ाई है न कि किश्किंधा के राजा की किसी दूसरे देश के नागरिक से।

हनुमान , द्विविद, नील , नल और जामवंत ने अपने सैकड़ों वनवासी साथियों के साथ पम्पापुर के बाहर उस बागीचे तक पहुंच कर उसको चारों ओर से घेर लिया जहां कि बाली को उकसा कर सुग्रीव कुश्ती के लिए लाने वाले थे।

इसके बाद सुग्रीव को तैयार कर राम और लक्ष्मण भी ऋष्यमूक पर्वत से चल पड़े। फिर राम-लक्ष्मण को बागीचे के बाहर छोड़कर सुग्रीव पम्पापुर में धंसते चले गये और ठीक राजमहल के सामने जापहुंचे। बाहर खड़े सैनिकों ने उन्हें देखा तो वे पहले चौंके फिर पिछले दिनों नगर में चल रही अफवाहें उन्हे याद आई कि इन दिनों सुग्रीव का बदन वज्र की तरह हो गया है और वे किसी भी दिन आकर बाली को कुश्ती के लिए ललकारने वाले है। अब भलाई इसी में है कि बाली की बजाय सुग्रीव का साथ दिया जाय। सैनिक डर से चिल्लातेहुए भीतर की ओर भागे तो सुग्रीव ने खुशी और अहंकार में भर कर एक किलकारी मारी। महल के सन्नाटे में सुग्रीव का स्वर कोने-कोने तक गूंज उठा। भीतर बाली आराम फरमा रहे थे, उन्होने सुना तो अपने एक सेवक से सारा माजरा पूछा। भय से थर-थर कांपते सैनिक ने जो कुद सुना था वह और जो कुछ देखा था पूरा का पूरा कहसुनाया। बाली ठहाका लगा कर हंस पड़ें।

सहसा सुग्रीव की ललकार फिर सुनाई पड़ी तो बाली की हंसी ठहर गई। उन्होंने बैठे-बैठे ही एक हुंकार लगाई और अपनी गदा संभाल कर बाहर की ओर चलने को उठ खड़े हुए। अचानक ही महारानी तारा उनके सामने आ खड़ी हुई थीं। बाली ने गुससा होते हुए उन्हे अपने सामने से हटने को कहा तो वे बोलीं, ‘‘ महाराज, आप सुग्रीव को अकेला जान कर उससे कुश्ती के लिए जा रहे हैं, लेकिन आपको शायद पता नहीं हैं कि इस समय सुग्रीव की दोस्ती अयोध्या के राजकुमार राम और लक्ष्मण से हो चुकी है। वे दोनों भाई सुग्रीव के साथ हैं और आपको अनुमान नही है कि वे दोनों कितने ताकतवर इंसान हैं।’’

बाली ने तारा द्वारा जुटाई गई गुप्त सूचना पर कतई विश्वास नही किया बल्कि उसकी हंसी उड़़ाते हुये बोले, ‘‘ महारानी, तुम इन झूठी सच्ची अफवहों पर ध्यान न दिया करो। और फिर राम ओर लक्ष्मण भी यदि इस वक्त बाली के साथ हैं तो मुझे उनसे क्या डरना? मैं उनसे भी दो-दो हाथ कर लूंगा।’’

यह कह कर बाली महल से निकल पड़े।

सुग्रीव ने देखा कि हृश्ट-पुश्ट बाली अपने हाथ में भारी भरकम गदा लिये हाथी की तरह मदमस्त हो चले आ रहे है। बाली को पुराने सारे प्रसंग याद आ गये, जब कि बाली ने अपने हाथेां से उनकी ढंग्र से कुटम्मस की थी। सुग्रीव डर के मारे कंप गये। उन्होने अपने चारों ओर देखा। वे यहां निहायचत अकेले खड़े थे। आसपास न तो कोईग् सहयोगी था न ही कोई सहायक पहलवान। वे सहसा पलटे और उन्होने उस बागीचे की ओर दौड़ लगा दी, जहां बाली को घेर कर लाने की योजना राम ने बनाई थी।

बाली ने भागते सुग्रीव को देखा तो वे फिर हंस पड़े। लेकिन उन्हे लगा कि इस बार यदि सुग्रीव को पीटा नहीं गया तो वह बार बार दूसरेां के बहकावे में आकर इसी तरह नाटक करता रहेगा। सो वे सुग्रीव के पीछे खुद भी दौड़ पड़े।

सुग्रीव ने अपने पीछे तेज गति से भागते बाली को देखा तो वे सिर पर पैर रख कर भाग निकले।

बागीचे में जाकर सुग्रीव रूके और बाली की ओर देखने लगे। बाली के पीछे पम्पापुर के अनेक नागरिक तमाशा देखने के लिए चले आये थे। सुग्रीव को ललकारते बाली बोले, ‘‘ क्यों वे डरपोक, तुझमे इतनी हिम्मत कहां से आ गई कि अपनी मौत को ललकार रहा है।’’

झिझकते से सुग्रीव ने कहा, ‘‘ तुमने बहुत अत्याचार कर लिया महाराज बाली, आज मैं आपसे आर या पार की लड़ाई के लिए आया हूं।’’

‘‘ तो आजा नकली पहलवान, हो जायें दो-दो हाथ!’’ बाली ने दांत मिसमिसाये।

इतना कह कर बाली ने अपनी गदा एक तरफ फेंकी और एक झपट्टा मारा व सुग्रीव को दबोच लिया। सुग्रीव ने पूरी ताकत लगाकर अपने आपको छुड़ाने का प्रयास किया और सफल न हुए तो वे ऋष्यमूक पर्वत पर फुरसत के दिनों में सीखे गये कुश्ती के दांव याद कर कोई दांव लगाने का सोचने लगे। क्षण भर का सोचना ही उन पर भारी हो गया था। बाली ने उन्हे घूंसों और घुटने की ठोकरों से धुन कर रख दिया तो सुग्रीव हांपने लगे। उन्होने आशा भरी नजरों से दूर खड़े राम और लक्ष्मण की ओर देखा तो बाली तुरंत ताड़ गये।

बाली ने भी सुग्रीव को पीटते हुए उधर नजर दौड़ाई जहां सुग्रीव ताक रहा था। दूर दो तपस्वी युवक हाथ में धनुश बाण लिए इधर ही ताक रहे थे। उन दोनों तपस्वियों के चेहरे पर परेशानी के भाव देख कर बाली को भारी खुशी हुई। वे चिल्ला कर बोले, ‘‘ अरे नादान राजकुमारो, इस बेवकूफ को क्यों भढ़का कर यहां मर जाने के लिए ले आये हो। यदि तुम लोग नामर्द नहीं हो और तुम्हे अपने बल का ज्यादा घमण्ड है दूसरे की ओट से क्यों तीर चलाते हो, खुद आकर मुझसे कुश्ती लड़ों।’’

इतना सुनकर लक्ष्मण को गुस्सा आ गया, वे अखाड़े में कूदना ही चाहते थे कि राम ने इशारे से उन्हे रोक दिया।

बाली की आदत थी कि वे बहुत कड़वी बातें बोलते थे, सो चुप नही हुए बोले, ‘‘ तुम एक दूसरे को क्या ताक रहे हो डरपोक चूहो। आओ, मैं ताल ठोंक कर तुम्हे कुश्ती के लिए ललकारता हूं।’’

राम अब भी चुप थे और मुस्करा रहे थे। हनुमान को अब गुूस्सा आने लगा था। लेकिन राम को मंद-मंद मुस्कराते देख कर वे भी कसमसा कर चुप खड़े रहे। जामवंत जैसे सहनशील व्यक्ति को भी बहुत गुस्सा आने लगा था।

जामवंत ने देखा कि बाली के दरबार के सारे के सारे बड़े योद्धा बागीचे के इस अखाड़े के चारों ओर आ चुके थे और इस वक्त एक तरफ खड़े हो कर यह तमाशा देख रहे थे।

बाली का मन सुग्रीव की पिटाई और राम के अपमान से पूरा नहीं भरा था उन्होने सुग्रीव के हाथ से गदा छीनी, उसके दो टुकड़े कर डाले और दूर फेंक दिये। फिर उन्होने एक बार और दर्द से कराहते सुग्रीव को पीटना शुरू कर दिया। सुग्रीव अब सहन नही कर पा रहे थे सो वे बुक्का फाड़ कर रो उठे। राम का दया आ गई। वे सोचने लगे कि यह बेचारा भोला आदमी मेरे कहने से बिना कारण ही पिटा जा रहा है। कुछ करना होगा।

एकाएक बाली को जाने क्या सूझा कि उन्होने बहुत तेज आवाज में हुंकार भरी और राम की ओर देख कर चिल्ला उठे, ‘‘ अरे ओ तपस्वी, क्या देख रहे हो? तुम्हारा दोस्त पिट रहा है। तुम तो सचमुच नामर्द आदमी हो । ’’

लक्ष्मण को फिर गुस्सा आया तो वे कसमसा उठें, लेकिन लक्ष्मण को रूकने का इशारा कर राम मुस्कराते हुऐ चुप खड़े रहे।

बाली का हौसला बढ़ गया। वे और जोर से चिल्लाये, ‘‘ मेरे सभासदो और बानर वीरो, देखा तुमने? ये डरपोक सुग्रीव आज बड़ा पहलवान बन कर आया था, और मेरे हाथों कैसा पिट रहा है। इसे भढ़काने वाले चुपचाप खड़े इसे पिटता देख रहे हैं।’’

क्रमशः जारी