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बाली का बेटा (7)

7

बाली का बेटा

बाल उपन्यास

राजनारायण बोहरे

सुग्रीव को राज्य

सब लोगों ने विचार करके निर्णय लिया कि इस गुफा का मुंह पत्थर की एक बड़ी चट्टान से बंद कर देना चाहिए और यहां से हट कर राजधानी पम्पापुर चल देना चाहिऐ।

ऐसा ही हुआ। गुफा का मुंह बंद करके सब लोग राजधानी लौट आये।

अगले दो-चार दिन और इंतजार किया गया।

मंत्रियों ने सलाह दी कि एक महीने से किष्किन्धा राज्य बिना राजा का है, ऐसे में राज्य बहुत असुरक्षित होता है। इसलिए उचित होगा कि सुग्रीव राजा बन जायें और अपने भाई द्वारा छोड़ा गया राज्य संभालें। सबके हित में यही काम उचित होगा।

सुग्रीव कई दिन इन्कार करते रहे। फिर एक दिन महारानी तारा ने भी यही संदेश दिया गया तो सुग्रीव मना नहीं कर पाये।

बिना किसी उत्सव और ढोल-ताशे बजाये सुग्रीव चुपचाप किष्किन्धा के राजसिंहासन पर बैठ गये। राज्य का झण्डा बदल कर केशरिया बनाया गया, जिसके बीचोंबीच इन्द्र के तीन सूंड़ वाले हाथी ऐरावत का चित्र बना था। राज्य में चलने वाले सिक्कों पर भी ऐरावत का चित्र बनाया गया। सुग्रीव के इष्टदेव इन्द्र थे, इसलिए राज्य के सारे निशानों पर सूरज की जगह इंद्र के चिन्ह आ गये। बस इतना सा परिवर्तन हुआ । बाकी सब ज्यों का त्यों रहा। वही मंत्री परिषद । वही सेनापति और वही युद्ध प्रणाली।

फिर एक दिन चमत्कार हुआ...।

थके और कमजोर से एक बानर योद्धा ने पम्पापुर में बड़े सुबह प्रवेश किया । वह धूलधूसरित और कई जगह से फटा हुआ लंगोट पहने था।उसके शरीर पर बने कई जख्मों से खून बह रहा था और वह ,जमीन को ताकते हुए चल रहा था। बाजार के मुख्य चौराहे पर आ कर वह बानर खड़ा हुआ तो उसके चेहरे पर अचरज झलक उठा। चौराहे पर बने ध्वज दण्ड में केशरिया रंग का ऐसा ध्वज लहरारहा था जिसके बीचोंबीच सफेद रंग के एक हाथी की आकृति बनी थी जिसकी तीन सूंड़ थी।

झण्डा देख कर उस बानर ने एक तेज हुंकार भरी तो लोगों ने आवाज से पहचाना, ‘अरे ये तो हमारे पुराने महाराज बाली है, जिनको मरा हुआ मान कर सारे आखिरी क्रिया करम कर दिये गये हैं।’

बाली की हुंकार जब राजमहल में पहुंची तो वहां भूकंप सा आ गया। महल के नये सैनिक, नौकर और दूसरे लोग भयभीत से इधर-उधर भागने लगे। ...और राजा सुग्रीव तो सबसे ज्यादा डरे हुए थे। उन्होने अपने मंत्रियों को तत्काल बुलाया । मंत्रियों ने ही तो जल्दी मचाई थी कि बाली को मरा हुआ मान कर सुग्रीव राजा बन जायें। सुग्रीव इंतजार कर रहे थे, लेकिन सिवाय हनुमान और जामवंत के कोई भी मंत्री उनके पास नहीं आया था, लग रहा था कि वे भी डर के मार या तो कहीं भाग गये थे या फिर छिप कर बैठ गये थे।

जामवंत की सलाह पर सुग्रीव ने अपना राजमुकुट एक थाली में सजाया और वे अपने दोनों प्रिय मत्री जामवंत व हनुमान के अलावा, अपनी पत्नी रूमा, बेटा गद और भाभी तारा व भतीजे अंगद को साथ लेकर चौराहे पर खड़े बाली के पास चल पड़े। सुग्रीव को देख कर बाली ने फिर से हुंकार भरी। जिसे सुन कर सुग्रीव के आगे बढ़ते कदम जहाँ के तहाँ ठिठक गये। लेकिन अब लौटना संभव न था सो वे तुरन्त ही आगे बढ़ने लगे।

बाली के सामने पहुंच कर वे उन्होंने झुककर प्रणाम किया । राजमुकुट उनके सामने रखा और नीची नजरें करके जहां के तहां खड़े रह गये।

बाली का गुस्सा सातवें आसमान पर था। वे चीखे, ‘‘ क्यों वे डरपोक चूहे, तुझे राजा बनने का बड़ा शौक था । तूने मेरा इंतजार भी नहीं किया और मेरी गुफा को बंद कर के भाग आया। ’’

‘‘ भैया, आपने पन्द्रह दिन इंतजार करने को कहा था फिर भी मैं एक महीने...’’ सुग्रीव ने अपनी बात कहने की कोशिश की लेकिन बाली ने उनकी बात काट दी ‘‘ अरे चुप्प रहे झूठे, अंदर गुफा में कितना अंधेरा था और वो तो उसका अपना घर था, उसके पास जाने कितने हथियार थे। मैं निहत्था लड़ रहा था उससे और वो चूहा इधर-उधर छिप जाता था। तू क्या जानता है कि मैं उसके सामने गिडगिड़ाता कि बस भाई रहने दे,, पन्द्रह दिन पूरे हो गये, मेरा भैया मुझे मरा मान लेगा।....धत्तेरे की नालायक !’’

बिना गलती के बाली सुग्रीव को डांटे जा रहे थे सो उन्हे भी चिढ़ हो आई, बोले ‘‘आप को क्या पता कि बिना राजा के यह राज्य कितना असुरक्षित था। आपको तो आदत है कि जहां तहां फटे में टांग अड़ाते हों।’’

बाली को बड़ा अचरज हुआ कि सुग्रीव ऐसी कड़वी बात कह रहा है, उसमें इतनी हिम्मत कहां से आई ? उन्होने सुग्रीव के पास खड़े जामवंत और हनुमान को देखा, फिर कुछ सोच कर बोला, ‘‘ तो तू इन दो सलाहकारों की दम पर मुझसे ऐंठ रहा है। अरे इन दोनों को तो मैं यों मच्छर कीतरह मसल डालूंगा।’’

जामवंत ने बीच बचाव करते हुए कहा, ‘‘ महाराज बाली, हम तो आज भी आपको ही राजा मानते हैं। हम आप भाई-भाई के बीच काहे को लड़ाई करायेंगे? और सुग्रीव जी भला हमारी हिम्मत से अपने बड़े भाई को गलत काहे बोलेंगे। घर की बात घर में रहने दो। आप महल में पधारो और अपना राजपाट संभालो।’’

बाली ने जामवंत की उम्र का भी ख्याल नहीं किया । अपनी आदत के अनुरूप उन्हे भी बूढ़ा और रंगा सियार आदि अपशब्द बोलने लगे तो हनुमान का भी खून खौल उठा, लेकिन वे चुप खड़े रहे। बाली ने उनसे कुछ नहीं कहा था इसलिए बीच में बोलना उन्हें उचित नहीं लगा।

अचानक बाली का गुस्सा फिर भढ़क उठा, उन्होंने अपनी गदा संभाली और बिना चेतावनी दिये एक छलांग लगाकर सुग्रीव पर हमला कर दिया। सुग्रीव तो पहले से ही डरे हुये थे और फिर बिना हथियार के वहां आये थे सो वे जब तक संभलते तब तक तो बाली ने उन्हे मारते-मारते अधमरा कर डाला था।

तब हनुमान को लगा कि अब बीच में आना ठीक होगा सो उन्होने बाली और सुग्रीव के बीच जाकर बाली का हाथ पकड़ लिया और बोले ‘‘ इनको मार ही दोगे क्या?’’

बाली हैरान थे। उन्हे पता था कि यदि कुश्ती हुई तो हनुमान भी ज्यादा कमजोर साबित नहीं होंगे। मन मार के उन्होने अपना हाथ रोका और नफरत भरे स्वर में बोले, ‘‘ तुम कहते हो तो आज इसे छोड़ देता हूं। जाओ मैं आज से तुम तीनों को देशनिकाला देता हूं। आप लोग तुरंत ही मेरा राज्य छोड़ दो।’’

सुग्रीव बहुत बेइज्जत हो चुके थे। वे मुड़े और अपनी पत्नी से बोले, ‘‘ चलो रूमा, अपन लोग चलते हैं।’’

‘‘ इसको कहाँ ले जाता है? इसी जगह रहेगी।’’ बाली ने सुग्रीव को डांटा तो सुग्रीव को सांप ही सूंघ गया।

हनुमान और जामवंत भी हक्के-बक्के होकर सुग्रीव को देख रहे थे।

फिर बाली ने घुड़क कर सुग्रीव से कहा, ‘‘ तुम बड़े बेशर्म हो, अब तक यहीं खड़े हो। चलो भागो यहां से। नहीं तो...’’

‘‘ भाई साहब मैं अपने पति के साथ...’’ रूमा ने बाली को टोकने का प्रयास किया, लेकिन बाली ने उसकी बात को बीच में ही काट दिया, ‘‘ तुम चुप रहो रूमा। ये तो आज से खानाबदोश हो गया, तुम कहां मारी-मारी फिरोगी? चलो तुम तारा के साथ महलों में रहो।’’

बाली ने बिलखती रूमा का हाथ पकड़ा और नन्हे से बच्चे गद को भी अपने साथ लेकर महल की ओर चल दिये थे। उधर सुग्रीव बेइज्जती और गुस्से में भरे हुए उन्हें देख रहे थे। जब बाली नजरों से ओझल हो गये तो सुग्रीव को होश आया और वे चुपचाप उस मार्ग पर बढ़ गये जो पम्पापुर से बाहर ऋष्यमूक पर्वत को जाता था।

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