bali ka beta - 6 books and stories free download online pdf in Hindi

बाली का बेटा (6)

6 बाल उपन्यास

बाली का बेटा

राजनारायण बोहरे

बाली का किस्सा

बीच में टोक कर जामवंत से अंगद ने पूछा कि ‘‘ बाबा , मेरे पिता और काका सुग्रीव के बीच आपस में झगड़े का क्या कारण था?’’

जामवंत ने वह किस्सा विस्तार से सुनाया था। ...संसार के सबसे बड़े कारीगर यानी मकान बनाने वालों के महागुरू मय का बहुत मोटा और ताकतवर बेटा मायावी एक बार जाने क्यों पम्पापुर आकर बाली को उल्टा सीधा बोलने लगा था। कोई कहता है कि वह अपनी बहन मंदोदरी के बेटे अंगद को मांग रहा था, जिसे उसकी दूसरी बहन तारा मांग लाई थी। तो कोई कहता है कि वह अपने पिता के बनाये नगर पम्पापुर पर अपने पिता का हक माँग रहा था यानी कि नगर पर कब्जा जमाना चाहता था। किसी का यह मत था कि मायावी ने लंका में रहकर प्रसिद्ध पहलवान कुंभकर्ण से अभी-अभी कुश्ती लड़ना सीखा था और वह अपने दांव आजमाने के लिए समान ताकत वाले किसी पहलवान की तलाश में पम्पापुर में चला आया था।

इस बात को तो कोई राजा पसंद न करता कि कोई आकर इस तरह खुले आम उसे चुनौती देने लगे। उस पर बाली जैसे महाबली को भला कहां से सहन होता कि कोई चौराहे पर राजा के परिवार के बारे में कुछ गलत-सलत बोलता फिरे। वे अपने महल निकले और सीधे मायावी के सामने पहुंचे ओर उससे बहुत ऊंची आवाज में बोले ‘‘ सुनों मायावी, तुम्हे अगर ज्यादा घमण्ड हो गया है तो चलो हम और तुम नगर के बाहर जाकर कुश्ती लड़ते हैं, लेकिन तुम इस तरह मेरे नगर के चौराहे पर इस तरह बकबास मत करो।’’

मायावी ने बाली की हंसी उड़ाते हुआ कहा, ‘‘ तुममें हिम्मत है तो यहीं खुले आम मुझसे कुश्ती क्यों नहीं लड़ते। बाहर क्यों जाना चाहते हो। अगर बाहर जाकर मेरे पैर छूकर मुझे लौटाना चाहते हो तो यह भूल जाओ । मैं यहाँ से बाहर नही जाने वाला। आज मेरा और तुम्हारा मुकाबला यहीं होगा। इसी जगह और खुले आम।’’

बाली ने एकाएक हुंकार भरी और वे छलांग लगा कर मायावी से जा भिढ़े। मायावी को ऐसी आशा न थी कि उसे तैयार होने का मौका ही न मिलेगा, और दुनिया का यह प्रसिद्ध पहलवान उसको अपना अनूठा ऐसा दांव लगा कर पकड़ लेगा कि लाख जतन करने पर भी मायावी छूट न सके। वह कुंभकरन के सिखाये सारे दांव भूल गया और बाली की पकड़ में छटपटाने लगा। बाली अपनी आदत के मुताबिक मुँह से गंदी गालियां बकते जा रहे थे, सो बिपत्ति में फंसे मायावी को अंतिम उपाय यही लगा कि इसी आदत के कारण वह बाली से छूट सकेगा। उसने भी बाली को गालियां बकना शुरू कर दी। अब क्या था, बाली का गुस्सा सातवें आसमान पर जा पहुंचा। आज तक किसी ने उसे पलट कर गालियाँ न दी थी। एक झटके में उन्होने मायावी को छोड़ा और उसका मुँह निहारने लगे। वे आज दुंदभि से भी ज्यादा निर्मम तरीके से मायावी का मार देना चाहते थे।

बस यहीं आकर मायावी का मौका मिल गया। उसने झुककर एक छलांग लगाई और पम्पापुर से बाहर जाने वाले मार्ग पर दौड़ लगा दी।

बाली चौंके। अरे यह क्या हुआ? यह कहां भाग निकला?

वे उसके पीछे दौड़ने लगे।

मायावी हाथी जैसे बड़े बदन का तो था ही , वह बहुत अच्छा धावक भी था। लगता था कि वह लम्बी दौड़ का खूब अभ्यास करता था सो बाली तेज चाल से दौड़ने के बाद भी उसे पकड़ने में नाकाम साबित हो रहे थे।

उधर मायावी की हालत खराब थी। उसे साफ-साफ महसूस हो रहा था कि उसने गलत आदमी को ललकार दिया। उसे अपने पीछे साक्षात मौत आती हुई दिखाई दे रही थी। वह ऐसी जगह ढूढ़ रहा था जहां वह छिप सके। एकाएक उसे सामने के पहाड़ में बनी एक बहुत बड़ी गुफा दिखी तो उसने आव देखा न ताव, सीधा उसमें घुस गया और नाक की सीध में दौड़ता चला गया ।

बाली ने देख लिया था कि मायावी उस गुफा के भीतर चला गया है, सेा वे निश्चिंत थे। उन्होने रूक कर पीछे देखा। उनका अनुमान सही था, छोटा भाई सुग्रीव उनके पीछे भागता हुआ चला आ रहा था। बाली ने सुग्रीव का इंतजार किया और जब सुग्रीव आ गये तो बाली बोले, ‘‘ तुम यहीं गुफा के बाहर रहो, पता नही भीतर के कैसे हालात हैं। लेकिन चिन्ता मत करो, मैं सबसे निपट लूंगा। तुम गुफा के बाहर रूक कर मेरा इंतराज करो मैं उसे घसीटता हुआ बाहर आता हूं।’’

सुग्रीव ने सहमते हुए भैया से पूछा, ‘‘ मैं यहां कब तक आपका इंतजार करूं?’’

बाली हंसे, ‘‘ अरे पगले, कब तक क्या, मैं आज साझ तक उसे मार कर लौटता हूं। ’’ फिर वे रूके और बोले, ‘‘ हो सकता है यह गुफा पहाड़ के उस पार जाकर दूसरे राज्य में निकलती हो तो मुझे उस राज्य के राजा ने अनुमति लेकर अपना अपराधी ढूढ़ना होगा, इसलिए तुम ऐसा करो पन्द्रह दिन तक मेरा इंतजार करना।’’

‘‘ आप अगर पन्द्रह दिन में नही लौटे तो ?’’ पिछली घटनायें याद करके सुग्रीव का खून सूख रहा था, सो वे बाली से एक-एक बात पूछ लेना चाहते थे।

बाली फिर हंसे,‘‘यदि पन्द्रह दिन में नहीं लौटता तो तुम यह मान लेना कि मैं मर गया हूं । फिर तुम राजमहल लौट जाना।’’

बाली इतना कहकर गुफा में घुस गये और सुग्रीव अपने कुछ विश्वासपात्र दोस्तों के साथ गुफा के बाहर बैठ गये।

धीरे-धीरे सांझ हुई । वे चिंतित हुये। उन्होने आग जला ली ताकि जंगली जानवर दूर बने रहें। कुछ जागते कुछ सोते वे बैठे रहे। वो रात बहुत धीमे-धीमे बीत रही थी।

किसी तरह सुबह हुई। दोस्तों ने समझाया कि बाली पता नहीं कब तक लौटेेंगे,ऐसा करें कि सुरक्षा के लिए राजधानी से कुछ सैनिकों को बुला लेते हैं और यहां ठहरने के लिए कुछ खाने-पीने ठीक सा इंतजाम कर लेते हैं। सुग्रीव ने हामी भरी तो सारे प्रबंध हो गये।

अब सुग्रीव पूरे साजोसामान के साथ बाली का इंतजार कर रहे थे।

धीरे-धीरे पखवारा यानी पन्द्रह दिन बीत गये।

सोलहवें दिन पम्पापुर से राजदरबार के अनेक मंत्री गण गुफा तक चले आये । सब चिंतित थे लेकिन किसी का साहस न था कि अंदर जाकर पता लगाये।

मन्त्रियों ने सुग्रीव से पम्पापुर लौटने की प्रार्थना की तो सुग्रीव टाल गये, उन्होंने मंत्रियों से कहा ‘‘ आप लोग सिर्फ नगर की सुरक्षा का पूरा ध्यान रखो। कहीं ऐसा न हो कि फिर कोइ्र दुश्मन हमला करके पम्पापुर पर कब्जा जमा ले। इसलिए आप लोग जाकर सुरक्षा का इंतजाम देखो। मैं भैया का बहुत समय तक इंतजार करूंगा।’’

सेनापति और मंत्रीगण पम्पापुर लौट गये तथा नगर की रखवाली का पुख्ता इंतजाम करने में जुट गये। सुग्रीव गुफा के बाहर अपने चुने हुए साथियों के साथ बैठे रहे।

गुफा के अंदर से न कोई आवाज आती थी , न भीतर के घुप्प अंधेरे में कुछ दीखता था, सो अंदाजा लगाना मुश्किल था कि भीतर क्या कुछ घट रहा है।

लगभग तीस दिन बीत गये थे। बाली का न तो कुछ समाचार आया था, न ही कहीं से कोई उम्मीद दिखती थी। सुग्रीव अब निराश हो चले थे। बाली जैसे अजेय भाई के गायब हो जाने और अपने असहाय हो जाने की कल्पना मात्र से उन्हे रोना आ गया। वे अपने पास बैठे बुजुर्ग मंत्री जामवंतजी से कुछ कहने ही वाले थे कि अचानक चौंक गये। गुफा के भीतर से खून की एक लकीर आती हुई दिखी जिसे देख कर सुग्रीव के हाथ-पैर ठण्डे हो गये। सबने देखा, बह कर आने वाला खून किसी मनुष्य का ताजा खून था ।

तुरन्त ही पम्पापुर से बाकी बचे मंत्रियों को बुलाया गया। सबका एक ही मत था कि मायावी छल से बाली को ऐसी गुफा में ले गया था जहाँ पहले से ही उसके साथी छिपे बैठे थे । वहाँ बाली पर कई लोगों ने एक साथ हमला कर दिया था, बाली बहुत ताकतवर थे, वे एक महीने तक उन दुश्मनों से लड़ते रहे और आखिरकार उन्हे अपनी जान से हाथ धोना पड़ा।

सुग्रीव को लगा कि अगर सचमुच महाराज बाली का देहावसान हो गया है तो उनका शत्रु उन्हें मार कर बाहर आयेगा। ऐसे खूंख्वार आदमी से सीधे और युद्ध में अंजान सुग्रीव कैसे लड़ पायेगे। मायावी निश्चित ही सुग्रीव को चींटी की तरह मसल डालेगा।

क्रमशः जारी

अन्य रसप्रद विकल्प

शेयर करे

NEW REALESED