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बाली का बेटा (13)

13 बाली का बेटा

बाल उपन्यास

राजनारायण बोहरे

समुद्र पार की होड़

जामवंत को बड़ी खुशी हुई। चलो असली चोर का पता लग गया। वे संपाती से बोले ‘‘आप हमारा इतना भला और कीजिये कि वह जगह बताइये जहां लंका बिलकुल पास हो। हम लोग लंका जाकर सीता का पता लगाना चाहते हैं।’’

संपाती बोला ’’ मैं जिस गुफा में रहता हूं उसमेंसे होकर आप आगे बढ़ेगे तो यही पहाड़ के दूसरी ओर जाकर समुद्र किनारे खुल जायेगी। समुद्र के इसी किनारे से लंका सबसे पास यानी चार सौ योजन दूर पड़ती है। मैंने लंका के जासूसों और दूसरे लोगों को अक्सर अपनी छोटी-छोटी पानी में छिपी नावों से वहां आकर उतरते देखा है।’’

जाामवंत एक कुशल जासूस थे, उन्हे लगा कि हम सबको फंसा कर खाने के लिए यह संपाती जाल तो नहीं बिछा रहा? उन्होंने द्विविद से कहा कि वह गुफा के रास्ते भीतर तक जाकर देख कर आये कि समुद्र तट कितनी दूर है। उधर उन्होने हनुमान से कहा कि वे भी एक कुशल विमान चालक हैं, जरा संपाती का विमान तो देखें कि उसमें क्या खराबी है?

उधर द्विविद गुफा में आगे बढ़े इधर हनुमान ने गुफा के दरवाजे पर रखा वह दुर्घटनाग्रस्त विमान देखा जो संपाती ने सूरज के ताप से जल जाने के कारण नीचे गिरना बताया था।

हनुमान ने थोड़ी ही देर में कहा कि इस विमान का सिर्फ ऊपरी हिस्सा जला है, बाकी सारे यंत्र ठीक हैं। यदि इसे उड़ाया जाय तो धूप तो लगेगी, बाकी कोई दिक्कत नहीं होगी।

संपाती के कहने पर हनुमान ने विमान को चालू किया और जमीन से ऊपर उठा कर पूरी घाटी का एक चक्कर लगाने लगे।

दल के लोग जो दूर बैठ कर यह तमाशा देख रहे थे, उछल-उछल कर हनुमान का हौसला बढ़ाने लगे।

जब हनुमान ने वापस आकर विमान अपनी जगह रखा तब तक द्विविद भी लौट आये थे, उन्होने बड़े जोश के साथ जामवंत से कहा कि बस थोड़ी ही दूर पर समुद्र का किनारा दिखता है। पूरा रास्ता साफ और सुरक्षित है। खतरे और साजिश की कोई बात नहीं है।

फिर क्या था! जामवंत ने इशारा किया और दल के बाकी लोग भी गुफा की ओर बढ़ आये। जामवंत ने अब जाकर संपाती की रस्सियां खोलीं और बोले ‘‘ संपाती जी, आप इतने डर गये हो कि अपना विमान दुबारा देखा तक नहीं। आपका विमान पूरी तरह सुरक्षित है। आप पंचवटी की ओर जाइये और हम लोग समुद्र तट पर पहुंच रहे हैं।

उधर संपाती का विमान चालू हुआ और जमीन से उड़ कर एक पक्षी की तरह उड़ान भरता हुआ पहाड़ के उस पार निकल गया। इधर जामवंत का यह दल गुफा के रास्ते समुद्र किनारे तक जा पहुंचा।

वे लोग समुद्र की रेत पर बैठ गये और बड़ी आशा भरी नजरो ंसे समुद्र के उस पार देखने का प्रयास करने लगे। लेकिन समुद्र बहुत विशाल था। जामवंत ने बताया िक इस समुद्र के चार सौ योजन पार तक न तो किसी की नजर जा सकती न ही पूरा दल इतनी दूरी तैर कर या छलांग लगा के पार कर सकता है।

द्विविद ने कहा कि क्यों न हममें से कोई एक आदमी हिम्मत करे और समुद्र पार करके लंका पहुंचे।

विकटासि ने भी इनका समर्थन किया। हनुमान तो एक तरफ जा बैठे थे । वे आँख मूंदे जाने किस ध्यान में डूबे थे। नल और नील ने कहा कि हम सबके पास समय नहीं है नही तो हम इस समुद्र पर एक तैरता हुआ पुल बना सकते थे और सारे दल को लंका तक ले जा सकते थे।

अन्त में जामवंत ने ही निर्णय लिया कि कोई एक आदमी समुद्र पार करके लंका तक जाये और अकेला अपनी बुद्धि और ताकत के दम पर सीता का पता लगाये।

फिर क्या था, हर वीर ने अपनी-अपनी ताकत का अंदाजा लगाना शुरू किया।

नल बोले, ‘’ मैं पचास योजन तक जा सकता हूं। इसके बाद मझे एक रात रूक कर आराम करना पड़ेगा।’’

नील को पिचहत्तर योजन तक जाने की हिम्मत थी तो द्विविद को सौ योजन। विकटास दो सौ योजन जा सकते थे।

अंगद खड़े हुए और बोले ‘‘ हे गुरूदेव, मैं चार सौ योजन केइस समुद्र को आसानी से पार कर सकता हूं। बस यही लगता है कि वहाँ पहुँचते-पहुँचते मैं थक जाऊंगा और कई दिन आराम करने के बाद इस लायक हो पाऊंगा कि कोई काम-धाम कर सकूं। इसलिए लौटने में कितना समय लगेगा इसमें मुझे संशय है।’’

जाामवंत बोले ‘‘ अंगदजी, आप तो हम सबके नेता हैं । हम आपको कैसे भेज सकते है? फिर वहां मंदोदरी आपको मिलेंगी जो आपकी मौसी हैं। आपके नाना-नानी भी इन दिनों लंका में हो सकते हैं। इसलिए आपका जाना उचित नही है।’’

अंगद बोले ‘‘फिर कौन जायेगा ?’’

जामवंत बोले ‘‘ मैं बूढ़ा हो गया हूं नहीं तो मेरे लिए यह दूरी कोई महत्व नहीं रखती थी।’’

इतना कह कर उन्होंने हनुमान की ओर देखा और बोले ‘‘ हे हनुमान, आप चुप साध कर क्यों बेठे हो वीरवर! ... हम सबमें आप ही ऐसे स्वस्थ्य और बुद्धिमान व्यक्ति हैं जो चार सौ योजन का समुद्र पार करके लंका तक बिना थके जा सकते हैं और वहां पहुंच कर बिना थके सीताजी को ढूढ़ सकते हो। ’’

हनुमान ने देखा कि सारा दल उनकी ओर बड़ी आशा भरी नजरों से देख रहा है तो वे उठे और एक जोर दार अंगड़ाई लेते हुए जोर से नारा लगाया ‘‘ जय श्रीराम ’’

सारे बानर वीरों ने उनके स्वर में स्वर मिलाया - ‘‘ जय जय श्रीराम !’’

जामवंत ने कहा ‘‘ हनुमानजी, आप मेरे सबसे प्रिय गुप्तचर हैं । आप समुद्र को लांघने की तैयारी कीजिये।’’

हनुमान ने पूछा ‘‘ आप मुझे यह तो बताओ कि मुझे लंका जाकर करना क्या है?’’

जामवंत बोले, ‘‘ आप तो किसी भी तरह सीताजी का पता लगा कर उनसे मुलाकात करना। उन्हे श्रीराम की कुशलता का समाचार सुनाना , उनकी कुशल जानकर चले आना। इतना जरूर करना कि रावण की सेना में किस श्रेणी के कितने सैनिक हैं, यह जानकारी जरूर लेते आना।’’

‘‘ठीक है जामवंत जी, आप लोग धीरज धर के मेरा इंतजार करना। मैं जल्दी ही लौट आऊंगा।’’ हनुमान ने कहा तो जामवंत ने तुरंत कहा ‘‘ लंका में जरूरत पड़े तो तुम्हारी दो लोग मदद कर सकते हैं। एक तो रावण के भाई विभीषण हैं और दूसरी है रावण की एक महिला सेैनिक त्रिजटा। आप उसे आसानी से ढूढ़ लोगे क्येां कि वह सीताजी की सुरक्षा में तैनात है और फिर खास पहचान यह कि उसके सिर पर बालों की तीन चोटियां होंगी। हमारे जासूसों ने खबर दी है कि ये दोनों लोग रावण से गुस्सा हैं सो हमारी मदद कर सकते हैं।’’

‘‘ ठीक है जामवंत जी, मैं वहां की जो स्थिति होगी उसके अनुसार काम करूंगा।’’ इतना कह कर हनुमान उछल कर समुद्र तट के ऊंचे से टीले पर चढ़ गये । वहां से उन्होंने समुद्र का नजारा देखा। फिर टीले से नीचे उतरे और बहुत पीछे तक जाकर तेज गति से दौड़ते हुए आये और एक लम्बी छलांग मारी।

सब लोग चकित से उन्हे देख रहे थे कि हनुमान की लम्बी छलांग की तो कोई सीमा ही न थी, वे अभी भी समुद्र के ऊपर रहते हुए ऐसे आगे बढ़ रहे थे मानो आसमान में उड़ रहे हों। जब तक वे दिखते रहे बानर पूरे उत्साह से देखते रहे, फिर जब आँख से ओझल हो गये तो सब ने एक दूसरे की ओर देखा।

जामवंत को लगा कि इंतजार करने में समय काटना मुश्किल होगा सो उन्होने अंगद और नल, नील से कहा कि आप लोग बैठे क्यों हो? जाओ रेत पर खेलो-कूदो। अगर मन लगे तो समुद्र तट पर फैले इन सीप और घोंघों को देखो, इनमें ही मोती जैस महंगा रत्न पैदा होता है।आप लोगों में से देखें तो कौन कितने मोती ला सकता है।

दिन डूबने लगा तो जामवंत ने सब लोगों को बुलाया और कहा कि हम लोगों को अंधेरा होने के पहले उस गुफा तक चलना चाहिए जहां संपाती रहता था। वह जगह हम लोगों को रात में आराम करने के लिए बहुत ठीक जगह है। जिन लोगों को भूख लगी हो उन्हें उसी घाटी में खूब सारे फल मिलेंगे। चलो अब देर करना ठीक नहीं है।

वे सब पहाड़ की गुफा के समुद्र तट वाले द्वार से अंदर प्रवेश कर के संपाती के रहने वाली जगह पहुंच गये। कुछ बानर फल खाने निकल गये तो कुछ गुफा की साफ-सफाई करके उसे सोने लायक बनाने लगे।

पहरे पर कुछ बानरों को लगा कर जामवंत ने सबको सोने का हुकुम दिया।

सब दिनभर के थके हुए थे सो लेटते ही नींद लग गई।

पता ही न लगा कि कब रात हो गई और कब सुबह हुई।

क्रमशः

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