दुःख या अवसाद Roopanjali singh parmar द्वारा मनोविज्ञान में हिंदी पीडीएफ

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दुःख या अवसाद

कुछ लोग इतने दुःखी होते हैं, कि जरा सी बातें ही इनकी आंखों को भर देती हैं। दुःख इस हद तक इनमें शामिल होता है कि ये सुख और दुःख के भेद को समझना भूल चुके होते हैं। इन्हें पता ही नहीं चलता कब ये मुस्कुराते हुए रोने लगते हैं, और कब रोते-रोते मुस्कुरा जाते हैं।

मैंने अधिकांश लोगों को कहते सुना है.. "ख़ुश रहा करो"..
ये जो "ख़ुश रहा करो" होता है ना।। ये खुश रहना किसी दुःखी इंसान के लिए एक सपने जैसा है।

"ज़्यादा सोचो मत",
"आदत हो जाएगी",
"वक़्त बहुत बड़ा मरहम है",
"तुम ठीक रहोगे, तो सब ठीक रहेंगे"
"बात-बात में रोया मत करो"
"तुम अकेले नहीं हो जिसके साथ ऐसा हुआ है"....
आप समझ ही नहीं सकते कि इतनी सारी सलाह के बीच वो इंसान खुद को केवल अकेला ही पाता है।
ऐसी जिंदगी जीना, दुःख उठाना उसका ख़्वाब नहीं था ।
उसने अपनी इच्छा से यह स्वीकार नहीं किया।

मगर इन सलाह से तंग आकर वो इंसान खुश रहने लगता है।
ख़ुश है, इसलिए नहीं। केवल दिखाने के लिए, हर सलाह से बचने के लिए।
कोई हाल पूछता है तो.. "ठीक हूँ" कह देता है।
"ठीक हूँ" पर उसे कभी प्रतिक्रिया नहीं मिलती।
वो जो आंसू सिमट चुके हैं आंखों में, वो अपनी जगह वहीं बना चुके होते हैं, मगर वो सूखे नहीं हैं। केवल बहाए नहीं गए। क्योंकि मुस्कुराना ज़रूरी था।

ये इंसान मुझे कभी समझ नहीं आते। ये दुःखी इंसान को सलाह क्यों देते हैं। क्यों भगवान बन कर एक झटके में दुःख की वजह से एक बर्बाद भविष्य की घोषणा कर देते हैं। क्यों दुःख को सभी कलेश का कारण घोषित कर दिया जाता है।
लोग जब किसी का सहारा नहीं बन पाते। तो खुद की तसल्ली के लिए सलाह देते हैं, या कोसते हैं।
इंसान हैं ना, इसलिए आसान राह ही खोजेंगे, और ये कोसना बहुत आसान होता है।
मगर, यह बात मेरी समझ से परे है कि आप उस दुःख पर या स्थिति पर टिप्पणी कैसे कर सकते हैं। जिसे आपने कभी जिया ही नहीं। जिसका आपको ना ओर पता है ना छोर। क्या आप अंजान हैं कि दुःख जब आता है, तो अपने साथ अनगिनत और तकलीफ़ें लेकर आता है।
मगर, "दुःख अवसाद नहीं है"।
अवसाद और दुःख में अंतर होता है।
अवसाद क्या है??
एक ऐसी अवस्था जो आपको ना केवल शारीरिक बल्कि मानसिक क्षति पहुँचाती है। इसलिए ही दुःख और अवसाद में बहुत फ़र्क होता है। दुःखी इंसान रोता है, चीखता है शिकायतें करता है।
मगर, अवसाद में इंसान मौन रहकर घुटता है और कहता कुछ नहीं।
किसी के सामने नहीं छुपकर रोता है। दुखी इंसान को सहारा देना आसान है।। मगर अवसाद में आप सहारा नहीं दे पाएंगे। आप कोशिश भी करेंगे तो या तो आपको वह सामान्य बन कर पीछे कर देगा। या आपका बढ़ा हुआ हाथ थामेगा ही नहीं। दुःख तो दिखाई दे जाता है मगर अवसाद वाले चेहरे मुस्कुराते हुए दिखाई देते हैं। आप भांप ही नहीं सकते इनकी मनःस्थिति। इनका सच केवल इनको पता होता है।
दुःख जीवन का हिस्सा बन जाए तो अवसाद बन जाता है।
दुःख में इंसान का जीना और इंसान में दुःख का जीना। दुःख और अवसाद में फ़र्क कर देता है।
अवसाद को समझना ज़्यादा मुश्किल नहीं होता है। बस वो व्यक्ति कुछ समझा ही नहीं पाता और आप भी कुछ समझ नहीं पाते।
कभी उसकी बात आप तक नहीं पहुंच पाती, और कभी वो आपकी बात समझ नहीं पाता।
यही संचार अवरोध अवसाद को बढ़ा देता है।
और अगर यही "ठीक हूँ".. कहने वाला, सामान्य स्थिति में नज़र आने वाला कभी हार मान जाता है, और जीवन का अंत कर लेता है..
तो ये लोग उसे पागल कहते हैं,
"अरे पागल था, ऐसा भी कोई करता है क्या?"..
"बहुत कमजोर था, हार मान गया'!
"ऐसे लोग तो जीने का अधिकार ही नहीं रखते"।
"ये तो कल तक सामान्य था, अचानक क्या हो गया?"

ये इतना सब खुद की तसल्ली के लिए लोग कहते हैं,
सभी अचानक बहुत समझदार और दार्शनिक बन जाते हैं।
मैंने कहा ना, ये इंसान आसान रास्ता खोज ही लेते हैं, और किसी को कोसना, बहुत आसान होता है।

मेरे अनुसार इसे आप ऐसे भी समझ सकते हैं।
एक को फ्रेंच नहीं आती, और दूसरे को हिंदी नहीं आती।
एक हिंदी में बात करता है, दूसरा फ़्रेंच में बात करता है।
एक फ्रेंच में कोशिश करता रहा और एक हिंदी में।
मगर दोनों ही अपनी बात समझाने में नाकाम रहे। इसमें दोष किसी का नहीं, बस समझ का है।
एक फ़्रेंच जानने वाला अब अगर लाख जतन भी कर ले तो वो, हिंदी बोलने वालों को समझ नहीं आएगा। और हिंदी बोलने वाला लाख जतन कर ले, तो भी वो अपनी बात समझा नहीं पाएगा।
खैर.. छोड़ें यह सब..

हाँ! वैसे मैं बताना भूल गई थी..
आपको मेरी बातें समझ नहीं आएंगी..
क्योंकि आपको फ्रेंच नहीं आती और मुझे हिंदी।