भाभी Roopanjali singh parmar द्वारा सामाजिक कहानियां में हिंदी पीडीएफ

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भाभी


आप मेरी शादी कराना चाहती हैं ना, ठीक है तो सुनो.. मैं भाभी से शादी करना चाहता हूँ..

चटाक.. (थप्पड़ की आवाज़ से कमरा गूंज गया)

क्या बक रहा है विवेक! तेरा दिमाग़ तो ख़राब नहीं हो गया। भाभी है वो तेरी, सगी भाभी। तेरे भाई की ब्याहता है वो और तू.... छी.... शर्म आनी चाहिए तुझे..

भाई की ब्याहता.. (विवेक ताली बजाता है).. चलो शुक्र है कि माँ याद आ गया आपको वो भाई की पत्नी हैं..
और क्या कहा आपने शर्म.. हाँ माँ शर्म आई थी मुझे.. बहुत शर्म आई जब भाभी को विधवा कहकर रमा काकी ने ताना मारा..
बहुत शर्म आई जब शगुन के कामों में उन्हें विधवा कह सब दूर कर देते हैं..
और उससे भी ज़्यादा शर्म तब आती है जब मेरी माँ ही भाभी के साथ ऐसा बर्ताव करती हैं जैसे उनका पति नहीं मरा कोई पाप हो गया है उनसे..

विवेक... (माँ ने चिल्लाया)
चिल्लाओ मत माँ.. आपके चिल्लाने से मेरा इरादा नहीं बदलेगा..

मगर विवेक हमारे समाज में विधवा के लिए कुछ नियम, कुछ कायदे होते हैं, और हमें उनको मानना चाहिए। विधवा शगुन के काम नहीं करती, अपशगुन होता है.. (पिता ने कहा)

पापा जब भाभी इस घर की बहु बनकर आई थीं तो आपने उनके सिर पर हाथ रख के कहा था.. बहु नहीं बेटी घर लाया हूँ.. बेटी की तरह नाज़ों से रख रहे थे उनको और भाई के जाते ही आज वही बेटी इतनी अपशगुनी हो गई.. आप लोगों की सोच से मुझे घिन आ रही है......
(कुछ देर की खामोशी के बाद विवेक ने कहा)
मेरा इरादा पक्का है पापा..
ऐसा कहकर वह जाने लगा..

तो ठीक है.. आज से दिव्या को विधवा कहकर कोई नहीं पुकारेगा.. और अगर किसी ने कहा तो मैं उसकी ज़बान खींच लुंगी.. उसके साथ कोई भेदभाव नहीं किया जाएगा.. मगर तू वहीं शादी करेगा जहां मैं कहूंगी..

वाह माँ वाह.. आप तो सौदा करने लगीं.. चलिए तो एक सौदा मैं करता हूँ..
भाभी की दूसरी शादी होगी। किसी अच्छे घर में एक सभ्य लड़के से.. उनका भविष्य सँवारने की कसम खाईए माँ..

तेरे सर की कसम बेटा जैसा तू चाहेगा वैसा ही होगा..
तो ठीक है भाभी की शादी के बाद आप लोग जहाँ कहेंगे मैं वहाँ शादी करूंगा..

एक कोने में खड़ी दिव्या सिसकियां लेकर रो रही थी..... विवेक कुछ कहता उसके पहले अपने कमरे में चली गयी और अंदर से कमरा बंद कर लिया....
विवेक दिव्या से बहुत कुछ कहना चाहता था मगर वो भी चुपचाप अपने कमरे में चला गया..

माँ-पापा वहीं बैठे थे..
रमेश आपने देखा ना विवेक किस तरह बात कर रहा था.. उसने इस तरह मुझसे कभी बात नहीं की.. और भाभी से शादी..

नहीं मधु.. जिसे उसने नज़र उठा कर ठीक से कभी देखा नहीं वो दिव्या से शादी करना तो दूर इसका ख़्याल भी नहीं लाएगा..
बच्चे बड़े हो गए हैं मधु.. विवेक सही कह रहा है जिसे बेटी बनाकर लाए थे। उसका कितना तिरिस्कार किया हमने। और वो पढ़ी-लिखी आज के ज़माने की लड़की सब सह गई। ग़लती हमारी ही है मधु..

आप सही कह रहे हैं। अर्पित के जाने के बाद मैंने जैसे दिव्या को कभी प्यार से देखा ही नहीं.. पहले ये घर दिव्या की हँसी से गूंज उठता था.. मैंने बस दिव्या का ही दिल नहीं दुखाया.. मैंने अपने अर्पित का भी दिल दुखाया है..
उठकर दिव्या के पास गई..

दरवाजे को बजा के आवाज़ दी.. दिव्या.. बेटा दिव्या..
दिव्या ने दरवाजा खोल दिया..
हाँ.. माँ
आ बैठ मेरे पास..
बेटा मुझे माफ़ कर दे मुझसे ग़लती हो गई.. मैंने रीति-रिवाज़ के नाम पर तेरा बहुत दिल दुखाया है..

(पीछे से पापा भी आ गए) मधु के साथ-साथ बेटा मुझे भी माफ़ कर दो.. मैंने भी कोई कसर नहीं छोड़ी। बहुत बुरा बर्ताव किया तुम्हारे साथ.. मैं हाथ जोड़कर.....

नहीं पापा.. मैं आप दोनों से बिल्कुल भी नाराज़ नहीं हूँ। मुझे कोई शिकायत नहीं है.. (दिव्या ने बीच में ही रोक कर कहा)
माँ अगर मैं कुछ माँगू तो दोगी मुझे..
हाँ बेटा आज इतने वक़्त के बाद तो तू कुछ माँग रही है.. मैं ज़रूर दूँगी.. माँग बेटा..

माँ मैं शादी नहीं करना चाहती.. अब मुझसे ये दुबारा नहीं होगा.. मैं आज भी सिर्फ अर्पित से प्यार करती हूँ.. मैं अर्पित को नहीं भूल पाऊंगी माँ.. मैं इसी घर में आपकी बेटी बन के रहना चाहती हूँ.. (रोने लगती है)

मगर बेटा तेरी उम्र ही क्या है.. और हम लोग कब तक तेरा सहारा बने रहेंगे.. एक दिन तो हमें भी जाना है।

नहीं पापा.. हम सब साथ में रहेंगे। आप दोनों को मैं कहीं नहीं जाने दूँगी.. कृपा कर मेरी शादी का विचार मन से निकाल दीजिए।

ठीक है बेटा जैसा तुम चाहो.. अब तुम आराम करो

आँखें पोंछ ऐसा कहकर वो दोनों चले गए।
तब तक विवेक की आवाज़ आई.. भाभी मैं अंदर आ सकता हूँ..
दिव्या ने कुछ नहीं कहा..
विवेक दिव्या के पैरों की तरफ नीचे सिर झुकाए बैठ गया..
भाभी मुझे माफ़ कर दो। मैंने आज आपका बहुत दिल दुखाया है। मगर मैं क्या करता कोई रास्ता ही समझ नहीं आया मुझे। पहले आप कितना ख़ुश रहती थीं। मगर भैया के जाते ही आपके साथ हो रहा दुर्व्यवहार दिनों दिन बढ़ता जा रहा था और आप चुपचाप सब कुछ सहन कर रही थीं।

विवेक की बातें सुन दिव्या खामोश थी..

मैंने आपको हमेशा माँ की नज़र से देखा है और आप ये जानती हैं। मेरी माँ के साथ अन्याय हो ये कैसे हो सकता है.. और फिर अर्पित भैया को भी तो ऊपर जाकर मुँह दिखाना है..

इतनी बड़ी बातें छोटे.. और तुम उन्हें मुँह मत दिखाना.. (दिव्या ने कहा)
क्यों...... (विवेक चोंककर बोला)
अरे अपना बंदर जैसा मुँह दिखा दिया अर्पित को, तो वो डर नहीं जाएंगे.. (दिव्या ने मुस्कुराकर कहा)

हा हा हा.. विवेक भैया मुझे बचपन में बंदर बोलते थे ये आपको कैसे पता.... (हँसने लगता है)

और दोनों रोते हुए ही हंसने लगे..

और दिव्या की हँसी से घर एक बार फिर गूंजने लगा..

(समाप्त)

प्रिय पाठकों..
नमस्कार??
कहानी पूर्णतः काल्पनिक है.?? आपको कहानी कैसी लगी यह आप अपनी बहुमूल्य समीक्षा के द्वारा अवश्य बताएं। आपकी सराहना और सुझावों का इंतज़ार रहेगा।

आपकी
रूपांजली सिंह परमार☺️