वो कौन था Roopanjali singh parmar द्वारा प्रेम कथाएँ में हिंदी पीडीएफ

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वो कौन था

जब मैंने उसे पहली बार देखा था.. white shirt और blue denim में खड़ा एक 6 फ़ीट का लड़का।
आम ही तो था, दिखने में कुछ खास नहीं। इंसान ही तो था, लेकिन.. फिर भी वो मेरे लिए खास होता जा रहा था क्योंकि मेरी नज़र बार-बार उस पर जाकर रुक जाती थी। और मैं ना चाहते हुए भी उसे ही देख रही थी।
दूर खड़ी थी मैं उससे.. काफी दूर, इतनी की केवल उसे देख सकती थी, सुन नहीं।


मैं एकटक उसे निहार ही रही थी, कि तभी उसकी नज़र मुझ पर पड़ी, और मैं अंदर तक सिहर उठी, जैसे उसने मुझे छू लिया हो, ये पहली दफा था जब किसी के मात्र देख भर लेने से हाथ में कस के पकड़ा हुआ बैग गिर गया..


उसके कदम मेरी ओर बढ़े ही थे कि मैं जल्दी से वहां से भाग जाने की धुन में दीवार से जा टकराई और बेहताशा वहां से जाने लगी.. मेरी साँसे मेरे नियंत्रण में नहीं थीं, मेरी धड़कनें भी बढ़ चुकी थीं और मैं बगैर पलटे वहाँ से चली गयी।


मेरे कदम अब घर पर जाकर ही रुके थे। मुझे उसका मुस्कुराना याद आ रहा था, उसका हवा में हाथ हिलाते हुए बातें करना, सब कुछ याद आ रहा था..


आप यकीन नहीं मानेंगे लेकिन मैंने उस कुछ पल में केवल उसे ही देखा था, उसके साथ कौन था ये भी मुझे नहीं पता..


रात गहरी हो चुकी थी, लेकिन अब मुझे नींद नहीं आ रही थी, अचानक से किसी को खो देने का डर लग रहा था। मैं चाहती तो नहीं थी.. लेकिन हाँ मुझे मोहब्बत हो गयी थी।


ये मेरी एकतरफा मोहब्बत थी।


केवल शक़्ल के अलावा मुझे उसके बारे में कुछ भी नहीं पता था..


सुबह हो गयी थी..


मुझे रोज की तरह library जाना था.. ज़ल्दी-ज़ल्दी अपने काम निपटा कर मैं library पहुँची। और ये क्या वो वहां मौजूद था..


हाँ सचमुच वो वहाँ मौजूद था.. कब से था, क्यों आया था नहीं पता.. उसको देखते ही मैंने खुद को नाखुन चुभाया, और पूरे होश में , उसे देखते हुए जड़ की भाँति खड़ी रही..


हम दोनों में फासला बहुत कम था.. वो कांच के gate के दूसरी तरफ था , और मैं बाहर की तरफ.. मैं आज उसे और करीब से देख रही थी.. जैसे मेरी आँखों के सामने मेरी अपनी ज़िंदगी हो..


मैं अंदर आ चुकी थी, उसके पास से गुजरते हुए मैं अपनी बेकाबू होती धड़कनों को काबू में करने की जद्दोजहद में लगी हुई थी..


वो बातों में मशगूल था, और मैं उसमें..


आज फिर इसी यकीन को कायम कर रही थी कि हाँ शायद मुझे उससे मोहब्बत हो गई है..


जब वो सामने आता था तो मैं सिहर उठती थी, यही वजह थी कि मैं उससे दूर रहना चाहती थी.. और शायद यह भी की हम कभी आमने सामने ना आएं..


लेकिन कायनात आपको उस इंसान के सामने भी खड़ा कर ही देती है, जिससे आप दूर भागते हैं..


उसकी shirt के महीन धागों में जैसे मेरे दुपट्टे के धागे उलझ रहे थे.. मेरी नज़र उस पर और केवल उसी पर थी। लेकिन वो इस सब से बेखबर था..


वो अक्सर ही अब मुझे कहीं ना कहीं मिल ही जाता था, और मैं उससे दूर भागने की नाकाम कोशिशें करती थी।


की तभी एक दिन..


अनजाने में हम दोनों टकरा गए, मेरी हालत खराब थी, जिसे वो भांप गया था, उसने मेरे कांपते हुए हाथों पर गौर किया था या मेरी हकलाती हुई ज़ुबान पर, ये तो केवल वही जानता था.. लेकिन आज उसकी मुस्कुराहट मेरे लिए थी.. सिर्फ मेरे लिए।


मैं सोच रही थी कि काश ये किसी romantic movie का कोई scene होता, जिसे में बार-बार देख सकती।


..


एक दिन, मैं अपनी friends के साथ एक restaurant में गयी थी..


मैं कॉल पर थी.. और अपनी टेबल की ओर जा ही रही थी कि तभी मेरे कुर्ते पर मेरे ही हाथ से कॉफ़ी गिर गयी, किसी से टकरा गई थी.. मैं झुंझलाती हुई उसे साफ कर ही रही थी कि तभी किसी ने मेरे कंधे पर हाथ रखा..


मैंने पलट कर देखा.... ये वही था..


मैं थोड़ा पीछे की और हो गयी.. उसने मुझसे इशारों में पूछा कि क्या हुआ मुझे.. मैं खामोश थी..


उसने मदद की पहल करनी चाही, मैंने कुछ नहीं कहा.. बस उसे देख रही थी.. क्योंकि अगर कुछ कहती तो ज़रूर कुछ गड़बड़ ही होती, क्योंकि उसके सामने होने से ही मेरा पूरा दिमाग शून्य हो जाता था।


उसकी आँखों में सवाल थे...... मैं ठीक हूँ.. बस ये कहकर मैं वहाँ से जाने लगी.. मेरी फ्रेंड्स मेरा इंतज़ार करती रहीं..... मेरे पैर उठ नहीं रहे थे, लेकिन मैं पूरी जान लगा कर वहाँ से चली गयी।


आप इसे एक बार फिर मेरा उससे दूर भागना भी कह सकते हैं....


मैं उससे मिलना भी चाहती थी, और दूर भागना भी..

उसका महज़ मेरे करीब से गुजरना ही मेरे दिल को जोरों से धड़का देता था।


अब मेरे ख्वाबों और हर हक़ीक़त में जिक्र उसका ही रहने लगा था, ना चाहते हुए भी वो हर वक़्त मेरी रूह को उसके होने का एहसास करा ही देता था।


मैं कहीं भी जाती थी, कहीं भी रहती थी, मुझे यही लगता कि उसकी नज़रें मुझे ही देख रही हैं.... प्यार इस हद तक परवान चढ़ा की अब मुझे हर वक़्त मुझमें वो महसूस होने लगा..


मेरी मोहब्बत उसके लिए बढ़ती ही जा रही थी।


वो अक्सर ही मुझे कहीं ना कहीं मिल ही जाता था..


उसकी मुस्कुराहट में जाने क्यों मुझे खुद का अधिकार नज़र आने लगा था, ऐंसा लगता जैसे शायद उसे भी मुझसे मोहब्बत है।


मेरी मोहब्बत मैंने कभी उसको जताई नहीं थी....


...


दिन बीतते जा रहे थे, और मैं हर बीते हुए दिन के साथ उसके एक कदम और करीब होती जा रही थी। जितना चाहती उससे दूर रहूँ, उतना ही खुद को उसके करीब पाती थी..
ऐसा लगने लगा था जैंसे दुनिया की हर राह केवल मुझे उसके सामने ही लाकर छोड़ेगी...... मेरी मंजिल वो बनता ही जा रहा था..


..


ऐसे ही एक दिन..


मैं रोज की तरह library जा रही थी .. राह चलते हुए मुझे उसके होने का एहसास होने लगा था.. जैसे बस वो मेरे एकदम करीब ही है..


मैंने पलट कर देखा, हाँ वो दो कदम दूर ही था.. उसके हाथों में गुलाब थे, मैं कुछ समझती उसके पहले ही वो मेरे और करीब आ चुका था..


इतना करीब की मुझे गुलाब की खुशबू से ज़्यादा उसके perfume की खुशबू आ रही थी....


घबराहट में उससे दूर होती हुई मैं पीछे कदम रखने लगी, और अचानक एक गुजरते हुए ट्रक के सामने आ गयी....


और पल भर में सब कुछ तहस-नहस हो चुका था..


मुझे कुछ नहीं हुआ, लेकिन मुझे बचाते हुए वो ट्रक के आगे आ चुका था.. ऐसा लग रहा था काश ये कोई ख़्वाब होता.. मेरी आवाज़ गले में दब चुकी थी, वो मेरी आँखों के सामने खून से लथपथ था.. और उसके करीब कुचले हुए गुलाब के फूल थे....


गिरती पड़ती जब उसके पास पहुंची तो बहते हुए आँसू हिचकियों में बदल गए थे.. उसका सिर अपनी गोद मे रख अपने दुपट्टे से खून रोकने की नकाम कोशिश में लगी थी.. उसकी हालत देख के मैं समझ चुकी थी मेरी ज़िंदगी में अब कुछ नहीं बचा.. फिर भी कोई उम्मीद थी जो बाकी थी..


लेकिन इससे ज़्यादा दर्द था मेरी ज़िंदगी में..


उसने अपने खून से सने हुए हाथों से मेरे आँसुओं को पोंछा और मुस्कुराकर कहा..


मैं तुमसे बहुत प्यार करता हूँ, और जाने के बाद भी तुमसे उतना ही प्यार करूंगा.. जब पहली बार देखा था तब लगा सारी जिंदगी तुम्हारे साथ बिता दूँ.. और देखो ज़िन्दगी तुम्हारे बिना ही बीत गयी..


मैं बहुत कुछ बोलना चाहती थी, लेकिन उसकी आँखें हमेशा के लिए बंद हो चुकी थीं..


मेरी आवाज़, मेरी चीख सब गले में रुक गयी....


मैं चीख-चीख कर कहना चाहती थी.. मैं तुमसे बहुत ज़्यादा प्यार करती हूँ, बताना चाहती थी कि हाँ मुझे भी तुमसे उतनी ही मोहब्बत है।


लेकिन सब खत्म हो चुका था.... लोग तमाशा देखते हुए निकल रहे थे, और मैं बेसुध हो वहाँ बैठी थी....


.......?.........


नमस्ते पाठकों..?


कृप्या समीक्षा के द्वारा हमारी कहानी पर आपके विचार और सुझाव ज़रूर दें।


शुक्रिया☺️