मायका और ससुराल Roopanjali singh parmar द्वारा प्रेरक कथा में हिंदी पीडीएफ

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मायका और ससुराल

रीना की शादी को चार साल हो गए थे, उसका एक बेटा भी था अभय, जो एक साल का था। पति हर्ष और सास करुणा उसे बहुत प्यार करते थे, और ससुर महेंद्र सिंह भी कभी उसके साथ ससुर की तरह पेश नहीं आये थे।
रीना की एक नन्द भी थी 'दिव्या'। उनके बीच सहेलियों जैसा रिश्ता था। दिव्या यूँ तो रीना से बड़ी थी मगर उस पर ना हुकुम चलाती और ना कभी किसी बात पर रोक-टोक करती। दिव्या की शादी उसके भाई हर्ष की शादी के दो साल पहले ही हुई थी।
परिवार में हँसी ख़ुशी का माहौल बना रहता था।

एक दिन सास करुणा, पड़ोसन सरिता के साथ अपने बरामदे में बैठी चाय पी रही थी.. की तभी रीना ने अपनी सास करुणा से पूछा.. मम्मी जी, मैं कुछ दिन के लिए मायके जाना चाहती हूँ, अभय भी नाना - नानी से मिल लेगा और माँ की तबियत भी कुछ ठीक नहीं है।
सास करुणा ने रीना से कहा.. बेटा अपने माता पिता से मिलने के लिए किसी वज़ह की ज़रूरत नहीं है। और पूछती क्यों हो, केवल बताया करो। अब क्या अपने माता पिता से मिलने के लिए भी पूछना पड़ेगा।
जाओ तुम, जब माँ पहले से ठीक महसूस करें, तब आ जाना।
रीना इतना सुनकर अपने कमरे में आ गई। उसे बहुत खुशी हो रही थी की वो माँ- पापा से मिलेगी।

बाहर पड़ोसन सरिता आश्चर्यचकित थी.. उसने करुणा जी से कहा, अरे भाभी इन बहुओं को इतनी छूट देना ठीक नहीं है। मुझे देखो लगाम कस कर रखती हूँ, मज़ाल है जो मुझसे पूछे बिना.. मेरी बहु मायके फ़ोन पर बात भी कर ले। वो फ़ोन भी करती है तो मुझसे पूछकर।
और वैसे भी सोशल साइट्स में मैंने कहीं पढ़ा था कि जिस घर की बहु अपने मायके ज़्यादा बात करती हो, वो घर टूट जाता है। लड़की की माँ उसे भड़काती है। मायके की ससुराल में ज़्यादा दखल नहीं होना चाहिए....

करुणा जी सब चुपचाप सुनती रहीं और अंत में मुस्कुरा दी।
उन्होंने कहा.. भाभी बात बस नजरिए की है अगर बेटी कभी बिना पूछे कहीं चली जाए तो हम बस फिक्र करते हैं, लेकिन बहु चली जाए तो तानाशाही करते हैं कि हिम्मत कैसे हुई इस तरह बिना पूछे जाने की। अगर माता-पिता को बेटी कभी ज़्यादा मीठा खाने से डाँट देती है तो लगता है फिक्र करती है। यही बहु करती है तो लगता है कुछ भी नहीं खाने देती, भूखा मारेगी।
और बहू को भी अगर माता-पिता कुछ कह दें, रोक टोक करें तो उसे फ़र्क नहीं पड़ता। लेकिन यही काम सास-ससुर करें तो उसे बुरा लगता है। उसे लगता है उसकी आज़ादी को छीना जा रहा है।

बात केवल नज़रिए की है भाभी..

अगर आप चार-पाँच दिन कहीं नहीं जाओ घर पर रहो तो कोई दिक्कत नहीं है। लेकिन अगर कोई कह दे कि घर से निकलना मत तो हमें लगता है कि हमें बेड़ियों में जकड़ा जा रहा है, और फिर हम बाहर जाना चाहेंगे। घर अचानक जेल बन जायेगा।

बहू के हर काम से अपने घर की इज्जत को जोड़ देते हैं, उसका उठना, बैठना, खाना, पीना, सब पर हमारी नज़र होती है। हमारी सोच बन चुकी है कि बहु बेकार होती है। और बहू की भी सोच बन चुकी है कि सास बस सास होती है। हम हर काम को पूर्वानुमान के तहत करते जा रहे हैं।
और कुछ ये काम ये सास-ससुर, माता-पिता पर बने भावुक मैसेज करते हैं। जिन्हें पढ़ने के बाद हम वो भी सोचने लगते हैं, जिनका हमारी ज़िंदगी में या हमारे परिवार से कुछ लेना देना नहीं है। जैसे आपने ही धारणा बना ली कि मायके वाले घर तोड़ते हैं, लेकिन आप भूल गयी कि आप भी मायके वाली हो।

कोई माँ अपनी बेटी का घर नहीं तोड़ती। तोड़ना होता तो घर बसाती क्यों। चलो तुम बताओ क्या तुम अपनी बेटी को दिन में एक बार फ़ोन नहीं करती। क्या भड़काने के लिए करती हो, नहीं ना..!! तुम्हें बस उसकी खैर-खबर लेनी होती है।

भाभी, जब हम खुद अपनी बेटी से रोज बात करना चाहते हैं, तो बहु को किस हक़ से रोकें। और सोचिए अगर यही बातें आपकी या मेरी बेटी के ससुराल वाले सोचें। तो हम बात करने को और मिलने को तरस जाएंगे।
माँ अपने बच्चे का घर कभी नहीं तोड़ती। वही तो है जो हर रिश्ते की नींव होती है। और ये नींव कच्ची नहीं मजबूत है। बहु को बेटी की तरह प्यार करो, तभी वो हमें माँ का सम्मान देगी। और बहुओं को भी अपने सास ससुर को माँ बाप का स्थान देना चाहिए। लेकिन ये तभी संभव है जब दोनों तरफ से पहल हो। और अधिक उम्मीदें ना हों। हमें इंसान से इंसानों वाली उम्मीदें लगानी चाहिए देवताओं वाली नहीं।
पड़ोसन सरिता जी चुप थी.. तभी करुणा जी के मोबाइल पर दिव्या का कॉल आ गया.. और वो मुस्कुराने लगीं।

पड़ोसन सरिता जी भी बेसब्री से जाने लगी, आज उन्हें अपनी बहू पर बहुत प्यार आ रहा था..

(इस कहानी के माध्यम से हमने जिस बात को आप लोगों तक पहुंचाने का प्रयास किया है, आशा है ही वो बात आप सभी तक पहुंच गई होगी। और शायद सभी का नज़रिया भी बदल जायेगा....)