हंस चुगेगा दाना दुनका कौवा मोती खायेगा S Sinha द्वारा लघुकथा में हिंदी पीडीएफ

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हंस चुगेगा दाना दुनका कौवा मोती खायेगा

कहानी - हंस चुगेगा दाना दुनका कौवा मोती खायेगा

मैं शहर के एक अपार्टमेंट कॉम्प्लेक्स में रहता हूँ . दूसरे फ्लोर पर मेरा फ्लैट है , उस फ्लोर पर दो फ्लैट और भी हैं यानि कि कुल मिला कर तीन फ्लैट इस फ्लोर पर हैं . दो फ्लैट दो बैडरूम वाले हैं जिसमें एक मेरा है , दूसरा दो बैडरूम वाला फ्लैट एक रिटायर्ड आयकर अधिकारी सक्सेना जी का है .तीसरा फ्लैट जो तीन बैडरूम का है और एरिया में काफी बड़ा है एक सरकारी प्रतिष्ठान के कर्मचारी कल्याण अधिकारी रजत बाबू का है . कल्याण विभाग के अतिरिक्त प्रशासन और अतिथि सत्कार विभाग भी इन्हीं के अंडर है . मेरा फ्लैट तो मेरे स्वर्गवासी पिता ने बुक किया था . सक्सेना साहब ने भी इसे काफी पहले बुक किया था और किराये पर दे रखा था . बडा वाला फ्लैट रजत बाबू का सही माने में बहुत सुसज्जित और आकर्षक है और रजत की भाँति चमकता रहता है .इसे तो रजत बाबू ने भूमि पूजन से पहले प्री लॉंच ऑफर में ही बुक कर रखा था .


कल्याण अधिकारी का क्या कहना , पहले अपना कल्याण फिर कर्मचारियों का . इनकी चाँदी ही चाँदी है या इससे भी बहुत बढ़ चढ़ कर . पहले मैं अपनी बात कर लूँ . एक कारखाने में इंजीनियर हूँ .अपनी शिफ्ट ड्यूटी करता हूँ .आग , कोयले और धुल धक्कड़ से थका मंदा आता हूँ . फिर कुछ समय घर के काम , कुछ समय दो छोटे बच्चों की पढ़ाई पर जाता है . बाकी समय मिला तो टी.वी.,कभी कंपनी के क्लब और कभी मित्रों के साथ समय बिताता हूँ . कुल मिलकर ज़िन्दगी काफी ठीक ठाक चल रही है, हाँ ये बात और है कि सीमित आय में ही बजट बना के खर्च करता पड़ता है .अक्सर महीने के आखिरी सप्ताह में बहुत तंगी रहती है .फिर भी पत्नी घर का खर्च इस हिसाब से चलाती है कि कभी न उधार लेने की नौबत आई न ही किसी के सामने हाथ फ़ैलाने की .


रजत बाबू की चर्चा बाद में करते हैं क्योंकि वे एक विशेष व्यक्ति हैं .तब तक सक्सेना साहब की चर्चा कर लेते हैं . सक्सेना साहब को तीन बच्चे हैं , सबसे बड़ी लड़की , उसके बाद एक लड़का और फिर सबसे छोटी वाली बेटी है . यूँ तो सक्सेना साहब ताउम्र इनकम टैक्स में अधिकारी रहे .प्रारम्भ के लगभग पंद्रह वर्ष कलकत्ता में फिर उसके बाद मुंबई में और वहीँ से रिटायर हुए थे .रिटायरमेंट से पहले उन्होंने फ्लैट को खाली करा के पेंटिंग वगैरह करा लिया था यहाँ आने के पहले . वे बहुत ही खुशमिजाज , मिलनसार और अत्यंत सरल स्वभाव वाले व्यक्ति हैं .उन्हें शास्त्रीय संगीत से भी प्रेम था पर इस क्षेत्र में यहाँ उनका साथ देनेवाला कोई नहीं था .उनकी पत्नी भी बहुत मृदुल स्वाभाव वाली कुशल गृहणी हैं . दोनों पति पत्नी ने सेकंड फ्लोर को एकजुट कर रखा है .न उन्हें बाकी लोगों से कोई शिकायत थी और न हमें उनसे . सप्ताह में एक बार छुट्टी वाले दिन हम तीनों परिवार जरूर एक साथ बैठ कर कभी चाय पीते तो कभी भोजन करते हैं . सक्सेना साहब उम्र में तो बाकी लोगों से बड़े हैं पर उनका हंसमुख स्वभाव उम्र के फासले को भूलने पर मजबूर कर देता है . किसी के सुख दुःख में हमेशा खड़े रहते हैं .


सक्ससेना साहब ने बड़ी बेटी का विवाह अपनी नौकरी में रहते ही कर दिया था . इस बेटी की शादी भी बहुत मुश्किल से एक सरकारी कारखाने में सुपरवाइजर से किया था . चाहते थे कि अफसर से शादी करें पर उतना दहेज़ नहीं दे सके थे . दूसरी बेटी की शादी अभी तक नहीं कर सके थे और वह अभी साथ में ही रह रही है . मैंने एक बार उनसे पूछा भी था " आप तो सारी उम्र इनकम टैक्स में अधिकारी रहे थे .बल्कि आपसे ही सुना था कि आप अपीलेट ट्रिब्यूनल में थे और उस जमाने के कुछ फिल्म स्टार के केस भी आपके पास था .आप चाहते तो बड़े से बंगले में रह सकते थे .दोनों बेटियों की शादी धूम धाम से कर सकते थे ."


उन्होंने कहा था कि उनकी अंतरात्मा को गलत काम स्वीकार नहीं था . वे जहाँ कहीं भी बेटी की शादी के लिए जाते सब उनसे यही अपेक्षा रखते थे कि इनकम टैक्स का अफसर तो काफी दहेज़ देगा , पर जब वे दहेज़ देने में अपनी असमर्थता व्यक्त करते तो कोई विश्वास ही नहीं करता .जो समझने का नाटक करता वो कोई न कोई बहाना बना कर टाल देता था . वे लगभग थक चुके थे .एक जगह जब दहेज़ की माँग करने पर लाचारी प्रकट की तो लड़के के पिता ने कहा था " क्या सक्सेना साहब .इतनी कंजूसी क्यों कर रहे हैं .सारी उम्र इनकम टैक्स में काफी कमाया होगा .थोड़ा बेटी पर भी खर्च कीजिये ."


" मैंने ताउम्र एक पैसा भी गलत तरीके से नहीं कमाया " सक्सेना साहब ने कहा था .


" तो घूस न लेकर आपने कौन सा बड़ा काम किया है ?" जबाब सुनने को मिला


इस बार हँसते हुए कहा " बड़ा काम तो सर आप कर रहें हैं .बेटे की बोली लगा रहे हैं . " और बिना कुछ आगे बोले उठ कर चल दिए . फिर बेटी की शादी सुपरवाइजर से कर दी . अच्छी बात यह है कि उनके परिवार में किसी को उनकी ईमानदारी से कभी शिकायत न थी .उनका बेटा मुंबई में किसी कारखाने में काम करता है .


.आजकल सक्सेना साहब अपनी छोटी बेटी की शादी के लिए काफी भागदौड़ कर रहे हैं . बेटी पढ़ी लिखी है , सुन्दर है और टीचर भी है .फिर भी बात दहेज़ पर आ कर रुक जाती है .पर वो निराश नहीं है ,कहते हैं कि इसी दुनिया में ईमानदार लोग भी हैं , शादी तो आज न सही कल परसों तय होकर रहेगी .


अब जरा इस फ्लोर के तीसरे निवासी कल्याण अधिकारी रजत बाबू से मिलते हैं . ऐसा नहीं था कि वे जब पैदा हुए तो मुँह में रजत का चम्मच लिए थे . पर कर्मचारियों का कल्याण करते करते उनको ये चम्मच या यूँ कहें बड़ा सा चमचा मिल गया था .पहले जरा उनके परिवार से मिल लेते हैं . उनकी पत्नी , उनके चार बच्चे हैं . पहले तो तीन बेटियाँ हुईं और चौथा सबसे छोटा बेटा ,बहुत प्यारा और दुलारा .उसके जन्म दिन पर अपार्टमेंट में शानदार पार्टी होती है .उनके यहाँ जब तीनों परिवार की बैठकी होती है तो क्या कहने . उनके फ्रिज से एक से एक स्वादिष्ट मिठाइयाँ और नाना प्रकार के कोल्ड ड्रिंक निकलते हैं . कुछ बाहर से भी स्नैक्स , हल्दीराम का मिक्सचर व अन्य खाद्य सामग्रियों का अम्बार लग जाता है .और भला क्यों न हो , कल्याण का फण्ड उनके पास है , कंपनी के गेस्ट हाउस के इंचार्ज हैं .ऑफिसियल गेस्ट्स के साथ हमारा भी कल्याण हो जाता है .रजत परिवार भी अपार्टमेंट में सब से मिलजुल कर रहता है .हमलोग को उनसे कोई शिकायत नहीं है .


इधर सक्सेना साहब की भागदौड़ रंग लाई और उनकी बिटिया की शादी तय हो गयी यहीं, स्थानीय बैंक के क्लर्क से .एक महीने के अंदर शादी भी संपन्न हो गयी . शादी साधारण तरीके से कम खर्च में हुई , ज्यादा ताम झाम या दिखावा नहीं था फिर भी बरातियों और शरातियों दोनों का स्वागत सत्कार अच्छे से किया सक्सेना साहब ने . सक्सेना दंपत्ति बहुत खुश थे बेटी विदा भी हुई तो लोकल इसी शहर में .


सक्सेना साहब अब बिलकुल फ्री थे उनके जिम्मे अब कोई काम न रहा गप्पें मारने के सिवा .मुझे तो शिफ्ट ड्यूटी करनी होती है , इसलिए घर पर रहने का कोई खास फिक्स्ड समय नहीं था .पर रजत बाबू दोपहर तक घर से ही सबका कल्याण करते थे .आराम से लंच कर के ऑफिस जाते थे .कभी कभी दोपहर बाद भी घर से दो चार जगह फोन कर ऑफिस में अपनी मौजूदगी दर्ज़ करा देते थे .दफ़्तर में क्लर्क और चमचों को बोल रखा था कि कोई हाकिम खोजे तो बोल देना कि फलां फील्ड में हैं और उनको भी सूचित कर दे ताकि ऑफिसियल कार से जल्दी से दफ़्तर जा सकें .वैसे कार तो नाम का ऑफिसियल था सारा दिन बीबी बच्चों की सेवा में रहता है .


सक्सेना दंपत्ति का रजत बाबू के यहाँ आना जाना बढ़ गया था तो गप्प का दायरा भी काफी बढ़ गया . रजत बाबू की पत्नी अच्छे से स्वागत करतीं थीं . वैसे तो रजत दंपत्ति अच्छे स्वाभाव के हैं . एक नंबरी कमाई यानि वेतन अच्छा खासा है और ऊपर से दो नंबरी कमाई भी काफी अच्छी होगी ही .दोनों कमाई पर हक़ मैडम का ही है , एक एक रुपये का हिसाब रजत बाबू को देना पड़ता है .दफ़्तर के चपरासी और ड्राइवर की मालकिन भी वहीं हैं .उनकी कोशिश रहती है कि वेतन घर खर्च में न लगे अगर गलती से कभी ऐसा हुआ तो आप रजत बाबू का चेहरा देख कर ही पहचान लेंगे , उस दिन उनका चेहरा रजत से मुरझा कर ताम्र वर्ण का हो जाता था .उनकी पत्नी अक्सर तनिष्क से हीरा खरीदतीं क्योंकि सोना से मन भर गया था .और हर बड़ी खरीददारी के बाद पार्टी देतीं हैं . पिछले चार सालों से छुट्टियों में सपरिवार अमेरिका यूरोप का भ्रमण चुकीं हैं . एक बेटी डोनेशन से इंजीनियर बन कर आई .टी . कंपनी में है .बच्चों का जन्म दिन हो या अपनी शादी की एनिवर्सरी , उनकी पार्टी का इंतज़ार हमलोग बेसब्री से करते हैं . अभी हाल में ही अपनी दूसरी बेटी का दाखिला भारी भरकम डोनेशन दे कर मेडिकल कॉलेज में कराया है .इस ख़ुशी में क्या शानदार पार्टी दिया था पूरे अपार्टमेंट वालों को ! सभी यही कहते कि इतना खर्च तो इनकम टैक्स वाले सक्सेना साहब ने बेटी की शादी में भी नहीं किया होगा . सक्सेना साहब के कानों में भी यह बात गयी पर वो उसे पचा गए थे .


एक दिन मैं रजत बाबू के यहाँ गया . ड्राइंग रूम में मेरी बगल में उनका बेटा बैठ कर टी.वी . पर कार्टून देख रहा था . मैंने गौर किया तो देखा कि वह जेट एयरलाइन्स का ऊनी शाल ओढ़े बैठा था .मैंने कहा भी कि यह तो एयरलाइन का है , तो मैडम ने कहा कि हाँ सभी यात्री तो शाल लेकर ही उतरते हैं .मैंने भी ऑफिसियल कामों के लिये हवाई यात्रा की है पर किसी को ऐसा करते नहीं देखा है . खैर मैंने आगे कुछ नहीं कहा और चाय पीने लगा ,तभी उनके बेटे ने झटके में शाल उतारी तो मेरी प्याली से चाय छलक कर मेरे कपड़ों पर आ गिरी .मैडम ने दौड़ कर तौलिया लाकर मुझे दिया .मैंने तौलिया लिया तो उसके किनारों पर लिखा था " भारतीय रेल ". मैंने चुपचाप चाय पोछ कर तौलिया उन्हें लौटा दिया था . पर मन ही मन सोचने पर मजबूर हो गया कि भगवान ने इन्हेँ इतना दिया फिर भी इतनी गिरी हरकत !


मैंने घर आकर पत्नी से यह बात बताई . बगल में कामवाली पोछा लगा रही थी उसने भी सुना तो कहा " अभी तो कल ही उनके यहाँ कपड़े धो रही थी तो उनमें एक रेलवे का चादर भी था ." दरअसल हम दोनों के घर में एक ही लड़की है जो झाडू , कपड़ा और बर्तन का काम करती है . और ये लड़की पढ़ाई भी कर रही है , नौंवीं कक्षा में है . इतना ही नहीं उस लड़की ने बताया कि रजत बाबू का ड्राइवर बता रहा था कि दफ़्तर से गाड़ी के लिए तेल का कोटा है उसका एक हिस्सा बेच देते हैं . और उनके कल्याणमंडप की हुंडी में बिना चढ़ावा के कोई काम मसलन - लोन , पोस्टिंग नहीं होता .इसके अतिरिक्त पूरे वर्ष में विभिन्न उत्सवों व समारोहों जैसे गणतंत्र दिवस , बाल दिवस वगैरह , राष्ट्रीय नेताओं की जयंती , वार्षिक खेल कूद आयोजन , या कॉर्पोरेट सामाजिक दायित्व के अंतर्गत दी जाने वाली राशि में भी इनका हिस्सा बनता है. इतना ही नहीं गेस्ट हाउस से कुछ राशन पानी भी उसी कार से घर भी आता है .


यह सब सुन कर मेरे साथ साथ श्रीमती जी ने भी अपना सर पीट लिया .हमने तो बुजुर्गों से सुना था कि अच्छी नीयत में बरक्कत है और पाप की कमाई ज्यादा दिन नहीं काम आती .पर ये सब बेकार की आउटडेटेड बातें हैं . तभी याद आया बिहार का मशहूर चारा घोटाला .

अभी हम पति पत्नी की बात चल ही रही थी कि रजत बाबू की पत्नी मेरे घर आयीं यह पूछने कि आज कामवाली अभी आई है कि नहीं . यह कामवाली पहले मेरे घर ही आती है और आज देर से आई थी और इस समय तक उसे उनके यहाँ होना चाहिए था .उधर उनके फ्लैट का दरवाजा खुला था और उनके टी.वी. से ही गाने की आवाज आ रही थी -


" राम चन्द्र कह गए सिया से ऐसा कलयुग आएगा ,

हंस चुनेगा दाना तिनका , कौवा मोती खायेगा ...."


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*यह कहानी पूर्णतः काल्पनिक है और भूत या वर्तमान से किसी पात्र का कोई सम्बन्ध नहीं है .