लोक डाउन के साइड इफेक्ट्स paresh barai द्वारा हास्य कथाएं में हिंदी पीडीएफ

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लोक डाउन के साइड इफेक्ट्स

समीर : ए मीरा, चाय ला... अदरक डाल के लाना...

मीरा : चाय नहीं बनेगी... भूल जाओ |

समीर : क्यूँ ? चीनी, पत्ती और दूध की थैली तो है !

पप्पू : छन्नी... टूट गई है | अब चाय हमारे बेटे पप्पू के कच्छे में छान के दूँ क्या ?

दादी : करम जली वोह तेरा पति है थोड़ी इज्ज़त दे कर क्यूँ नहीं बतियाती ?

मीरा : इसे पैदा करना ज़रूरी था ? अगर एक दिन सैयम से काम ले लेती तो क्या जाता ? कौन सी भारत की आबादी कम हो जाती |

समीर : अम्मा रहने दो, मेरे करम में डायन लिखी थी | यह नहीं सुधरेगी |

मीरा : बेटा तेरे जैसे राक्षश को ना, यह डायन ही संभाल पाएगी | अब बिस्तर से निचे मरो तो उसे साफ़ करूँ |

समीर : कल रात को ही तो साफ़ किया था ? रहने दो !

मीरा : एक रात में धुल, मिटटी, छिक, “पाद हवाई” और न जाने क्या का गंदगी जमा होती है | हटो अब...

दादी : हट जा बेटा... वरना यह कलमुही तुझे भी झाड देगी |

मीरा : अब कहाँ चले, ढाई ढाई किलो के कुल्हे मटकाते ? पप्पू को जगाओ... और नहला दो उसे !

समीर : बाहर जा रहा हूँ ! तुम उठाओ पप्पू को |

मीरा : बाहर कहाँ मुह मारने जाओगे ? खाखी वर्दी वाले डंडे घुसेड देंगे | यहीं मरो घर में |

समीर : ए पप्पूडा... दिकरा जाग, देख तेरी माँ नें मसाला ढोसा बनाया, उठ जा...

पप्पू : सोने दो ना पापा... जूठ बोलोगे तो मोदी 1 महिना और लोक डाउन बढ़ा देगा | जो माँ इडली ना बनाए वह मसाला ढोसा क्या बनेगी |

मीरा : यह भी बोला... छोटा रावण रुक तुझे झाडू से पीटती हूँ |

समीर : अरे मीरा रहने दे बच्चा है...

मीरा : तलवार मयान से निकल चुकी है... अब झाडू हाथ में लिया है तो कोई तो पिटेगा...

समीर : ठीक है मेरी पीठ पर झाडू चला दे... बस

दादी : खबरदार... मेरे लाल को झाडू लगाया तो तेरी ज़बान खिंच कर गले में लपेट दूंगी |

मीरा : अपनी मुलायम हड्डीयों पर रहम खाओ... कहीं गिर पड़ गई तो लोक डाउन में डॉक्टर मिलना भी मुश्किल होगा |

समीर : माँ तुम और पापा ही इसे देखने गए थे ना ? इसमें क्या देखा जो मेरे लिए इसे चुना ? मना कर देते |

मीरा : भिखारी के कटोरे में चवन्नी आ जाए वही बड़ी बात होती है | तुझे तो 500 के कड़कते नोट जैसी दुल्हन मिली है... शुक्र मना... “पकोड़े”

दादी : मुझे क्या पता था... की सीता के रूप वाली करम से शूर्पनखा निकलेगी | अच्छे नैन नक्श और गोरा मुखड़ा देख कर चुना था | “लग गया चुना” | क्या करें !

कविता आंटी : अरे ओ मीरा... चाय पत्ती है क्या ?

मीरा : आ गई हिडिम्बा, इसे कोई दूध या सब्जी वाला भगा कर, ले क्यूँ नहीं जाता !

कविता आंटी : मीरा चाय पत्ती है क्या ? लोक डाउन खुलते ही खरीद कर वापिस दे दूंगी |

मीरा : है ना... चाय पत्ती, साथ में निकम्मा आलसी पति, एक झाहिल सांस और उपद्रवी बच्चा भी है | सब ले जाओ.. में गिरनार तपस्या करने चली जाती हूँ |

दादी : ए कविता... रसोई से लेले... यह चुड़ैल क्या जाने सेवाभाव का धर्म, तूं लेले... वैसे एक बात बता... मांग मांग कर खाने पिने में लाज ना आवे तन्ने ?

कविता आंटी : दादी आई लव यु... में ले लेती हूँ |

दादी : बड़ी ढीढ औरत है... बेयज़ती भी समझ नहीं आती इसे |

पप्पू : पापा छी... छी... जाना है |

समीर : तो में क्या करूँ ? कमोर्ड बन जाऊ क्या ? उधर जा... संडास में |

मीरा : अबे ओ लोक डाउन के घरेलु राक्षश... उसके साथ में जा.. वोह बच्चा है... अकेला जाने में डरता है |

समीर : मैं नहीं जाता | बास आती है |

मीरा : ठीक है तो... बरामदे में पड़े कच्छे और मेरा घाघरा पेटीकोट धो के दो |

समीर : मैं वह भी नहीं करूँगा |

मीरा : कल रात के बरतन धो के दो.... दादी की बत्तीसी में मंजन कर के दो... नहाने का बाथरूम साफ़ करो या फिर चावल में से कंकड़ चुन कर दो |

समीर : यह सब क्या मज़ाक है ?

मीरा : मज़ाक तो तुम पतिओ नें बना रखा है | अब कभी बोलना मत की पूरा दिन तुम औरतें घर में बैठ कर करती क्या हो |

दूध वाला : मालकिन दूध लेलो...

मीरा : रख दो उधर.. में ले लुंगी...

दूध वाला : अरे बिल्ला पी जाएगा... पहले ले लो |

मीरा : पी जाने दे... तूं क्यूँ देश का प्रधान मंत्री बन कर अपना खून जला रहा है बुरी शकल वाले गंझे... मुझे पता है... तुझे मेरा मुखड़ा देखे बिना चैन नहीं आता... अब रख दूध और निकल वरना तेरी तोंद में कडछी और दुर्गम स्थान में बेलन प्रत्यार्पण कर दूंगी |

दूध वाला : भागो... भागो.. लगता है “हिरोइन” आज गुस्से में है |

सब्जी वाला : सब्जी लेलो... आओ सब्जी लेलो |

मीरा : अबे ए.... मिल्खा सिंह की छठी औलाद... हमारी गली में तुझे रुकने को नहीं होता क्या ? ट्रेन प्लेन बस सब कुछ तो बंद है | फिर काहे की घाई है तुझे ?

सब्जी वाला : अरे पुलिस वाले 2 घंटा ही धंधा करने देते हैं | फिर पकड लिया तो पीछे लाल बंदरी पहाड़ बना देते हैं |

मीरा : ये घांस जैसे बाल ठीक करो, पैजामा ऊँचा करो और निचे जा कर सब्ज़ी ले आओ |

समीर : अरे... पप्पू को भेजो ना... या फिर अम्मा को कहो... |

मीरा : पप्पू.... अभी हल्का हो रहा है, अम्मा (दादी) को सब्ज़ी बिनना नहीं आता तुम जाओ | सब्जी वाला तुम्हारा रेप नहीं करेगा... जाओ ले आओ |

दादी : जूठ मत बोल डायन... तूं ही महंगी सब्जी लाती है |

समीर : अब जगडा मत करो, में जाता हूँ | लाओ झोला |

पप्पू : मम्मी, छि हो गया | अब भुख लगी है | खाना दो |

मीरा : शाबाशा बेटा... कोठी खाली हो गई, अब भर लेते हाँ | यही तो काम है हमारा नहीं ! बकासुर के बच्चे ब्रश कौन करेगा, तेरा 5 साल पहले टपका हुआ दादा ?

दादी : ए गुस्ताख औरत... मेरे पति के खिलाफ एक शब्द नहीं... वोह तो देव मानुष थे !

मीरा : तंबोरा देव मानुष... कामवाली, भंगारवाली, झाडूवाली, भिखारन और मंदिर पर जा कर बहुओं की बुराई करने वाली हर एक औरत पर उनकी दिव्यदृष्टि रहती थी | सिवाय आप को छोड़ कर |

समीर : अरे मीरा वोह तो चला गया |

मीरा : कौन चला गया ?

समीर : “सलमान खान” | अरे सब्जी वाला और कौन !

मीरा : तो जा कर उसे चौराहे पर पकड़ो ना ? यहाँ क्या मेरी चुम्मी लेने वापिस आये हो क्या ? एक काम ठीक से नहीं होता...

समीर : चौराहे पर पुलिस है | मारेंगे मुझे !

मीरा : ठीक है, पड़ो बिस्तर पर... साफ़ कर दिया है | टीवी फूंको... नाश्ता फूंको... और लोक डाउन इंजॉय करो |

समीर : प्यारी बीवी... सात जनम साथ निभाना...

मीरा : बेटा 7 जनम तो पक्के हैं लेकिन... अगले 6 जनम में पति में बनूँगी |

पप्पू : मम्मी ब्रश कर लिया | अब खाना दो...

मीरा : नाश्ता पक रहा है बाबु | तू थोड़ी देर अपने बाप और दानव दादी को पका...

समीर : ए मीरा,,, चाय नाश्ते के साथ एक गिलास लस्सी पिए तो कैसा रहेगा... दहीं घर पर है ना ?

मीरा : लस्सी चाटनी है ! रुक तेरी.... तो में.....

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“लोक डाउन में घर पर रहें, सुरक्षित रहें” | “धन्यवाद”