बॉलीवुड लीजेंड्स - देविका रानी S Sinha द्वारा जीवनी में हिंदी पीडीएफ

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बॉलीवुड लीजेंड्स - देविका रानी

आलेख - बॉलीवुड लीजेंड्स

Part - 3


देविका रानी

जन्म - 30 मार्च 1908 , वाल्टेयर , मद्रास रेजीडेंसी , ब्रिटिश इंडिया


मृत्यु - 9 मार्च 1994 , बंगलुरु


जन्म नाम - देविका रानी चौधरी


फ़िल्मी नाम - देविका रानी


आरम्भिक जीवनी - देविका रानी का जन्म बंगाल के धनी परिवार में हुआ था . वे रवींद्र नाथ टैगोर की परपोती थीं . 1920 में स्कूलिंग के बाद नाटक और संगीत पढ़ने के लिए वे रॉयल अकेडमी ऑफ़ ड्रामेटिक आर्ट , इंग्लैंड गयीं . वहीँ एक फिल्म के निर्माण के दौरान हिमांशु राय से उनकी मुलाक़ात हुई . हिमांशु एक भारतीय थे जो वकालत पढ़ने इंग्लैंड गए थे पर बाद में फिल्म उद्योग में आये . 1929 में दोनों का विवाह हुआ . कुछ दिनों बाद जर्मनी के एक विख्यात स्टूडियो से फिल्म “ ए थो ऑफ़ डाइस “ के निर्माण के लिए हिमांशु को निमंत्रण मिलने पर देविका पति के साथ वहां गयीं . उन्होंने भी पति के साथ फिल्म जगत में प्रवेश किया हालांकि इस फिल्म में उनकी भूमिका कॉस्ट्यूम डिज़ाइन और आर्ट डायरेक्शन की थी .


फ़िल्मी सफर - उन दिनों भारत में बोलती फ़िल्में बनने लगी थीं . हिमांशु अब अपने देश में फिल्म बनाना चाहते थे . देविका पति के साथ भारत आयीं और फिल्म “ कर्मा “ में उन्होंने अपनी एक्टिंग की शुरुआत उनकी नायिका बन कर की . कर्मा भारत में बनी पहली अंग्रेजी फिल्म थी . इस फिल्म में देविका ने एक अंग्रेजी गाना गाया था जो किसी भारतीय द्वारा गाये जाने वाला पहला इंग्लिश गाना था . इस फिल्म में भारतीय सिनेमा का पहला किसिंग सीन भी था जो सबसे ज्यादा लम्बा सीन भी रहा है - 4 मिनट का . इस फिल्म को इंग्लैंड और यूरोप में सफलता मिली थी . इस फिल्म का हिंदी संस्करण “ नागन की रागिनी “ में भी वैसा ही किसिंग सीन था . यह फिल्म भारत में सफल नहीं हुई पर भारत और इंग्लैंड दोनों देशों में उनकी सुंदरता की काफी चर्चा हुई . उन्हें फर्स्ट लेडी ऑफ़ इंडियन सिनेमा भी कहा जाता है .


बॉम्बे टॉकीज - 1934 में हिमांशु ने जर्मन तकनीक और मशीनों की मदद से तत्कालीन सर्वश्रेष्ठ भारतीय फिल्म स्टूडियो की स्थापना की . बॉम्बे टॉकीज की पहली फिल्म “जवानी की हवा “ 1935 में बनी जिसमें देविका रानी नायिका थीं और नजल उल हसन नायक . बॉम्बे टॉकीज ने अशोक कुमार , दिलीप कुमार , राज कपूर , लीला चिटनीस , मधुबाला आदि महान कलाकारों को लांच किया . अछूत कन्या , मेला , शहीद , किस्मत आदि अपने ज़माने की मशहूर फिल्मों का निर्माण यहीं हुआ था .


नजल के साथ उनकी दूसरी फिल्म “ जीवन नैया “ बन रही थी . कहा जाता है कि फिल्म निर्माण के बीच में ही नजल से उनकी नजदीकियां बढ़ीं और दोनों फिल्म को अधूरा छोड़ कर भाग गए . इसके चलते हिमांशु नाराज हुए थे और साथ में बॉम्बे टॉकीज को काफी हानि हुई . कुछ दोस्तों की मध्यस्थता के बाद देविका सशर्त वापस आयीं पर दोनों के बीच रिश्ते पहले जैसे नहीं रहे थे . 1940 में हिमांशु का देहांत हो गया .


वैधव्य और फिल्मों से सन्यास


पति के मरणोपरांत शशधर मुखर्जी और अमिय चक्रवर्ती के साथ देविका ने बॉम्बे टॉकीज का कार्यभार संभाला . अशोक कुमार के साथ उन्होंने अनजान , बसंत और किस्मत में भी काम किया . 1943 में उनकी अंतिम फिल्म ” हमारी बात “ थी जिसमें राज कपूर का भी कुछ रोल था . 1944 में फिल्म “ ज्वार भाटा “ के लिए उन्होंने दिलीप कुमार को चुना था .


बाद में अशोक कुमार और शशधर ने कुछ विवादों के चलते देविका से अलग हो कर अपना अलग स्टूडियो “ फिल्मिस्तान “ की स्थापना की . इसके कुछ दिनों बाद ही देविका ने फिल्मों से सन्यास ले लिया और एक रूसी पेंटर स्वेतोस्लाव रॉयरिक से शादी कर ली .


पुरस्कार


1958 में उन्हें पद्मश्री अवार्ड से सम्मानित किया गया था .1970 में फिल्म जगत के सर्वोच्च पुरस्कार दादा साहेब फाल्के पुरस्कार को पहली बार मिलने का श्रेय देविका के नाम है .


प्रमुख फ़िल्में


उपरोक्त फिल्मों के अतिरिक्त सावित्री , इज्जत , ममता और मियां बीबी , जीवन प्रभात , प्रेमकहानी , निर्मला , वचन , दुर्गा और जन्म भूमि उनकी प्रमुख फ़िल्में थीं . लगभग 29 फिल्मों के निर्माण में उनका योगदान रहा है .