कौन दिलों की जाने!
सेंतीस
रानी को फ्लैट में रहते हुए लगभग पाँच महीने हो गये थे। यहाँ रहने की समयावधि पूरी होने की अथवा कह लीजिये कि यहाँ के अकेलेपन से छुटकारा पाने की वह उसी तीव्रता से प्रतीक्षा कर रही थी जैसे दिन में निकले हुए चन्द्रमा का निस्तेज हो चुका प्रकाश अपने अस्तित्व को प्रकट करने के लिये सँध्याकाल की आतुरता से प्रतीक्षा करता है। अपनी इसी मनःस्थिति के चलते रानी ने जनवरी के आखिरी सप्ताह में रमेश को फोन किया। हैलो, नमस्ते के बाद पूछा — ‘रमेश जी, कोर्ट में 13 फरवरी की तारीख है ना?'
रमेश ने निरपेक्ष भाव से संक्षिप्त—सा उत्तर दिया — ‘हाँ।'
‘उस दिन जज साहब अपना फैसला दे देंगे?'
‘उम्मीद तो है, यदि कोई अनहोनी नहीं घटती!'
‘फ्लैट खाली करने के लिये एक महीने का नोटिस देने की कंडीशन है ना! आप ऐसा करें कि पफरवरी का रेंट देते समय लैंडलॉर्ड को सूचित कर देना कि फ्लैट फरवरी में किसी समय भी खाली कर देंगे।'
‘मतलब कि कोर्ट के फैसले के तुरन्त बाद तुमने आलोक के पास जाने का मन बना लिया है?'
‘मैंने और आलोक जी ने पूरे विचार—विमर्श के बाद तलाक की अर्जी मंजूर होने के बाद इकट्ठे रहने की सोची है। अतः कोर्ट के फैसले के बाद फ्लैट रखने की कोई वजह भी नहीं रहेगी और न ही जरूरत।'
फोन बंद कर रमेश सोचने लगा, मैंने जैसा सोचा था वैसा ही होने जा रहा है। कोर्ट द्वारा तलाक की अर्जी स्वीकार होने के पश्चात् रानी एक दिन भी आलोक के बिना नहीं रहना चाहती। साथ ही उसके मन से आवाज़ आई, तुम्हें क्या? तुम तो मानसिक सन्ताप से मुक्त हो जाओगे। लगभग एक वर्ष से तनाव झेल रहे हो, यह भी कोई कम राहत नहीं होगी।
रमेश से बात करने के पश्चात् रानी ने आलोक को फोन मिलाकर रमेश के साथ हुई बातचीत की जानकारी दी। आलोक ने कहा — ‘रानी, चाहे हम एक—दूसरे के प्रति पूर्णतः समर्पित हैं और कोर्ट भी ‘लिव—इन रिलेशनशिप' को मान्यता दे रही हैं, फिर भी मेरा मानना है कि ‘लिव—इन रिलेशनशिप' में समर्पण तो होता है, किन्तु उत्तरदायित्व व प्रतिबद्धता से बचने की भावना बनी रहती है, जिसे स्वार्थ का ही दूसरा नाम दिया जा सकता है। विवाहित व्यक्ति एक—दूसरे के प्रति समर्पित होने के साथ—साथ अपने अहम् तथा स्वार्थ का भी त्याग करते हैं। दूसरे, वास्तविक तृप्ति प्रतिबद्धता के बाद ही मिल सकती है। इसलिये मैं चाहता हूँ कि तलाक की कार्रवाई पूरी होने के बाद हम चाहे कोर्ट में अथवा मन्दिर में विवाह की रस्म अवश्य पूरी करें ताकि बिना वजह लोगों को अँगुलियाँ उठाने का मौका न मिले, हम दुनिया के सामने भी बेझिझक अपने रिश्ते को निबाह सकें। एक बात और, हमें किसी वकील की राय भी लेनी होगी कि तलाक के कितने समय बाद हम औपचारिक रूप में विवाह—सूत्र में बँध सकते हैं?'
‘मैं आपसे पूर्णतया सहमत हूँ। वकील की राय आप जरूर ले लें, क्योंकि तलाक के बाद मैं जल्द—से—जल्द इस फ्लैट से निकलना चाहूँगी। तलाक की अर्जी मंजूर होते ही उसी दिन अथवा अगले दिन मैं आपके पास आ जाऊँगी।'
कोर्ट की तारीख से पहली शाम आकाश में बादल छाये हुए थे। रानी ने सोचा, मौसम का क्या पता है, कब करवट बदल ले। आज बादल हैं, कल बरसात भी हो सकती है। यदि समय पर कोर्ट से फारिग हो गयी तो कल ही पटियाला चली जाऊँगी। यही सोचकर अपने कपड़े आदि पैक करने लगी। कुछ ही देर में आलोक का फोन आ गया। उसने पूछा — ‘रानी, फ्लैट में से तुमको निजी कपड़े—लत्तों के अतिरिक्त तो कुछ लेना नहीं होगा या लेना है?'
‘मुझे अपने कपड़े आदि ही पैक करने हैं और वही मैं इस समय कर रही हूँ। बाकी सामान तो रमेश जी सँभलवा लेंगे। मेरे कपड़े आदि के तीन बैग हो जायेंगे।'
‘कल कोर्ट का काम पूरा होतेे ही तुम मुझे रिंग कर देना। मैं तुम्हें लेने आ जाऊँगा।'
‘आपको कष्ट करने की जरूरत नहीं, मैं फ्लैट की चाबी रमेश जी को सँभलवा कर स्वयं आ जाऊँगी।'
‘जरूरत कैसे नहीं और कष्ट किस बात का? मुझे किसी गैर के लिये थोड़े न आना है!'
‘जैसी आपकी मर्जी। फिर ऐसा करना कि सुबह नौ बजे से पहले ही फ्लैट पर आ जाना, मैं नाश्ता तैयार करके रखूँगी। आप फ्लैट पर इन्तज़ार करना और मैं कोर्ट हो आऊँगी। वहाँ से फ्री होते ही पटियाला के लिये निकल लेंगे।'
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