कौन दिलों की जाने! - 8 Lajpat Rai Garg द्वारा सामाजिक कहानियां में हिंदी पीडीएफ

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कौन दिलों की जाने! - 8

कौन दिलों की जाने!

आठ

सुबह की चाय का समय ही ऐसा समय था, जब रमेश और रानी कुछ समय इकट्ठे बैठते और बातचीत करते थे। लोहड़ी से तीन—चार दिन पूर्व प्रातःकालीन चाय पीते हुए रानी ने कहा — ‘रमेश जी, क्यों न इस बार लोहड़ी पर बच्चों को बुला लें। काफी समय हो गया उन्हें आये हुए।'

‘दिन में फोन करके पूछ लेना, अभी तो वे लोग सोये हुए होंगे। आ जायें तो अच्छा ही है। लोहड़ी पर घर में रौनक हो जायेगी, वरना तो क्लब में किटी पार्टी मेम्बर्स के साथ ही लोहड़ी मनेगी।'

बड़ी बेटी अंजनि ने तो आने से मना कर दिया यह कहकर कि उसके बेटे आर्यन को स्कूल में लोहड़ी से अगले दिन होने वाले स्पोर्टस कम्पीटीशन में भाग लेना है। छोटी बेटी संजना ने आने की सहमति दे दी। रात को रमेश ने घर आते ही पूछा — ‘अंजनि और संजना से बात हुई क्या, आ रही हैं या नहीं?'

‘हाँ, बात हो गई थी। संजना ही आयेगी, वह भी अकेली। दामाद बाबू बिज़नेस ट्रिप पर बाहर जा रहे हैंं। अंजनि इसलिये नहीं आ सकती कि आर्यन को स्कूल में लोहड़ी से अगले दिन होने वाले फंक्शन में पार्टीसिपेट करना है।'

‘बड़ी अच्छी बात है। आर्यन अभी से स्कूल की एकस्ट्रा एक्टिविटीज़ में पार्टीसिपेट करेगा तो आगे चलकर यह उसके बहुत काम आने वाला है। बच्चों को पढ़ाई के साथ—साथ एकस्ट्रा एक्टिविटीज़ के लिये एन्क्रेज करने तथा उसके लिये तैयार करने में पैरेंट्‌स का बड़ा योगदान होता है। कल रात तुम तो सो गई थी। टी.वी. पर एक कार्यक्रम में बता रहे थे कि कुछ विख्यात समाज—शास्त्रियों ने तीन से सात वर्ष के बच्चों के स्वभाव, व्यवहार व प्रतिक्रियाओं का लम्बे अर्से तक अध्ययन करने के उपरान्त रिपोर्ट प्रस्तुत की है, जिसके अनुसार यदि बच्चे को कम—से—कम तीस मिनट प्रतिदिन माँ का सक्रिय साथ, प्यार व मार्गदर्शन मिलता है तो उसका क्रमिक विकास चहुँतरफा व बेहतर होता है। इसलिये जो पैरेंट्‌स बच्चों को छोटी उम्र में ही होस्टलों में डाल देते हैं, उनका समग्र विकास अवरोधित हो जाता है; वे बच्चे ताउम्र प्यार की स्निग्धता की कमी से ग्रसित रहते हैं। उम्र बढ़ने के साथ ऐसे बच्चों में यह कमी कभी—कभी असामाजिक प्रवृतियों में भी परिवर्तित हो जाती है। तुम मनीष को तो जानती ही हो। जब इनके बेटे दूसरी—तीसरी क्लास में थे तो औरों की देखादेखी ये महानुभाव भी अपने बच्चों को देहरादून दाखिल करवा आये। हफ्ते—दस दिन बाद जब मिलने गये तो बच्चों से पूछा, मन लग गया या नहीं, तो बड़े वाले ने बड़ी मासूमियत से कहा — पापा, जब आपकी तथा मम्मा की याद आती है तो एक—दूसरे के गले लगकर रो लेते हैं। और मनीष उसी दिन उन्हें वापस ले आया था। स्थानीय स्कूल—कॉलेज में पढ़कर आज दोनों बच्चे अपने—अपने प्रोफेशन में पूरी तरह सेे कामयाब हैं।'

‘मैंने तो अंजनि और संजना को सातवीं—आठवीं कक्षा तक स्वयं पढ़ाया था। उनकी छोटी—से—छोटी जरूरतों का ख्याल रखती थी। उन्हें कभी टयूशन की जरूरत नहीं पड़ी। मैं सोच रही हूँ कि नन्हीं परी की पहली लोहड़ी है, क्यों न एक छोटा—सा फंक्शन करें।'

‘जहाँ तक मुझे पता है, परम्परा के अनुसार तो लड़के की पहली लोहड़ी को सेलिब्रेट करते हैं न कि लड़की की।'

‘मैंने कहीं पढ़ा है कि परम्परा या मान्यता वह चिन्तनधारा है, जो एक पीढ़ी से दूसरी पीढ़ी अनुभव—रूप में प्राप्त करती है। परम्परा या पीढ़ीगत वैचारिक अनुभव से समाज और देश का विकास व कल्याण होता है। ज्यों—ज्यों समय बदलता है, पीढ़ियाँ बदलती हैं, त्यों—त्यों परिस्थितियाँ बदलती हैं। इस प्रकार परम्परा का बहुत—कुछ अंश समय गुज़रने के साथ अप्रासंगिक अथवा निरर्थक हो जाता है। जीवन को विकास की ओर ले जाने वाली विचारधरा को हम परम्परा कह सकते हैं और समय के साथ अप्रासंगिक हो जाने वाली मान्यताओं को रूढ़ि कह सकते हैं। परम्परा का पालन तथा रूढ़ि का त्याग करने में ही व्यक्ति और समाज का हित होता है। मान्यता को समझकर ग्रहण करना आधुनिकता है और उसे बिना समझे दोहराते रहना रूढ़िता है। हमें रूढ़िवादी मान्यता को छोड़कर समय के साथ आगे बढ़ना चाहिये। आजकल लड़कियाँ लड़कों से हर क्षेत्र में आगे हैं। फिर उनके जन्म की खुशियाँ क्यों न मनायें?'

‘तुम्हारी सोच तो बहुत अच्छी है। अपनी ही बेटियों को लें, ये हमारा कितना ख्याल रखती हैं! ऐसे बहुत—से परिवारों को जानता हूँ, जिनके बेटे अपनेे माँ—बाप की देखभाल तो दूर, उन्हें जीवन जीने के लिये निम्नतम साधन तक प्रदान करने को तैयार नहीं। माँ—बाप उनके लिये अनचाहा बोझ हैं। इसलिये मैं तुमसे सहमत हूँ। नन्हीं परी की पहली लोहड़ी का उत्सव घर पर ही मनायेंगे। एक बार अंजनि से फिर पूछ लो, अगर दामाद बाबू या खुद, कोई एक भी आ जाये तो अच्छा लगेगा।'

रानी ने फोन पर अंजनि को फंक्शन का बताकर आने के लिये आग्रह किया, किन्तु उसने यह कहकर मना कर दिया कि मम्मी आर्यन का पहला कम्पीटीशन है, उनका उसके साथ रहना बहुत आवश्यक है वरना बच्चा उपेक्षित अनुभव करेगा।

‘अंजनि तो नहीं आ पा रही। कपल्स किटी मैम्बर्स को बुला लेंगे। घर पर ही लोहड़ी की ‘गैट—टू—गैदर' भी हो जायेगी और अच्छी—खासी रौनक भी हो जायेगी।'

‘ठीक है, ऐसा ही करते हैं। मैं सभी किटी—मेम्बर्स को फोन से सूचित कर दूँगा। फंक्शन कैसे करना है, यह तुम देख लेना। जो कुछ मँगवाना हो, उसकी लिस्ट बना लेना।'

***