कौन दिलों की जाने!
नौ
मकर संक्रान्ति
मौसम ने करवट बदली। कुछ दिन पहले तक जहाँ सर्दी की जगह गर्मी का अहसास होने लगा था, अब दो—तीन दिन से पहाड़ों पर बर्फबारी होने से शीत—लहर चलने लगी थी। पहली बार साँस छोड़ते हुए नाक—मुँह से भाप निकलने लगी थी। संजना को विदा करने तथा रमेश व लच्छमी के जाने के पश्चात् रसोई का बचा—खुचा काम समेट कर रानी टी.वी. ऑन करके रजाई में दुबक गई। क्योंकि बर्फीली हवाओं के कारण हाथ—पैर ठिठुर रहे थे, अतः लॉबी या ड्रार्इंगरूम में बैठकर पढ़ना अथवा कोई और काम करना सम्भव न था। बारह—एक बजे मोबाइल की घंटी बजी। देखा, आलोक का फोन था। ऑन करते ही सुना — ‘रानी, मकर संक्रान्ति की बहुत—बहुत शुभ कामनाएँ व बधाई।'
‘आलोक, तुम्हें भी मकर संक्रान्ति की बहुत—बहुत बधाई।'
‘क्या कर रही हो?'
रानी ने हँसकर कहा — ‘अभी तो तुम से फोन पर बात कर रही हूँ।'
‘मेरा मतलब था, मेरे फोन से पहले क्या कर रही थी?'
‘कुछ नहीं, बस यूँ ही रजाई में बैठकर टी.वी. देख रही थी। दो—तीन दिन से सर्दी इतनी बढ़ गई है कि कोई काम करने की हिम्मत ही नहीं होती। लोहड़ी पर छोटी बेटी आई थी। उसे जल्दी ही वापस जाना था, इसलिये पहले नाश्ता तैयार कर उसे विदा किया। फिर रमेश जी के लिये लंच तैयार किया, क्योंकि वे ऑफिस में टिफिन लेकर जाते हैं। आलोक, एक बात बताऊँ, सुनकर तुम्हें अच्छा लगेगा।'
‘जरूर बताओ।'
‘आलोक, दोहती की पहली लोहड़ी थी। हमने अपने पड़ोसियों के अतिरिक्त अपने कपल्स—किटी मैम्बर्स को भी दोहती की पहली लोहड़ी सेलिब्रेट करने के लिये बुलाया था। अच्छी—खासी रौनक हो गई थी। लोहड़ी मनाने में बड़ा मज़ा आया। लोहड़ी की आग सेंकते हुए, सर्दी की परवाह किये बिना, रात ग्यारह बजे तक खूब मौज—मस्ती की। इसी दौरान एक लेडी मैम्बर ने तान छेड़ दीः
सुन्दर मुन्दरीए, हो!
तेरा कौन विचारा, हो!
दुल्हा भट्टी वाला, हो!
दुल्हे दी धी ब्याही, हो!.......
‘लोहड़ी का यह लोकगीत सुनकर बचपन के दिन याद आ गये, जब हम लोहड़ी से कई—कई दिन पहले से ही गली भर में घर—घर जाकर लोहड़ी के लिये लकड़ियाँ इकट्ठी किया करते थे और तुम्हारे घर के सामने वाले चबूतरे पर गली वाले मिलकर लोहड़ी मनाया करते थे। कितना आनन्द आता था रेवड़ियाँ, मूंगफलियाँ खाते तथा आग पर हाथ सेंकते हुए! लोहड़ी की उठती हुई लपटों के समक्ष कड़ाके की सर्दी भी छूमंतर हो जाती थी।'
‘तुमने तो बचपन की लोहड़ी का ऐसा चित्र—सा खींच दिया है कि मेरी आँखों के सामने बचपन की लोहड़ी सजीव हो उठी है। मुझे यह सुन कर बड़ी प्रसन्नता हुई कि तुम लोगों ने दोहती की पहली लोहड़ी को बड़े बढ़िया ढंग से सेेलिब्रेट किया वरना तो लोग लड़कों की पहली लोहड़ी ही सेलिब्रेट करते हैं। लोगों की सोच में परिवर्तन से ही समाज में रूढ़िवादी रीति—रिवाज़ों से छुटकारा सम्भव है। परिवर्तन बहुत जरूरी भी है। आज लड़कियाँ लड़कों से किसी मायने में भी कम नहीं हैं। इस बार तो ओलम्पिक में भी पी. वी. सधु तथा साक्षी मलिक ने देश के लिये पदक जीत कर बेटियों का सम्मान करने के लिये समाज को विवश कर दिया है। आगे चलकर इसके बड़े सकारात्मक परिणाम देखने को मिलेंगे। रानी, तुम्हें पता है, मकर संक्रान्ति का क्या महत्त्व है?'
‘शायद ‘नहीं' कहना अधिक ठीक होगा। तुम्हीं कुछ बता दो।'
‘इस दिन सूर्यनारायण दक्षिणायन से उत्तरायन की ओर बढ़ता है। दूसरे, मकर संक्रान्ति से दिन बड़े और रातें छोटी होने लगती हैं। कवदन्ति है कि जो व्यक्ति इस दिन प्राण त्यागता है, मोक्ष प्राप्त कर सीधा स्वर्ग जाता है। भीष्म पितामह जिन्हें इच्छामृत्यु का वरदान प्राप्त था, युद्ध में घायल होने के पश्चात् बाण—शैया पर पड़े हुए भी प्राण त्यागने के लिये सूर्य के उत्तरायन में प्रवेश की प्रतीक्षा करते रहे थे। देश के बहुत से हिस्सों में इस दिन पतंगबाजी के भी बड़े स्तर पर आयोजन होते हैं, जबकि हम लोग बसन्त पंचमी को ही पतंग उड़ाते हैं। रानी, मैं चाहता हूँ कि इस बार बसन्त पंचमी के अवसर पर हम इकट्ठे हों और पतंग उड़ाकर बचपन को पुनः जीयें।'
‘बसन्त में तो अभी काफी समय है। अभी से कुछ कहना मुश्किल है। उस समय जैसे हालात होगें, उसी मुताबिक देखेंगे।' इतना कहकर ‘बॉय' किया और मोबाइल रख दिया।
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