ट्रैजडी ऑफ़ एरर्स S Sinha द्वारा लघुकथा में हिंदी पीडीएफ

Featured Books
श्रेणी
शेयर करे

ट्रैजडी ऑफ़ एरर्स

कहानी - ट्रैजडी ऑफ़ एरर्स


मंजू को नानी की कही बात आजतक उसे याद है . उसकी नानी कहा करती थी “ तू तो अपनी माँ से भी कई गुना ज्यादा खूबसूरत है . तेरी माँ की सुंदरता पर ही तेरे पापा ने तेरे दादा की मर्जी के विरुद्ध उससे शादी कर ली थी . तेरे दादा ने तो पापा को घर से निकाल कर सारे रिश्ते तोड़ लिए थे . “


यह सब सुनकर मंजू के दिमाग में अपने दादा के प्रति घोर नफरत थी . हालांकि वह कभी अपने दादा से मिली नहीं थी , पर पुराने अल्बम में उनकी फोटो जरूर देखी थी . नानी से ही उसने सुन रखा था कि उसके प्रसव के समय ही उसकी माँ चल बसी थी . जब उसकी उम्र मात्र तीन साल की थी उसके पिता का देहांत भी एक हादसे में हो गया था .उसके दादा उस समय अविभाजित बिहार राज्य के दक्षिणी छोर पर चाईबासा में सैटल थे . मंजू के नाना कुछ वर्षों तक चाईबासा में नौकरी करते थे . पिता की मृत्यु के बाद मंजू के मामा ने उनसे पोती को ले जाने के लिए कहा था पर उन्होंने साफ़ इंकार कर दिया था .


जब से मंजू को होश आया कभी इस मौसी , कभी उस मौसी तो कभी मामा के घर अपने को पाती . वह अपने मामा और नानी के साथ पटना के निकट नेऊरा कस्बे में रहती थी . वहां उसकी उपेक्षा नहीं होती थी और वह खुश थी . वह पढ़ने लिखने में काफी तेज थी . बारवहीं पास कर उसे आगे पढ़ने का मन था . उसके मामा और नानी को इसमें कोई एतराज नहीं था .


मंजू ने पटना विमेंस कॉलेज में कॉमर्स में एडमिशन लिया . पटना नेऊरा से करीब 16 किलोमीटर दूर था . वह रोज सुबह आठ बजे की लोकल पकड़ कर पौने नौ बजे तक सचिवालय हाल्ट पर उतर जाती थी . वहां से पटना सचिवालय का दक्षिणी गेट बिलकुल समीप ही था . अगर ट्रेन सही समय पर पहुंचा देती , तो उस गेट से प्रवेश कर उत्तरी गेट से निकलने के बाद कॉलेज ज्यादा दूर नहीं था , वह पैदल ही चली जाती . कभी कुछ बंद या हड़ताल की आशंका होती तो यह गेट बंद हो जाता था . तब उसे काफी घूम कर आर ब्लॉक , मिल्रर

स्कूल , एम एल ए हॉस्टल होते हुए जाना होता था . फिर वह रिक्शा या ऑटो से कॉलेज जाती थी . शाम चार बजे की लोकल से वह घर लौट जाती थी .


मंजू जवान हो चली थी . घर से निकल कर कॉलेज पहुँचने तक उसे हजारों ललचाई निगाहें घूरतीं . उसका शरीर वस्त्रों से ढका होता फिर भी उसे लगता कि सैकड़ों निगाहें उसे निर्वस्त्र कर रहीं हैं . कभी मनचलों की छींटाकशी भी सुनती . इन सबको नजरअंदाज करना उसके प्रतिदिन की दिनचर्या हो गयी थी .


कभी आठ बजे की लोकल छूट जाती तो अगला लोकल पकड़ वह कॉलेज जाती , पर तब तक उसका एक क्लास मिस हो जाता था . नेऊरा में कोई भी एक्सप्रेस ट्रेन नहीं रुकती थी . वह बी कॉम ( ऑनर्स ) कर रही थी . फाइनल ईयर में वह ज्यादा समय पढ़ाई में देना चाहती थी . इसलिए वह पटना में एक पी जी में रहने लगी . शुक्रवार शाम को चार बजे की लोकल से मंजू अपने घर नेऊरा आ जाती थी .


इधर मंजू के दादाजी चाईबासा में बिलकुल अकेले रह रहे थे . उनकी पत्नी और छोटे बेटे का भी देहांत एक दुर्घटना में हो गया था . उन्हें अब लगा कि मंजू की माँ की आह उन्हें लगी है . उनका घर जिस बस्ती में था

उसके आसपास सिर्फ पहाड़ और जंगल भर थे . दिन तो किसी तरह कट जाता , रात का सन्नाटा उन्हें काटने लगता . वह पोती से मिलना चाहते थे . मंजू के मामा को फोन कर उसका पता जानना चाहा तो मामा ने उन्हें कहा “ अब भूल कर उसे तंग न करें . वह आपसे बेहद नफरत करती है . आप उसकी जिंदगी से दूर रहें . “


दादाजी को किसी तरह एक जानकार की मदद से मंजू का फोन नंबर तो मिल गया . वह जब भी फोन पर कहते “ मंजू . “


वह पूछती “ कौन है ? “


“ बेबी , आई लव यू . “

मंजू को पता नहीं था कि फोन किसका है . वह समझती कोई बेवजह उसे तंग कर रहा है . वह फोन काट देती थी .


इस बार फिर फोन आया “ मंजू सुनो तो , मैं तुम्हारे बिना अब जिन्दा नहीं रह सकता .मैं तुमसे एक बार ही सही , मिलना चाहता हूँ . मैं तुम्हारा . . . . “


मंजू ने कहा “ तुम जो भी हो बकवास बंद करो , नहीं तो मैं पुलिस में रिपोर्ट कर दूँगी . “


उस नंबर को रिजेक्ट में डाल दिया . अब फोन तो आना बंद हो गया था .इस बीच मंजू ने अपना पी जी भी बदल लिया था . उधर दादाजी को किसी ने एक दूसरा नंबर देकर कहा था कि इससे शायद वह अपनी पोती तक पहुँच सकें . दरअसल वह नंबर उसकी लड़की का था जो मंजू के कॉलेज में ही पढ़ती थी . उसका नाम मंजूलता था , पर लोग उसे मंजू ही पुकारते थे .


दादाजी पटना आये . उन्होंने उस नंबर पर फोन किया . वह बोले “ तुम मंजू बोल रही हो न ? “


“ हाँ , मंजू ही बोल रही हूँ . “


“ मंजू तुम फोन नहीं रखना . तुम समझती क्यों नहीं मुझे तुम्हारी जरूरत है , मैं अब तुम्हारे बिना जिन्दा नहीं रह सकता हूँ . “


“ क्या बकवास है “ बोल कर उसने फोन रख दिया


दादाजी बार बार फोन करते वह बार बार काट देती थी . दो दिन इसी तरह बीत गए . फिर तीसरे दिन दादाजी ने फोन किया “ मंजू , फोन नहीं काटना , तू कुछ सुनती है नहीं है , बस फोन काट देती है . बेटा , मैं तेरा दादा बोल रहा हूँ .मैं अब कुछ ही दिनों का मेहमान हूँ , इच्छा थी मरने से पहले एक बार तुम्हें देख लेता . “


“ मेरा दादा बरसों पहले ही मर चुका है . “


“ इतना निर्दयी मत बनो .नहीं , मैं जीवित हूँ और तुम्हारा दादा हूँ .मुझसे एक बार मिलो तो सही . तुमसे एक बार मिले बिना चैन से मर नहीं सकूंगा . “


“ ठीक है अभी तो रात हो गयी है . “


“ कल ज़ू के गेट पर मिलो . “


“ हाँ , वह मेरे कॉलेज से ज्यादा दूर भी नहीं है . दोपहर में मेरे लेक्चर्स खत्म हो जायेंगे तो मिलते हैं . “


अगले दिन कॉलेज की कैंटीन में कुछ लड़कियां एक ही टेबल पर बैठी चाय पी रहीं थीं . मंजूलता और मंजू दोनों उसी टेबल पर थीं . मंजूलता मंजू से एक साल जूनियर थी . दोनों अपने अपने दोस्तों से उस अजनबी द्वारा किये फोन के बारे में बातें कर रहीं थीं .


फिर मंजूलता ने सीनियर मंजू से कहा “ दीदी , दरअसल मैं मंजूलता हूँ . सिर्फ कॉलेज ही नहीं घर में भी मुझे मंजू ही कहते हैं . फर्स्ट ईयर में हूँ . मुझे भी दो तीन दिनों से बार बार कोई फोन कर रहा है . पहले तो बोलता था कि मेरे बिना जिन्दा नहीं रह सकता है . कल उसने कहा कि वह मेरा दादा है जबकि मेरे दादा बहुत पहले मर चुके हैं . वह आज दोपहर ज़ू की गेट पर मुझसे मिलने आ रहा है . “


अब मंजू को भी अपने फोन कॉल्स याद आये . उसे अब शक हुआ शायद वे उसके दादा ही होंगे . हालांकि वह अपने दादा से प्यार नहीं करती थी फिर भी बोली “ मंजूलता मैं भी तुम्हारे साथ चलती हूँ . “

दोनों लड़कियाँ दोपहर दो बजे ज़ू पहुंची . वहां उन्होंने देखा कि जमीन पर एक अधेड़ व्यक्ति मृत पड़ा है जिसे घेर कर कुछ लोग खड़े थे .दोनों लड़कियाँ भी वहां पहुंची .

भीड़ में एक ने कहा “ लगता है बेचारा मर गया है . थोड़ी देर पहले तक तो वह बोल रहा था कि तुममें से कोई मेरी मंजू हो क्या ? वह हाथ में एक फोटो दिखा रहा था . मेरी आँखें बंद होने के पहले आ जाती तो चैन से मर सकता था . लगता है अब मेरी आत्मा को भटकना लिखा है . बेचारा मंजू से मिले बिना चल बसा . “


मंजू ने उस व्यक्ति के पास जा कर उसके हाथ से वह फोटो ले लिया . फोटो उसके पिता की थी और वह पिता की गोद में थी . मंजू के पास भी अल्बम में बचपन के कुछ फोटो थे , वह समझ गयी कि मृतक उसके दादा हैं . अनायास ही उसकी आँखों में आँसूं छलक आये , आखिर खून का रिश्ता जो था . वह मन में पछता रही थी कि पहले ही क्यों नहीं मैंने इनका फोन रिसीव किया . मंजूलता को भी अफ़सोस हो रहा था , वह बोली “ काश मैं पहले इनसे मिल लेती तो शायद तुम से यह अपने जीवन काल में मिल लेते . हम दोनों के नाम मिलते जुलते हैं इसलिए ये ट्रैजिडी हुई है , आई एम सो सॉरी , मंजू दी . “


तब तक भीड़ में किसी ने कहा “ पुलिस को फोन करो भाई . इस लावारिश लाश को ले जाए . “


मंजू ने आगे बढ़ कर कहा “ नहीं , इसकी कोई आवश्यकता नहीं है . ये लावारिश नहीं हैं , मेरे दादाजी हैं . इनका अंतिम संस्कार हमलोग करेंगे . “


इतना बोल कर उसने मामा को फोन कर सारी बात बताई और जल्द से जल्द पटना आ कर दादाजी की अंतिम क्रिया का इंतजाम करने को कहा .

नोट -यह कहानी पूर्णतः काल्पनिक है , इसके किसी पात्र ,घटना या जगह से भूत या

वर्तमान का कोई सम्बन्ध नहीं है