वस्तु नही भाव चाहिए Ajay Kumar Awasthi द्वारा लघुकथा में हिंदी पीडीएफ

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वस्तु नही भाव चाहिए

उसने ज्योहीं कंडे जलाकर हवन किया सारे घर मे धुंआ फैल गया । घर के सभी लोग खाँसने लगे,उनकी आंखों में जलन होने लगी । अनल इस बात से सीमा पर नाराज भी हुआ कि ,"तुम ये जो रोज कंडे जलाकर पूजा करती हो इससे सबको तकलीफ हो रही है । " अनल की इस बात से सीमा और भी ज्यादा भड़क उठती है कि भगवान के लिए किए जाने वाले काम मे अनल को क्यों एतराज होता है । अनल उसकी प्रतिक्रिया देख घर का माहौल नहीं बिगाड़ना चाहता । सुबह सुबह घर मे कोई कलह नही चाहता ओर वैसे भी यह आस्था का मामला है इस पर ज़रा भी बोलो तो बवाल मच जाता है ।

ये सिलसिला चलता रहा और एक दिन अम्मा सुबह सुबह चक्कर खाकर गिर गईं, उन्हें हॉस्पिटल में भर्ती करना पड़ा । उनके फेफड़े में गम्भीर संक्रमण था । डॉक्टर ने जो कारण बताया उससे सभी चिंतित हो गए । डॉक्टर ने बताया कि धूल और धुंए के कारण उन्हें ये तकलीफ हुई है और इसका आंखों में भी असर हुआ है ,जो लंबे उपचार के बाद ठीक होगा तब तक इन्हें इन सबसे दूर रखा जाय ।
अनल को ये बात समझ में आ गई कि धूल तो नही ,पर रोज कंडों से की जा रही हवन आरती के समय अम्मा का उस धुंए के बीच बैठना घातक हो गया था और अब ये बात सीमा को भी समझ मे आने लगी थी कि उसकी छींक ओर नाक बहने की तकलीफ खत्म क्यो नही हो रही थी । उसकी भी वजह ये रोज जलाने वाले कंडे थे ।

डॉक्टर की सलाह पर कुछ दिनों के लिए सीमा ने घर मे कंडे जालना बंद कर दिया, पर उसे इस बात का दुःख रहता कि वो भगवान की पूजा में हवन आरती नही कर पा रही है ।
इन दिनों घर का वातावरण बोझिल हो गया था । तभी एक दिन उनके घर पर आचार्य पंडित शिवानंद जी आये । स्वागत सत्कार के बाद उन्होंने सबका हाल चाल पूछा अनल ने पिछले दिनों की घटनाएं उन्हें सुनाई और पूजा में हो रही बाधा की बात सीमा ने कही।

आचार्य श्री ने खामोशी से सब सुना ,फिर आस्था और अंधविश्वास पर उनकी सारगर्भित वाणी से सबका समाधान हो गया ।
उन्होंने कहा,
"देखो सीमा, आस्था और अंधविश्वास में ज़रा सा फर्क है ,हम आस्थावान हों यह बहुत अच्छा है, पर आस्था के साथ प्रथाओं और मान्यताओं को समय,परिस्थिति और स्थान के अनुसार या तो बदल देना चाहिये या छोड़ देना चाहिए ,क्योंकि कर्मकांड से ज्यादा बड़ी चीज है ईश्वर के प्रति मन का भाव ,,,
आज जिस शहर में तुम रहती हो,हम सब रहते हैं वहाँ का वातावरण प्रदूषित है ,जगह की कमी है,हरियाली और वनस्पति का अभाव है, जिसके कारण गाय ओर अन्य पशु दूषित चारा खाने के लिये विवश हैं, जिसके कारण उनका गोबर भी दूषित है ,पहले दूर दूर तक जंगल और घास के मैदानों में गाय चरने जाती थी तो उनके गोबर से बने कंडे शुद्ध होते थे ,लाभकारी होते थे । अब ऐसा नही है ,एक तो वैसे भी हम सब रोज प्रदूषित धुएं ओर धूल के बीच सारा समय बिताते हैं ,उस पर से ये कंडे और भी ज्यादा नुकसान पहुँचाते हैं । अब इनकी जगह केवल एक दीपक जलाओ,तुलसी और मिश्री का भोग लगाओ, कोशिश करो कि कम से कम पूजन सामग्री हो और ज्यादा से ज्यादा भाव,भजन और ध्यान हो । आज के समय के लिए यही सर्वश्रेष्ठ उपाय है ।"

उनकी बातों से सबका मन हल्का हुआ और सीमा ने कंडो से किनारा किया,,,

मित्रो,इस कहानी से आशय ये कि,,,,आस्था के साथ अंधविश्वास मिल जाय तो अर्थ का अनर्थ हो जाता है ,धर्म स्थलों में जोर जोर से बजाए जाने वाले गाने,भजन और उपदेश आज के समय मे तकलीफदेह साबित हो रहे हैं क्योकि शोर प्रदूषण बहुत हो गया है ,नदियों,तलाबों में रोज हम पूजन सामग्री फेंक रहे हैं, जिसके कारण उनका दम घुट रहा है,,,,आज जरूरत है इस बात की कि हमारी हमे आस्था को अंधविश्वास के रास्ते पर जाने से रोकना होगा,,