सुजीत को बचपन से डर लगता था परीक्षा का रिजल्ट सुनने में ....जिस दिन रिजल्ट आने वाला होता, वो उदास नर्वस बैठ जाता. उसके पेपर अच्छे बनते, फिर भी परिणाम सुनने के पहले उसकी हालत खराब रहती. स्कूल जाने के पहले वो एक दो बार बाथरूम तक हो आता . किसी तरह घायल पंछी की तरह स्कूल पहुँचता . फिर मास्टर जी आते, सबका रिजल्ट लेकर .क्लास में सन्नाटा पसर जाता .मास्टर जी थोड़ा लेक्चर पिलाते और फिर सबको नाम से पुकारते ,उसका नाम आते आते जाने कितने तूफ़ान से उसे गुजरना पड़ता ,वही जानता था ,और ज्योंही उसे पास होने का रिजल्ट मिलता, सारा कुछ हवा की तरह गायब .फिर तो उसकी ख़ुशी देखते बनती ,फिर जो उसकी मस्ती चालु होती तो रूकती नहीं थी .
अब सुजीत बड़ा हो गया है. अपना घर परिवार बसा लिया है . छोटी सी सरकारी नौकरी मिल गयी है, पर परिणाम सुनने के लिए जो डर पहले उसके मन में था वो आज भी है .अब उसे तबादले .जाँच .निलंबन ,किसी मामले में फंस जाने का डर सताता रहता है . जब भी उसे पता लगता की तबादले की सूची निकलने वाली है, उसकी नींद उड़ी रहती . वो कई बार इस डर से लड़ने की कोशिश करता, पर ये डर उसका पीछा नहीं छोड़ता . वो आप अपने डर से परेशान रहता .
इस बारे में उसने मनोचिकित्सक से सलाह भी ले डाली पर कुछ हुआ नहीं . तब उसने ठान लिया कि उसे इस पर जीत हासिल करनी ही होगी वरना इससे ज्यादा नारकीय और कुछ नही हो सकता . उसने बार बार खुद से खुद की बातचीत शुरू की उसने महसूस किया कि इस डर ने उसका जीना किस तरह मुश्किल कर रखा है . हर काम की बड़ी रुकावट ये डर था,पत्नी,बच्चो को कुछ हो जाने का डर,,,सफल न हो पाने का डर ,,,बहुत से अनजाने डर,,अब वो लगातार डर लगने के कारणों पर गौर करता और उसके परिणाम के प्रभाव पर ज्यादा से ज्यादा सोचता कि आखिर होगा क्या ? वो तर्क से खुद को समझाने लगा ..
उसने खुद से कहा
"बेटा सुजीत ! क्या ऐसा वैसा हो जाने से सब कुछ खत्म हो जाता है ? नहीं....बल्कि दूसरे विकल्प मिलते है, जो ज्यादा मजबूत बनाते है . जो पहले की अवस्था से ज्यादा अच्छा अनुभव दे जाते है, फिर दुनिया में कभी भी किसी के साथ कुछ भी हो सकता है. मैं कौन सा अछूता हूँ,,,यहां सबकी रिटर्न टिकट कन्फर्म है . सो क्या रहेगा और क्या बचेगा."
इस तरह सोचते सोचते वो दार्शनिक हो जाता और अब वो देख रहा था कि ऐसे सकारात्मक विचारों से उसका डर कम हो गया है.जीवन के प्रति नजरिया बदल जाने से उसके भीतर का तूफ़ान शांत होने लगा .हर हाल को स्वीकारने की चुनोती लेने के भाव से उसे निश्चिन्तता आने लगी .
अब सुजीत 55 साल का हो गया है, इन दिनों उसे कुछ शारीरिक कष्ट बना हुआ है ,अक्सर ऐसा होने पर डॉक्टर की दो तीन दिन की दवा से वो ठीक हो जाता है ,पर इस बार आराम नहीं मिल रहा है . डॉक्टर ने उसे किसी विशेषज्ञ के पास भेज दिया है ,जहां उसके रक्त का सेम्पल लेकर पैथालॉजी में भेजा गया है . तीन दिन लगेंगे रिपोर्ट आने में, और उसे फिर से वही डर का पुराना रोग सता रहा है . क्या होगा? कौन सी बिमारी होगी, कोई जानलेवा रोग तो नहीं ? आने वाली किसी शंका कुशंका से वो घबराया हुआ था .आज रिपोर्ट डॉक्टर के पास आ गयी थी. वो डॉक्टर के सामने बैठा था . डॉक्टर बड़ी गंभीरता से उसकी रिपोर्ट देख रहे थे . उसे अपने स्कूल वाले दिन याद आ गए, मास्टर जी के सामने रिजल्ट सुनने का डर ..डॉक्टर साहब ने उसकी ओर देखा फिर कहा ...
" मिस्टर सुजीत , आपकी रिपोर्ट तो नार्मल है .. एक दो पॉइंट पर कुछ कमिया है ,जिसकी दवा कुछ लम्बे समय तक चलेगी,आप दवा नियमित लेते रहिएगा सब ठीक हो जायेगा, घबराने की या चिंता करने की कोई बात नहीं ..."
सुजीत -" थैंक्स डॉक्टर साहब,,,, मै बहुत नर्वस था,,, सर ... न जाने क्यों मुझ परिणाम सुनने से बहुत डर लगता है . "
डॉक्टर - "मिस्टर सुजीत परिणाम सुनने के लिए हमेशा तैयार रहा करो, पूरे साहस से ,,,जब तुम ऐसा करोगे ,तब उसका सामना बेहतर तरीके से कर सकोगे .. मुझे ही देखो, मुझे भी रक्त सम्बन्धी गंभीर रोग है, मै उसकी नियमित जाँच करवाता हूँ ,बड़े शहर में इलाज के लिए जाता हूँ ,और अब मेरा रोग नियंत्रण में है . जब तक जिंदगी की आस बनी है किसी रोग से क्या डरना ,उसका डटकर मुकाबला कर, उसे हराना है,,,रोग को खुद पर सवार मत होने दो,,, यदि मै डर कर निराश हो जाता और परिणाम सुनने से बचता फिरता तो मै अपनी बिमारी बढ़ा लेता ....डरो मत माय ब्यॉय सामना करो ...."
डॉक्टर की बातें सुनकर सुजीत स्तब्ध रह गया, इतनी गम्भीर बीमारी और इतनी निर्भयता,बेफिक्री परिणाम जानकर भी पूरे मन से अपने काम मे तल्लीन,,,,वाह ! वो नए उत्साह से अपनी सामान्य ब्लड रिपोर्ट लेकर घर की ओर लौटा, पर इस संकल्प के साथ की बेटा सुजीत सामना करो !भागो नहीं ....! डर का सामना कर के ही उसे हराया जा सकता है,,,,