Waqt hai madaari books and stories free download online pdf in Hindi

वक्त है मदारी

पिछले 30 सालों से मेरा उनसे परिचय है । मैंने कभी उन्हें उदास या दुःखी नही देखा । वो हमेशा आक्रामक रहते थे ।
   तावबाज सजल दा को कभी पैसे की कमी नही रही । अच्छी खासी सरकारी नॉकरी में कर्मचारी यूनियन के लीडर भी थे सजल दा । पर उन्होंने  शादी नही की । बाप ने कभी कुछ ऐसा कह दिया कि तावबाज सजल ने भीष्म पितामह की तरह आजीवन कुंवारा रहने का संकल्प ले लिया । मोटू गबदु सजल दा बहुत मजाकिया भी हैं । उनके साथ कहीं घूमने चले जाओ तो रास्ता कब कट जाता है पता ही नही चलता । हँसते हंसाते सारा दिन बीत जाता था । सजल दा को अपनी माँ से बहुत लगाव था । बहनों की शादी के बाद सजल दा ओर माँ ही रह गए थे उस बड़े घर मे । सजल दा कहीं भी हों वहाँ की पूरी रिपोर्ट माँ को फोन से देते थे । बाहर अगर हैं तो रोज एक बार माँ से लंबी बात होती थी ।

   आज सजल दा रिटायर हो गए । अब ऑफिस का झंझट खत्म । सारा दिन वे घर मे ही रहते हैं माँ के पास । माँ भी अब काफी उम्रदराज हो गयी हैं । घर मे एक खाना बनाने वाली आती है जो अभी अभी  काम पर लगी है क्योंकि अब माँ किचन में काम करने में असमर्थ हो गयी है । सो अब खाना बनाने वाली रख ली गयी है ।

पहले सजल दा ज्यादातर बाहर रहते ,पर अब कुछ तकलीफों ने उनके शरीर मे स्थायी घर बना लिया है सो उनका घूमना फिरना बहुत कम हो गया है । दादा को खाने का बेहद शौक रहा है । नॉनवेज के बिना तो एक कौर भी गले से नही उतरता । एक अंडा या मछली तो भात के साथ चाहिये ही चाहिए । बाहर जाते तो उनके प्रिय भोजन में लोपस्टार होता ,सी फूड तो उन्हें बेहद पसंद है , लेकिन ये कमबख्त शुगर की बीमारी ने सारा शौक मार दिया। अब सम्हल कर खाते हैं । अब रात को चावल की जगह रोटी खाते हैं । रोटी बेलना, सेंकना माँ के बस में नही ।

रोटी बनाने वाली बाई सुमन एक विधवा है। पति शराब पी पीकर मर गया। एक बेटी थी वो ससुराल चली गयी । सुमन सिर्फ अपने लिए कमाती है । वो अभी पचास की है और स्वस्थ, सुडौल है । वो दो तीन घरों में खाना बनाती है और अक्सर वहीं खा लेती है।  उसका व्यवहार बहुत अच्छा है , वो जहां भी जाती है उस परिवार की सदस्य बन जाती है । इस घर मे भी उसे माँ का बहुत स्नेह मिलता है। सबसे आखिर में वो इस घर मे आती है और यहीं खाना खा कर फिर अपने घर चली जाती है ।

सजल दा ने अभी अभी एक स्मार्ट फोन लिया है ।सारा दिन वे उसी में उलझे रहते है। कभी वाट्सप कभी फेसबुक ,कभी यू ट्यूब में वीडियो ।

   जवानी के दिनों में अपने ऑफिस,यूनियन और बाहर लगातार दौरे, इन सबकी व्यस्तता के बीच उन्हें कभी शादी या स्त्री संसर्ग का ख्याल नही आया , आया भी तो शादी नहीं करने की जिद थी बाप से कभी पटी नही इसलिए आक्रोश भी था, कि जिस सुख की वे उनसे आस कर रहे थे ,अपना वंश देखना चाह रहे थे वो उनके जीते जी सजल दा देना नही चाह रहे थे । मतलब शादी करना, बच्चे पैदा करना उनके प्लान में दूर दूर तक नहीं था ।  उनकी एक भी महिला मित्र  नही थी और न कभी उन्हें इसकी कमी महसूस हुई । कुछ ऐसा रहा कि उधर चाह कर भी आगे बढ़ नही पाए कारण वही व्यस्तता और बाप से तनाव पूर्ण सम्बन्ध ।

अब सजल दा खाली हैं,अब कुछ कुछ ऐसा वैसा और प्यार रोमांस के सीन ओर वीडियो देख लेते हैं।अब उन्हें लगता है कि अकेलापन बुढ़ापे में ठीक नही,,, वे किसी से अपने मन की बात  कह नही सकते थे । माँ के साथ मर्यादापूर्ण और एक सीमा तक ही बात हो सकती है, इधर माँ की दिनो दिन बढ़ती असमर्थता ने भी उनको चिंतित कर रखा है । उनकी सबसे बड़ी दोस्त माँ है, जिनके पास बैठकर वे खुद को बेहद हल्का और निश्चिन्त महसूस करते हैं । पर अब उन्हें लगता कि एक अंतरंग मित्र होना चाहिये।

     आज शाम से ही बादल घिर आये हैं , रिमझिम बारिश शुरू हो गयी है । धीरे धीरे बारिश बेहद तेज हो गयी  । 8 बजे सुमन आती है 9 बजे तक रोटी बनाकर माँ बेटे को खिलाकर फिर खुद दो रोटी खाकर 10 बजे तक लौट जाती है । आज तेज बारिश के बीच सुमन छाता लेकर आयी थी, फिर भी पूरी तरह भीग गयी थी । उसे गीले कपड़ो में देख माँ ने उसे अपनी साड़ी देकर बदल कर आने को कहा।

      भीगी हुई सुमन सूखे कपड़े लेकर बाथरूम में चली गई । अपने गीले कपड़े उतारकर माँ के दिये कपड़ो को पहनने वो मेहमान के कमरे में चली गयी । उसने कमरे में दाखिल होकर दरवाजा बंद कर लिया , पर उसे मालूम नही था कि सजल दा भी उस कमरे में है । सजल दा अपनी कोई पुरानी फाइल ढूंढने वहाँ पहले से मौजूद थे । जब उन्होंने देखा कि सुमन ने दरवाजा बंद कर दिया है और वो लगभग अर्ध नग्न थी तो सजल दा ने खुद को एक आलमारी के पीछे छुपा लिया । यदि वो वहां अपने होने का अहसास सुमन को कराते तो वो बुरी तरह शर्मा जाती। और ये अच्छा नहीं होता । उन्होंने उसके कपड़े बदलते तक खुद को आड़ में रखा । पर नजर तो पड़ ही गई सुमन की चौड़ी सुडौल काया पर । उसका अनावरित सीना और उसके सुडौल वक्ष देख आज पहली बार दादा ने अपनी छाती में धड़कन महसूस की । वे टकटकी बांध कर सुमन को देखते रहे। कहीं से उनके दिल मे कसमसाहट होने लगी । वे उसे छू लेने को बेताब होने लगे पर किसी तरह खुद को काबू में किया ।

   उस दिन से सजल दा की निगाह सुमन को देखने को प्यासी रहने लगीं ।  वे सुमन को पूरा का पूरा देखना चाहते थे, वे उसके पास जाना चाहते थे । उसके आने का उन्हें इंतजार रहता। वो किसी न किसी बहाने से किचन में जाकर उससे बातें किया करते, उसे निहारा करते। सुमन भी अकेली थी, उसे सजल दा से बात करना अच्छा लगता। वो भी समझ रही थी कि सजल दा उसमें दिलचस्पी लेने लगे हैं । कभी आते जाते सजल दा और सुमन की देह टकरा जाती, कभी एक दूसरे से रगड़ खा जाती दोनो मुस्कुराकर हट जाते ।

   आज सजल दा सुबह से उत्तेजित थे अपनी उत्तेजना पर उन्हें खुद आश्चर्य हुआ ,वे सोचने लगे कि इतने सालों तक मैं अकेला रहा पर मुझे कभी अकेलापन महसूस नही हुआ पर अब किसी का साथ क्यो अच्छा लगने लगा । उन्हें लगा कि आज सुमन से अपने दिल की बात कह कर रहेंगे । उनसे रहा नही जा रहा था । यद्यपि उम्र के साथ शरीर की अपनी क्षमता होती है ,पर देह की प्यास तो बनी रहती है वे समझ नही पा रहे थे कि ये प्यार था या दैहिक भूख या सहज आकर्षण , पर उन्हें अब एक साथी की जरूरत महसूस हो रही थी । वे सोचने लगे कि  जितना हो सके सुमन के साथ रहने का सुख ही उनके लिए काफी है ।

  आज वे अपना आवेग रोक नही सके ,किचन में बातों ही बातो में सजल दा ने सुमन का हाथ पकड़ लिया । सुमन ने कुछ नही कहा । सुमन को अपने पास खीच कर उसे बाहों में भरकर उन्होंने उसके गाल पर एक दो चुम्मन जड़ दिए । प्यार की इस पहली कोशिश के दौरान सजल दा उत्तेजना से कांप रहे थे । सुमन बस सजल दा के साथ मौन खड़ी रही । अपनी गृहस्थी में शराबी पति से उसे सिर्फ प्रताड़ना ही मिली थी, रोज गाली गलौज से दिन की शुरुआत होती । आज उसके दिल की मरुभूमि में किसी ने प्रेम की शीतल वर्षा की थी । उसका मन हरिया गया। सजल के पास आने पर उसे भी सुकून मिल रहा था ।कुछ देर तक वेएक दूसरे से लिपटे रहे फिर दोनो अलग हो गए ।
  
   अब वे अक्सर किचन में  मन ही मन प्यार के नगमे गुनगुनाते एक दूसरे का हाल चाल जानते, अपना अपना दुखड़ा सुनाते ।  सजल दा के जीवन मे पहली बार किसी औरत ने एक दोस्त के रुप मे कदम रखा था । सजल दा और सुमन की दोस्ती दिनोदिन प्रगाढ़ होती गयी ।

उनका यह गुमनाम रिश्ता चलता रहा, दोनो एक दूसरे के काफी करीब आ चुके थे । सजल का कुछ भी सुमन से छुपा नही रह गया था ।

   इधर माँ ज्यादातर बिस्तर पर रहती थी । अब उनका खाना पीना भी बहुत कम हो गया था । सजल के साथ सुमन भी उनकी सेवा करती रहती अब वो ज्यादातर समय इसी घर मे रहती । इससे किसी को कोई आपत्ति भी नही थी । इस उम्र में उनके मिलने पर आखिर उन्हें कौन रोकता?  दोनो इस राह के अकेले मुसाफिर थे । वैसे भी इस शहर में किसको किससे मतलब होता है । भागते हांफते शहर के लोग अपनी फिकरो में उलझे किसी के घर भला क्यों झांकने लगे ।

आज माँ सुबह से बेहोश है । डॉक्टर आये है, उन्होंने जवाब दे दिया है । बड़ा सा घर खाली खाली खाली लग रहा है, जबकि सभी बहने आ गयी है और भी यार दोस्त आ गए हैं । सब दुःखी हैं दादा की आँखे  सूख नही पा रही हैं । शाम तक माँ ने अपनी आंखें बंद कर ली । घर मे रोना धोना बढ़ गया । उनकी अंत्येष्टि हो गयी । कुछ दिनों के बाद ब्राह्मण भोज ओर श्मशान बन्धुओ को भोजन कराया गया ।

     एक महीने बाद सजल दा से मुलाकात हुई । कुछ बातों के बाद जब घर का हाल चाल जानने की कोशिश हुई तो सजल दा फफक कर रो पड़े । उन्हें आज माँ की कमी बेहद खल रही थी । वो खुद को बेहद अधूरा महसूस कर रहे थे ।

   इतने सालों तक सजल दा से मैं मिलता रहा मैंने उन्हें कभी रोते नहीं देखा।
आज उन्हें रोता देख कर मैं समय के खेल को समझने की कोशिश कर  रहा था ।

     कब समय किस रुप मे आ जाय,,, ये जादूगर समय ही जानता है और वही इस सर्कस का मदारी भी  है ,जो हम बन्दरो को अपनी रस्सी से झटके मार मार कर अलग अलग रुप बनाकर नाचने को मजबूर कर देता है । कभी हंसीं का खजाना कभी गम की अंधेरी रातें ।

सजल दा का एक घर खाली हुआ था तो एक घर भर भी गया था । माँ की जगह तो सुमन कभी नहीं ले सकती थी पर ढाढस बंधाने के लिए उसका सहारा सजल दा के लिए बेहद जरूरी था । और वो ऐसा करने की भरसक कोशिश भी कर रही थी । आखिर उसे भी सजल दा से प्यार और हमदर्दी जो मिली थी । उसके सूने जीवन मे सजल दा की मौजूदगी मायने रखती थी ।


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