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बर्फ के पहाड़

हम सभी मित्र गर्म मैदानी इलाको के रहने वाले थे इसलिए बर्फ के पहाड़ हमे बहुत आकर्षित करते थे। हमारा एक दोस्त दिनेश एक दो बार उन पहाड़ो से घूम कर आ चुका था इसलिए कुछ ज्यादा आत्मविश्वास में था ।
कल जब हम एक दोस्त की बर्थ डे पार्टी में थे, तब उन पहाड़ो के हसींन नजारे बता बता कर वो इस बार हम सबको वहाँ जाने के लिए मना लिया था और न केवल हमें बल्कि हमारी बीवियां को भी उस रोमांचक सफर पर जाने के लिए उसने राजी कर।लिया था ।

तय समय पर हम पांच दोस्त और हम सबकी पत्नियां पूरी तैयारी से निकल पड़े । पहले ट्रेन का लंबा सफर तय करना पड़ा फिर एक स्टेशन में उतर कर किराए की टेक्सी से हम पहाड़ो की ओर निकल पड़े । रास्ते मे कहीं गाड़ी रुकती तो गाड़ी से उतरने पर ठंड का अहसास होता । वाकई यहां बेहद ठंड थी ।

हम सब गरम कपड़ो के साथ थे सो चिंता नही थी ।हम देर रात होटल पहुंचे, यहाँ का होटल भी तम्बुओं के सहारे था । नीचे लकड़ियों की फ्लोरिंग थी । हम सबने साथ साथ खाना खाया,खूब गप्पशप लगाई और कल सुबह से पहाड़ की चढ़ाई  के बारे में सोच सोच कर रोमांचित हो रहे थे ।

सुबह सब चलने के लिये तैयार थे । उस ओर जाने वालों की बहुत भीड़ थी । हम भी अपनी तैयारियों के साथ निकल पड़े । हम सब साथ साथ थे । इस यात्रा में हमारे बीच ये तय था कि हम सबको वहां पहुंच कर वहां के आरक्षित तम्बुओं में जो एक अत्यंत सुविधाजनक कमरे के समान था,जो हमारे नाम से आरक्षित था, उसमें रात गुजारनी थी और दूसरे दिन फिर पहाड़ों के रास्ते वापस आना था ।

हम साथ साथ चल रहे थे आसपास का नजारा बेहद खूबसूरत था । बर्फ से ढंकी चट्टाने,पेड़ों की नुकीली पत्तियों पर बर्फ के मोती जैसे कण चिपके थे । दूर दूर तक पहाड़ो की लंबी श्रृंखला जिनके ऊपर बर्फ छाई हुई थी । सब ओर हरा भरा और सफेद बर्फ का नजारा था ,दूर पहाड़ो में याक ,भेड़े और घोड़े चरते दिख रहे थे ।

रास्ते मे भीड़ ज्यादा थी इसलिए पहाडों के
संकरे रास्ते मे कभी कभी जाम लग जाता था । इस भीड़ भाड़ में हम अक्सर एक दूसरे से अलग हो जाते ,लेकिन फिर सब एक दूसरे से मिल जाते । यहां का मौसम अब तक तो ठीक ठाक था पर गरम कपड़े पहनने के बावजूद हमे ठंड लग रही थी और ज्यो ज्यो हम ऊपर बढ़ रहे थे सांस लेने में भी कठिनाई हो रही थी और अब बारिश भी शुरू हो गयी थी , पहाड़ में कही छांव नही थी ,सो हमे बढ़ते ही जाना था । हम चल रहे थे, हमारे साथ और भी लोग थे और तभी सामने के पहाड़ से ढेर सारी मिट्टी और कीचड़ का रेला तूफान की तरह आया, जो हमारे रास्ते की तरफ था । उसका बहाव इतना तेज था कि सब लोग तीतर बितर होकर यहाँ वहां गिर पड़े। सामने का रास्ता बंद हो गया था और हममे से बहुत से लोग फिसल कर नीचे आ गए थे । जहां मिट्टी और बर्फ बहुत ज्यादा थी । नुकसान ज्यादा नही हुआ पर हम सब एक दूसरे से बिछड़ गए, किसी को किसी की सुध बुध नही थी । किसी तरह हम सम्हले फिर एक दूसरे की खोज खबर ली पर किसी का कोई पता नहीं चल रहा था । और जो सबसे ज्यादा जरूरी था कि हम सबको अंधेरा होने के पहले वहाँ पहुँच जाना था । किन्तु अब रास्ता साफ न होने के कारण हमें अपने हिसाब से आगे बढ़ना था जो बेहद जोखिमभरा था । इस भगदड़ में मैं ओर मेरे दोस्त की पत्नी रेखा साथ रह गए थे। मेरी पत्नी कहाँ थी और मेरे और दोस्त कहाँ थे ये कुछ भी पता नही चल रहा था और बदकिस्मती ये कि यहाँ किसी का मोबाइल भी काम नही कर रहा था ।

अब हमने निर्णय लेना था कि हम आगे बढ़े और अब कम से कम हम न बिछड़े, ये सोच कर मैं और रेखा एक दूसरे का हाथ पकड़कर आगे बढ़ने लगे । अचानक आयी ये आपदा ने हमारा सारा प्लान चौपट कर दिया था और हमे बेहद चिंता में डाल दिया था, हम लगभग असहाय थे क्योकि संपर्क का कोई साधन नही था । और अब किसी तरह यहाँ से बच निकलने की चिंता हमे सता रही थी ,क्योंकि यदि हम यहां से नही निकले तो कोई सहायता नही मिलने वाली थी और हम बर्फ हो जाते ,बाकी साथियों के बारे में आशंका बनी हुई थी कि वे किस हाल में होंगे ।

हमारे साथ इधर उधर बिखर गए लोगो का सैलाब फिर से चल रहा था । सभी चिंतित थे क्योंकि हल्की बारिश से ठंड के कारण हड्डियां कांप रही थी।
मैं और रेखा साथ साथ चल रहे थे, पर रेखा की चाल बहुत धीमी थी जिसके कारण हम बहुत पीछे थे । बर्फ होने के कारण स्टिक गड़ा गड़ा कर बढ़ना हो रहा था । आखिर जिसका डर था वही हुआ मंजिल दूर थी और रात का अंधेरा घिर आया । अब तो आगे बढ़ना और भी मुश्किल हो रहा था । पर हम एक दूसरे का हाथ थामे चलते रहे । मोबाईल तो बंद थे पर उसकी लाइट काम कर रही थी ,चलते चलते आखिरकार हमे दूर कुछ प्रकाश दिखाई दिया । हम उस ओर बढ़ते रहे एक आशा की किरण दिखाई दी कि हम किसी सुरक्षित स्थान में आ गए थे ।

हम जहाँ पहुँचे वहाँ कुछ घोड़ेवाले और टेंट वाले थे, जिन्होंने अपने ठहरने के लिए टेंट बना रखा था और कुछ किराए से भी अपना टेंट दे रहे थे क्योंकि अब पूरी रात सबको यहीं कहीं न कहीं रुक जाना था । आगे का सफर सुबह ही शुरू किया जा सकता था । हमने वहीं उनके बीच रुकने का फैसला ले लिया।

इस अंजान,अंधेरे, बर्फ से ढंके चारो ओर पहाड़ों के बीच एक छोटे से मैदान में कुछ तम्बुओं के बीच मैं और रेखा पूरी रात बिताने के लिए मजबूर थे । कौन कहाँ था किसी को पता नही, मेरी बीवी मेरे दोस्त कहाँ थे कुछ भी पता नही था । और यहाँ भी यदि हमने जल्दी नहीं की तो ये तम्बू भी मिलना मुश्किल था । मैंने एम तम्बू वाले से बात की उसने बताया कि उसके तम्बू में सिर्फ एक तखत थी और एक रजाई ,जिसमे दोनो को एडजेस्ट होना था ।
तम्बू वाले ने हम दोनो को पति पत्नी मान लिया था, सो उसने हमसे यही कहा कि ,साहब यहाँ तो ऐसा ही मिलता है जोड़ो के लिए । यदि हम वो तम्बू नही लेते तो मुश्किल और बढ़ जाती । हल्की बारिश हो रही थी । हमने उसके मुह मांगे दाम पर वो जगह ले ली ।

रात के आठ बजे थे हमे भूख भी लग रही थी । हम बहुत देर से चल रहे थे, सो थककर चूर थे । उस तख्त पर बैठने से ही हमे काफी राहत मिली । इस तखत में मोटे ऊनी गद्दे बिछाए गए थे। रेखा के पैर में सूजन आ गयी थी क्योंकि ऊंचे नीचे पथरीले रास्ते पर कई जगह पैर मुड़ जाते थे ।

खाने का कुछ समान तम्बू वाले ने दिया और कुछ हमारे बैग में मिल गया । हमने वही खा लिया । इस बीच हमने कुछ घोडेवालो से मदद भी मांगी कि वे पैसे लेकर हमे आगे छोड़ दें पर रात को जाना सम्भव ही नही था । उन्होंने साफ इंकार कर दिया।

मजबूरन मुझे और रेखा को साथ सोना था । दो जवां दिल जो किसी और के साथ जीवन मरण के संकल्प से बंधे थे नियति किस मोड़ पर लेकर आई थी कि एक बेहद छोटे से उस तख्त पर एक छोटी रजाई के साथ चिपक कर पूरी रात सोना था ।

हम बहुत देर तक उसमे बैठे रहे । बाहर सन्नाटा था कहीं कोई नही था । पर बारिश के साथ बर्फबारी होने से रात और भी ज्यादा ठंडी और भयावह हो गयी थी । हम दोनों से बैठा न गया । रेखा एक किनारे पर लेट गयी और उस रजाई को अपने ऊपर डाल लिया । मैं संकोच में वहीं बैठा रहा पर मेरी हालत भी बहुत खराब हो रही थी।
फिर मेरे इस संकोच को रेखा ने ही तोड़ा
उसने कहा,," समीर यदि हालात इतने खराब है जिसके लिए हम जिम्मेदार नही तब अपनी जिंदगी को बचाने के लिए ये संकोच छोड़ना ही होगा वरना हममे से कोई एक सुबह का सूरज नही देख पायेगा। अभी जो सबसे ज्यादा जरूरी है वो ये कि हम अपनी जिंदगी बचाएं । आप बेशक मेरे पास आकर सो सकते हैं ।

रेखा के ऐसा कहने पर मेरे भीतर का डर और संकोच जाता रहा । मैं उसकी ओर देखता रहा, उसकी सूझ बूझ मेरे दिलो दिमाग पर असर कर गयी । पर मेरी धड़कन बढ़ गयी ,मैं थरथराता हुआ धीरे से उसके बाजू में लेट गया । उसने रजाई के भीतर मुझे ले लिया । अब हम दोनों एक ही रजाई में लिपटे साथ साथ थे । ऐसा करने पर हमें बहुत राहत मिली । थका हुआ ठंड से ठिठुरता हुआ शरीर अब बहुत राहत महसूस कर रहा था ।

हम अपनी अपनी अपनी मर्यादा की रक्षा करने की भरसक कोशिश कर रहे थे ,पर एक ही करवट में आखिर किस तरह रहा जा सकता था । पहले तो हम 36 बने हुये थे फिर 63 होना ही था । और फिर युवा दिलों की बात ही कुछ और होती है ,वो तो एक चिंगारी से शोला बनकर भभक उठती है । हमारे भीतर भी कुछ कुछ होने लगा नींद हमसे बहुत दूर हो चुकी थी

हम बेहद करीब आ गए । उसके हाथ मेरे कंधे पर थे और मेरे हाथ उसकी कमर पर । रेखा और मैं रजाई के साथ साथ अपनी देह की गर्मी से ठंड से अपना बचाव कर रहे थे । ये इम्तहान का दौर था जब मौसम,दुर्घटना,स्थान, जिंदगी बचाने का संघर्ष एक साथ हमारे दिल में कुछ कुछ कर रहे थे ।

रजाई हमारी ठंड दूर करने में नाकाम रही,रेखा रजाई में भी काँप रही थी और मैं भी । तब हम दोनों ने एक दूसरे को लपेट लिया और मेरी उत्तेजना बढ़ने लगी । वह भी उत्तेजित हो गयी । हमने एक फैसला ये किया कि हम उतेजित होकर एक दूसरे को प्यार जरूर करेंगे पर चरम में जाकर खुद को ठंडा नही होने देंगे । ठंडा होना हमारे लिए बेहद घातक होता ।

मैने रेखा के अंगों को सहलाना शुरू कर दिया । वह भी मुझे प्यार करने लगी। हम सुखद अहसास में डूबने लगे ,हमने एक दूसरे को गरम रखने की पूरी कोशिश की। हम हंसी मजाक और दूसरी बातो में मजा लेने लगे । इस तरह हमारे बीच की दूरी खत्म हो गयी । मैंने उसे अनावरित कर दिया, उसने भी मुझे पूरी तरह देख लिया । हमारे हाथ एक दूसरे के अंगों को देर तक सहलाते रहे,,उसके उन्नत उरोजों का स्पर्श मुझे उत्तेजित कर रहा था । हम बेहद गर्म हो गए थे और इस गर्मी के साथ हमने उस जानलेवा रात से आखिरकार मुकाबला कर ही लिया । संकोच न रह जाने के कारण अब हमे नींद आने लगी ।

सुबह देर तक हम गहरी नींद में रहे । एक दूसरे से लिपटे हम प्यार के नए मीठे अहसास के साथ खुद को बहुत हल्का महसूस कर रहे थे ।

सुबह गरमा गरम चाय की प्याली से टेंट वाले ने हमारा स्वागत किया हमने खुद को तैयार कर आगे की चढ़ाई के लिए इस बार घोड़े वालो को साथ लिया । वे हमें नियत स्थान तक ले गए । वहां पहुचने पर पता लगा कि मेरी पत्नी बिंदिया और दोस्त राकेश की पत्नी किसी तरह यहां तक पहुँच गए थे और उन्हें एक कमरा मिल गया था। राकेश और समीर ने एक साथ हमारी तरह किसी तम्बू में रात गुजारी थी। उन्होंने रात को शराब और कुछ नॉनवेज का इंतजाम करवा लिया था । दिनेश और गोपाल अपनी अपनी पत्नियों के साथ थे ,उन्हें कुछ ज्यादा परेशानी नही हुई क्योकि वे शुरू से आगे चल रहे थे और बिछड़ने के बाद भी वे अपने केम्प तक पहुँच गए थे । उन्होंने हमारी बहुत खोज खबर ली ,पुलिस को सूचना दी, देर रात तक हमारा इन्तजार करते रहे पर ये इलाका ऐसा था कि रात होते ही सारी गतिविधियां बन्द हो जाती थी।

आखिरकार हम सब मिल गए थे। पहाड़ के बदलते भयानक मिज़ाज के दर्शन हम सबको हो गए थे, पर हम सब सही सलामत थे यही बात महत्वपूर्ण थी । हमने एक दूसरे को गले लगा लिया । मेरे और रेखा के बीच जो कुछ हुआ वो मेरे ओर उसके दिल की गहराइयों में राज बनकर दफन हो गया, हमने उसका जिक्र किसी से नही किया । हमने उन्हें अपने दोस्तों को इतना बताया कि रात हम किसी और पति पत्नी के साथ एक टेंट में रहे ।

हम सब वहां के खुबसूरत नजारे का मजा लेकर वापस हेलीकॉप्टर से अपने होटल वापस आ गए ,फिर एक दिन वहां रहकर हम सब वापस अपने घर की ओर रवाना हुए ।
इस यादगार सफर में जो खास हुआ वो मेरे और रेखा के बीच था ,जो बहुत दिनों तक मेरे दिल दिमाग पर छाया रहा ,,,शायद रेखा के भी दिल मे ऐसा कुछ हुआ हो पर मुझे लगता है कि बच्चे और पति की देखभाल में मशगूल रेखा इसे ज्यादा दिन तक याद नही रख पाई होगी पर उसने जिस साहस से मेरा साथ दिया और मेरा संकोच दूर किया वह मेरे लिए यादगार था उसने उन विपरीत परिस्थिति को सम्हाल लिया था और उस घटना के बाद उसने अपने परिवार में इस तरह रच बस गयी थी कि मानो कुछ हुआ ही नही ।

हम सभी मित्र जब भी मिलते उस रोमांचक सफर का जिक्र जरूर करते पर रेखा के चेहरे का भाव वैसा ही रहता, एकदम सामान्य,,,वो हम सबके साथ उसी तरह हर बात का मजा लेती।

उसके दिल की समुद्र की गहराइयों में वो बात कहीं गुम हो गई थी,,,,


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