"जानते है पांडे जी गरीबी के साथ जब दरिद्रता आती है तब जीवन नर्क लगता है ,,,,'
अपनी कटी हुई हथेली को देखते हुए राज ने कहा,,
"पांडे जी, जब गावँ में हम चार भाई साथ साथ थे तब कुल एक बीघा जमीन की फसल से सबका परिवार चलाना बहुत मुश्किल हो गया ,,,
घर की जरूरतें जब पूरी न हों तो कलह,तनाव, और अशांति बनी रहती है,बात बात में ओरतों के बीच बहस होने लगती, तब मैंने ठान लिया कि अब यहां नही रहना है ।
मैं अपना परिवार लेकर शहर आ गया ,,चाचा चन्दकान्त जी ने मुझे बुलवा लिया था । उनकी एक ट्रांसपोर्ट कम्पनी के मैनेजर से पहचान थी ,उनसे कहकर उन्होंने मुझे वहाँ लगवा दिया । चाचा जी की इस शहर में छोटी सी डेयरी थी ,दूध दही बेच कर वे अपनी जीविका चला रहे थे।
प्राइवेट कम्पनी में नॉकरी से मिलने वाली आय में घर का किराया,राशन पानी का जुगाड़ बेहद मुश्किल था, पर मैं उस दरिद्रता के दंश से मुक्त था जो गांव के घर मे था । खींचतान कर गृहस्थी चल रही थी, फिर ख्याल आया कि ऑफिस के बाद कुछ और काम करना चाहिए ।
चाचा जी से सलाह ली ,,
उन्होंने कहा, " देखो बचवा इहाँ गाय भैंस के चारा नही मिलत आय, तुम चाहो तो ये काम कर सकते हो,गांव से पैरा, घास मंगवा लेव अउ ओका काट के वेचेव ,दुइ पैसा मिल जाब,,,"
"पांडे जी हमे यह सलाह जच गयी ,हमने किराए का एक मकान ले लिया और घास चारा काटने की मशीन बैंक से स्वीकृत करा ली। शहर की जितनी भी डेयरी थी सबसे मिल आय । हमारा ये काम चल पड़ा, हम ऑफिस से लौटते और फिर मशीन से चारे की कटाई कर उसे भिजवा देते । "
काम का बोझ दुगुना हो गया ,दिनभर कम्पनी में लिखा पढ़ी और शाम से देर रात तक चारे की कटाई । थकान और नींद की हमने अनदेखी कर दी।
एक शाम हम मशीन में लगे थे ,बारिश की वजह से नमी के कारण घास गीली थी । हम मशीन में उसे ठूंसे जा रहे थे ,मशीन जाम , हम उससे थोड़ा लापरवाही कर गए । चालू मशीन में हमने हाथ डाल कर गीली घास बाहर निकालने की कोशिश की ओर मशीन तेजी से चलने लगी ,हमारा पंजा मशीन की तेज ब्लेड में चला गया,,एक जोरदार चीख निकली, खून की धार फुट पड़ी और आगे हमे याद नही । हमे तो जब होश आया तब लगा कि दाहिने हाथ मे दर्द है । हमारी पत्नी कांता हमारे सामने रोती खड़ी थी । और रोते रोते हमसे कह रही थी ।
दाऊ जी आपका दाहिना पंजा नही रहा,,,!
हमे तो काटो तो खून नही ,,जिस हाथ से लिखते थे, जिससे हमारा जीवन चलता था, वही गायब हो गया
हम अब क्या करेंगे ,,,हम गहरी निराशा में डूब गए। अब कम्पनी नॉकरी में नही रखेगी,,मशीन कौन चलाएगा, मोपेड कैसे चलाएंगे,,,मतलब सारी आवक बंद,,,हे भगवान ये कौन सी सजा दिए ,?हमे बच्चे अभी बहुत छोटे हैं कैसे होगा ?
हम कुछ दिनों में अस्पताल से घर आ गए ,खाली खाली एक हाथ से अपाहिज ,,पत्नी ने थोड़ा बहुत काम सम्हाल लिया पर हमें लगा कि हम तो मोहताज हो गए । फिर एक दिन चाचा जी आये,कम्पनी से मिल कर, हमे धीरज बंधाया कि दाहिना हाथ काम नही कर रहा तो क्या हुआ बायां तो है उससे शुरू करो,उससे लिखना आ जायेगा तो फिर से काम पर आ सकते हो,,कोशिश करने वाले कि कभी हार नही होती । उनके इतना कहते ही हमारे दिमाग मे बिजली कौंधी ।
बस हमने सबसे पहले बेटे की स्लेट और पेंसिल मंगाई और उसमें क, ख ,ग ,घ , लिखना शुरू किया ।हम ओर हमारा बेटा दोनो अब प्राथमिक कक्षा के छात्र थे । हमारी गति बढ़ती गयी हम रोज घण्टो बाएं हाथ से लिखने का अभ्यास करते । फिर मैकेनिक से अपनी मोपेड का बाएं हाथ मे ब्रेक,एक्सीलेटर,सब करवा लिया और उससे चलाने का अभ्यास करते । मेहनत रंग लाई और हम फिर से काम पर लग गए।
एक दिन जब हम अपनी मशीन के करीब गए तो लगा कि वो हमसे माफी मांग रही है । पर वो बेजान तो हमारे ही हाथों की गुलाम है । उसकी क्या गलती ,,
दस साल बाद पांडे जी से हमारी मुलाकात हुई, तब उन्होंने बताया कि भाई राज आज भी अपनी मोपेड से काम पर जाते हैं, चारे की कटाई और बिक्री का काम भी बढ़ गया है । उन्होंने अपना खुद का मकान और दुकान कर लिया है ,और बच्चे बड़े हो गए हैं थोड़ा बहुत काम सम्हालने लगे हैं । पर वे भी बैठे नही,, अब वे अपनी कालोनी में ठुठुआ महाराज के नाम से जाने जाते हैं।।
आज पांडे जी हमे रास्ते में मिल गए कहा कि "यार ये बताओ तुमने राजेश खन्ना की फ़िल्म अवतार देखी है? ,
मैने कहा "हां " तो उन्होंने कहा कि कहानी तो बिल्कुल हमारे राज भइया से मिलती जुलती है,,
हमने कहा "जिंदगी का संघर्ष ही तो फ़िल्म है ,,बुरे हालात से हार नहीं मानना,,,
और वो फिल्म हौसले की उड़ान की कहानी तो है,,,,