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आलमारी

*वो पुरानी लकड़ी की आलमारी*

वो पुरानी लकड़ी की आलमारी ,,,आज भी उस पुराने कमरे मे जो वैसा का वैसा ही है, उसके एक कोने में धरी की धरी है । नए कमरे बन गए । सब लोग नई जगह में, नए रंगरोगन से सजे कमरों  में, बड़े बड़े पलंग  और गद्दों में रहने लगे हैं ,पर वो आलमारी स्टोर के उस पुराने कमरे में अपने सीने मे हमारी जरूरत का सामान समेटे वैसी ही खड़ी है।
    जब मैं छोटा था तब उसके ऊपर के हिस्से को नही देख पाता था  ,तब पिता की गोद मे मचलता था और तब पिता जी उसके ऊपर का हिस्सा मुझे दिखाते । वहां रोज की जरूरत की कुछ चीजें रखी होती ।
   जिंदगी चलती रही,,, बढ़ती रही,,,,हम अपनी फिकरों में उलझ गये,,, हमारा कद लंबा हो गया ,,, उसका जो हिस्सा बचपन मे नही दिखता था,वो अब दिखने लगा है और हमारी जिज्ञासा खत्म हो गयी । उसके ऊपर मैं कभी पेन,कापियां रखता रहा, फिर पर्स । मेरे बच्चे भी वैसी ही जिद कर उसके पल्लों से खेलते, उसके भीतर का सामान बिखेरते बड़े हो गए ।।
इतनी साधारण सी बात आखिर मैं क्यो कह रहा हूँ ।

क्योकि साधन जरूर बदल जाते हैं पर अहसास नही ,,,आज उससे महंगी ओर उससे ऊंची चीजें आ जाएंगी पर उनसे अहसास नही बदलते,,,कुछ गुमान,कुछ गुरुर हो सकता है अपनी बटोरी चीजों का , पर एक खालीपन के पसरते ही वही स्वाद मुँह में आ जाता है । वो स्वाद मुफलिसी मे भी और भरा पूरा होने पर भी बना ही रहता है।
     सच है कि हमारा अपना वह रूप कभी नही बदलता ।।

मदहोश भागते भागते किसी ठोकर से गिर पड़ो (क्योकि कोई होश में नही दौड़ रहा )और वक्त जब किसी एक जगह पर देर तक बैठने को मजबूर कर दे, तब वही सारी चीजें अपनी बात कहने लगते हैं ,,,और उन सबसे खालीपन भरने लगता है, जिंदगी उन्हीं गुजरे पलों के साये में चली जाती है।
        वो आलमारी आज मुझसे मौन कुछ बातें कर रही है । वो मुझे अपना बचपन याद दिला रही है ,उसके पल्ले मुझे वो खेल याद दिला रहे हैं,, ,,वो खामोश होकर भी बहुत कुछ कह रही है ,,इतने वर्षों में मुझे कितने दुःख, कितने सुख मिले मुझे बता रही है ,,वो आज भी मेरी गृहस्थी का कुछ सामान समेटे मेरी सहायता कर रही है बड़े मकाानों के बन जाने के बाद लोग 

ऐसी चीजों को बेसमेंट में  कबाड़ में डाल देते हैं ,पर आजकल इसे एंटीक बता कर इसका भी बाजार बन गया है जिसे बड़े दामों में खरीद कर लोग अपने घरों में इंटीरियर डेकोरेशन में इस्तेमाल कर रहे हैं ।

पुराने ग्रामोफोन,दीवाल घड़ियां, बर्तन,लकड़ी की आलमारियां,लोहे के संदूक, जेवर के बक्से,पानदान,पीकदान आदि जो समय के साथ पुरानी हो गयीं पर जिनसे यादें जुड़ी होती हैं, जिनके साथ जिंदगी अपना ताना बाना बुनती है उन्हें साथ रखने का एक भावनात्मक लगाव होता है,,,,

आखिर यादों से आदमी मुक्त कहाँ हो पाता है जब भी दिल उदास हो,तन्हा हो यादे घेर लेती हैं।या कभी पुरानी यादों के बार बार आने से भी दिल उदासी में डूब जाता है । दिल बार बार उन्ही दिनों में जाना चाहता है,,,,


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