मेरी कहानी Ajay Kumar Awasthi द्वारा लघुकथा में हिंदी पीडीएफ

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मेरी कहानी

मेरे पास बहुत महँगे कपड़े थे, पर जब मैं उन्हें पहनता तो उसकी तारीफ़ करने वाला कोई नही मिलता . मेरा बहुत बड़ा मकान है ,जो महँगे समानो से भरा पड़ा है,पर उन्हें देखने वाला कोई नही है . मेरे इस घर में मेरे अलावा अब कोई भी नही . मेरा एक बेटा है, जो अपनी बीवी बच्चों के साथ किसी दूसरे शहर में मौज में है . मेरी बीवी पिछले साल दुनिया से चली गयी .

अब मैं इस बड़े बंगले में अकेला रहता हूँ . कुल जमा एक संतान वाली मेरी गृहस्थी का कल बेहद ख़ूबसूरत था . अपने मा बाप की मैं चौथी संतान था ,पर मैं नौकरी के सिलसिले में बाहर ही रहा . इसलिए मैं सब भाइयों ओर माँ बाप से अलग रहा . उनके आपसी झगड़े से दूर रहा , तब मुझे लगता था कि मैं अपने बड़े भाइयों के परिवार से दूर रहकर सही फ़ैसले पर हूँ . आज मैंने दौलत तो बटोर ली पर उन रिश्तों को खो दिया .

अब उनसे दूर रहकर मुझे इस अकेली वीरान हवेली में दिन बिताना नर्क के समान लगता है .
टेलिविज़न,मोबाईल सब उबाऊ लगते हैं . बेटे का कभी कभी फ़ोन आ जाता है . मैं चाहता हूँ कि वो अब मेरे साथ रहे पर बहु नही आना चाहती . मैं हर रोज़ उठता हूँ सारा दिन बीती बातों को याद करता रहता हूँ . इसके अलावा कुछ है भी नही .जब पत्नी थी तो कार में कहीं घूमने चले जाते थे . कहीं किसी चोराहे की किसी अच्छी सी केंटिन में बैठ जाते . ज़्यादा कुछ खा पी तो सकते नही क्योंकि जीभ तो वैसी ही है पर बाक़ी सब कमज़ोर और बीमार हो गया है .

इसी तरह दिन कटते जा रहे थे .उदास सी सुबह,अलसायी दोपहरी,ऊंघती सांझ और सन्नाटे भरी रात,,,,इस शहर में बहुत शोरगुल है, पर मेल मिलाप नही,,,सबको पैसे की पड़ी है .
इस बेगानी बस्ती में ,,,मेरे बडे से खाली घर में मैं अकेला यूं ही टहल रहा था कि अचानक एक सुबह सुबह मेरे सिर में तेज़ दर्द उठा ओर मैं गिर गया,, फिर बेहोश हो गया और अब मुझे लग रहा है कि, मैं किसी अंधेरी गुफा में भटक रहा हूँ . जहाँ कोई सुबह नही,,, कोई शाम नहीं ,,,जहां मैं नही हूँ . जैसा मुझे लग रहा है मैं तस्वीर बनकर टांगा गया हूँ . मेरी बहु मेरी तस्वीर के सामने बड़ी श्रद्धा से दीपक जलाती है,कुछ फूल चढा रही है, फिर सारा दिन उसकी ओर उसके जैसी और भी ओरतों के साथ धूम धड़ाके की महफ़िल सजती है . मेरे करम ऐसे रहे कि मैं मरकर भी ज़िंदा हूँ ओर अपनी दुर्गति देख रहा हूँ . ये संसार सिर्फ़ अपनी ज़रूरत पूरी करता है , यहाँ केवल और केवल अपना स्वार्थ है . मुझे मरके भी चैन न मिला .
काश,,,, ज़िंदा रहते मैं अपनो में बँट जाता. उनका हो जाता ,अपना घमंड छोड़ पाता . अपना स्वार्थ छोड़ पाता ...मिलके रहता तो शायद मरके भी इस अपमान को सह नही रहा होता,,,

जिंदगी बहुत अनमोल है दोस्त पर उससे भी अनमोल है प्यार,इंसानियत, हमदर्दी, और एक दूसरे का साथ ,,,और ये तब बना रह सकता है जब इंसान अपना स्वार्थ और लालच कम करे,,, वो पैसे को इतना अहमियत न दे कि रिश्तों की डोर टूट जाए,,,

मेरी ये कहानी आपका अफ़साना बन गई है,,,
क्या आप कहीं इस दौर से तो नही गुजर रहे यदि।हां,,,,
तो बेइंतहा मोहब्बत बाटों,,, खुद की शिकायते भूल जाओ,,,,बची जिंदगी में इसे अपनी आदत बना लो,,,हंसो मुस्कुराओ हर दिन की सुबह को धन्यवाद दो,,,मौन हो जाओ,,सबको सहज स्वीकार कर लो,,,