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जीवन चक्र

जीवन चक्र

म.प्र. के सुप्रसिद्ध शिशु रोग विषेषज्ञ डा. कंवर किशन कौल (86 वर्ष) मूलतः काश्मीर के निवासी है। वे मेडिकल कालेज जबलपुर में शिशु रोग विभाग के विभागाध्यक्ष रहे है एवं मेडिकल कालेज के डीन के पद से सेवानिवृत्त होने के पश्चात चार वर्ष के लिये सऊदी अरब के दम्माम विश्वविद्यालय में शिशु रोग विभाग में प्रोफेसर के पद पर अपनी सेवाएँ प्रदान कर अब अपने गृहनगर में सेवाएँ दे रहे है।

डा. कौल ने बताया कि हमें अपने खाली समय का सदुपयोग करना चाहिए यही जीवन का मूल मंत्र है। मैं ऐसे समय का सदुपयोग कम्प्यूटर सीखने के साथ साथ, अंग्रेजी और हिंदी में कविताएँ एवं उर्दू में शेरों शायरी लिखने में करता हूँ। मुझे भारतीय शास्त्रीय संगीत से बहुत लगाव है। मेरी साहित्य में भी बहुत रूची है और मेरे द्वारा लिखित एक पुस्तक ‘व्हेन माय वैली वास ग्रीन’ काफी प्रसिद्ध हुई है।

मेरे एक विद्यार्थी ने एक बार पूछा कि आप कैसे है ? मैंने उससे कहा कि मैं वृद्धावस्था के प्रथम चरण में हूँ, उसने हैरान होकर मुझसे पूछा कि जीवन में वृद्धावस्था के कितने चरण होते है? मैंने मुस्कुराते हुए उससे कहा कि तीन चरण होते है। पहला चरण जीवित और क्रियाशील रहना, दूसरा चरण जीवित रहना परंतु निष्क्रिय रहना और तीसरा व अंतिम चरण जीवन में कुछ भी ना करके जीवित रहने के लिये खेद प्रकट करना। जीवन और मृत्यु के लिए कुछ कहना मेरी क्षमता से बाहर है परंतु इतना कह सकता हूँ कि इस विषय को विस्तारपूर्वक समझने के लिए श्रीमदभगवद्गीता को पढे। हमारे सभी प्रश्नो एवं शंकाओं का उत्तर उसमें समाहित है। हम सभी को यह मालूम है कि मृत्यु एक दिन होना ही है हमे ईश्वर से यही प्रार्थना करना चाहिए कि यह शांतिपूर्ण, दर्द एवं पीडारहित हो।

डा कौल ने एक घटना के विषय के में बताया जिसके दर्द की टीस आज भी उनके मन को विचलित कर देती है। यह बात अगस्त 1956 की है, एक सडक दुर्घटना में मेरा परिवार बुरी तरह से प्रभावित हुआ। इस कार दुर्घटना में मैंने अपनी माँ, बडी बहन और उनकी सास को खो दिया। यह दुर्घटना श्रीनगर के पास ही हुई थी। बारिश के कारण सडक किनारे कीचड हो गया था और कार फिसल कर उलट गई। इससे उसमें आग लग गई। आसपास के गांव वाले बमुष्किल मेरी सबसे बडी बहन और एक रिष्तेदार का बचा पाए जो जलने से जख्मी हो गए थे। जीवन में स्थापित होने और अपना परिवार होने के बाद मेरी माँ का एक दिन मेरे साथ आकर रहने का सपना था और वे अपने पोते के जन्म का इंतजार कर रही थी पर मौत के क्रूर हाथों द्वारा हमसे छीन लिए जाने के पाँच महीने बाद इसका जन्म हुआ। उनकी मौत का डरावना अनुभव मुझे आज भी सताता है खासकर उनके आधे जले शरीर को चिता पर रखकर मुखाग्नि देना जो एक बेटे के रूप में मैंने किया और पीडा को मैं षब्दों में बयान नही कर सकता।

हमें समाज के प्रति सेवाभावी दृष्टिकोण रखना चाहिए। एक दिन मुझे मालूम हुआ कि एक साध्वी महिला गरीब बच्चों के लिए निशुल्क शिक्षा प्रदान करती है एवं गरीबों की यथा संभव मदद अपने सीमित साधनों से करती आ रही है। मुझे उनके द्वारा किये जा रहे अच्छे कार्यों को देखने का सुअवसर प्राप्त हुआ। इससे प्रभावित होकर मैं पिछले चार वर्षों से वहाँ अध्ययनरत विद्यार्थियों को निशुल्क चिकित्सा सुविधाएँ उपलब्ध करा रहा हूँ जिससे मुझे अत्याधिक मानसिक शांति, संतोष एवं खुशी प्राप्त होती है। अंत में उन्होने कहा कि हमें जीवन में यह नही सोचना चाहिए कि हमारे परिवारजन और समाज के लोग हमारे लिए क्या कर रहे है ? बल्कि हमें बिना किसी आशा के उनकी मदद करनी चाहिए। मेरा यही कहना है कि जब तक जीवन है तब तक संघर्षशील रहकर नैतिकता एवं ईमानदारी से अपने कार्य के प्रति समर्पित रहते हुए जीवन जिये।

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