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फातिहा

फातिहा

हिमाच्छादित पर्वतों के बीच, कल-कल बहते हुए झरनों का संगीत, प्रकृति के सौन्दर्य को चार चाँद लगा रहा था। कश्मीर की इन वादियों में पहुँचना बहुत कठिन है। चारों ओर ऊँचे-ऊँचे पर्वत और गहरी खाइयाँ हैं। इसी क्षेत्र में भारत और पाक की सीमा है। यह क्षेत्र सामरिक दृष्टि से दोनों देशो के लिये बहुत महत्वपूर्ण है। हमारे देश की सीमा में अंतिम चौकी पर मेजर राकेश के नेतृत्व में सेना एवं कमाण्डो दल देश की सीमाओं की रक्षा करने के लिये तैनात था। राकेश को हैडक्वार्टर से गोपनीय सूचना प्राप्त हुई कि आज रात को पाक सेना के संरक्षण में दुर्दान्त आतंकवादियों को हमारी सीमा में प्रवेश कराया जाएगा।

राकेष ने अधिकारियों को आश्वस्त करते हुए कहा कि आप निश्चिंत रहिये, हमें इस दिन का बहुत दिनों से इन्तजार था। हम उनके स्वागत के लिये तैयार हैं। यह कहकर उसने अपनी योजना के अनुसार फौजियों को तैनात कर दिया। उसने इस प्रकार की व्यूह रचना बनायी थी कि भारतीय सीमा में आतंकवादी प्रवेश तो कर जाएं किन्तु फिर उन्हें घेरकर उनका काम तमाम कर दिया जाए। वह चाहता था कि आतंकवादी भी बचकर न जा पाएं, हमारी सेना को भी कम से कम क्षति हो और हम अपने उद्देश्य में सफल रहें।

रात्रि का दूसरा पहर समाप्त होने को था, अभी तक उस ओर से कोई हलचल नहीं दिख रही थी। राकेश और उसके सहयोगियों को यह लगने लगा था कि संभवतः गुप्त सूचना गलत भी हो सकती है अथवा दुश्मन को आभास हो गया है और उसने अपनी योजना में परिवर्तन कर दिया है। वे यह सब सोच ही रहे थे कि सीमा पर कुछ हलचल हुई। उस समय रात्रि के लगभग तीन बज रहे थे। राकेश ने अपनी भौगोलिक स्थिति के कारण यह अनुमान लगा लिया कि दूसरी ओर से लगभग दस से पन्द्रह आतंकवादी सीमा में घुसपैठ का प्रयास कर रहे हैं। अभी तक उसे पाक सेना की ओर से घुसपैठियों की मदद के लिये कोई गतिविधि होती नजर नहीं आई किन्तु वह इसके लिये भी सतर्क और तैयार था।

आतंकवादी छिपते हुए भारतीय सीमा में प्रवेश करते हैं। न तो पाक सेना की ओर से उनकी मदद की कोई कार्यवाही होती है और न भारतीय सेना की ओर से उनको रोकने के लिये कोई कार्यवाही की जाती है। वे आगे बढ़ते जाते हैं। सीमा में पर्याप्त भीतर आने के बाद वे एक स्थान पर एकत्र होकर बैठ गये। शायद वे वहाँ रूककर कुछ विचार-विमर्श करने लगे। राकेश को जैसे इसी समय की प्रतीक्षा थी। वह चारों ओर से उन्हें घेरकर हमला करने का संकेत दे देता है। इस अचानक हमले से वे हतप्रभ रह जाते हैं। जब तक वे संभल पाते उसके पहले ही अनेक मौत की गोद में समा जाते हैं। बचे हुए आतंकवादियों को जब यह समझ में आता है कि वे चारों ओर से घिर चुके हैं तो वे पाक सीमा में घुसने का प्रयास करते हैं। तभी पाक सेना की एक टुकड़ी आतंकवादियों की सुरक्षा के लिये फायरिंग चालू कर देती है। पूरी घाटी में गोलियों की आवाजें गूंजने लगती हैं। घायल आतंकवादियों की कराह भी सुनाई नहीं देती। इस व्यूह रचना में आतंकवादी फंस जाते हैं। अगर वे आगे बढ़ते हैं तो भारतीय सेना की गोलियों का शिकार होते हैं और यदि पीछे हटते हैं तो पाक सेना की गोलियाँ उन पर बरस रही होती हैं। तीन घण्टों तक चली इस मुठभेड़ में सारे के सारे आतंकवादी मारे गये।

राकेश अपने कुछ साथियों के साथ जिस स्थान से पाक सेना गोलियाँ चला रहीं थी उस स्थान को घेरने का प्रयास करता है। वह इसमें सफल होता है और उन्हें घेरने के बाद उन पर हमला कर देता है। पाक सेना में अफरा-तफरी मच जाती है वे भी पीछे हटने के लिये मजबूर हो जाते हैं। उनकी सेना के कुछ जवान मारे जाते हैं और कुछ भागने में सफल हो जाते हैं। तब तक सवेरा होने लगा। फायरिंग बन्द हो गई। प्रकाश पूरी तरह फैला तो वह यह जानने का प्रयास करता है कि हमारी ओर से कितने जवान घायल हुए या मारे गये हैं। वह यह जानकर बहुत प्रसन्न था कि हमारी ओर का कोई जवान मारा नहीं गया था। इक्का-दुक्का जवान ही घायल हुए थे।

राकेश ने हैडक्वार्टर को सारा विवरण भेज दिया। वहाँ से अगली कार्यवाही प्रारम्भ हो गई। मुख्यालय से अधिकारियों के आने के बाद मृतकों को एकत्र करने की कार्यवाही गई। राकेश जब उन मृत आतंकवादियों और सैनिकों की लाशो को देखता है तो एक सैनिक की लाश देखकर वह अवाक रह जाता है।

उच्च स्तर पर पाक सेना को समाचार दिया गया और उन शवों को ले जाने के लिये कहा गया किन्तु पाक की ओर से ऐसी किसी वारदात से इन्कार करते हुए शवों को ले जाने से मना कर दिया गया।

सेना के नियमों के अनुसार उन शवों के अंतिम संस्कार का बन्दोबस्त किया गया। इस कार्यवाही में उपस्थित कर्नल अमरेन्द्र सिंह के पास जाकर राकेश ने उनसे कहा कि वह एक शव अंतिम संस्कार स्वयं करना चाहता है।

कर्नल अमरेन्द्र सिंह ने चैंककर पूछा-

क्यों? किसलिये? क्या तुम इसे जानते हो?

जी श्रीमान! मैं इसे जानता हूँ। इसका नाम अहमद है?

तुम इसे कैसे जानते हो?

यह एक लम्बी दास्तान है।

आखिर मामला क्या है?

सर! बतलाने में बहुत समय लगेगा। यहाँ सबके बीच इसे बताना उचित नहीं होगा। कृपया आप मेरा आग्रह स्वीकार कर इसका अंतिम संस्कार मुझे कर लेने दीजिये।

कर्नल अमरेन्द्र सिंह पशोपेश में पड़ जाते हैं। मेजर राकेश सिंह उनका बहुत विश्वसनीय, होशियार एवं देशभक्त आफीसर था। उन्होंने सोचते हुए उसे सुझाव दिया यहाँ से तीन चार किलोमीटर दूर एक गाँव है जहाँ पर उसके परिचित मौलवी साहब रहते हैं। वह दस-पन्द्रह घरों का छोटा सा गाँव है। इस शव को वहाँ ले जाने की व्यवस्था कर देते हैं और मौलवी साहब के निर्देशन में तुम्हारे सामने ही दफन करवा देता हूँ। क्यों ठीक है न।

राकेश की सहमति के बाद वे इसका बन्दोबस्त करवा देते हैं।

अहमद को कब्र में सुला देने के बाद राकेश उसकी आत्मा की शान्ति के लिये फातिहा पढ़ता है। राकेश की मनः स्थिति को भांपकर कर्नल उसे अपने साथ श्रीनगर ले आए। हैडक्वाटर में शाम के समय अमरिन्दर सिंह ने राकेश को अपने पास बुलाया और कहा- मैं चाहता हूँ कि मुझे उस पाकिस्तानी सैनिक के विषय में तुम क्या और कैसे जानते हो ? मुझे बतलाओ ? उस समय तुम्हारे चेहरे पर जो दुख और विषाद था वह मैंने देख लिया था। इस बात को केवल चार ही लोग जानते हैं एक मैं दूसरे तुम तीसरे वे मौलवी जी और चौथे जनरल साहब। मैं चाहता हूँ कि यह बात हम चार लोगों के ही बीच में रहे।

राकेह ने बतलाया कि अमृतसर में वह और अहमद का परिवार अगल-बगल में रहते थे। दोनों परिवारों के बीच तीन-चार पीढ़ी के संबंध थे। हम सुख-दुख में एक दूसरे के साथ ही रहते थे। मेरे और अहमद के दादाजी में दांत काटी रोटी का संबंध था। उनका पूरा व्यापार करांची और रावलपिण्डी में फैला हुआ था। 1947 के बंटवारे में उन्हें इसी कारण से पाकिस्तान जाकर बसना पड़ा। जाते समय वे अपना घर भी हमें ही सौंप गये थे। मेरे पिताजी और उसके पिता जी में बंटवारे के बाद भी यथावत मित्रता कायम रही। अहमद के पिता जी का देहान्त होने पर हमारा परिवार उनके यहाँ पाकिस्तान गया था। अहमद उनकी इकलौती संतान था। हम दोनों उच्च शिक्षा के लिये सिंगापुर गये थे। वहाँ हम दोनों साथ-साथ ही रहते थे। पहले से ही पारिवारिक संबंधों के कारण हमारे बीच भी प्रगाढ़ संबंध स्थापित हो चुके थे। हम दोनों पढ़ाई के अतिरिक्त भारत और पाकिस्तान के संबंधों पर भी बहुत चर्चा हुआ करती थी। अहमद बहुत संवेदनशील था। वह कविताएं और कहानियां लिखा करता था। उसकी एक कविता की कुछ पंक्तियाँ मुझे आज भी याद हैं। इन पंक्तियों से उसकी सोच का पता चलता है।

हिमाच्छादित पर्वत श्रृंखलाएं

मन को शान्ति

हृदय को संतुष्टि

आत्मा को तृप्ति देती हैं।

हमने सृजन के स्थान पर

प्रारम्भ कर दिया

विध्वंस।

कुछ क्षण पहले तक

आनन्द बिखरा रहा था

यह अद्भुत और अलौकिक सौन्दर्य।

कुछ क्षण बाद

आयी गोलियों की बौछार

कर गई काम-तमाम

और जीवन का हो गया पूर्ण विराम।

हमें विनाश नहीं

सृजन चाहिए

कोई नहीं समझ रहा

माँ का बेटा

पत्नी का पति

और अनाथ हो रहे।

बच्चों का रूदन

किसी को सुनाई नहीं देता।

राजनीतिज्ञ

कुर्सी पर बैठकर

चल रहे हैं

शतरंज की चालें

राष्ट्र प्रथम की भावना का संदेष देकर

हमें सरहद पर भेजकर

त्याग व समर्पण का पाठ पढ़ाकर

सेंक रहे हैं

राजनैतिक रोटियां।

सिंगापुर में एक दिन जब मैं सड़क पर जा रहा था और गलती से एक गाड़ी के नीचे आने वाला था तभी अहमद ने अपनी जान की परवाह न करते हुए मेरे प्राणों की रक्षा की थी। यह ईश्वर का ही खेल है कि पढ़ाई समाप्त करके मैं यहाँ सेना में भरती हो गया और अहमद भी पाकिस्तानी सेना में शामिल हो गया। संभवतः वह मेरी ही गोली का शिकार हुआ है

फिर तो तुम जो कर रहे हो, वह ठीक है। तुम्हारी जगह होता तो शायद मैं ऐसा ही करता।

कुछ दिन बाद राकेश छुट्टियाँ लेकर अपने घर गया। उसकी और अहमद की माँ के बीच फोन से बात होती रहती थी। कुछ दिन पहले ही अहमद की माँ ने कहा था कि कई दिनों से अहमद की कोई खबर नहीं मिल रही है। पाकिस्तानी सेना से संपर्क करने पर भी कोई संतोषजनक उत्तर नहीं मिला है। वह बहुत चिन्तित है। यह सुनकर उसने अपनी माँ को पूरा वृत्तांत विस्तार से बतलाया। सुनकर वह बहुत दुखी और स्तब्ध रह गई।

कुछ समय बाद उसने राकेश से कहा कि तुम अहमद की माँ को सारी बात बतला दो और यह भी समझा दो कि अहमद अब इस दुनियां में नहीं है। तुमने उसे पूरे रीति-रिवाज से सुपुर्दे-खाक कर दिया है। राकेश ने माँ के आदेश का पालन किया। अहमद की माँ ने जब यह समाचार सुना तो उस पर दुख का पहाड़ टूट पड़ा। उसकी सिसकियाँ बंध गईं। राकेश उसे सान्त्वना देने का प्रयास करने लगा तो वे राकेश से बोल पड़ी- बेटे मुझे तो अपने दोनों ही बेटों पर गर्व है। अहमद ने अपने फर्ज की खातिर शहादत दी और तुमने अपने फर्ज को बखूबी अंजाम देकर हमारे दूध की लाज रखी।

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