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द्रढ संकल्प

दृढ़ संकल्प

ठंड से ठिठुरती हुयी, घने कोहरे से आच्छादित रात्रि के अंतिम प्रहर में एक मोटरसाइकिल पर सवार नवयुवक अपने घर वापिस जा रहा था, उसे एक चैीराहे पर कचरे के ढ़ेर में से किसी नवजात बच्चे के रूदन की आवाज सुनाई दी। जिसे सुनकर वह स्तब्ध होकर रूककर उस ओर देखने लगा, वह यह देखकर अत्यंत भावुक हो गया कि एक नवजात लडकी को किसी ने कचरे के ढ़ेर में फेंक दिया है। अब उस नवयुवक के भीतर द्वंद पैदा हो गया कि इसे उठाकर किसी सुरक्षित जगह पहुँचाया जाए या फिर इसे इसके भाग्य के भरोसे छोड दिया जाए। इस अंतद्र्वंद में उसकी मानवीयता जागृत हो उठी और उसने उस बच्ची को उठाकर अपने सीने से लगा लिया और उसे तुरंत नजदीकी अस्पताल ले गया। वहाँ पर उपस्थित चिकित्सक से उसने अनुरोध किया कि आप इस नवजात षिषु की जीवन रक्षा हेतु प्रयास करें यह मुझे नजदीक ही कचरे के ढ़ेर में मिला है। इसकी चिकित्सा का संपूर्ण खर्च मैं वहन करने के लिए तैयार हूँ। यह सुनकर डाॅक्टर उस नवजात को गहन चिकित्सा कक्ष में रखकर इसकी सूचना नजदीकी पुलिस थाने में दे देता है।
कुछ समय पष्चात पुलिस के दो हवलदार आकर उस नवयुवक जिसका नाम राकेष था, उससे कागजी खानापूर्ति कराकर अपनी सहानुभूति व्यक्त करते हुए उसकी प्रषंसा करते हुए चले जाते है। दूसरे दिन सुबह राकेष अपने घर पहुँचता है और अपने माता पिता को रात की घटना की संपूर्ण जानकारी देता है। जिसे सुनकर उसके माता पिता भी स्तब्ध रह जाते है और कहते है कि आज ना जाने मानवीयता कहाँ खो गयी है। वे राकेष की प्रषंसा करते हुए कहते है कि तुमने बहुत नेक काम किया है। वह नवजात बच्ची जीवन और मृत्यु के बीच संघर्ष करते हुए अंततः प्रभु कृपा से बच जाती है। उस बच्ची को देखने के लिए राकेष के माता पिता भी अस्पताल पहुँचते है। वे उस लड़की का मासूम चेहरा देखकर भावविह्ल हो उठते है और आपस में निर्णय लेते है कि अपने परिवार के सदस्य की तरह ही उसका पालन पोषण करेंगें। इस संबंध में राकेष सभी कानूनी कार्यवाही पूरी कर लेता है। वे बच्ची का नाम किरण रख देते है। कुछ वर्ष पष्चात राकेष के माता पिता उसके ऊपर षादी के लिए दबाव डालने लगते है। यह सब देखकर राकेष एक दिन स्पष्ट तौर पर उन्हें बता देता है कि वह षादी नही करना चाहता और सारा जीवन इस बच्ची के पालन पोषण और उज्जवल भविष्य हेतु समर्पित करना चाहता है। राकेष की इस जिद के आगे उसके माता पिता भी हार मान जाते है।
किरण धीरे धीरे बडी होने लगती है और अत्यंत प्रतिभावान और मेधावी छात्रा साबित होती है। कक्षा बारहवीं प्रथम श्रेणी से उत्तीर्ण करने के पष्चात वह उच्च षिक्षा के साथ साथ राकेष के पैतृक व्यवसाय दुग्ध डेरी का कार्य भी संभालने लगती है और अपनी कडी मेहनत और सूझबूझ से अपने व्यवसाय को बढाकर उसे षहर के सबसे बडे डेयरी फार्म के रूप में विकसित कर देती है। उसकी इस प्रतिभा के कारण मुख्यमंत्री द्वारा उसे प्रदेष की बेटी कहकर संबोधित करते हुए उत्कृष्ट महिला उद्यमी के रूप में सम्मानित किया जाता है। वह दिन राकेष के लिए अविस्मरणीय बन जाता है।
समय धीरे धीरे व्यतीत हो रहा था और राकेष के मन में किरण के विवाह की चिंता सता रही थी। एक दिन उसने अपने इन विचारों को किरण के सामने रखा और किरण ने आदरपूर्वक उन्हें बताया कि अभी उसने विवाह के विषय में कोई चिंतन नही किया है। अभी फिलहाल मेरा सारा ध्यान आपकी सेवा और पढाई एवं व्यवसाय की उन्नति के प्रति है। इस के बाद भी राकेष ने कई बार इस बारे में बात करने का प्रयाास किया परंतु हर बार किरण उसे वही जवाब देकर इस विषय को टाल देती थी।
एक दिन डेयरी के कार्य से दूसरे षहर से लौटते समय किरण को एक जगह भीड लगी दिखाई देती है। उसके पूछने पर पता होता है कि कोई अपनी नवजात कन्या को यहाँ छोड़ गया है। यह सुनकर उसका हृदय द्रवित हो उठता है और वह गाडी से उतरकर उस बच्ची को अपने साथ तुरंत अस्पताल ले जाती है। जहाँ पर डाॅक्टरों के प्रयास से उस बच्ची को बचा लिया जाता है और सभी औपचारिकताएँ पूरी करने के बाद वह उसे अपने घर ले आती है। राकेष को जब इन बातों का पता होता है तो वह किरण की बहुत प्रषंसा करता है और अपने कमरे में जाकर पुरानी यादों में खो जाता है जहाँ उसे वे दिन और घटनायें याद आने लगती है जब वह किरण को अपने घर लाया था।
समय ऐेसे ही निर्बाध गति से आगे बढ रहा था परंतु एक दिन अचानक ही हृदयाघात से राकेष की मृत्यु हो जाती है। यह देखकर किरण स्तब्ध और किंकर्तव्यविमूढ़ हो जाती है और अत्यंत गमगीन माहौल में वह स्वयं अपने पिता का अंतिम संस्कार करने का निर्णय लेती है। कुछ दिनों बाद सारे सामाजिक कर्मकांडों से निवृत्त होकर वह एक दिन राकेष के लाॅकरों को बंद करने के लिए बैंक जाती है और उन लाॅकरों में उसे फाइलों के सिवा कुछ नही मिलता है। वह सारी औपचारिकताएँ पूरी करके उन फाइलों को घर ले आती है। उसी दिन रात्रि में वह उन फाइलों केा देखती है और पढने के बाद स्तब्ध रह जाती है कि वह राकेष की सगी बेटी नह़ी है बल्कि कचरे के ढेर में मिली एक लावारिस बच्ची है जिसे राकेष ने अपनी बेटी के समान पाल पोसकर बडा किया और वह सुखी रह,े इसलिए षादी भी नही की। राकेष के त्याग, समर्पण व स्नेह की यादें लगातार उसके मन में आती रही और सारी रात वह इन्ही विचारों में खोयी रही।
कुछ वर्ष पष्चात षहर में एक सर्वसुविधा संपन्न अनाथ आश्रम एवं चिकित्सा केंद्र का उद्घाटन हुआ जिसमें अनाथ बच्चों के लालन पालन, षिक्षा एवं चिकित्सा की समस्त सुविधाएँ उपलब्ध थी और इसका निर्माण किरण ने अपने पिता स्वर्गीय राकेष की स्मृति में कराया था। ऐसे बच्चों की सेवा को ही उसने अपना ध्येय बना लिया था और इसी उद्देष्य की पूर्ति के लिए उसने अपने पिता के समान ही आजीवन अविवाहित रहने का दृढ संकल्प ले लिया था।

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