शैतानी साया सोनू समाधिया रसिक द्वारा डरावनी कहानी में हिंदी पीडीएफ

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शैतानी साया



🦇शैतानी साया 🦇


✍🏻सोनू समाधिया 'रसिक 🇮🇳

मध्यप्रदेश के भिंड जिले में एक गाँव में प्रकाश (परिवर्तित नाम) का व्यक्ति रहता था, जो पेशे से धोबी था। सभी उसे पप्पू बुलाते थे।
पप्पू के एक लड़का और एक लड़की थी। लड़की का नाम माया था जिसकी उम्र तकरीबन १७ वर्ष होगी।
प्रकाश अपनी मेहनत से अपने घर की छोटी - मोटी सारी जरूरतों को सहजता से पूरी कर लेता था।
उसका परिवार खुशहाल जीवन व्यतीत कर रहा था।
पप्पू की लड़की माया बेहद खूबसूरत थी, उसका अच्छा स्वभाव उसके व्यक्तित्व में चार चांद लगा देते हैं।
माया जिस रास्ते से गुजरती तो सभी उसे देखते रह जाते थे, लेकिन उससे कुछ कहने की किसी की भी हिम्मत नहीं थी। इसका कारण उसके कड़क मिज़ाज़ का होना था।

माया और उसके घरवालों को इस बात का अंदेशा बिल्कुल भी नहीं था और न ही कोई आम आदमी इसकी कल्पना भी नहीं कर सकता कि माया की खूबसूरती की कायल दूसरी दुनिया की शक्ति भी हो जाएँगी।

माया को बचपन से ही अपने आसपास किसी अदृश्य साये की मौजूदगी का एहसास होने लगा था।

एक बार पप्पू अपने गाँव के ही एक व्यक्ति खेत पर मजदूरी कर रहा था, माया उसे दोपहर का खाना देने के लिए जा रही थी।
मार्च का महीना था, तेज़ धूप से बचने के लिए माया अपना सर और चेहरे को अपने दुपट्टे से ढकती हुई जा रही थी।
रास्ते सुनसान थे क्योंकि गाँव वाले अपने खेतों के कामों में लगे हुए थे।
माया जल्दी जल्दी निर्जन और सुनसान रास्तों पर बढ़ी जा रही थी।
उसी वक्त एक गरम हवा का झोंका आया और माया को छूता हुआ निकल गया।
गरम और धूल से भरे हवा के झोंके ने माया के सर से दुपट्टा भी उड़ा दिया।

माया खुद को संभाल पाती तब तक माया के कानों में पीछे से हल्की आवाज आई।

"माऽऽऽऽयाऽऽऽऽ.....!"

"क्कौन है?"
माया ने तुरंत मुड़कर देखा तो पीछे कोई नहीं था।
माया को ये वहम लगा, क्योंकि अक्सर गर्मियों में दोपहर के समय गरम हवाओं के बवंडर बनते रहते हैं और ऎसे वहम पैदा हो जाते हैं।
माया ऎसा सोचकर जैसे ही आगे बढ़ने के लिए मुड़ी तो अचानक उसका पैर एक झाड़ी में अटक गया और उसकी डर से आँखे बंद हो गईं और उसके हाथों से टिफ़िन छूट गया।

वो जब तक गिरती उससे पहले माया को मेहसूस हुआ कि वो किसी की बाहों में है और न ही उसे टिफ़िन के गिरने की आवाज सुनाई दी।
उसने घबराकर आँखे खोली तो उसने खुद को वहां अकेला और गिरने से संतुलित पाया।
उसे अब महसूस हुआ कि अबकी बार उसका कोई वहम नहीं था कोई था जिसने उसे छुआ और गिरने से बचाया।
माया ने चारों तरफ़ देखा मगर दूर दूर तक किसी भी व्यक्ति का नामोनिशान नहीं था।
माया अब किसी को वहां न पाकर डर से कांप गई, उसने देखा पास ही में उसका टिफ़िन भी सही सलामत रखा हुआ है गिरने के बावजूद।
माया डरती हुई वहां से चली गई।

अपने बाप के पास जाकर माया ने सारी आप बीती प्रकाश को सुना दी।
प्रकाश ने उस बाकया को भूत प्रेत का चक्कर समझा और शाम को वह माया को मंदिर के एक पुजारी से झाड़-फूंक करवा लाया।
गाँव वालों की मान्यता अनुसार गर्मियों के दिनों में दोपहर के समय भूत प्रेत सक्रिय हो जाते हैं और किसी भी पुरुष या महिला को अकेला पाकर उसे अपने काबू में कर लेते हैं।


लगभग १ माह बाद....

माया अपने सहेलियों के साथ कुएं से पानी लेने के लिए गई पानी की बाल्टी कुएं से निकालते समय माया की एक सहेली जो अपने साथ नया सेलफोन लायी थी उसने माया का फोटो लेने के लिए माया को उसकी ओर देखने को कहा।
जैसे ही उसने माया का फोटो लिया तो चीख पड़ी और उसके हाथ से मोबाइल गिर गया।
उसकी चीख सुनकर माया डर गई और असंतुलित होकर कुएं में गिर गई।
सभी के होश उड़ गए थे।
माया की चीख से कुआं गूंज उठा और तभी एकदम माया की चीख रुक गई। सभी ने कुएं में झाँक कर देखा तो पाया माया बिना किसी सहारे के हवा में झूल रही है। एक व्यक्ति ने झट से रस्सी माया की ओर फेंकी माया ने उसे पकड़ लिया और उसे सही सलामत उसे कुएं से निकाल लिया सभी इस चमत्कार से भौंचक्के रह गए। सभी ने उस लड़की के चीखने का कारण पूछा तो उसने माया का फोटो दिखाया जो उसने कुछ देर पहले खींचा था।
उस फोटो में माया के साथ एक धुंधली भयानक काली परछाइ दिखी सभी ये देखकर डर गए। उस दिन से सभी माया से दूर रहने लगे।
माया बिल्कुल अकेली पड़ गई थी। उसे अब रातों को भी बुरे सपने दिखने लगे थे और उसे हरवक्त अपने आसपास किसी के होने का एहसास होने लगा था जो उसे बचपन में कभी कभी होता था।

४ माह बाद....



माया अपने क्लासमेट चेतन से प्यार करने लगी थी। दोनों एक दूसरे को चाहते थे, लेकिन किसी भी ने अपने प्यार का इजहार नहीं किया था।

एक बार माया स्कूल से वापस लौट रही थी, उसने देखा सामने चेतन सामने खड़ा उसी की तरफ़ बढ़ रहा है उसने अपने आसपास देखा तो कोई भी नहीं था, उसे समझते हुए देर न लगी वो शरमा कर इधर-उधर अपनी नजरों को छुपाते हुए देखने लगी।

"माया.... ।" - चेतन ने माया के पास आकर कहा।

"हाँ!"

"मुझे तुझसे एक बात कहनी थी, कई दिनों से सोच रहा था आज आकर मौका मिला है कहने का।"


"क्या कहना है?"

"तू मुझे बहुत अच्छी लगती है।"

ऎसा सुनकर माया के चेहरे से एक खूबसूरत मुस्कान छलक गई।

"मुझे भी, तू अच्छा लगता है।" - माया ने शर्माते हुए कहा।

"आई लव यू माया। "

चेतन, माया के और करीब आया तो माया ने शर्म से अपनी गुलाब की पंखुड़ियों जैसी पलकों से दोनों आँखे बंद कर ली उसका चेहरा रक्त वर्ण सा चमक उठा।
उसके लाल होंठ और सिंदूरी गाल उसकी खूबसूरती को और बढ़ा रहे थे। चेतन ने माया के कंधों को अपने हाथों से पकड़कर अपनी ओर खींचा तो माया के शरीर में तरंग सी उठी और उसने चेतन को अपनी बाहों में भर लिया।
उसी क्षण हवा का हल्का सा झोंका उसी आवाज के साथ माया के कानों से होता हुआ गुजर गया।
माया ने झटके से चेतन को खुद से दूर धकेल दिया और घबराकर पीछे देखा तो कोई नहीं था, उसने दोबारा मुड़कर चेतन की ओर देखा तो सामने चेतन नहीं था, उसे वहां न पाकर माया जब तक उसे बुलाती उससे पहले उसकी नजर सामने पड़े चेतन पड़ती है जो जमीन पर पड़ा बेहतासा तड़प रहा था।
माया रोती हुई उसके पास जाती है और जैसे ही उसे छूती है तो चेतन पहले जैसा सामान्य हो जाता है। चेतन धूल से गन्दा हो चुका था उसका चेहरा भी समझ में नहीं आ रहा था। वह लगातार खांसे जा रहा था।


"क्या हुआ तुम्हें चेतन?" - माया ने घबराते हुए पूछा।

"दूर हटो मुझसे तुम।" - चेतन ने खुद से माया का हाथ हटाते हुए कहा।

"ऎसा न कहो चेतन, प्लीज।" - माया ने मिन्नत की।


"दूर चली जाओ मेरी जिंदगी से भगवान के लिए। तुम मनहुश हो तुम पर किसी शैतान का साया है, जो किसी को तुम्हारे पास आने से रोकता है और उसे मार भी सकता है। देखो मेरा क्या हश्र कर दिया गला दवा दिया मेरा। इसी लिए कोई तुम्हारे पास नहीं आना चाहता। कोई भी नहीं करेगा तुमसे प्यार।
मैं जा रहा हूँ और आइंदा मुझे अपनी मनहुश शक्ल भी मत दिखाना दोबारा।"-चेतन अपने कपड़े झाड़ता हुआ वहाँ से चला गया।


माया अकेली बैठी रोती रह गई। शायद तीसरे को उन दोनों का प्यार रास नहीं आया।


उसी रात के २ बजे...

माया अपनी चारपाई पर अकेली अपने कमरे में सो रही थी। माया ने करवट ली तो अचानक उसकी नींद टूट गई उसे लगा कि वो अकेली चारपाई पर नहीं लेटी हुई है कोई दूसरा भी उसके साथ लेटा हुआ है।
माया के पसीने छूट गए और डर के मारे साँसे तेज़ हो गई। उसने अपने बगल में डरते हुए चारपाई पर हाथ फेरा तो राहत की सांस आई।
वहां कोई भी नहीं था। माया एक लंबी साँस लेकर शिथिल हो कर सीधी लेट गई और शांत मुद्रा में छत को देखने लगी।

हल्की हवा से उड़ते द्वार और खिड़कियों के पर्दों की हलचल ने माया के ध्यान को अपनी ओर आकर्षित किया।
इन्ही आवाजों में से एक आवाज माया को भयाक्रांत कर गई ये वही पुरानी आवाजें थी जिसे वह कुछ दिनों से सुनती आ रही थी। माया का गला सूख गया था डर से।
क्यों कि उसके नाम की आवाजें लगातार उसके कानों में गूंज रही थी, ऎसा पहली बार हो रहा था। माया को लगा जैसे कोई उसे नजदीक से आवाज दे रहा था। माया का डर से बुरा हाल हो रहा था, डर से उसकी हिम्मत जवाब दे रही थी, वो आवाज भी नहीं दे पा रही थी अपने माँ बाप को।

कुछ देर बाद जब आवाज आना बंद हो गई तो उसने हिम्मत करके अपनी चारपाई पर बैठ कर सामने देखा तो पाया कि कोई अंधेरे में खड़ा उसे घूर रहा है। माया की तो, ये देखकर मानो जमीन ही खिसक गई।


"क्कौन है वहां?" - माया ने डरते हुए पूछा।


माया की आवाज सुनकर दूर खड़ा अनजान शख्स आहिस्ता आहिस्ता माया की ओर बढ़ा, माया की दिल की धड़कने भी तेज़ होती जा रहीं थीं।
वह शख्स जैसे ही माया के करीब उजाले में आया तो माया उसके चेहरे को देखकर सब गम और डर भूल गई।
माया जिस शख्स के रूबरू थी वह एक बेहद खूबसूरत और आकर्षक नौजवान था।


"कौन हो तुम?"

"मैं तुम्हारा प्यार हूँ, मेरी आँखों में देखो माया। जिसे तुम आज तक महसूस करती आई हो, मैं वही एहसास हूँ।" - उस शख्स ने माया के नजदीक आते हुए कहा।

माया उस शख्स की आँखो में देखे जा रही थी, जैसे मानों वह उसकी आँखों में डूब गई हो।

"मेरा नाम प्रेम है और तुम मेरी हो हमेशा के लिए, हमें कोई भी एक दूसरे से जुदा नहीं कर सकता।"-उस शख्स ने माया को अपनी बाहों में भरते हुए कहा।

माया अचेत सी उसी को देखे जा रही थी बिना कोई एतराज़ और डर से।
माया उस शख्स (प्रेम) के आगोश में ही सो गई।

उस रात से माया को घर वालों और बाहरी दुनिया से कोई भी लगाव नहीं रहा। अब वो सारा दिन प्रेम की यादों और बातों में ही खोयी रहती थी।

दरअसल प्रेम कोई इंसान नहीं, बल्कि एक शैतानी जिन्न था। जो माया से प्यार करने लगा था और उसने माया को मोहनी विद्या द्वारा अपने वश में कर लिया था।
इस बात से अनजान माया प्रेम को चाहने लगी थी।


उन दिनों तेज़ बारिश और आंधी की वजह से गाँव में बिजली कई दिनों तक काट दी जाती थी।ज्यादातर गाँव वाले गर्मी की वजह से अपनी घरों की छत पर ही सोया करते थे।

एक एसी ही शाम को ८ बजे माया अपनी छत पर अपने प्रेमी प्रेम की बाहों में थी। सभी लोग अपने घरों में रात के खाने में व्यस्त थे।
बारिश थोड़ी देर पहले ही थमी थी, हल्की शीतल वायु अपने साथ गीली मिट्टी की सोंधी महक को लिए बह रही थी। रात प्रारंभ हो चुकी थी।


ऎसे सुहाने मौसम में माया प्रेम की बाहों में खोयी हुई थी। प्रेम उसके बालों से खेल रहा था।
माया का ध्यान सिड़ियों से किसी के आने की आवाज पर गया।
वो घबराकर प्रेम से अलग हो गई, उसने देखा कि सामने उसका बाप प्रकाश खड़ा है। माया को डर था कि उसके बाप को उसके प्यार के बारे में पता नहीं चल जाय तो उसकी खैर नहीं थी।
माया घबरा कर खड़ी हो और अपने हाथ पीछे की ओर छिपा लिए और अपना सर झुका लिया।

"क्या कर रही है, यहां अभी तक खाना नहीं खाना क्या तुझे।"


"ज्ज्जी.... बापू अभी जाती हूँ।"

माया ने आश्चर्य और डरते हुए प्रेम की ओर मुड़कर देखा तो प्रेम वहां नहीं था, तब जाकर माया ने चेन की साँस ली और सिड़ियों की ओर बड़ी।


"माया रुक! ये तु क्या छिपा रही है हाथों में।"

" क्क्कुछ नहीं बापू।"-माया ने झिझकते हुए कहा।

प्रकाश ने माया से उसके हाथों से बेग छुड़ा लिया तो बेग से दो सोने के कंगन गिर पड़े और उसने बेग में देखा एक कीमती सूट रखा हुआ था।
ये सब देख कर प्रकाश को समझते हुए देर न लगी कि उसकी बेटी का किसी लड़के से चक्कर है। वह माया को घूरता हुआ छत के चारों कोने देख आया मगर वहां कोई भी नहीं था।

माया अभी तक सर झुकाय खड़ी थी। गुस्से से पागल प्रकाश ने कपड़ो का बेग वही फेंक दिया और माया को खींचकर नीचे ले गया।
प्रकाश ने माया को एक कमरे में पटक दिया और बाहर से गेट बंद कर दिया।
माया रोती रही किसी ने भी कुछ नहीं किया माया की माँ और छोटा भाई सब डरे और सहमे हुए थे क्योंकि वे सब प्रकाश के गुस्से से भली भांति परिचित थे।

"इस बेशर्म और नीच को कोई खाना नहीं देगा, समझ गए तुम सब।"

इतना कहकर प्रकाश छत पर गया तो देखा कि वहां कोई भी बेग और कंगन नहीं थे। प्रकाश को लगा कि कोई तो है उसकी छत पर अभी।
उसने अनजान लोगों को बुरा भला कहने लगा। पर कोई प्रतिक्रिया नहीं हुई, जैसे ही वह बापस सिड़ियों पर पहुंचा तो उसे अपने पीछे किसी चीज़ के गिरने की आवाज़ आई उसने मुड़कर देखा तो पाया कि सामने एक पत्थर का टुकड़ा पड़ा हुआ है।

प्रकाश कुछ समझ पाता तब तक कई पत्थरों की बरसात होने लगी। प्रकाश खुद को बचाते हुए वहां से भाग गया।

प्रकाश अपनी पत्नी को घटित घटना के बारे में बता ही रहा था तो उसे एक कमरे से माया के खिलखिलाते हुए बात करने की आवाज सुनाई दी।
प्रकाश ने खिड़की से झांक कर देखा तो माया खाना खाते हुए किसी से बाते करते हुए हँसे जा रही थी, लेकिन सामने कोई दिख नहीं रहा था। प्रकाश के लिए आश्चर्य की बात तो ये थी ऎसा खाना माया के पास बंद कमरे में आया कैसे जो उसने अभी तक खाया ही नहीं था। पास में ही वही सूट और कंगन रखे हुए थे जो छत से गायब थे।
वास्तव में माया के सामने प्रेम बैठा हुआ था वही लाया था माया के लिए खाना, कपड़े और कंगन। माया अब पूरी तरह से उस शैतानी जिन्न के कब्जे में थी।


सुबह प्रकाश ने गाँव में पंचायत बुलाई और पंचों से कहा कि "उसकी लड़की को गाँव के कुछ लोग परेशान करते हैं।"
इसके साथ ही प्रकाश ने रात की सारी घटना पंचों को सुना दी।
तब पंचों ने कहा कि "फैसला अब माया को देखने बाद ही होगा।"

प्रकाश पंचों को अपने साथ में ले कर अपने घर गया। वहां सबने देखा कि माया अभी भी बंद कमरे में किसी से बातें कर रही है।

सभी माया के पास पहुंच गए मगर माया सबसे बेखबर अपनी बातों में मग़सुल थी। पंचों ने कमरे और छत का मुआयना किया तो इस बात का यकीन हो गया कि बाहर से कोई भी व्यक्ति कमरे में दाखिल नहीं हो सकता और माया की हालत देखकर एक बुजुर्ग व्यक्ति ने कहा कि "तुम्हारी बेटी किसी इंसान नहीं किसी शैतानी ताकत के वश में है। उसने सम्मोहन से इस पर काबू पा लिया है, अगर समय रहते कुछ उपाय नहीं किया गया तो वो तुम्हारी बेटी को अपने साथ दूसरी दुनिया में ले जाएगा।"


"पप्पू! बाबा सही कह रहे हैं, तुम्हारी बेटी किसी जिन्न के वश में है और तुम जानते हो कि जिन्न किसी चीज़ को पाने के लिए किसी भी हद तक जा सकता है। "


" अच्छा, पंच जी ऎसा है तो जिन्न ने पत्थर ही क्यूँ बरसाए, पैसे क्यूँ नहीं। अगर ऎसा है हमारे आसपास कोई जिन्न जैसी शक्ति है तो पैसों की बरसात करके दिखाए तब जाने हम।"

इतना कहते ही प्रकाश के आंगन में एक ५०० रुपये का नोट उड़ते हुए आया। सभी लोगों का आश्चर्य से मुंह खुले रह गए और देखते ही देखते पूरा आँगन १००, ५०० और १००० के नोटों से भर गया।

प्रकाश ये सब देख कर पागल सा हो गया और दौड़ कर नोटों को एक थैले में भरने लगा।
पंचों ने प्रकाश का ये पागलपन देखकर कहा - "ये क्या कर रहे हो, पप्पू इन पैसों की कीमत तुम्हें अपनी बेटी की जान देकर चुकानी पड़ेगी। वो जिन्न तुम्हें अपनी असीम ताकत और मौजूदगी का एहसास कराने के लिए ये सब कर रहा है।"

"नहीं ऎसा नहीं हो सकता, आप सब से मेरा हाथ जोड़कर अनुरोध है मेरे जिगर का टुकड़ा मेरी बेटी को बचा लीजिए। मैं पैसों के लालच में अंधा हो चुका था। "-प्रकाश ने पंच समेत गाँव वालों से गिङगिङाते हुए कहा।

कुछ समय बाद सभी पैसे स्वतः गायब हो गए।

माया की तबीयत खराब होने लगी और वह कई तरह की आवाजें निकालने लगी।


पंचों ने बाहर से एक मशहूर तांत्रिक को बुलाया और फिर उस तांत्रिक ने एक पूजा के लिए हवन किया।
माया को हवन के सामने बिठाया गया।
माया पूरी तरह से जिन्न के काबू में थी।

"हे! दुष्ट आत्मा।इस बच्ची के शरीर से निकल जा नहीं तो मैं तेरी दुर्दशा कर दूँगा।" - तांत्रिक ने जिन्न को चेतावनी देते हुए कहा।

"ह्ह्ह्हाहा... तू मुझे डरायेगा। हाहाहा... ये मेरी है और इसे मैं अपने साथ ले जाऊंगा.... ।"


"इस भोली, नेक दिल बच्ची को क्यूँ सता रहा है, इसने तेरा क्या बिगाड़ा है। "


" मैं कई सालों से एसी ही खूबसूरत और नेक दिल लड़की को ढूंढ रहा था, जो दिल की साफ हो। मैं इसे बहुत चाहता हूं। इसे मैं अपने साथ ही ले जाऊंगा। दुनिया की कोई ताकत मुझे नहीं रोक सकती।"



" मेरी बेटी को छोड़ दो, मैं अपनी बेटी के बदले में कुछ भी करने को तैयार हूं। "-प्रकाश ने हाथ जोड़कर निवेदन किया।


" हाहाहा...... ।"


" तू ऎसे नहीं मानेगा, ले.... ।"-तांत्रिक ने गंगा जल को मंत्र के साथ माया पर छिड़क दिया।



" आह्ह.... ये क्या किया तुमने आअह‍हह... ।"

" तुम्हारे जाने का समय आ गया है। चले जाओ। "


" नहीं ऽऽऽऽऽ... आअह‍हह, ऎसा मत करो, मैं जा रहा हूँ। आह! माया तुम सिर्फ मेरी हो। मैं तुम्हारे लिए फिर आऊँगा। आह... ।"

माया के शरीर से एक काली छाया निकली और माया बेसुध हो वहीं लुड़क गई।

तांत्रिक ने उसी क्षण अपने थैले से एक काँच की शीशी निकाली और उसका ढक्कन खोल कर आगे बढ़ा दी। देखते ही देखते वह काली परछाइ उस शीशी में कैद हो गई।


तांत्रिक खुद उस शीशी को गाँव के बाहर एक सूखे पड़े तालाब में एक गड्ढे में गाड़ दिया और माया एक मनहुश साये से हमेशा के लिए मुक्त हो गई है।

अभी माया की शादी हो चुकी है और वो खुशहाल है।


मगर आज भी कोई उस तालाब की गहराइयों में दफ़न उसके लिए आजाद होने की तमन्ना रखता है।

✝️ समाप्त ✝️

नोट :~यह कहानी एक सत्य घटना पर आधारित है।
मनरोंजन और जानकारी की दृष्टि से प्रत्यक्षदर्शियों के वक्तव्य अनुसार कहानी के रूप में रूपांतरित की गई है।
इस कहानी का उद्देश्य किसी भी प्रकार से अंधविश्वास को बढ़ावा देना नहीं है और न ही किसी भी तरह से सत्य होने का दावा प्रस्तुत करना है।

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