सुंदरता क्या है S Sinha द्वारा मानवीय विज्ञान में हिंदी पीडीएफ

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सुंदरता क्या है

आलेख - सुंदरता क्या है


सुंदरता सबको अच्छी लगती है और उसकी ओर सबका ध्यान आकृष्ट होना स्वाभाविक है . वस्तु या व्यक्ति की सुंदरता उस वस्तु या व्यक्ति में है या दृष्टा की दृष्टि में है , इस पर सदियों से चर्चा होती रही है . विख्यात दार्शनिक प्लेटो ने भी कहा है " ब्यूटी लाइज इन दी आईज ऑफ़ बिहोल्डर " यानि सुंदरता देखने वाले की नज़र में होती है .


सौंदर्य में ही जीवन का रस है .किसी व्यक्ति की बाहरी सुंदरता उसके संपर्क में आने वाले व्यक्ति को अपनी ओर आकर्षित करती है . अगर आदमी के वश में हो तो कोई भी व्यक्ति कुरूप नहीं होना चाहेगा .

सुंदरता की परिभाषा -


आमतौर पर हम किसे सुंदर मानते हैं - त्वचा गोरी , सुडौल मासपेशियां , बड़ी आँखें , सफेद चमकीली दंत पंक्ति , अच्छे नाक नक्श और आकर्षक चेहरा . चेहरा शरीर का एक विशेष अंग है जिसे मानसिक रूप से सुंदरता के आंकलन में हम सबसे ज्यादा महत्त्व देते हैं . पर किसी ऐसे सुंदर व्यक्ति में क्रूरता ,अभिमान , धूर्तता , व्याभिचार , उदंडता भरी है तो आप उस सुंदर व्यक्ति से घनिष्ठता न बना कर दूर रहना ही पसंद करेंगे . दर्शनीय सुंदरता एक अस्थायी आवेश मात्र है . ऐसी सुंदरता चिरस्थायी नहीं होती है .


मगर सिर्फ सुंदरता के बल पर कोई महान नहीं बन सकता है .उसकी महानता उसके सम्पूर्ण आंतरिक गुण के कारण होती है .व्यक्ति का समाज के प्रति प्रेम , योगदान ,परोपकार , दया , सहानुभूति ,क्षमा , आत्मीयता आदि गुण मिलकर उसके सम्पूर्ण व्यक्तित्व का निर्माण करते हैं और यही उसका वास्तविक सौंदर्य है न कि सिर्फ उसके चेहरे की सुंदरता .


हास्य अभिनेता चार्ली चैपलिन , कालिदास , गांधीजी , नेपोलियन , मार्टिन लूथर किंग आदि अनेकों ऐसे व्यक्ति हुए है जो सुन्दर न होते हुए भी विश्व में महान हुए हैं .किसी व्यक्ति की सुंदरता आपकी आँखों को अच्छी लग सकती है , पर आपके मन में जगह नहीं बना सकती है न ही वह समाज में आदर का पात्र होता है .


सुंदरता के अलग अलग मापदंड


आखिर सुंदरता की परिभाषा क्या होनी चाहिए ? अक्सर सुंदरता की चर्चा औरतों पर केंद्रित होती है . सुंदरता का मापदंड देश , सभ्यता और संस्कृति , काल पर भी निर्भर है . कहीं गोरी त्वचा , काली आँखें सुंदर मानी जाती हैं तो कहीं काली त्वचा .अपने ही देश में कहीं छरहरा वदन सुंदर माना जाता है तो कहीं गदराया वदन , कहीं गोल चेहरा तो कहीं लम्बा चेहरा .पश्चिमी देशों में गालों की उभरी हुई हड्डी चीकबोन सुंदर कहा जाता है पर हमारे यहाँ नहीं . मोटे या ज्यादा लम्बे होंठ हमारे यहाँ सुंदर नहीं कहलाते , पर हॉलीवुड की सोफिया लॉरेन और जूलिया रोबर्ट जैसी अभिनेत्रियाँ सुंदर कहलाती हैं और होंठों की प्लास्टिक सर्जरी करा कर सुंदर दिखने लायक बनाते हैं .

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प्राचीन काल से ही सौंदर्य प्रसाधनों का प्रयोग कर स्त्रियां अधिक सुंदर दिखने का प्रयास करती रही हैं .आजकल तो बेशुमार सौंदर्य प्रसाधन बाज़ार में उपलब्ध हैं .और प्लास्टिक सर्जरी के बल पर नाक , होंठ या चेहरे में परिवर्तन ला कर कोई भी अति साधारण लड़की बहुत सुंदर दिख सकती है .अगर पैसा है तो आज मेकअप कर हर कोई सुंदर बन सकता है जैसाकि आमतौर पर फ़िल्मी अभिनेत्रियों में देखते हैं .


फिर सुंदर किसे कहेंगे ? एक कहावत है कि लैला को देखने के लिए मजनू की आँखें होनी चाहिए . देखा जाये तो स्वस्थ शरीर , चमकती आँखें , बाल और बेदाग़ चेहरा ही सुंदर कहा जा सकता है . हम जिस रूप में सहज और खुश रह कर दूसरों की ख़ुशी का कारण बन सकते हैं , वही रूप सुंदर है . जब हम सहज नहीं महसूस करते इसीलिए ब्रांडेड कपड़े और सौंदर्य प्रसाधन के प्रयोग कर अच्छा महसूस करना चाहते हैं , हालांकि इन कृतिम सौंदर्य साधनों का हम पर क्या असर पड़ रहा है इससे अनभिज्ञ हैँ .


जब सदगुरु से सुंदरता के बारे में पूछा गया तो उनके लिए ब्रह्माण्ड की हर चीज में सुंदरता है .अगर कोई पारखी हो तो उसके लिए हर ऐसी वस्तु - मनुष्य , कीट , पतंग , मशीन , कपड़े या इमारत आदि जिसमें कम से कम संघर्ष हो सुंदर है .आप किसी भी जीव को ध्यान से देखें तो आप पाएंगे कि प्रकृति और उसके क्रमिक विकास ने उसे कितना सुंदर बनाया है .जब आप आनंदित और उत्साहित होते हैं , आपका चेहरा सुंदर लगता है .


भले ही फिल्मों में या साहित्य में भी नायिकाओं के लिए , कजरारे नैन , चाँद सा सुंदर चेहरा , झील सी नीली आँखें , सुराहीदार गर्दन आदि कितनी उपमाएं दी गयी हों पर वास्तव में सुंदरता वही सब है जो हम में है . सत्यं शिवं सुंदरम


अब सुंदरता के मापदंड के लिए कुछ महान अमर हस्तियों की सूक्तियों पर ध्यान दें .जॉर्ज सैंड के अनुसार जो सुंदरता आँखों द्वारा देखी जाती है वह कुछ पल के लिए होती है , कोई जरूरी नहीं कि हमारे

भीतर से भी वही सुंदर दिखाई दे .


खलील जिब्रान ने कहा था कि यह तो दिल की रौशनी है , बहुत ध्यान से देखना होता है .


एदुआदरो गैलियनो के मुताबिक अति सुंदरता कभी भयानक रूप से ठेस भी पहुंचा सकती है .


शेक्सपियर ने कहा था कि मेरा नजदीकी दोस्त कभी बूढ़ा नहीं हो सकता है , वह मेरे लिए सदा वैसा ही रहेगा जैसा पहली बार देखा था .


अंत में महात्मा गाँधी ने भी यही कहा था कि वास्तविक सौंदर्य ह्रदय की पवित्रता ही है .ऐसी सैकड़ों सूक्तियाँ मिलेंगी .


कोई जरूरी नहीं है कि मिस वर्ल्ड और मिस यूनिवर्स सही माने में सबसे सुंदर महिला हों , भले कुछ जजों के द्वारा शारीरिक मापदंडों पर वे खरी उतरीं हों . उनसे सुंदर लाखों महिलायें दुनिया के हर कोने में मिलेंगी .

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कुल मिला कर निष्कर्ष यही है कि बाह्य सुंदरता कुछ समय के लिए अच्छी हो सकती है पर वास्तविक सौंदर्य तो आंतरिक सौंदर्य होता है जो चिरस्थायी होता है .


- शकुंतला सिन्हा -

( बोकारो , झारखण्ड )

Presently in USA


संपादक उचित समझें तो कुछ सुधार या बदलाव कर सकते हैं

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