बड़ी बाई साब - 17 vandana A dubey द्वारा फिक्शन कहानी में हिंदी पीडीएफ

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बड़ी बाई साब - 17

. दादी का ये नया रूप देख रही थी नीलू. अब तक तो पूरी दबंगई से बोलते और दमदारी से सारे काम करवाते देखा था उन्हें, लेकिन किसी ग़लत बात पर वे चुप भी रह सकती हैं, ये नहीं मालूम था नीलू को. अच्छा नहीं लगा था उसे. दादी पर दबंगई ही जमती है. अगले दिन दादी खुद उसे लेकर उसकी ससुराल गयी थीं. हां, उन्होंने सास के कहे अनुसार केवल नीलू को ’घुमाने’ ले जाने का ही प्लान बनाया था. गौरी भी साथ थी, लेकिन उसे बड़ीबाईसाब ने सख्त ताकीद किया था कि वो अपना मुंह न खोले. कितनी मजबूर सी हो गयी थी गौरी! अपनी ही लड़की के लिये कुछ बोल नहीं सकती थी. बड़ीबाईसाब अपनी आदत के अनुसार एक टोकरी फल और मिठाई का बड़ा सा डिब्बा लेकर गयी थीं. नीलू की सास ने भी बड़ी तत्परता से स्वागत किया, और टोह लेती रहीं कि कहीं नीलू ने उसके मायके भेजे जाने का असल कारण तो नहीं बता दिया? फिर फलों की टोकरी और मिठाई देख कर आश्वस्त होती रहीं कि शायद नीलू ने ये नहीं बताया कि उसे जबरन भेजा गया है. दादी ने भी कुछ ज़ाहिर न होने दिया. जबकि नीलू चाहती थी कि दादी ज़ाहिर कर दें अपनी नाराज़गी.
एक महीने बाद प्रताप ने नीलू को भिजवाने की खबर की तो बड़ी बाईसाब ने तत्काल इंतज़ाम करने की पहल की, लेकिन नीलू ने ही आगे बढ़ के मना किया. पहली बार नीलू ने साफ़ और निर्णयात्मक स्वर में कहा था- “ दादी, भेजने, ले आने की ज़िम्मेदारी इसी परिवार की नहीं है. यदि उन्होंने बुलाया है, तो खुद ही आकर ले जायें. या फिर मैं अकेले ही आना-जाना करूंगी. न आपकी ज़िम्मेदारी, न उनकी.” और फिर नीलू ने खुद ही प्रताप से कह दिया कि –“आकर ले जायें, यहां भिजवाने के लिये कोई नहीं है.” प्रताप ने भी जो सोचा हो, या उसकी मां ने जो सलाह दी हो, अगले हफ़्ते खुद के पहुंचने की बात कही. नीलू के साथ पता नहीं कितना सामान रखा दादी ने. लेकिन ये लाने, ले जाने का सिलसिला थम नहीं पाया. न थमा ससुराल में तानाकशी का माहौल. हमेशा फूल सा खिला रहने वाला नीलू का चेहरा, कैसा तो बुझा-बुझा रहने लगा था. अब न पहले की तरह चहकती, न दादी से ही कोई ज़िद करती. पहले तो ज़रा-ज़रा सी बात पर कितना शोर मचा देती थी, और अब? समय और परिस्थितियां व्यक्ति में कितना परिवर्तन ला देती हैं!! एक बार गौरी ने पूछा भी कि –“तुम्हारे चेहरे पर इतनी दहशत क्यों रहती है? यहां आते ही वापस जाने की जल्दी क्यों करती हो? यहां अच्छा नहीं लगता या वहां से कोई पाबंदी है?” नीलू का जवाब सुन के गौरी के होश उड़ गये थे.

नीलू बोली- “ मां, प्रताप और उसके घर वाले किसी भी हद तक उतर जाने वाले लोग हैं. अगर मैं बहुत दिनों तक यहां रही तो मम्मी जी मेरे ऊपर ससुराल में न रहने का आरोप लगा के तलाक भी करवा सकती हैं. रही बात प्रताप की, तो वो वही करेगा, जो उसकी मां कहेंगीं. और मां, मैं नहीं चाहती कि एक बेटे के साथ मैं वापस यहां आऊं. जब तक चल रहा है, चलाउंगी, जिस दिन लगा, अब बहुत हो गया, उस दिन अपने सामान सहित आ जाउंगी.” नीलू की आवाज़ का दर्द महसूस कर पा रही थी गौरी. कितनी मजबूर हो जाती हैं बेटियां!!

(क्रमशः)