बड़ी बाई साब - 8 vandana A dubey द्वारा फिक्शन कहानी में हिंदी पीडीएफ

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बड़ी बाई साब - 8

कमज़ोर पारिवारिक पृष्ठभूमि के चलते रिजेक्ट कर देने वाली बड़ी बाईसाब ने आखिर इस परिवार के लिये क्यों हामी भरी? क्या दिखा उन्हें इस परिवार में? लड़का ठीकठाक है, लेकिन इतनी अच्छी नौकरी में भी नहीं जो उसके आर्थिक रूप से बेहद कमज़ोर परिवार से समझौता किया जाता. गौरी किसी भी परिवार का आकलन उसकी आर्थिक स्थिति से बिल्कुल नहीं करना चाहती, लेकिन बच्चों को जिस परिवेश में रहने की आदत होती है, कोशिश उसी परिवेश में भेजने की भी होनी चाहिये. इन दोनों परिवारों में तो कोई मेल ही नहीं था.

परिवारों के बीच आर्थिक खाई, कभी नहीं पटती, बल्कि समय-समय पर ताना देने का ज़रिया जरूर बनती है. गौरी का मानना है कि यदि परिवार पढ़ा-लिखा, समझदार, संस्कारवान है तो पैसा मायने नहीं रखता. ऐसा परिवार/व्यक्ति मिल जाना ही सौभाग्य है. ऐसे घर में बेटी कभी दुखी रह ही नहीं सकती. लेकिन यदि परिवार कम शिक्षित, मूर्ख और संस्कारहीन हो तो पैसा हो, तब भी और न हो, तब भी बेकार. नीलू की ससुराल को गौरी ने दूसरी श्रेणी में रखा था, जितना उसने उन्हें समझा उस हिसाब से. और इसीलिये गौरी को बेटी की चिन्ता थी. वो जानती थी, अपनी कमियों को छुपाने के लिये वे सब नीलू को निशाना बनायेंगे. उनकी बातचीत का स्तर ही गौरी को पसन्द नहीं आया था. पता नहीं बड़ी बाईसाब कैसे राजी हो गयीं इस रिश्ते को. शायद नीलू की बढ़ती उमर भी कारण रहा हो…….. !
“ दादी कहां आपने दीदी को भेज दिया ! इतने बद्तमीज़ हैं कि क्या कहूं… !” विदाई के समय बहन की गाड़ी ड्राइव करके रोहन ही ले गया था. लौटा तो आते ही बरस पड़ा.
“क्यों क्या हुआ?” दादी और गौरी ने लगभग एक साथ ही पूछा.
“ क्या नहीं हुआ? आप से कहा था, इतना दिखावे की ज़रूरत नहीं है. न सही दिखावा, लेकिन उनके लिये तो ये पैसे की चमक दिखाना ही हो गया न? ट्रक में लद के जब सामान उनके छोटे से घर के आगे पहुंचा तो परमार साब ने यही कहा कि जब इतना सामान दिये हैं तो इसे रखने को घर भी दे देते. उन्हें नहीं मालूम क्या कि हम तीन कमरों के घर में रहते हैं? हमारी खिल्ली उड़ाने को दिया क्या इतना सामान? गुस्सा तो इतना आया न कि पलट के जवाब दे दूं, लेकिन बहन को वहां छोड़ के वापस जो आ जाना था मुझे. उसी का खयाल करके चुप रह गया वरना मैं तो…..”
बाद के दिनों में उनके द्वारा अपमानित करने का सिलसिला बढ़ता गया. गौरी ने सुना था कि बड़े घरों में, गरीब की बेटी को अपमानित किया जाता है, बात-बात पर लेकिन ये नहीं सुना था कि किसी अति धनाड्य बेटी को उसकी सामान्य सी ससुराल अपमानित करेगी, वो भी उसके पैसे के लिये!! उन लोगों को बुरा-भला कहा जायेगा, जिन्होंने आपका घर भर दिया, बैंक बैलेंस बना दिया, घर के बाहर बड़ी सी गाड़ी खड़ी कर दी!! आज गौरी को महसूस हो रहा था कि पैसों की दम पर मानसिक सुख नहीं खरीदा जा सकता…. अगर कहीं ये लोग अच्छी-सच्ची सोच वाले होते तो नीलू को हाथों पर उठा लेते. लेन-देन का मसला ही न होता तब….
कितना मना किया था गौरी ने बड़ी बाईसाब को…..
अब झेलेगी नीलू………

(क्रमशः)