बड़ी बाई साब - 4 vandana A dubey द्वारा फिक्शन कहानी में हिंदी पीडीएफ

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बड़ी बाई साब - 4

ाशाह रवैया नहीं अपनाया या ऐसा फ़ैसला जिसे ग़लत ठहराया जा सके, लिया भी नहीं. गौरी की शादी के वक़्त जब बड़ी बाईसाब खुद बारात में आईं, तो लोगों ने दांतों तले उंगलियां दबा लीं. उस वक़्त तक महिलाओं, खासतौर से सास का बारात में आना एकदम नहीं होता था. महिलाओं के नाम पर छोटी लड़कियां ही बारात में जा पाती थीं. ऐसे में बड़ी बाईसाब का दमकता व्यक्तित्व जब दरवाज़े पर पहुंचा तो लोग हकलाने लगे. उन्होंने भी स्थिति को समझा और वाकपटु बड़ी बाईसाब ने तत्काल कमान संभाली. बारात में आने का मक़सद साफ़ किया. बोलीं-
“ यूं तो मुझे बारात में आने का कारण बताने की ज़रूरत नहीं है, लेकिन आप सबकी हालत देख के लग रहा है जैसे कोई अनहोनी हो गयी है. सो आपको बता दूं, कि पहली बात, मैने अपने परिवार की औरतों पर बारात में जाने की पाबन्दी तोड़ने के लिये ये क़दम उठाया. अब से हमारे खानदान की सभी बहू-बेटियां बारात में जा सकेंगीं. दूसरी बात, बुंदेला साब पता नहीं आपकी ज़िद के ऊपर अपनी ज़िद को हाबी कर पाते या नहीं, सो मैं बेटी को हर हाल में दहेज देने की आपकी ज़िद तोड़ने भी आई हूं. फ़िलहाल आपसे हाथ जोड़ कर आग्रह है, कि आप केवल बेटी की विदाई करेंगे. किसी भी तरह का सामान हम नहीं लेंगे. हर रस्म भी आप हज़ार रुपये से ज़्यादा की नहीं करेंगे. हमें अपनी पसन्द की बहू मिल गयी, यही बहुत है. ईश्वर ने हमें दोनों हाथों भर-भर दौलत दी है, सो हम आपकी बेटी को भी अपनी तरफ़ से उसकी ज़रूरत का सामान दे पायेंगे. बेटी को देने के नाम पर आप हमारा घर न भरें.”
घराती/बराती सब मुंह बाये देखते रह गये. पूरे शहर में परिहार साब की हैसियत और दिलदारी सब जानते थे. उन्हें मालूम था कि इकलौती बेटी को वे क्या नहीं देंगे. लेकिन यहां तो सब मामला ही उलट गया. ये अलग बात है कि धनाड्य परिवार की बेटी गौरी को अपनी सास का ये रूप भाया था. गौरी के पूरे खानदान में भी न केवल गौरी का मान बढ़ा, बल्कि उसकी सास की सब दिल से इज़्ज़त करने लगे. ससुराल पहुंच के हर तरह का सामान अपने कमरे में सजा पाया था गौरी ने. काम करने के लिये नौकरों की पूरी पल्टन थी. लेकिन रसोई में गौरी की देख-रेख में ही खाना बनता. कुछ सब्ज़ियां गौरी ही बनाती. चंद मिठाइयां भी गौरी ने सास से ही सीखीं. मां के घर में तो पढ़ाई के अलावा कुछ किया ही न था. मां व्यंजन बनातीं, और गौरी खाती, बस इतना ही रिश्ता था रसोई से, लेकिन ऐसा भी नहीं था कि उसे कुछ बनाना नहीं आता था. नीचे फिर हलचल हुई तो गौरी होश में आई. बड़ी झुंझलाहट हुई उसे खुद पर. अपने आप को डपटा भी उसने- “जब कहने का वक़्त था, तब कहा नहीं, तो अब झींकने से क्या फ़ायदा? जो हो रहा होने दो आराम से. तुम देखो और जो कहा जाये, वो करो, हमेशा की तरह.”
आज नीलू की बारात आने वाली है. शादी का पूरा इंतज़ाम घर पर ही किया गया है.