बड़ी बाई साब - 3 vandana A dubey द्वारा फिक्शन कहानी में हिंदी पीडीएफ

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बड़ी बाई साब - 3

ऐसे अद्भुत व्यक्तित्व के धनी बहुत कम होते हैं, सो उनके जोड़ की बहू कैसे मिलती? सब उनसे उन्नीस ही थे. बीस कोई मिला ही नहीं, या उन्होंने खोजी ही उन्नीस. लड़के का ब्याह भी ऐसी उमर में कर दिया, जब मना करने का न उसे शऊर था, न हिम्मत. अपनी पसन्द बताना तो बहुत दूर की बात.
“गौरी भाभी, बड़ी बाईसाब टेर रहीं आपको” कमला की आवाज़ से तंद्रा टूटी गौरी की.
“कहां थीं गौरी? जब कोई रस्म हो रही हो तो तुम्हें आस-पास नहीं रहना चाहिये क्या? पंडित जी को कभी किसी चीज़ की ज़रूरत है, तो कभी किसी. दुतल्ले तक आवाज़ भी तो नहीं पहुंचती न हमारी…..”
“अरे अब जाने दीजिये बड़ी बाईसाब. बहूरानी एक कटोरी में दही और थोड़ा सा चावल भिगा के ले आइये.” पंडित जी ने बीच में क्षेपक लगाया वरना गौरी के ऊपर कई इल्जाम तड़ातड़ लगाये जाते. पंडित जी इस खानदान के पुराने पंडित थे सो जानते थे सब. सामान पहुंचा के गौरी बैठ गयी, ज़रा दूर पर. पंडित जी फिर पूजन में संलग्न हो गये.
“बेटी अपना नाम बोलो.”
“नीलिमा”
नीलू के पैदा होने के कई महीनों पहले ही गौरी ने कुछ नाम सोच रक्खे थे. उसे शुभ्रा नाम बहुत पसन्द था. गौरी ने सोच लिया था कि यदि बेटी हुई तो यही नाम रखेगी. लेकिन कहां रख पाई? जिस दिन बेटी ने जन्म लिया, उसी दिन बड़ी बाईसाब ने घोषणा कर दी- “ लो मेरी नीलिमा आ गयी. कब से ये नाम दिमाग़ में घूम रहा था, लेकिन कोई मौका ही न दे रहा था रखने का. अब जा के साध पूरी हुई”.
बस ! उसी दिन से नन्ही बिटिया नीलिमा, नीलू, नीली हो गयी. गौरी मन मसोस के रह गयी. पति सुबोध ने मां के इस नामकरण पर एक बार गौरी की तरफ़ देखा ज़रूर, क्योंकि उन्हें मालूम थी गौरी की इच्छा, पर कहा कुछ नहीं. केवल सुबोध ही क्यों? पूरे घर पर उनका यही रुआब था. उन्होंने जो कह दिया, उसे काटना तो दूर, हल्का सा विरोध भी कोई नहीं करता था. यही हाल पिताजी का था. बड़ी बाईसाब ने जो कह दिया सो कह दिया. अपने आगे पिताजी चाहे जितना बड़बड़ायें, मां के सामने उफ़ करने की भी हिम्मत नहीं थी उनमें. ये अलग बात है कि बड़ीबाईसाब ने कभी कोई तानाशाह रवैया नहीं अपनाया या ऐसा फ़ैसला जिसे ग़लत ठहराया जा सके, लिया भी नहीं. गौरी की शादी के वक़्त जब बड़ी बाईसाब खुद बारात में आईं, तो लोगों ने दांतों तले उंगलियां दबा लीं. उस वक़्त तक महिलाओं, खासतौर से सास का बारात में आना एकदम नहीं होता था. महिलाओं के नाम पर छोटी लड़कियां ही बारात में जा पाती थीं. ऐसे में बड़ी बाईसाब का दमकता व्यक्तित्व जब दरवाज़े पर पहुंचा तो लोग हकलाने लगे. उन्होंने भी स्थिति को समझा और वाकपटु बड़ी बाईसाब ने तत्काल कमान संभाली. बारात में आने का मक़सद साफ़ किया. बोलीं-
“ यूं तो मुझे बारात में आने का कारण बताने की ज़रूरत नहीं है, लेकिन आप सबकी हालत देख के लग रहा है जैसे कोई अनहोनी हो गयी है.