बड़ी बाई साब - 11 vandana A dubey द्वारा फिक्शन कहानी में हिंदी पीडीएफ

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बड़ी बाई साब - 11

बुंदेला साब को मन ही मन हंसी आई होगी ऐसे प्रस्ताव पर. सोचते होंगे कि अभी तो खुद ठाकुर साब की उमर चालीस से बस कुछ ही ऊपर है. जब तक ज़रूरत पड़ेगी, तब तक बिटिया ससुराल में रम चुकी होगी. और बाद में देखना भी पड़ा तो क्या? आखिर सारी ज़ायदाद बेटे के नाम हो भी तो जायेगी, सो देखभाल भी जायज़ है.
लेकिन बुंदेला साब का अनुमान ग़लत निकला, और ठाकुर साब मात्र पैंतालीस साल की उमर में ही हृदयाघात के चलते, परलोकवासी हो गये. सुनंदा, जिसने ससुराल में पांच साल भी राम-राम करके ही गुज़ारे थे, अब पति-बच्चे सहित मायके आ गयी, ज़मीन-जायदाद की देखभाल को, लिये गये वचन के अनुसार. ससुराल में होने वाले शादी-ब्याह या किसी और समारोह में जाने के अलावा अब उनका वहां से कोई खास नाता न रह गया था.रियल स्टेट का धंधा था, सो बुंदेला साब भी यहीं रम गये. सोचा तो सुनंदा जी ने नीलू के लिये भी यही था. समधी से बस ये बोला नहीं, लेकिन योजना उनकी भी नीलू और दामाद को अपने पास ही रखने की थी. देखिये अब क्या होता है….. अभी तो ब्याह ही हुआ है.

नीलू जब स्कूल में पढ़ रही थी तब कितनी सुखी थी. न शादी की चिन्ता न ससुराल की. न खाने की चिन्ता, न मोटे होते शरीर की. लेकिन कॉलेज में आते ही लड़कियों ने टोकना शुरु किया. लड़कों का परोक्ष मज़ाक उसे चुभता. बी.एस.सी. तक तो ठीक था, लेकिन एम.एससी. में दाखिला लेते ही घर वालों को उसका फ़ैलता शरीर दिखने लगा था. कॉलेज में भी सहेलियां टोकतीं, और लड़के “अप्पू” बुलाते, पीठ पीछे. लेकिन पढ़ने में बेहद कुशाग्र नीलू के मुंह पर कोई भी मज़ाक नहीं उड़ा पाता था. दादी की चिन्ता भी उसे तक़लीफ़देह लगती. वो जानती थी कि उनकी चिन्ता केवल उसकी शादी को लेकर है कि मोटी हो रही हूं तो लड़का कैसे मिलेगा…! जैसे उसका एकमात्र लक्ष्य शादी करना ही तय कर दिया गया था. छोटे बहन-भाई को बाहर पढ़ते देखती है तो मन में कभी-कभी कसक सी होती है. दादी ने बाहर भेज दिया होता, तो आज डॉक्टर बन के निकलने वाली होती.

एमएससी होते ही दादी ने लड़के तलाशने शुरु कर दिये थे. बल्कि एक साल पहले से ही वे लड़के देख रही थीं, लेकिन दबे-छुपे. अब पढ़ाई पूरी होते ही शादी की बातें खुल के होने लगीं. एक साल के भीतर जब तीन रिश्ते लौट गये, तो दादी के माथे पर चिन्ता की लकीरें नीलू ने स्पष्ट महसूस की थीं. तीनों रिश्ते उसके वज़न के चलते लौटे थे. हर लड़का और उसका परिवार तन्वंगी चाह रहा था. एक ऐसा मॉडल, जो पूरी तरह “बहू” और “पत्नी” के खांचे में फ़िट बैठता हो. लम्बी, गोरी, इकहरे बदन की, सुशिक्षित, सुलक्षणा बहू चाहिये थी उन सबको. और नीलू खूबसूरती के तयशुदा मापदंडों पर खरी नहीं उतरती थी. उसकी तथाकथित कमी मोटापा ही थी. उसकी डिग्री, कुशाग्र बुद्धि, और अन्य निपुणताएं इन तयशुदा मापदंडों के आगे बेमानी थीं.
कभी डॉक्टर बनने का ख्वाब देखने वाली नीलू भी अब कुछ और कहां सोच पाती थी? उसे भी दिन रात अपनी शादी की ही चिन्ता रहने लगी थी . ऐसे में जब परिहार परिवार की ओर से खुद चल के रिश्ता आया तो नीलू समझ ही नहीं पाई कि उसे कैसा लग रहा है? खुश है या नाखुश?

(क्रमशः)